लोगों व समाजसेवी संस्थाओं के पास दान करने को एक कागज का टुकड़ा नहीं था
- करणीदानसिंह राजपूत -
गुरूशरण छाबड़ा शराबबंदी की माँग पर दृढ मरणव्रत पर थे और दानी महादानी मेरे शहर के लोगों व समाजसेवी संस्थाओं के पास दान करने को एक कागज का टुकड़ा नहीं था। करोड़पति लोगों को कागज पर शराबबंदी के लिए सरकार को लिख कर ही देना था कि छाबड़ा जी के अनमोल जीवन को बचाए व उनके साथ जो समझौता हुआ है वह लागू करे। छाबड़ा कोई राजनीति नहीं कर रहा था और न उसको चुनाव लडऩा था। केवल समाज को सुधारने का एक संकल्प जिससे वर्तमान समाज और आगे की पीढिय़ां बरबाद होने से बचने वाली थी। छाबड़ा मेरा मित्र और मैं उनके कई आँदोलनों में सहयोगी था और इलाके के अनेक लोग उनके साथी रहे थे। शराबबंदी के लिए छाबड़ा जी मरणव्रत पर जयपुर में बैठे थे। उनकी दशा की सूचनाएं पल पल की आती रहती थी। मैंने केवल समाचार के लिए कार्य नहीं किया था। मैं लोगों से लगातार अपील पर अपील कर रहा था कि लोग व संस्थाएं जल्दी से जल्दी लिख कर सरकार को सचेत करें ताकि जल्दी से कोई कदम उठाकर छाबड़ा जी के जीवन को बचाया जाए।
संरतगढ़ के नामी गिरामी लोगों की समाजसेवी कहलाने वाली संस्थाएं और उनके संचालकों व कार्यकर्ताओं को केवल पत्र लिख कर स्थानीय अधिकारियों एडीएम या एसडीएम को ही सौंपना था लेकिन किसी के पास कागज का एक टुकड़ा नहीं था। मैंने न जाने कितने समाचार रपटें सचित्र इन संस्थाओं की छपवाई और समय भी दिया लेकिन इन्होंने छाबड़ा के जीवन के लिए पल भर का समय नहीं निकाला। संस्थाएं तो सर्दी गर्मी से बचाने के लिए ही दान करने में लगी रहती है लेकिन छाबड़ा तो सारा जीवन बचाने को संकल्प पर थे। उनको कुछ भी मिलने वाला नहीं था। वे तो अपनी देह भी दान कर चुके थे। उनके जाने के बाद उन्हीं के विधायक कार्य काल में खुले राजकीय महाविद्यालय का नामकरण उनके नाम पर किए जाने की बात सरकार ने स्वीकारी थी। छाबड़ा का ही प्रयत्न था जिसके कारण यहां पर राजकीय महाविद्यालय खुल पाया था वरना सरकारी क्षेत्र में महाविद्यालय खोलने को सरकार राजी ही नहीं थी।
गुरूशरण छाबड़ा का सूरतगढ़ से लगाव था और उन्हीं के विधायक काल में रेलवे स्टेशन के आगे नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की प्रतिमा स्थापित की गई थी और शहीद भगतसिंह की बहन ने प्रतिमा का लोकार्पण किया था। छाबड़ा जी जब भी जयपुर से सूरतगढ़ आते तब इस प्रतिमा को नमन करने के लिए जरूर पहुंचते। गुरूशरण छाबड़ा को भी उनके आदर्श एवं संघर्षशील व्यक्तित्व के कारण नेताजी पुकारा जाने लगा था।
महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के जीवन की गुप्त रखी गई पत्रावलियों को प्रधानमंत्री सार्वजनिक कर रहे थे लेकिन सुभाष की इस जयंती पर इलाके के नेताजी गुरूशरण छाबड़ा इस दुनिया में नहीं थे।