शनिवार, 26 अक्तूबर 2019

हरियाणवी नेताओं से सीखो, राज बनाना राज चलाना::कविता- करणीदानसिंह राजपूत



हरियाणा के नेताओं से सीखो, 

कैसे राज बनाया जाता है,

कैसे राज चलाया जाता है।

बिकना और खरीदना,

यह तो है अखबारी भाषा है।

बिकना और खरीदना,

 यह तो विरोधियों की भाषा है।

 ऐसेआरोपों में कोई तंत्र नहीं होता,

 ऐसे आरोपों में कोई दम नहीं होता।

दो दिन भी नहीं चल पाते,

जनता में ऐसे आरोप।

ऐसे आरोपों को भूल जाते हैं,

लगाने वाले भी सुनने वाले भी।

राज बातों से नहीं बनता,

राज बातों से नहीं चलता,

राज बनाने को,

राज चलाने को ही,

राजनीति कहते हैं।

राजनीति हर कोई नहीं सीख पाता। चुनाव लड़ना और चुनाव जीतना ही, राजनीति नहीं होती।

राजनीति में कब किसको पलट दे, जीते हुए को भी उलट दे।

लोगों की सोच सही होते हुए भी,

झूठी साबित हो जाए,

समझो कि यही राजनीति है।


दिल्ली में बैठे मोटे भैया भी,

कब क्या कर जाएं यह भी सीखो। व्हेल मछलियां कैसे मोटे मोटे मछलियों को भी गटक जाती है,

कि नामोनिशान ही नहीं रहता। राजनीति में भी कब किसको कौन गटक जाए यह मालूम नहीं पड़ता। छोटे कै बड़ा गटक जाता है क्योंकि बड़े का पेट भी बड़ा होता है,

जिसमें सब कुछ हजम हो जाता है।


बहुत बार छोटी मछली को मालूम ही नहीं पड़ता,

कि वह जिस मछ के पास,

जा रही है इतराती हुई,

समझती है संरक्षण मिलेगा,

मगर मालूम पड़ता है कि वह तो निवाला बन गई। 

किसी का भाग्य हो तो,

बच कर निकल जाए,

लेकिन क्या ऐसा संभव हो सकता है।

बड़े दल में समाने के बाद,

भीतर ही भीतर घुटते रहने के,

अलावा क्या हो सकता है?

हां,खाने पीने की छूट,

खाओ मौज उड़ाओ,

मगर बोले तो शायद,

आवाज भी नहीं निकल पाए।


राजनीति में यही तो मजे हैं।

जो जीता वह कहता है,

अपने बल पर जीता।

 क्या होती है जनता।

 पांच साल बीतने तक,

 क्या जनता को याद रहता है?

जिन पर आरोप लगाए जाते हैं,

उन्हीं से दोस्ती कर लेना,

यही तो राजनीति है।

अरे,सीखो हरियाणा के नेताओं से,

वे किस दल से हैँ किस दल में जाएंगे जनता से कैसे कैसे वादे किए हैं,

और उनको कैसे-कैसे तरीकों से निभाएंगे।

सीखो हरियाणा के राजनेताओं से,  हरियाणा के राजनीतिक दलों से,

जनता तो सदा की मूर्ख होती है।

उसमें जो बुद्धि होती है,

राजनीतिज्ञ ऐसा चक्र चलाते हैं,

कि लोग भुलावे में रह जाते हैं।

राज किसको दिया था,

और किसने राज बना लिया।

समझो ऐसी राजनीति को।

जनता का काम है नारे लगाना,

 जनता का काम है तालियां बजाना, जनता का काम है,

जोड़-तोड़ की खबरें पढ़ना,

राजनीति में कुछ सीखना है तो,

ताजा घटनाक्रम हरियाणा का प्रमाणित है।

सीख लो, अभी सीख लो,

कभी तुम्हारे भी काम आए,

सच्चाई और ईमानदारी के लिए नहीं, राज बनाने के लिए कुछ सीख लो।

जनता को क्या कह कर जीता चुनाव,

और आगे क्या क्या करते हुए,

राजदंड हाथ में कैसे लिया जाता है।

सीखो,

हरियाणा के नेताओं से सीखो।

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करणीदानसिंह राजपूत,

स्वतंत्र पत्रकार,

सूरतगढ़ ( राजस्थान)

सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

सूरतगढ़ रेलवे रोड पर दुकान का अवैध निर्माण सीज कब होगी.


सूरतगढ़ 21अक्टूबर2019.

 रेलवे रोड मुख्य बाजार में नगरपालिका की रोक-टोक के बावजूद दुकान मालिक नगर पालिका नियमों के विपरीत दुकान का निर्माण करवा रहा है। यदि यह निर्माण अनहोनी से गिरता है तो आने जाने वालों पर जानलेवा होगा। नगर पालिका एक्ट में स्पष्ट लिखा हुआ है कि आधार से आगे छज्जा  निकाला हुआ हो तो उसके ऊपर कमरा/ बंद निर्माण नहीं किया जा सकता। छज्जा ल बालकनी खुली रखी जानी चाहिए। यह मालिक छज्जे के ऊपर 9 इंची की दीवार से ऊपर भी बड़ी दुकान बनवा रहा है। कानून तोड़कर इसका निर्माण किया जा रहा है।

नगर पालिका के पास  सीज करने का अधिकार है। उपखंड अधिकारी की देखरेख में दुकान सीज करवा कर ही कोई करवाई हो सकती है। जनता को बचाने के लिए निर्माण को गिराती है। उक्त अवैध निर्माण पर लोगों की निगाहें लगी है।नगरपालिका ईओ लालचंद सांखला और निर्माण शाखा को अवैध खतरनाक निर्माण की जानकारी हो चुकी है जिससे उनकी भी जिम्मेदारी है कि तुरंत ही कार्रवाई करे।

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रविवार, 20 अक्तूबर 2019

2आलीशान कॉलोनियां भूमि जांच में घिरी:बसंत विहार व आनंद विहार-


** करणी दान सिंह राजपूत **

सूरतगढ़ 20 अक्टूबर 2019.

सूरतगढ़ बाईपास के चिपते अत्यंत महत्वपूर्ण कीमती स्थान पर बड़े लोगों की दो आलीशान वीआईपी कॉलोनियों की जमीन की जांच की शिकायत होने के बाद उपखंड अधिकारी सूरतगढ़ को जांच का जिम्मा सौंपा गया है।

आरोप है कि यह जमीन बीड़ जोड़ पायतन की थी जिसका आवंटन नहीं हो सकता था मगर हेराफेरी करके आवंटन किया गया। सूरतगढ़ के राजस्व तहसीलदार के पास अधिकारिक पावर नहीं होते हुए भी उस जमीन का खातेदारी अधिकार जारी कर दिया। 

यह 2 कॉलोनियां निर्माण के समय से ही करीब 15 सालों से चर्चा में रहती आई हैं। 

आज से करीब 15 -16 वर्ष पूर्व जब बसंत विहार कॉलोनी का निर्माण शुरू हुआ तब यह तथ्य सामने आया था  कि उक्त जमीन तो किसी भी हालत में आवंटित ही नहीं की जा सकती थी। गोलमाल से या भ्रष्टाचार से इस भूमि का आवंटन किया गया और बाद में खातेदारी अधिकार भी दे दिए गए। वीआईपी कॉलोनियां यहां बनाई गई जिसमें वर्तमान में भी आधे भूखंडों पर मकान बने हुए हैं और करीब आधे भूखंड खाली पड़े हैं।

सुखदेव सिंह ने शिकायत कर जांच की मांग की थी। सुखदेव सिंह का आरोप है कि राजस्व तहसीलदार सूरतगढ़ को भूमि का खातेदारी अधिकार देने का कोई अधिकार नहीं था इसके बावजूद उसने किशोरी लाल पुत्र दानाराम माली व अन्य को गलत खातेदारी दी। यह जमीन बाद में बिल्डर्स ने खरीद ली और कालोनियां बना दी गई। 

सुखदेव सिंह ने शिकायत की कि खसरा नंबर 12 की 5.022 हेक्टेयर और 5.08 हेक्टेयर भूमि जो आवंटित हुई है उसकी जांच की जाए।

जिला प्रशासन ने उपखंड अधिकारी सूरतगढ़ को जांच करने का आदेश 27 सितंबर 2019 को पत्र के जरिए दिया है।  जांच में क्या परिणाम आता है यह आने में महीनों लग सकते हैं।


बसंत विहार और आनंद विहार कालोनियों में बिल्डरों ने भूखंड कर बेचे जिन पर खरीदारों ने अपने ईच्छानुसार निर्माण करवाए। ये निर्माण और खाली भूखंड आगे भी बिकते गए। 

बिल्डरों ने भूखंड काट व कुछ सड़कें आदि निर्माण कर नगरपालिका को सौंप दिया था। दोनों कालोनियों में भूखंडों और बनी कोठियों की कीमत शहर से दुगुनी तिगुनी है लेकिन अब अनेक शंकाएं पैदा हो गई हैं, ऐसे हालात में आगे मुंह मांगी कीमतें मिलना मुश्किल होगा। जांच दमदार होती लगी तो कीमतें मिलना छोड़ खरीदार भी नहीं होंगे।

कालोनियों में राजनीतिक लोग पूर्व विधायक, पालिकाध्यक्ष,अधिकारी, सेवानिवृत्त अधिकारी, बडे़ व्यवसायी रहते हैं।

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शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

करणी प्रेस इंडिया के पाठक 13 लाख से पार! शानदार सफलता*


* करणीदानसिंह राजपूत *

सूरतगढ़,19 अक्टूबर 2019.
सच्च को सामने लाने, दबे पिछड़े हुए लोगों की आवाज को उठाने व समाज को जगाने के समाचारों विचारों के सामने लाने के प्रयास में करणी प्रेस इंडिया पाठकों की पसंद में शिखर पर है। पाठक 13 लाख से अधिक बार देख कर और आगे बढ चुके हैं। यह ऊंचाई पार करना प्रसन्नता पैदा करने वाली तो है ही और आगे बढने की प्रेरणा देने वाली भी है।
इस साइट को सीधेे ही देेखने या इसके लिंक को फेस बुक मेरे नाम करणीदानसिंह राजपूत पर तथा ऑल वर्ल्ड ब्लॉग संगठन की न्यूज में देख पढ़ कर तत्काल विचार प्रगट करने में पाठक गण भी आगे रहे हैं। ये कदम ऐसे प्रभावशाली रहे हैं कि इनसे निरंतर तेज गति मिली  है।
हमने विचारों को नया विस्तार दिया है जिसमें अनेक नए विषय शामिल किए हैं। व्यक्तियों के बजाय तथ्यों वाले कानून   एवं नियमों को सर्वाेपरि मानते हुए आगे बढे हैं।
महिलाओं व लड़कियों के साथ अपराध बढ़े हैं इसलिए सावधान व सतर्क रहने की जागरूकता के लिए भी पोस्टों को लिखा जा रहा है। कन्याओं को बचाने का अभियान हो  या नशा मुक्ति अभियान हो, उनके समाचार देने में आगे रहे हैं।
कई लोग व संगठन कानूनों से परिचित नहीं होते इसलिए उनको हमारा लिखा हुआ अनेक बार अच्छा नहीं लगता,लेकिन उनकी आलोचनाओं  व टिप्पणियों पर गौर किया जाता रहा है।
विशाल देश में नए नए समाचार तेजी से आते हैं। हमारे क्षेत्र में भी समाचारों का बाहुल्य है इसलिए किसी विषय को पकड़ कर नहीं रखा जा सकता। नए विषय पर भी आगे बढना होता है।
राजनीतिज्ञ​ सत्ताधारी धनबली और भ्रष्टाचारी सदा ही मीडिया को अपने विचारों से चलाना चाहते हैं लेकिन लोगों के साथ रहते हुए सच्चाई को ही आगे लाने के प्रयास में रहे हैं।
बड़े अखबार जिन समाचारों को रोकने में दबाने में व अपनी ईच्छानुसार बदल कर गोलमाल तरह से छापने में समय के अनुसार लगे हुए हैं। ऐसे समय में निर्भीक स्वतंत्र लेखन व समाचार देने का प्रयास रहा है। यही एक महत्वपूर्ण प्रमाण है कि अनेक समाचार बड़े अखबारों में नहीं मिलते जो करणी प्रेस इंडिया में पढ़ने को मिल जाते हैं। अखबारों में व चैनलों में आसपास के समाचार देने में आनाकानी होती है,लोग समाचार देखने को पढ़ने को आतुर रहते हैं लेकिन मिलते नहीं हैं। वे समाचार विचार करणी प्रेस इंडिया में देने का प्रयास रहता है।
राजनैतिक आपराधिक सामाजिक धार्मिक आर्थिक विषय शहरी व ग्रामीण,सरकारी व गैर सरकारी सभी में आगे रहने का प्रयास सदा सफल रहा है।
हमारे समाचार,विचार,टिप्पणियां,लेख कहानियां,कविताएं एवं
फोटो कवरेज आसपास और देश प्रदेश में सभी वर्गों द्वारा सराहे जाते रहे हैं।
हमारे असंख्य पाठकों की आलोचनाओं समालोचनाओं ने ही इस ऊंचे शिखर पर पहुंचाया है। उनकी आलोचनाओं समालोचनाओं भरी राय से ही आगे और आगे बढने की प्रेरणा मिली है।
उच्च कोटि की टिप्पणियों व समाचारों के लिए लोग इस साइट पर भरोसा करते हुए देखते हैं।
पाठकों से आग्रह है कि करणी प्रेस इंडिया को देखते रहें व फोलोवर बनें।

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मेरा 75 वें वर्ष और पत्रकारिता में 54 वें वर्ष में प्रवेश- करणीदानसिंह राजपूत.


^ माँ हीरा और पिता रतनसिंहजी की सीख तूं चलते जाना निर्भय होकर-पीड़ितों की आवाज बन कर:^

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पत्रकारिता एवं लेखन के वर्षों के संघर्ष और आनन्ददायी अनुभवों व महान लेखकों पत्रकारों की रचनाओं को पढ़ते और उनसे मिलते हुए मेरे जीवन के चहोतर वर्ष पूर्ण हुए एवं 19 अक्टूबर 2019 को 75 वें वर्ष में प्रवेश की सुखद अनुभूति।
सीमान्त क्षेत्र का छोटा सा गांव जो अब अच्छा कस्बा बन गया है अनूपगढ़ जिसमें मेरा जन्म हुआ। माता पिता हीरा रतन ने और परिवार जनों ने वह दिया जिसके लिए कह सकता हूं कि मेरी माँ बहुत समझदार थी और पिता ने संषर्घ पथ पर चलने की सीख दी।
सन् 1965 में दैनिक वीर अर्जुन नई दिल्ली में खूब छपा और सरिता ग्रुप जो बड़ा ग्रुप आज भी है उसमें छपने का गौरव मिला।
हिन्दी की लगभग अनेक पत्रिका में छपने का इतिहास बना।
धर्मयुग और साप्ताहिक हिन्दुस्तान में छपना गौरव समझा जाता था। दोनों में भी कई बार छपा।
छात्र जीवन में वाचनालय में दिनमान पढ़ता था तब सोचा करता था कि इसके लेखक क्या खाते हैं कि इतना लिखते हैं? वह दिन भी आए जब दिनमान में भी मेरी रिपोर्टें खूब छपी।
सन् 1974 में प्राणघातक हमला हुआ। राजस्थान की विधानसभा में काम रोको प्रस्ताव 20 विधायकों के हस्ताक्षरों से पेश हुआ। 48 विधायक बोले और फिर संपूर्ण सदन ही खड़ा हो गया था। मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी को खड़े होकर सदन को शांत करना पड़ा था। राजस्थान विधानसभा की प्रतिदिन की कार्यवाही उन दिनों छपती थी। मेरे पास एक दिन की कार्यवाही प्रति काम रोको प्रस्ताव की पड़ी है। सात दिनों तक यह हंगामा किसी न किसी रूप में होता रहा था। बीबीसी,रेडियो मास्को, वायस ऑफ अमेरिका सहित अनेक रेडियो ने दुनिया भर में वह घटना प्रसारित की। देश के करीब करीब हर हिन्दी अग्रेजी अखबार में समाचार और संपादकीय छपे।
आरएसएस का पांचजन्य,वामपंथी विचारधारा और जवाहर लाल नेहरू के मित्र आर.के.करंजिया का ब्लिट्ज,कांग्रेसी टच का करंट और समाजवादी विचार धारा के जॉर्ज फरनान्डीज के प्रतिपक्ष में 1974-75 में खूब छपा।/ प्रतिपक्ष साप्ताहिक था जिसने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नींद हराम करके रखदी थी और बाद में तो इस पर आपातकाल में प्रतिबंध लग गया था।
 आपातकाल अत्याचार का काल था जिसमें मेरा साप्ताहिक " भारत जन "भी सरकारी कोपभाजन का शिकार बना। पहले सेंसर लगाया गया। सरकार की अनुमति के बिना कोई न्यूज छप नहीं सकती थी। विज्ञापन रोक दिए गए। अखबार की फाइल पेश करने के लिए मुझे गंगानगर बुलाया गया और  30 जुलाई 1975 को वहां गिरफ्तार कर लिया गया। आरोप लगाया गया कि पब्लिक पार्क में इंदिरा गांधी के विरोध में लोगों को भड़का रहा था। एक वर्ष की सजा भी सुनाई गई। सवा चार माह तक जेल मे बिताए और उसके बाद एक संदेश बाहर कार्य करने का मिलने पर 3 दिसम्बर 1975 को बाहर आया। आपातकाल में बहुत कुछ भोगा। मेरी अनुपस्थिति में छोटी बहन,पिता और नानी को क्षय रोग ने ग्रस लिया। इलाज तो हुआ वे ठीक भी हुए लेकिन वह काल बड़ा संघर्षपूर्ण रहा। परिवार ने कितनी ही पीड़ाएं दुख दर्द भोगे मगर वह अनुभव पत्रकारिता व राजपूती शान के अनुरूप और देशभक्ति से पूर्ण रहे जो जीवन की श्रेष्ठ पूंजी हैं।
 मैं सरकारी पीडब्ल्यूडी की नौकरी में था तब लेख कहानियां आदि बहुत छपते थे लेकिन गरीबों व पिछड़े ग्रामों आदि पर लिखने की एक ललक थी कि दैनिक पत्रों में लिखा जाए तब 1969 में पक्की नौकरी छोड़ कर लेखन के साथ पत्रकारिता में प्रवेश किया। अनेक अखबारों में लिखता छपता हुआ सन 1972 में राजस्थान पत्रिका से जुड़ा और 15 मई 2009 तक के 37 साल का यह सुखद संपर्क रहा।
राजस्थान पत्रिका का एक महत्वपूर्ण स्तंभ 'कड़वा मीठा सच्च' था। इस स्तंभ में लेखन में घग्घर झीलों के रिसाव पर सन् 1990 में लेखन पर सन् 1991 में राज्य स्तरीय प्रथम पुरस्कार मिला। इंदिरागांधी नहर पर 12 श्रंखलाएं लिखी जो सन् 1991 में छपी तथा दूसरी बार 1992 में पुन: राज्य स्तरीय प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ। राजस्थान की शिक्षा प्रणाली पर व्यापक अध्ययन कर दो श्रंखलाओं में सन् 1993 में प्रकाशित लेख पर तीसरी बार राज्य स्तरीय प्रथम पुरस्कार 1994 में प्राप्त हुआ। इसके बाद सन 1996 में राजस्थान की चिकित्सा एवं स्वास्थ्य पद्धति पर व्यापक अध्ययन कर 4 श्रंखलाएं  लिखी। इस पर सन् 1997 में राज्य स्तरीय दूसरा पुरस्कार मिला।
राजस्थान पत्रिका के संस्थाथापक प्रसिद्ध पत्रकार श्रद्धेय कर्पूरचंद कुलिश का मेरे पर वरद हस्त रहा और उन्होंने जोधपुर में पत्रकारों के बीच में कहा कि मैं तुम्हारे हर लेख को पढ़ता हूं। यह एक महान गौरववाली बात थी। गुलाब कोठारी और मिलाप कोठारी एक घनिष्ठ मित्र के रूप में आते मिलते और अनेक विषयों पर हमारी  चर्चाएं होती। माननीय गुलाब जी सुझाव लेते और वे पत्रिका में लागू भी होते। गुलाब कोठारी ने श्रीगंगानगर में सर्वश्रेष्ठ संवाददाता के रूप में सम्मानित किया तब कई मिनट तक एकदूजे से गले मिले खड़े रहे। आज भी पत्रिका परिवार के साथ घनिष्ठ संबंध हैं।

राजस्थान पत्रिका के प्रधानसंपादक गुलाब कोठारी सर्व श्रेष्ठ पत्रकारिता पर करणीदानसिंह राजपूत को सम्मानित करते हुए। बीच में नजर आ रहे तत्कालीन शाखा प्रबंधक अवधेश जैन और पास में उपस्थित तत्कालीन शाखा प्रभारी संपादक हरिओम शर्मा। दिनांक 16-4-2004.
वर्ष 1997 में शिक्षा संस्थान ग्रामोत्थान संगरिया के बहादुरसिंह ट्रस्ट की ओर से पत्रकारिता में पुरस्कार प्रदान किया गया।
बीकानेर संभाग का "राजस्थान गौरव पत्रकारिता सम्मान 2019" बीकानेर के रवीन्द्र मंच पर 4 अगस्त 2019 को प्रो.ललित किशोर चतुर्वेदी स्मृति संस्थान जयपुर की ओर से प्रदान किया गया।
    रामनाथ गोयनका के इंडियन एक्सप्रेस का विस्तार जब जनसत्ता दैनिक के रूप में हुआ तब जनसत्ता दिल्ली में खूब छपा। जब चंडीगढ़ से छपने लगा तब ओमप्रकाश थानवी के कार्यकाल में चंडीगढ़ में भी छपा। साप्ताहिक हिन्दी एक्सप्रेस बम्बई में भी लेख कई बार छपे।
राजस्थान की संस्कृति,सीमान्त क्षेत्र में घुसपैठ,तस्कर,आतंकवाद पर भी खूब लिखा गया। पंजाब के आतंकवाद पर टाइम्स ऑफ इंडिया बम्बई ने लिखने के लिए कहा तब कोई तैयार नहीं हुआ। वह सामग्री वहां से छपने वाली पत्रिका धर्मयुग में छपनी थी। मैंने संदेश दिया और मेरा लेख सन् 1984 में दो पृष्ठ में छपा। धर्मयुग में लेख छपना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी। धर्मयुग में बाद में कई लेख प्रकाशित हुए।
मेरे लेख और कहानियां बहुत छपी।
आकाशवाणी सूरतगढ़ से वार्ताएं कहानियां कविताएं रूपक आदि बहुत प्रसारित हुई हैं। रूपक राजस्थान के सभी केंद्रों से एक साथ प्रसारित हुए।
इंदिरागांधी नहर पर दूरदर्शन ने एक रूपक बनाया जिसमें कई मिनट तक मेरा साक्षात्कार रहा। वह साक्षात्कार मेरे इंदिरागांधी नहर पर लेखन के अनुभवों के कारण लिया गया। दूरदर्शन के दिग्गज प्रसारण अधिकारी के.के.बोहरा के निर्देशन में वह साक्षात्कार हुआ व राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारण हुआ।
मेरा लेखन कानून नियम के लिए सच्च के प्रयास में रहा। कई बार ऐसा लेखन अप्रिय भी महसूस होता है लेकिन जिन लाखों लोगों के लिए लिखा जाता है,उनके लिए आगे बढऩे का कदम होता है। राजनीति,राजनेताओं व राजनैतिक दलों पर और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लिखना लोगों को सुहाता है वहींं अप्रिय भी लगता है। साधारणतया ऐसे लेखन से पत्रकार बचना चाहते हैं, लेकिन मैं ऐसे लेख लिखना अच्छा समझता हूं,क्योंकि समाज लोग सतर्क तो होते ही हैं।
मेरे परिवार जन,मित्रगण और कानून ज्ञाता जो साथ रहे हैं वे भी इस यात्रा में सहयोगी हैं। 
मेरे लेखन में माता पिता की सीख रही है इसलिए उनका संयुक्त छायाचित्र यहां पर दे रहा हूं।
मैंने मेरे पूर्व के लेखों में भी लिखा है कि लिखने बोलने की यह शक्ति ईश्वर ही प्रदान करता है और वह परम आत्मा जब तक चाहेगा यह कार्य लेखन और पत्रकारिता चलता रहेगा और लोगों का साथ भी रहेगा।
शारदीय नवरात्रा 2019 के पूर्ण होने पर मां करणी माता मंदिर में धर्मपत्नी विनीता सूर्यवंशी सहित पूजन अर्चन और हवन में भाग लेकर शक्ति का संकल्प लिया है।

मेरी ब्लॉग वेब साईट   www.karnipressindia.com आज अत्यन्त लोक प्रिय साईट है जो देश और विदेश में प्रतिदिन हजारों लोग देखते हैं।
दिनांक 19-10-2019.

करणीदानसिंह राजपूत,
राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क सचिवालय से
अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार,
सूरतगढ़ / राजस्थान/ भारत।
91 94143 81356.
मेरा ई मेल पता.   karnidansinghrajput@gmail.com
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रविवार, 13 अक्तूबर 2019

जीजा साली पत्नी ने बदले रिश्ते- कहानी





*पति का पत्नी से
बहन का बहन से छल:
पत्नी की भी नए रिश्ते की गलती:
जब तीनों की नजरें मिलें.....*

 (1 लाख 44 हजार से अधिक अब तक पढ चुके.अब नई गणना से)




   टीवी पर आ रहे सीन से बरखा को झटका सा लगा। उसने अपने पास ही बेड पर बैठे जीजा को झिंझोड़ते हुए इशारा किया, कांत...कांत... देखो...देखो । टीवी पर एड चल रहा था... कल रात मुझ से भूल हुई...प्रिकोशन नहीं लिया...  मैं...गर्भवती होना नहीं चाहती... अनवान्टेड प्रेगनेन्सी को रोकने के लिए बहतर घंटे के भीतर अनवान्टेड... ... टिकिया लें। 
कांत ने एड खत्म होते ही पैरों में चप्पलें डाली और एक झपट्टे में मोटर साईकिल पर निकल गया। वह पास के मेडिकल स्टोर पर पहुंचा। उसे बोलने की आवश्यकता नहीं पड़ी। स्टोर के काऊंटर के साथ की दीवार पर अनवान्टेड प्रेगनेन्सी को रोकने की टिकिया का पोस्टर लगा था। उसने पोस्टर की ओर ईशारा कर दिया। फार्मासिस्ट ने एक पैकेट निकाला और कांत के हाथ में पकड़ा दिया। 
कांत जिस तेज गति से मेडिकल स्टोर पर गया था, उसी तेज गति से लौटा। कांत ने पैकेट बरखा के हाथ में रख दिया। बरखा ने  पैक को खोल कर टिकिया को निकाला और कुछ पलों तक देखते रहने के बाद पानी के साथ गटकली। टिकिया गटकते ही उसे राहत महसूस होने लगी।
कांत बोला- अब तुम तीन घंटे रेस्ट करो... तुम्हारी बस तो दोपहर में दो बजे  रवाना होगी। बरखा बेड पर पसर गई। कांत भी पास में ही लेट गया। इसी बेड पर ही बीती रात को वे एकाकार हो गए थे। 
कांत की शादी रमा से हुई थी। यह बेड शादी में उपहार में मिला था। रमा के साथ प्रथम रात्रि यानि की सुहागरात इसी पर मनाई...और उसके बाद इसी पर ही मजे से हर रात बीत रही थी।
कुछ माह पहले रमा बीकानेर से पौने दो सौ किलोमीटर की दूरी पर सूरतगढ़ में एक विद्यालय में अध्यापिका लग गई। कुछ दिनों तक अप डाउन किया, मगर इसमें भारी परेशानी हुई तथा जाने आने में ही छह घंटे तक बीत जाते। इसके अलावा  विभागीय निरीक्षण की सख्ती भी थी। उसने वहीं पर कमरा किराए पर ले लिया। 
    रमा शनिवार को ड्यूटी कर शाम तक घर लौट आती। शनिवार शाम से सोमवार की भोर तक का समय व्यस्तता में बीतता। शनिवार शाम को घर लौटते ही रमा और कांत बाजार जाकर खरीदारी करते, खाते पीते और  रात को बेड पर नई प्रेमकथा तैयार करने में जुट जाते। रविवार का आधा दिन घरेलू काम धाम में बीत जाता। उसके बाद दोनों दो तीन घंटे सोकर थकान उतारते। भोजन बनाने खाने के बाद  रविवार की आधी रात तक प्रेमकथा दोहराते।
इसके बाद रमा पुन: ड्यूटी पर जाने की तैयारी में लगती। कांत और रमा करीब तीन बजे बस स्टेंड के लिए घर से मोटर साईकिल पर निकल पड़ते। बस की रवानगी भोर में चार बजे होती तब तक बस के आने का इंतजार करते। बस के इंतजार में खड़े अन्य यात्री रमा को कनखियों से निहारते रहते। कई युवा तो इतने फिटे उदंड होते कि एकदम पास में आकर घूरते हुए निकलते। उनकी आंखों में शरारत झलकती जो कहती कि आओ, मेरी आंखों में होती हुई दिल में समा जाओ। 
    कुछ तो पास में आकर कांत से टाइम पूछते, भाई साहब क्या बजा है? बस का राइट टाइम क्या है? कांत को भाई साहब संबोधित कर कुछ पलों के लिए रमा को भाभी बना कर मन ही मन खुश हो जाते। रमा कुछ दिन तक तो लोगों के इस व्यवहार से झुंझलाई मगर बाद में लापरवाह हो गई। कांत बस रवाना होने के बाद घर लौट आता। बस यही सामान्य सी जिंदगी हो गई।
सोमवार से शुक्रवार तक की अवधि में जब रमा नहीं होती तब बरखा आ जाती और एक दो रातें गुजार कर चली जाती। वह बीकानेर से पचास किलो मीटर की दूरी पर नोखा में  एक निजी कंपनी में लिपिक की नौकरी पर लगी हुई थी, जहां से आना जाना आसान था। वह रात को आती और भोर में लौट जाती। फिर भी उसकी झलक आस पास की औरतों ने प्राप्त कर ही ली। यह भी मालूम कर लिया कि बरखा कांत की साली है।
पिछली रात बरखा और कांत ने बेड को तृप्त किया और सुबह देर से उठे। दोनों ने नहा धोकर चाय नाश्ता किया। बरखा टीवी देखने लगी थी, कि 72 घंटे के भीतर अनचाहे गर्भ को रोकने वाली टिकिया का एड टीवी पर आने लगा। बरखा को एड के सीन से झटका सा लगा। युवती कह रही थी कल रात हम से भूल हुई...मैं अभी गर्भवती नहीं होना चाहती...इसी में अनचाहे गर्भ को रोकने के लिए टिकिया 72 लेते हुए दिखाया भी गया था।
   बरखा और कांत बड़ी सेफ्टी रखते, मगर बीती रात को गुब्बारा नहीं था। रमा के वस्त्रों के बीच में गुब्बारे रखे होते थे। उन्हीं में से गुब्बारा लेकर फुला लेते थे। रमा ने कभी गिनती नहीं की थी।
दोनों ने सोचा जरूर था कि बिना गुब्बारा एक रात भी नहीं उड़ेंगे, मगर इस निर्णय पर कायम नहीं रह पाए। 
         दोनों बेड के दोनों किनारों पर सोए बीच में तकिया भी लगाया। पहले हाथ मिले और बाद में आई बाढ़ ने दोनों किनारों को एकाकार कर दिया। दोनों बाढ़ में बह चले। हां, कांत की नजर बेड के सिरहाने रखी मंढी हुई तस्वीर पर पड़ी। विवाह के तुरंत बाद की तस्वीर जिसमें वह और रमा थे। कांत को लगा कि रमा की आंखें उसे और बरखा को घूर रही है। उसने तस्वीर को पलट कर रख दिया था। उसके बाद बेड का कोई भी दृश्य तस्वीर वाली रमा ने नहीं देखा। मगर बरखा एड देख कर परेशान हो गई थी। उसे टिकिया निगलने के बाद राहत मिली थी। 
कांत बरखा को बस पर चढ़ा कर लौटा तो घर खुला पाया। उसे चिंता हो गई कि रमा आज सप्ताह के बीच में कैसे लौट आई है? वह जल्दी से कमरे में घुसा। रमा बेड पर नींद में मिली। कांत की निगाह बेड के नीचे गई जहां पर 72 घंटे वाली टिकिया का खाली पैक पड़ा था। बरखा की लापरवाही पर एक बार झुंझलाया। रमा की नजर पड़ जाती तो...। उसने खाली पैक को उठाया और बाहर फेंक आया। अब वह रमा की नजरों के लिए साफ सुथरा बन गया था। वह भी नींद में बेसुध रमा के चिपट कर सो गया।
                         दोनों जागे तब कांत ने प्रश्रों की झड़ी सी लगा दी- तुम कब आई? इस वार को तो आती नहीं थी?  कोई बात हो गई क्या? रमा बोली-आज बच्चों का मूड पढऩे का नहीं था। मैं भी वहां रूकने के बजाय छुट्टी का मूड बना घर लौट आई। यहां पर गेट पर ताला लगा था। सोचा कि तुम किसी मित्र के यहां चले  गए हो। ताला खोल कर भीतर आई और सोने के पहले कुछ खा लेने का मन किया। रसोई घर में कुछ ताजा बने होने की खूशबू आ रही थी, मगर मिला कुछ भी नहीं। मैंने चाय बनाई और पीकर सो गई। चाय का नाम लेते ही पुन: चाय की याद आ गई। रमा बोली शाम हो गई है। मैं चाय बना कर लाती हूं। दोनों ने चाय पी और कामों में जुट गए।
           शाम को कांत बालकनी में खड़ा इधर उधर देख रहा था। उसकी निगाह पड़ोस के घर के सामने पड़ी। पड़ोसन शर्मा जी की पत्नी और रमा एक दूजे से बतिया रही थी। कांत को लगा कि शर्मा की पत्नी साली के आने जाने के बारे में ही भिड़ा रही होगी। 
        कांत शिकायत के बचाव में  मन ही मन बहाना सोचने लगा। साली की चाहत ने पल भर में पत्नी से छल करने का मानस बना दिया। पत्नी घर में घुसी तब तक उसने मन ही मन में एक छल तैयार कर लिया। दो दिन बाद ही साली का जन्म दिन आने वाला था। साली के जन्मदिन की याद ने कांत को बहुत बड़ी राहत दी।
    रमा के घर में घुसते ही कांत बोल पड़ा - अरे...मैं तो तुम्हें बताना ही भूल गया। बरखा आई थी। वह जन्म दिन का निमंत्रण दे गई है। उसे लगा कि रमा यह सुन कर भी संतुष्ट नहीं हुई है तथा उसके दिल में शक समाया है। कांत को करंट सा लगा जब रमा ने पूछा- पिछले हफ्ते भी आई थी क्या? कांत को इस प्रश्र की आशा नहीं थी। कांत ने बड़ी होशियारी से जवाब दिया- बरखा आई जरूर थी, मगर तुम्हारे मौजूद नहीं होने पर वह रूकी नहीं। पानी पीया और खड़े पैरों लौट गई। इसका क्या बताता।
       कांत ने कहा-तुम्हें किसने बताया? लगता है पड़ोसी एक एक मिनट की खोज खबर रखते हैं। रमा बोली- मुझे तो साथ के घर वाली शर्मा जी की पत्नी ने बताया। कांत का दिमाग तेजी से काम करने लगा था। उसने पत्नी पर विश्वास जमाने और शर्मा की पत्नी को झूठी साबित करने के लिए तुरूप का इक्का मारते हुए कुछ आक्रोश भरे शब्दों में कहा - वह कलूटी...चुगली खा रही थी... तो वह इतना गिर गई है कि बदला लेने पर तुल गई है।
  कांत के आक्रोश भरे शब्दों ने जादू का सा प्रभाव डाला। रमा बोली-तुम्हारे साथ उसका कोई झगड़ा हुआ क्या? तुमने कभी बताया नहीं। किस बात का बदला
रमा बोली- इसका मतलब तो बात कोई गंभीर है जो तुमने मुझे बतलाई नहीं।
कांत बोला- अरे तुम उसे गोली मारो...साली कुतिया। अरे...जब तुम यहां नहीं होती हो... तब उसके घर में चाय चीनी खत्म हो जाती है। खासकर शर्मा जी नहीं होते तब...  वह आती है और सीधे रसोईघर में घुस जाती है...जो मुझे कत्तई पसंद नहीं है। कोई भी स्त्री दूसरी स्त्री को अपनी रसोई में डिब्बे संभालने की छूट नहीं देती। कांत का तीर सही निशाने पर था। रमा प्रभावित हुई और बोली- शर्मा की पत्नी इतनी घटिया होगी, यह तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था। तुम्हारे पर डोरे डाल रही है और पार नहीं पड़ी तो इस तरह की शिकायत करने पर ही उतर आई।
कांत बोला- छोटी बहन बड़ी बहन के घर पर नहीं आयेगी तो फिर किसके आयेगी? तुम इस प्रकार की घटिया शिकायतों पर सोचना बंद करो। आओ, बरखा के जन्म दिन पर जो उपहार देना है उसके बारे में सोचें।
कांत ने रमा को कमरे में बैठाया और स्वयं बाहर निकल आया। उसने सारे घटनाक्रम को जल्दी से मोबाईल पर बरखा को बताया। उसे बता दिया कि जन्मदिन के निमंत्रण का बहाना मार कर बचाव किया है। इसके साथ में सलाह भी दे दी कि तुरंत ही बहन को जन्मदिन पर आने का निमंत्रण देकर विश्वास जमा दे।
कुछ ही देर में रमा के मोबाईल की घंटी बजी। रमा ने मोबाईल ऑन किया। रमा बोल रही थी- हां बरखा, बोल। अच्छा...अच्छा...जन्मदिन है... तुम्हारे जीजाजी ने बता दिया ...हम उपहार की ही चर्चा कर रहे थे। अरे...तूं यह बता कैसी है? कई दिनों से मिली ही नहीं। आजा। दो चार दिन रह कर चली जाना...दफ्तर वफ्तर छोड़...दो चार दिन की छुट्टियां ही ले ले। कांत का बहाना यानि कि छल पूरा काम कर गया।
रमा और कांत के बीच में बरखा को दिए जाने वाले उपहार के बारे में चर्चा हुई। रमा कोई निर्णय नहीं ले पाई। कांत के मन में साली के रूप में छिपी  प्रेमिका को उपहार देने की चाहत ने निर्णय किया। सोने की अंगूठी दी जाए जो सदा उसकी अंगुली में रहती हुई शरीर को छूती रहेगी। 
बरखा के जन्मदिन पर पति पत्नी दोनों लूनकरनसर पहुंच गए। यहां पर रमा और बरखा का पैतृक निवास था। पिता की मृत्यु के बाद उनकी माता शांता और बरखा यहां रहती थी। बरखा नौकरी के कारण नोखा में कमरा किराए पर लेकर रहने लगी थी। वह मां के पास यदा कदा आती रहती थी।
बरखा ने घर में बने मंदिर में देव प्रतिमाओं के आगे देशी घी का दीप प्रज्ज्वलित किया और भोग लगाया। सर्व प्रथम अपनी मां शांता को प्रसाद खिलाया।
रमा बोली अजब संजोग है... रसमाधुरी और राजभोग का प्रसाद...। बरखा बोल पड़ी- जीजू को रसमाधुरी पसंद है और मुझे राजभोग... दोनों रस भरे। वह खिलखिला पड़ी। बरखा ने रसमाधुरी उठाई और कांत को खिलाने के लिए उसके मुंह की ओर हाथ बढ़ाया। कांत ने बीच में ही हाथ पकड़ लिया तो वह बोल पड़ी- जीजू ऐसे नहीं...मेरे हाथ से ही खानी पड़ेगी। उसने रसमाधुरी कांत के मुंह में ठूंस दी और तालियां बजाते हुए हंस पड़ी।
      कांत ने भी राजभोग उठाया और बरखा के मुंह में ठूंसने के लिए हाथ आगे बढ़ाया ही था कि रमा बोल पड़ी- इतना बड़ा राजभोग मुंह में कैसे जाएगा? कांत हंसते हुए बोल पड़ा...चला जाएगा। हंसी मजाक के बीच में रमा ने सुनहरी मखमली डिब्बी खोली और उसमें से लकदक करती हुई अंगूठी निकाल कर कांत के हाथ में ही थमा दी-तुम ही पहना दो...तुम्हारी प्यारी साली है...याद करेगी जीजा ने कितनी प्यारी सी गिफ्ट दी है।
 कांत ने अंगूठी बरखा की अंगुली में पहनाई तब उसकी निगाहें बरखा के चेहरे पर टिकी रही। बरखा ने जीजा की तरफ नजरें टिका कर अंगूठी इस तरह से चूमी मानो अंगूठी नहीं जीजा ही हो।
कांत और रमा घर लौटे तो बरखा भी साथ ही आ गई। बरखा दो दिन रही। इस बीच रमा के दिल और दिमाग में पड़ोसन शर्माजी की पत्नी की शिकायत गूंजती रही। कांत और बरखा सावधानी बरतते रहे जिससे कहीं भी यह झलक तक नहीं मिली कि दोनों के बीच में कुछ है। रमा बिना पुष्ट प्रमाण के अपनी बहन और पति को कुछ कहती तो  हंसी का पात्र बनती। वह चुप रही। उसने कहना तो दूर रहा इशारा तक नहीं किया। उसके दिल में शर्माजी की पत्नी की एक ही बात बार बार चोट करती कि तुम्हारी बहन प्राय: आती है और अब तो रात को नहीं दिन में भी आने लगी है।
रमा ने सोचा कि शर्मा की पत्नी को तो कोई लाभ हानि नहीं है। वह झूठी शिकायत क्यों करेगी? इस बार तो शर्माजी की पत्नी ने साफ साफ ही कह दिया- मैं तुम्हारे ही भले की कह रही हूं। समय रहते चेत जाना ठीक है। कहीं बाद में पछताना ना पड़े। रमा को बातें करते हुए काफी समय बीत गया तब शर्मा की पत्नी ने कहा...कहो तो आंवला पानी बनादूं...मीठा नमकीन जैसा तुम चाहो। चाय आदि तो हम पीते नहीं है। आंवला भिगो देते हैं और उसी का पेय बना लेते हैं। बड़ा स्वादिष्ट बनता है। रमा ने मीठा नमकीन तो सुना ही नहीं उसका सिर तो इतना सुन कर ही चकराने लगा कि दोनों चाय पीते ही नहीं है। कांत ने तो कहा था कि शर्मा की पत्नी चाय चीनी लेने आ जाती है और खास कर शर्मा नहीं होते तब चाय चीनी खत्म होती है...वह सीधे रसोईघर में घुस जाती है। इसका मतलब है कि कांत ने इतना बड़ा झूठ बोला। इसके बावजूद रमा को विश्वास नहीं हुआ और पूछ बैठी- क्या,सच में आप लोग चाय नहीं पीते?
शर्मा की पत्नी ने कहा- हम दोनों ही चाय नहीं पीते। रमा का सिर दर्द होने लगा। कांत ने बरखा और अपने संबंधों की शिकायत को झुठलाने के लिए इतना बड़ा झूठ बोला और शर्मा की पत्नी के चरित्र पर कीचड़ मलने में जरा भी संकोच नहीं किया। रमा के सामने से एक बहुत बड़ा परदा हट गया। उसे कांत और बरखा के संबंधों पर घिन आने लगी। वह घर आई और सिर पर रूमाल की पट्टी बांध कर सो गई।
रमा के दिल में यह तो साफ हो गया कि कांत बड़ी सफाई से झूठ बोल कर बच जाता है। उसने बहुत सोचा और निर्णय किया कि किसी दिन अचानक घर पर पहुंच कर देखा जाए। 
रमा ने स्कूल में से बरखा के दफ्तर फोन किया। उधर से चपरासी बोला तो रमा ने बरखा से बात कराने का कहा। वहां जवाब मिला कि बरखा तो आज आई  ही नहीं। चपरासी बरखा के दफ्तर न आने का कोई भी कारण नहीं बता सका।
   रमा को पड़ोसन की बात सच सी लगने लगी। उसके मन में आशंका होने लगी कि बरखा कांत के पास ही हो सकती है। रमा ने कांत के मोबाईल पर रिंग दी मगर स्वीच ऑफ मिला। बरखा के मोबाईल पर रिंग दी मगर उसकी ओर से भी कोई उत्तर नहीं आया। उसका शक मजबूत होने लगा। उसके मुंह से अनायास ही निकल पड़ा- कांत ने मोबाईल बंद कर रखा है और बहन उत्तर ही नहीं दे रही। उसके मन में कुछ बाकी नहीं रहा।  
     वह नान स्टॉप बस में सवार हो कर लौटी। टू सीटर टैंपों को फुल किराए पर करके घर तक पहुंची। टू सीटर को घर से कुछ दूर ही रूकवाया ताकि उसके शोर से कांत और बरखा चौकन्ने ना हो जाएं। वह पैदल ही घर पहुंची। मुख्य गेट को धीमे से खोल कर भीतर घुसी और चप्पलों को वहीं उतार दिया। आंगन के दरवाजे को धकेला तो वह बंद मिला। उसने दूसरी चाबी से ताला खोला। शयनकक्ष में झांका। कांत बेड पर निद्रामग्र था।
        उसने वस्त्र बदले और बेड पर जा बैठी। उसका बैठना हुआ कि कांत के मुंह से शब्द निकले - बरखा, नींद नहीं आ रही है क्या? रमा को झटका लगा। वह बोली- मैं बरखा नहीं रमा हूं। नींद में भी पीछा नहीं छोड़ती...प्यारी साली। रमा के शब्दों ने कांत की नींद उड़ादी।
     कांत बड़े विनम्र शब्दों में बोला- तुम तो नाहक शक कर रही हो। उस कलूटी ने शिकायतें कर कर के तुम्हारा दिमाग खराब कर दिया है। जिससे तुम अपनी बहन पर ही शक करने लगी हो। काश तुम्हें बरखा के हाल का पता चला होता। बरखा सुबह से आई हुई है। वह उल्टी दस्त से बुरी तरह से परेशान थी। उससे चला तक नहीं जा रहा था। निजी क्लिनिक में डाक्टर को दिखलाया। दवाईयों के बाद हालत कुछ सुधरी है। वह दूसरे कमरे में सो रही है। मैंने सोचा कि बरखा को नींद नहीं आ रही है और वह बेड पर आ कर बैठी होगी। मेरे मुंह से इसलिए उसका नाम निकल पड़ा और तुम शक कर बैठी। 
      कांत का शातिर दिमाग नए नए छल रचने में माहिर हो गया था। उसे मालूम पड़ चुका था कि रमा को दोनों पर पूरा शक हो चुका है तथा मामूली सी भूल या गलती से कभी भी पकड़ में आ जायेंगे। 
उसने बरखा के आते ही बीमारी के बहाने का यह छल सोच लिया था। वह बरखा को लेकर निजी क्लिनिक में  पहुंचा और उल्टी दस्त का होना बताया। सभी जानते हैं कि इसमें रोगी के कथन पर ही डाक्टर विश्वास कर लेता है। डाक्टर ने उसके कथन के अनुसार दवाईयां लिख दी और रेस्ट करने का कह दिया। सारी दवाईयां 80 रूपए में आ गई। बरखा का साथ और रमा के दिमाग में बहाना फिट करने के लिए यह कीमत तो कुछ भी नहीं थी। 
चाय का बहाना तार तार हो जाने के बाद यही लगा कि कांत फिर कोई बहाना ही रच रहा है। लेकिन बहन की बीमारी का सुन कर  वह संभालने को तत्पर हो उठी।
रमा ने जल्दी से दूसरे कमरे का दरवाजा धकेला। दरवाजा भीतर से बंद था। उसने खिड़की में से झांका। बरखा फर्श पर बिछी दरी पर सो रही थी। उसके पास में ही दवाओं के कुछ खाली रेपर भी पड़े थे। रमा ने दरवाजा बजाया तो बरखा ने खोल दिया। रमा ने पूछा- बरखा, तुम्हारी तबीयत कैसी है?  छल में भागीदार बनी बरखा ने थके शब्दों में कहा- बार बार टायलेट तक जाते जाते थक गई हूं...कुछ ठीक हूं...नींद आ रही है। रमा छल पकड़ नहीं पाई और बोली- तुम बहुत थकी मांदी लग रही हो...सो जाओ।
बरखा और कांत उल्टी दस्त के बहाने पर हंसते हंसते बेड पर एकाकार हुए थे और बाद में बरखा दूसरे कमरे में जाकर लेट गई थी। अचानक पहुंचने के बावजूद भी रमा के हाथ कुछ भी नहीं लगा। 
     रमा का व्यवहार कुछ दिनों से लगातार अटपटा पाकर एक दिन प्रिंसिपल  ने कहा- रमा कुछ दिनों से तुम परेशान नजर आ रही हो तथा बच्चों को पढ़ाने में भी तुम्हारा ध्यान नहीं है। कुछ बताओ। संभव है मेरी भागीदारी से तुम्हारी परेशानी का कोई हल निकल जाए...कहते हैं कि परेशानी बांटने से जी हल्का हो जाता है।
सर, मैं उलझन में फंसी हूं... बात ही कुछ ऐसी है कि... वह बीच में ही रूक गई। प्रिंसिपल ने कहा- तुम अभी नहीं बताना चाहती हो तो मत बतलाओ...मेरे घर चलते हैं...वहां अपना जी हल्का कर लेना।  हो सकता है जिस बात को लेकर तुम परेशान हो, वह कुछ भी ना हो...उसका मतलब ही कुछ और निकले।
प्रिंसिपल के घर पर रमा फफक पड़ी। उसने अपने पति और छोटी बहन को लेकर पड़ोसन की कही बातें एक एक कर बतलादी। यह भी बतला दिया कि वह प्रयास करके भी पकड़ नहीं पाई है। लेकिन यह सच है कि उसकी गैर मौजूदगी में दोनों मिलते हैं। 
रमा तुम्हारी बहन का तुम्हारी अनुपस्थिति में  बार बार तुम्हारे घर पर जाना और तुम्हारे पति से मिलना शंका तो पैदा करते ही हैं...प्रिंसिपल बोला... पड़ोसन की बातों में कुछ दम तो है...उन्हें अस्वीकार भी नहीं किया जा सकता। प्रिंसिपल के शब्दों से रमा की भावनाओं पर मरहम सा लगा। 
रमा प्रिंसिपल के सीने से लग रोने लगी और प्रिंसिपल रमा की पीठ को सहलाते हुए दिलासा देने लगे कि सब कुछ ठीक ठाक हो जाएगा। प्रिंसिपल की भावनाओं में उथल पुथल मच गई। उन्ह लगा कि उनके हाथ रमा की पीठ को नहीं बल्कि एक खूबसूरत युवती के मादक बदन को सहला रहे हैं। रमा भी स्पर्श  के सुखद अहसास में सब कुछ भूल गई। दोनों सहज में ही पैदा हुए झरने के जल प्रवाह में बहने लगे। भीगने के शीतल अहसास से रमा की पलकें मुंदती चली गई।
उसकी आंखें खुली तो स्वयं को प्रिंसिपल की बाहों में पाया। वह उठने लगी मगर उठ नहीं पाई। बोलने की कोशिश की मगर बोल नहीं पाई। उसके दिल में एक आवाज आई कि कि बरखा और कांत भी तो यही कर रहे हैं...यह तो अनुचित हो रहा है, मगर यह आवाज शक्ति हीन सी रही और रमा की आंखें पुन: मुंदती चली गई। 
     सारी रात वह मदहोशी में रही। सुबह आंख खुली तब होश आया। वह और प्रिंसिपल एक ही बेड पर थे। वह उनसे चिपटी हुई थी। रमा ने उनका हाथ अपने बदन से हटाया और अपने वस्त्रों को संवारा। वह प्रिंसिपल को सोता हुआ छोड़ कर जल्दी से बाहर निकल पड़ी।
वह अपने किराए के कमरे पर पहुंची और स्नानघर में समा गई। काफी देर तक अपने बदन को रगड़ रगड़ कर नहाती रही। प्रिंसिपल के छूने का जहां जहां अहसास हुआ। वहां वहां बार बार साबुन लगाती रही...रगड़ती रही। मन ने कहा - कहां कहां पर रगड़ती रहेगी...क्या सारे बदन को ही रगडऩा नहीं पड़ेगा? उसके हाथ रूक गए।
वह नहा धोकर तैयार हुई और उसके पांव एक बार फिर प्रिंसिपल के घर की ओर ही बढ़ चले। न जाने कौनसा आकर्षण उसी ओर खींचता ले जा रहा था। वह उनके शयन कक्ष में ही चली गई। 
वे टीवी पर कोई नृत्य गीत देखने में मग्न थे। उन्होंने रमा की तरफ देखा। उसकी आंखों में एक प्रश्र तैरता हुआ नजर आया ...एक पीडि़ता को सांत्वना देने के नाम पर तुम्हारा चरित्र भी तार तार हो गया।
 प्रिंसिपल को लगा कि रमा कुछ देर और सामने रही तो सुन्न होते चले जाऐंगे। उन्होंने कहा- रमा, कल मैं बहक गया था...मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था... मैं  दोषी हूं...तुम जो चाहे भला बुरा कह सकती हो...पत्नि की मौत के बाद वर्षों तक एकाकी जीवन में रह गया...मगर कल न जाने मैं कैसे पागल बन गया। मैं अब यहां से चला जाऊंगा।
रमा बोल पड़ी- नहीं सर, मैं बहक गई थी। मैं दोषी हूं। काश मैं आपके घर नहीं आती। मैं चली जाऊंगी अपने घर...मुझे क्षमा कर देना...। आपके आचरण और विद्यालय के अनुशासन का लोग उदाहरण देते हैं...वे कायम रहें। रमा  प्रिंसिपल के सीने से लग कर रो पड़ी। वे भी सुबक पड़े।
इसके बाद दोनों विद्यालय पहुंचे। रमा ने त्यागपत्र लिखा। प्रिंसिपल ने तुरंत ही स्वीकृति दी। रमा ने किराए का कमरा खाली किया और बस से घर के लिए रवाना हो गई। 
रमा घर के आगे टैंपो से उतरी ही थी कि ठीक उसी समय बरखा ने एक पैकेट बाहर फेंका। रमा ने बरखा को पैकेट फेंकते हुए और बरखा ने रमा को टैंपो से उतरते हुए देख लिया। बरखा गेट से बाहर निकलते हुए बोल पड़ी- दीदी...। यह आवाज सुन कर कांत भी बाहर निकल आया। 
रमा ने फेंका हुआ पैकेट उठा लिया था। अनवान्टेड... टिकिया का खाली पैक था।
बरखा कांत व रमा की छह आंखें मिली मगर कुछ सूझने के बजाय अंधेरा छाया था।ooo
००० रिश्तों में मिलन
में महिलाओं व लड़कियों को सावधानी जरूरी है। उन्हें सदा सतर्क रहना चाहिए ताकि उनके साथ किसी प्रकार की घटना न हो सके। अपने परिवार वालों पर भी नजर रखनी जरूरी है। यही तानाबाना इस  कहानी का है। ***
करणीदानसिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार,
सूरतगढ़, राजस्थान।
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up date - 1-1-2016
Up date  13-10-2019.
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चैयरमेन पार्षद कितने कमीशन में करते हैं जनसेवा



** करणीदानसिंह राजपूत **


नगर पालिका चुनाव में खड़े होने की इच्छा रखने वाले अब हाथ जोड़े, नमस्कार करते,घरों और सड़कों पर  चरण स्पर्श करते,नए रिश्ते जोड़ते नजर आने लगे हैं।

अनेक ईच्छुकों  ने अपने व्हाट्सएप ग्रुप बना लिए हैं, और खुद को सबसे अधिक वोट मिलने का दावा भी करने लगे हैं। सर्वे भी बताने लगे हैं।

पहले पार्षद रह चुके हैं वे फिर से अपनी किस्मत आजमाने को दूसरे वार्ड में भटक रहे हैं। कुछ पुराने सभापति रहे भी फिर से चेयरमैन के ख्वाब देखते हुए सोशल साइटों पर अपनी अच्छाइयों का दावा कर रहे हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो अब अचानक धरना प्रदर्शनों आदि में दिखाई देते हुए अपने सजे धजे चित्रों को सोशल साइटों पर प्रचारित प्रसारित कर रहे हैं। 

जो लोग पहले पार्षद रह चुके हैं और चेयरमैन रह चुके हैं उन्हें जनता भली-भांति जान चुकी है परख चुकी है। वे फिर से सेवा का मौका चाहते हैं। उन्हें फिर मौका दिया जाना चाहिए या नहीं?उन्होंने कैसी किस प्रकार की सेवा जनता की और किस प्रकार की सेवा अपने घर में की। यह कोई छिपा हुआ नहीं है। 

हां,जनता में ऐसी भावना पैदा हो चुकी है कि किसी को भी मुंह पर मना नहीं किया जाए। सभी को कहा जाए कि वोट तुम्हारा है। हरेक को शब्दों से सम्मानित किया जाए।

 वे लोग जो फिर से चुनाव लड़ने का सपना ले रहे हैं,उन्हें अपन पिछले े रवैए का भलीभांति भान है लेकिन फिर भी वे सोचते हैं कि जनता अनजान है अपने दुखों को दर्दों को और भ्रष्टाचार ओं को भूल जाती है।

 जो लोग 15 - 20 वर्ष पहले पार्षद बने या चेयरमैन बने उनके तो दिमाग में पक्का है कि उनके किए पुराने कारनामों को नई जेनरेशन में किसी को मालूम ही नहीं है। बहुत बड़ी गलतफहमी ऐसे लोगों ने अपने दिल और दिमाग में पाल रखी है। हो सकता है कि नया मतदाता नहीं जानता हो लेकिन जो लोग अधेड़ हैं वृद्ध हैं बुजुर्ग हैं वे भी तो शहर में रहते हैं। ऐसे लोगों की गलतफहमी चुनावों में मात खाने के बाद ही दूर हो जाएगी।

 राजनैतिक दल विशेषकर बड़े दलों में भारतीय जनता पार्टी और अस्तित्व बचाते हुए कांग्रेस पार्टी यदि अपने पुराने पार्षदों में से और चेयरमैन में से किसी को खड़ा करती है तो वह उसके लिए बहुत बड़ी चोट हो सकती है।

भारतीय जनता पार्टी तो मोदी के नाम पर फिर से नगर पालिका पर कब्जा कर लेगी ऐसा सोचती है। 

 कांग्रेस पार्टी में कोई दिग्गज नजर नहीं आता जो जनता को साथ लेकर चले। जहां जहां कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी विधानसभा लोकसभा में पराजित हुए हैं वहां जनता से जातियों से समाज से उलाहना देते, आक्रोश से सरकारी कर्मचारियों से बदला लेने पर तुले हैं। बेइज्जती करने पर तुले हुए हैं। ऐसी स्थिति में पालिका में  कौन जिता पाएगा?लोग जवाब देने के लिए तैयार हो रहे हैं कि कब वोट हो और कब चोट दी जाए। कांग्रेस पार्टी में एक तरफ तो हारे हुए लोग जनता को चोट दे रहे हैं बेइज्जत कर रहे हैं वही अनेक कांग्रेस नेता अपने घरों में बैठे शहर की हवा पूछने में लगे हैं। 

कांग्रेस पार्टी के अलग-अलग गुट हैं और  अलग अलग  नेता हैं जिनकी  आपस में भी बातचीत नहीं हो पाती। वे किस प्रकार से जनता को भुलावे में रखकर पालिका पर कब्जा कर पाएंगे? 

चाहे पार्षद हो चाहे सभापति कोई सेवा करने की नीयत कितनी रखता है? यह जनता जानती है।

 अभी एक महिला पार्षद राजस्थान में रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों भ्रष्टाचार निरोधक विभाग की टीम द्वारा गिरफ्तार की गई। शिकायतकर्ता ठेकेदार ने कहा कि महिला पार्षद 3% कमीशन मांग रही थी। अब भली-भांति जान लें कि जब पार्षद का कमीशन 3% सामने आया है तब चेयरमैन का कमीशन कितना होता होगा? इससे अधिक चार या पांच प्रतिशत तो होता ही होगा। 

जहां नगर पालिकाओं में 5 साल में 600 -700 करोड़ का बजट होता है। उसमें सं डेढ़ सौ करोड़ रुपए वेतन आदि के निकालने के बाद में जो रकम बचती है,उसका कमीशन आकलन किया जा सकता है कि जनता की सेवा कितने करोड़ की होती है।

सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

सूरतगढ़ में एसडीएम मनोज कुमार मीणा ने ड्यूटी ज्वाइन की

^^ करणी दान सिंह राजपूत ^^

 सूरतगढ़ 7 अक्टूबर 2019.

 मनोज कुमार मीणा आर ए एस ने  आज 7 अक्टूबर को सूरतगढ़ के एसडीएम पद का कार्यभार ग्रहण किया। श्री मीणा जयपुर से स्थानांतरित होकर सूरतगढ़ आए हैं। यहां से श्री रामावतार कुमावत को नोहर एसडीएम पद पर स्थानांतरित किया गया है।

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राजपूत क्षत्रिय करणी माता मंदिर में नवरात्र की नवमी पर हवन हुआ.



 सूरतगढ़,7 अक्टूबर 2019.

राजपूत क्षत्रिय करणी माता मंदिर में शारदीय नवरात्र की नवमी पर हवन हुआ.

मुख्य जजमान राजपूत क्षत्रिय संघ के अध्यक्ष मल सिंह भाटी,लेखक पत्रकार करणी दान सिंह राजपूत, लाल सिंह बीका ( पूर्व अध्यक्ष) एवं छत्रपाल सिंह आदि ने सपत्नी हवन किया। 

इस अवसर पर हुए हवन में राजपूत सरदारों के अलावा राजपूत परिवारों व अन्य समाज के परिवारों ने भी पूजा अर्चना में भाग लिया।

नवमी के अवसर पर मां करणी की विशेष पूजा अर्चना की गई।

प्रसाद चढ़ाए गए। मां करणी माता की प्रतिमा पर चुनरी ओढाई गई। मंदिर  में संघ की ओर से कन्याओं को भोजन प्रसाद ग्रहण कराया गया। राजपूत समुदाय के उपस्थित अनेक सदस्यों ने भी इस पर्व पर भोजन प्रसाद ग्रहण किया।  


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शनिवार, 5 अक्तूबर 2019

पुलिस सहयोग से 10 जेड में नशा मुक्ति कार्यशाला


श्रीगंगानगर, 4 अक्टूबर 2019.

जिला पुलिस अधीक्षक श्री हेमन्त शर्मा के निर्देशानुसार पुलिस थाना सदर श्रीगंगानगर के सहायोग से गांव 10 जैड के राजकीय माध्यमिक विद्यालय में नशामुक्ति जन जाग्रति कार्यशाला एवं निःशुल्क नशामुक्ति शिविर का आयोजन किया गया। इसमें विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं ग्राम वासियों ने भाग लिया।

कार्यक्रम में नशामुक्ति परामर्श एवं उपचार केन्द्र के प्रभारी अधिकारी डॉ0 रविकान्त गोयल ने उपस्थित विद्यार्थियों, विद्यालय स्टॉफ व ग्रामीणों को सम्बोधित करते हुए कहा कि युवाओं को आज सबसे अधिक खतरा नशे से ही है। डॉ0 गोयल ने नशे के दोषों , दुष्प्रभावों की जानकारी देते हुए विद्यार्थियों को नशा न करने, नशे के आदि व्यक्तियों को नशा छुडवाने के सरल व वैज्ञानिक उपायों की जानकारी देते हुए जीवन भर नशा करने व नशा छुड़ाने की शपथ दिलवाई। 

कार्यक्रम में समाज सेवी श्री बनवारी लाल शर्मा ने अपने सम्बोधन में कहा कि आने वाले कल को नेतृत्व प्रदान करने वाले युवा स्वयं में परिवर्तन कर देश के सामने उदाहरण बने। साहस से आगे बढे तथा जिम्मेदारी उठाकर निस्वार्थ सेवा भावना से प्रयास आरम्भ करे। उन्होने कहा कि हर विवेकशील व्यक्ति को नशे से दूर रहते हुए समाज को नशा मुक्त रहने के लिए सम्त जागरूक एवं प्रयासरत रहना चाहिए। कार्यक्रम में पुलिस थाना सदर के सहायक पुलिस निरीक्षक श्री ताराचंद ने अपने सम्बोधन में कहा कि नशीले पदार्थो का सेवन हर दृष्टि से नुकसानदायक है। विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री अनिल कुमार ने कहा कि युवा ही देश का भविष्य है। इन्हे नशे से दूर रहना चाहिए। 

आयोजित कार्यक्रम में सरपंच श्री कपिल कूकना, ग्राम पंचायत 10 जैड के श्री रविन्द्र कुमार, वरिष्ठ अध्यापक श्री सुभाषचंद, वरिष्ठ अध्यापक श्री मोतीलाल सहित श्री सतनाम सिंह बराड़, श्रीमती जन्नत बानो एवं ग्रामीणजन उपस्थित थे। इस अवसर पर श्री विजय किरोडीलाल ने भी सम्बोधित किया।




थप्पड़ का ऐसा बदला,13 टुकड़े कर बिखेर दिए-


नई दिल्ली |
5 अक्टूबर 2019.
दिल्ली के गीता कॉलोनी में गुरुवार 2-10-2019 रात को दोस्तों ने युवक की पीटकर हत्या कर दी और फिर शव को ठिकाने लगाने के लिए चापड़( मांस काटने वाला छुरा/बड़ा चाकू) से उसके 13 टुकड़े कर दिए। यह मामला शुक्रवार सुबह खुल गया। पुलिस ने पांच आरोपियों को दबोच लिया, जिनमें एक नाबालिग भी शामिल । इनकी निशानदेही पर शव के चार टुकड़े बरामद कर लिए गए।
पुलिस के मुताबिक, मुख्य आरोपी अमनप्रीत सिंह उर्फ चिन्ना को सोनू ने तीन साल पहले थप्पड़ मार दिया था। वहीं, उसे यह भी शक था कि सोनू ने उसकी मुखबिरी की थी, जिस कारण वह जेल गया था। इस वजह से उसने अपने दोस्तों के साथ मिलकर सोनू की हत्या कर दी।
पुलिस के अनुसार, 22 साल का सोनू गीता कॉलोनी में रहता था। वह मजदूरी करता था। परिजनों ने बताया कि गुरुवार रात उसके सात दोस्त घर पर आए। वे सोनू को गीता कॉलोनी स्थित श्मशान घाट ले गए और जहां सभी ने शराब पी। इस दौरान सोनू का दोस्तों से किसी बात पर विवाद हो गया। दोस्तों ने श्मशान घाट में पड़े लकड़ी के डंडों से उसकी जमकर पिटाई की, जिससे उसकी मौत हो गई। इसके बाद आरोपियों ने चापड़ से शव के 13 टुकड़े कर यमुना से लेकर एसडीएम ऑफिस तक फैला दिए। वहीं, शुक्रवार सुबह तक भी जब सोनू घर नहीं पहुंचा तो परिजनों को उसकी चिंता हुई।
दोस्तों ने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया तो परिजन पुलिस के पास पहुंचे। पुलिस ने जब सोनू के दोस्तों लवजीत सिंह, अर्जुन, अमनप्रीत, भावित से पूछताछ की तो सारा मामला सामने आ गया। इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर शव के कुछ हिस्से बरामद कर लिए हैं। इन्हें सब्जी मंडी शवगृह में सुरक्षित रखवा दिया गया है। शनिवार को डॉक्टरों के बोर्ड द्वारा शव का पोस्टमार्टम कराया जाएगा। वहीं, पुलिस शव के अन्य हिस्सों की तलाश कर रही है।
कई बार बच गया था
मुख्य आरोपी अमनप्रीत उर्फ चिन्ना पिछले तीन साल से सोनू को ठिकाने लगाना चाहता था। इसके लिए उसने सोनू को कई बार यमुना किनारे शराब पिलाई थी लेकिन मौका नहीं मिला।

सूरतगढ़ नगरपालिका ने पार्कों को बनाया कचरा पात्र

- करणीदानसिंह राजपूत -


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वछता भारत अभियान के तहत नगर पालिका का अजीबोगरीब नाटक सूरतगढ़ में देखा जा सकता है। 

एक तरफ घरों में सूखा और गीला कचरा एकत्रित करने और कचरे की गाड़ी में डालने का संदेश चल रहा है वहीं दूसरी ओर नगर पालिका नगर पालिका के द्वारा करीब 40 लाख रुपए के करीब खर्च हुए पार्कों को विकसित करने के बजाए उन्हें कचरा पात्र बना दिया गया है।

पार्कों में कचरे के ढेर और गंदे पानी की बदबू मिलती है। इसके अकाट्य प्रमाण है। 

नगर पालिका मैं 35 चुने हुए पार्षद हैं।इनमें एक पार्षद श्रीमती काजल छाबड़ा अध्यक्ष हैं। एक पार्षद पवन ओझा उपाध्यक्ष है और 33 पार्षदों में अधिकांश पार्षद ठेकेदार कंपनियों के मित्र हैं। 

नगर पालिका की बैठकों में विधायक भी आते हैं। सरकार द्वारा मनोनीत पार्षद भी बैठकों में आ रहे हैं। इतने लोगों ने मिलकर नगर पालिका के पार्कों को विकसित करने के बजाए साफ और स्वच्छ रखने के बजाय कचरा पात्र बना दिया है।यह सभी लोग जिनमें भारतीय जनता पार्टी इंडियन नेशनल कांग्रेस पार्टी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी व निर्दलीय सदस्य हैं,सभी  दोषी हैं।

 नगर पालिका के इस बोर्ड की जिम्मेदारी समस्त नगर पालिका क्षेत्र की है। ये करोड़ों रुपए का बजट नगरपालिका बैठक में हर साल सर्वसम्मति से पारित करते हैं और शहर को कचरा पात्र का रूप देते हैं।

 नगर पालिका से से चिपते ही सुंदर बगीचा होता था जिस पर अभी कुछ वर्ष पहले ही करीबन ₹5 लाख रू से अधिक खर्च करके अति सुंदर रूप रूप दिया गया लेकिन वर्तमान नगर पालिका बोर्ड ने इसे कचरा पात्र बना दिया। इस पार्क में में अब कचरा ढोने वाले वाहन खड़े किए जाते हैं। पार्क का रूप रूप स्टोर का रूप में बना दिया गया है। जिन लोगों का उल्लेख ऊपर किया गया है यह सब देख रहे हैं।

आम जनता अभी भी और कभी भी जाकर इस पार्क को गंदे स्टोर के रूप के रूप में बदले हुए देख सकती है। 

प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान के नाम पर नाटक शहर के बाईपास पर केशव पार्क में भी देखा जा सकताहै।

 केशव पार्क पर करीब 25 लाख रूपये खर्च हो चुके हैं।  केवल दीवारें खड़ी की गई निर्माण किए गए लेकिन उसमें दूब व हरियाली,पौधों का फूल पत्तियों का नामोनिशान नहीं है।दीवारें भी टूटने लगी हैं। 

वर्तमान भाजपा बोर्ड के काल में इस पार्क परिसर में में परिसर में में गंदा पानी भरा हुआ है और कचरा डाला हुआ पड़ा पड़ा है। 

आखिर लाखों रुपए लगाकर गंदगी और कचरा भरने से क्या लाभ मिल रहा है?

भाजपा का प्रधानमंत्री और उसका स्वच्छता संदेश। भाजपा की मुख्यमंत्री,भाजपा का विधायक और भाजपा की नगरपालिकाअध्यक्ष।

यह तो उदाहरण हैं और संपूर्ण शहर के कचरा पात्र रूप को दखेंगे तो इनके कार्य से घिन आएगी।

एक कहावत है कि कुत्ता भी अपने जगह को साफ सुथरा करके बैठता है लेकिन नगरपालिका का के भवन को देखें एक दड़बे के रूप में है। करोड़ों का बजट कहाँ जाता है?

प्रथम 18-2-2018.
अपडेट 5-10-2019.


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गुरुवार, 3 अक्तूबर 2019

पान मसाला में जानलेवा हजारों केमिकल- नपुंसकता,कैंसर, दिल व अन्य बीमारियां-सचेत हो जाएं

देश भर में खतरनाक गुटखे पर प्रतिबंध लगाने के बाद बाजार में साधारण पान मसाला आया है वह भी खतरों से खाली नहीं है।
पान मसाले में चालीस प्रकार के केमिकल मिलाए जाते हैं वे आपस में मिलने के बाद 3000 से ज्यादा रूप धारण कर लेते हैं और मानव जीवन के लिए भयानक खतरा पैदा करते हैं।

साधारण पान मसाले के खाने से इन रसायनों से नपुंसकता, कैंसर, ब्लड प्रेशर, हृदयगति तेज होने, दिल का दौरा पड़ने, घबराहट होने, चक्कर आने और छाती के दर्द की बीमारियां होने का खतरा हो जाता है। 

पान मसाले की छोटी सी पुड़िया में 40 तरह के रसायन मिलाए जाते हैं,जो आपस में मिलकर 3000 से ज्यादा रूप धारण कर लेते हैं। ये मानव जीवन के लिए लगातार खतरा पैदा कर रहे हैं। देश में अनेक प्रकार के ब्रांड चल रहे हैं।
लोगों को पान मसाले के स्वाद की लत लगाने के लिए मैग्निशियम कार्बोनेट को 10 गुना तक ज्यादा मिलाया जा रहा है। इंटरनेशनल जर्नल आफ करंट फार्मा की रिसर्च में यह भयानक तस्वीर सामने आई है। हानिकारक केमिकल में अनडाइल्यूट हाइड्रोक्लोरिक एसिड, मैग्नीशियम कार्बोनेट, शीशा और तांबा जैसी वस्तुएं /तत्वों का पान मसाले में प्रयोग पूरी तरह से प्रतिबंध है।

रही सही कसर सुपारी चूना नकली कथा आर्टिफिशियल फ्लेवरिंग जैसे केमिकल ने पूरी कर देते है। पान मसाले का देश में करीब 16 हजार करोड़ का प्रतिवर्ष का कारोबार है।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल कैंसर के मरीज बढ़ रहे हैं।कैंसर रोगियों की संख्या सन 2016 में 14,51,000 थी जो 2017 में बढ़कर 15,17,000 हो गई। सन 2018 में यह फिर बढ़ी और 15 लाख 86 हजार हो गई।
अधिकांश लोगों में कैंसर का कारण पान मसाला ही है। 
पान मसाले में घातक केमिकल मुंह के अंदर कोमल त्वचा पर खतरनाक प्रभाव डालते हैं किसी में जल्दी तो किसी में कुछ वर्षों में इसका असर दिखता है। 

अब लोगों को यह सोचना है कि पान मसाला खाने वाले का मुंह पूरा खुल पा रहा है या नहीं। मुंह में कोमलता है या कठोरता आ चुकी है? सावधान रहें?

पान मसाला खाना शरीर के लिए आवश्यक पदार्थ नहीं है।( मीडिया रिपोर्टों पर आधारित)
प्रथम बार 11-7-2919.
अपडेट 3-10-2019.
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बुधवार, 2 अक्तूबर 2019

नेताओं की शह पर गांधी के देश में भ्रष्टाचार दुराचार बढा


* सत्य अहिंसा दिखावे के केवल कागजी बना दिये गए *

०० करणीदानसिंह राजपूत ००

भारत देश में संपूर्ण काम काज गांधी के नाम पर चलाया जा रहा है,मगर स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद हालात कह रहे हैं कि गांधी के देश में गांधी के सत्य और अहिंसा को भ्रष्टराज ने मार डाला है। गांधी के सत्य और अहिंसा अब केवल कागजी और दिखावे के रह गए हैं। राज चलाने वालों ने सत्य और अहिंसा का रूप बदल दिया है तथा अपनी मर्जी की परिभाषाएं बना दी हैं। आज ऐसा कोई भी प्रदेश नहीं है जहां पर किसी न किसी जगह कोई दंगा फसाद ना होता हो तथा पुलिस वाले किसी की जान ना ले रहे हों।    राज चलाने वालों को चरित्रवान मान कर देश की बागडोर दी गई लेकिन कितने बदल गए हैं अधिकांश राजनेता। केवल भ्रष्टाचार में करोड़ों रूपए जीमने और करोड़ों रूपए की कीमती जमीने और कृषिफार्म शापिंग काम्प्लेक्स ही उजागर नहीं हो रहे, बल्कि आए दिन कोई न कोई राजनेता या उनके परिवार का सदस्य बलात्कार यौन शोषण के अपराधिक कृत्य में फंसा हुआ सामने आ रहा है। भ्रष्ट राजनेताओं और उनके लोगों ने चरित्र की परिभाषा को तार तार करके रख दिया है। जब पकड़े जाते हैं तब कहते हुए दिखते हैं कि उनकी प्राइवेट जिंदगी को देखा ना जाए। मतलब की सफेद वस्त्रों में राज करने वालों के प्राईवेट बदनाम रूप को ना देखा जाए। शर्मनाक तो यह भी हो रहा है कि इस प्रकार के मामलों में पकड़े गए पति को बचाने के लिए पत्नी सार्वजनिक रूप से चैनलों पर कहे कि पति की प्राइवेट जिंदगी पर उसको कोई एतराज नही है। बेटी बाप के पक्ष में राजनीति करने लगे और बाप को भला कहते हुए जनता से समाज से सहयोग मांगे। संबंधित जाति के लोग उसको बचाने के लिए सम्मेलन भी करने लगें।
    गरीबों के काम ना हों और काम करने के लिए इज्जत मांग ली जाए। कितने ही मामले सार्वजनिक हो चुके हैं। पुलिस को माना जाता है कि वह जनता की अपराधों से रक्षा करेगी, लेकिन जब इस प्रकार के प्रकरण थानों में भी होने लगें व उनकी जांच में वर्षों बीत जाऐं। राजस्थान के एक मामले को लें जिसमें जोधपुर में एक विदेशी महिला की इज्जत से खिलवाड़ हुआ था। उसमें एक पखवाड़े में ही जांच हो गई व अभियुक्त का चालान तक हो गया, लेकिन देश की नारी के साथ बलात्कार व यौन शोषण के मामलों में इतनी तत्परता नहीं दिखाई जा रही। मतलब की देश व विदेश की महिला की इज्जत की परिभाषा और मापदंड अलग अलग।
राज करने वालों की यहां तक धौंस रहती है कि भ्रष्ट और अपराधिक राजनेताओं को दंडित करने व हटाने के बजाए उसको किसी न किसी पद पर बनाए रखने की चालें चली जाती है।
देश आज न अंदर सुरक्षित है न सीमाओं पर। यही हाल देश के लोगों का है। लेकिन राज करने वालों ने देश की राजधानी दिल्ली को सुरक्षा देकर मान लिया कि पूरा देश सुरक्षित हो गया तथा राजनीतिज्ञों को व उनके परिवारों को सुरक्षा देकर मान लिया गया कि देश का हर नागरिक सुरक्षित हो गया है। देश में रोजगार देने के मामलों में भी यही नीति अपनाई जाने लगी है। देश में अन्नाज नष्ट हो रहा है, मगर गरीबों को सस्ते दर पर देने में आनाकानी हो रही है। बीपीएल परिवारों के परिवार कार्ड बनाने तक में इतने नियम और कानून बना दिए गए हैं कि अधिकांश परिवार वंचित रह जाऐंगे। एक तरफ तो बीपीएल कार्ड के लिए भरा जाने वाला प्रपत्र उलझे हुए प्रश्रों से भर दिया गया है और दूसरी ओर सरकार उनको मोबाईल उपहार में देने की योजना बना रही है। खाने को रोटी ना सही, बातें तो करो। वे भी मुफ्त में करो।
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करणीदानसिंह राजपूत,
राजस्थान सरकार द्वारा अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार,
मोबा. 94143 81356
दिनांक- 12 अगस्त 2012.
अपडेट 2 अक्टूबर 2019. गांधी जयंती.
( कुछ भी नहीं बदला, उलटा भ्रष्टाचार दुराचार बढ गया)
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गांधी जी की दांडी यात्रा:यशवर्द्धनसिंह संधु जयपुर



देश चलता रहे,
भारत चलता रहे,
हर पल हर क्षण,
हर दिन हर रात
चौबीस घंटे,
हर माह,
हर साल।
निरंतर।






यशवर्द्धनसिंह संधु जयपुर

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प्रथम - 12 दिसंबर 2015.
अपडेट, 2 अक्टूबर 2019.   

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