परख - राजाराम स्वर्णकार
मनोज स्वामी राजस्थानी भासा रा एक घणाचावा, टाळवां अर रससिद्ध कथाकार है । कथाकारां री भीड् में ऐ आपरी निजू ओळखाण कायम राख सकै । ऐ आपरी कहाणियां रो रचाव अलायदै ढंग सूं करै । आं’नै मिनख रै मनोविग्यान रो सखरो अर ओपतो ग्यान है । आं’री आछी अर असरदार कहाणियां पाठकां नै इण सारु दाय आवै क्यूंकै इण कहाणियां में नीं तो दुसराव हुवै, नीं अणूतो विस्तार अर नीं अभिधात्मक सपाटबयानी । मनगत री बातां तो हुवै पण अमूरतन रो फालतू बघार नीं हुवै । मन री अन्धारी गळियां में अणूतै भटकण-भटकावण रा भाव नीं हुवै । मनोज स्वामी कहाणी री सरुआत ई इण ढंग सूं करै कै पाठक रो ध्यान आपो आप खिंचीज जावै। वै भूमिका री लाम्बी चवडी पडत नीं बांचै । कहाणी रै पातरां रै सागै एकमेक हुय’र घटनावां रै मोड् अर विगसाव रै सागै पाठक ज्यूं ज्यूं आगै बधतो जावै, कहाणी री कथा सैली, संवाद अर ट्रीटमेंट रै कारण जिग्यासा रा कपाट ई खुलता जावै । जाणणै री एक ई धुन रैवै के आगै कांई हुवैला....कांई हुवैला । पाठक आपरै मन में सोचे के कहाणी रो अंत इण तरै रो हुवणो चाईजै पण उणरा सगळा अनुमान धरिया रैय जावै अर कहाणी अचाणचक इसो मोड लेवै, एक इसी कौन्ध पैदा करै कै पाठक रै अनुमान रै धुर विपरीत कहाणी रो अंत एक साव नुवादै ढंग सूं हुय जावै । आई तो है कथाकार रै हुनर री कुसलता, आई तो है कहाणी रै ट्रीटमेंट री एक टाळवीं खासियत ।
‘मनगत’ कहाणी संग्रै में 13 कहाणियां हैं यूं तो हरेक कहाणी रो फलक अलायदो है पण फेरुं ई पांच बिन्दुआं माथै इण रचाव नै आंकियो जाय सकै । ऐ पांच तत्व इण तरै है :- (1) लुगाई जात री दुरदसा (2) भूख अर गरीबी (3) सरकारी तंत्र री राफडलीलावां (4) जातिगत ओछा भाव अर (5 निपट स्वारथ परता रा दरसाव । संग्रै री पांच रै अडैगडै कहाणियां में मिनख रे मिजळापणै रा अर लुगाई रै दुरभाग रा दरसाव है । ऐ कहाणियां हैं:- मनगत, मिजळा लोग, दुसराइजतो इतिहास, गोदनामो अर सीर सैंस्कार । नारी जीवण री पारखी सीमोन द बोउवाह एकर कैयो हो कै ONE IS NOT BORN RATHER BECOMES A WOMAN. लुगाई जैविक इकाई होवण री जागा एक सामाजिक सांस्कृतिक इकाई है । समाज उणनै जिकै ढाळै ढाळणो चावै वा ढळ जावै जिकै सांचे में फिट कर दै वा वोई रूप धारण करलै । आ बात मनगत में जियां मेम्बर सा’ब रै बीनडती, माथै लागू हुवै उणी तरै रूप-रंग बदळ’र दुसराइजतो इतिहास री शायर अर विमला माथै, गोदनामै री राधा माथै, अर सीर सैंस्कार री राधा अर सीता माथै ई लागू होवै । आं सगळी कहाणियां में जुलम री सिकार लुगायां है । मिनखां री इच्छावां अर हवस रै नांव माथै हुवो चावै मिजळापणै रै नांव माथै चक्कू अर खरबूजै री पीडा तो लुगाई नै ई भुगतणी पडै । लुगायां रै अभिसप्त जीवण रा रूंगटा ऊभा करणै वाळा चितराम साम्ही आवता रैवै । साफ देखियो जाय सकै कै लुगाई जूण री एक जीव नी हुय’र एक जिनस है, जिनावर सूं ई माडी अदला-बदली या अट्टै सट्टै री सामग्री है । उमर भर तकलीफ भोगियां पाण उथळो देवण री हीमत तो करै पण उण उथळै में कीं सार नीं हुवै । उद्धरण (1) बनेइ जी, छोरया री तकदीर इती माडी क्यूं होवै ? क्यूं म्हारो कोई वजूद कोनी होवै ? क्यूं म्हानै डांगर पसुवां दांई अदला-बदली करगे घर सूं धक्को देइजतो रैहवै ? अर कदतांई देइजतो रैहसी..... कद तांई.......अर कद तांई ओ इतिहास दुसराइजतो रैहसी ? (2) छेकड् म्हनै उमर तो नरेन्द्र रै सागै ई काटणी है । पण जद आदमियां रो व्यवस्था पर जोर नीं चालै तो सगळो दोस लुगायां पर मंढता ई दिस्सै । के ठा ओ समाज लुगायां री पीड्, उणरो अणमाप दुख कुण देखसी, कुण अर कद समझसी । राधा रै चुप हुवतै ई सगळां रा मुंडा धोळा पडग्या । किणी खनै उण सवाल रो उथळो कोनी हो । थारै खनै है के ? आतम गिलानी जरुर हुवै । खुद माथै घिन ई आवै पण उथळो देवण री हीमत कोनी हुवै । इण कहाणी संग्रै में इण ढाळै री पीडा रा अंतर द्वंद्वा रा अर त्रासदियां रा केई दूजा उदाहरण ई है- भूख सूं भचीडा खावंतो मिनख जमारो कांई कांई नीं करै ? इणरी विगत पिंडदान, फीस, सीर सैंस्कार, मनगत अर मिजळा लोग कहाणियां में मिलै । मनगत में मेम्बर सा’ब रै भाणजै वाळी बीनडती टाबरां रा पेट पाळन सारु धानमंडी मांय दाणा चुगती फिरै । मामा भाणजा रात रा मैफल जमावै,धणी खरचो घालै नहीं, टाबर भूख सूं कुरळावै । गरीबी अर भूख रो एक चितराम इण भांत है :-उद्धरण (1) “दूसरै दिन सिंझ्या एक मगसै भेस आळी लुगाई डाक्टर री दुकान पर आई । एक टाबर आप मतो ई भाज्यो बगै, एक री आंगळी पकड राखी ही, एक गोदयां में अर एक उण रै पेट मांय हो । टाबरां रा सिरकेसा नै तेल कदी दिखायोडो ई कोनी हो । टाबरां अर लुगाई री आंख्या पितळाइजैडी । जाणै मंतरेडा सा जी हुवै । बस जीवंता हा ।“ उद्धरण (2) “इण कचरे रो के करस्यो ?” म्हारलै पाडोसी बां सूं पूछ्यो । बो आदमी कटियै रो मूंडो पकडै-पकडै बोल्यो, “इण में मांस रो अंस हुवै । के करां गरीब हां पेट री लाय किंया नें किंया तो ठंडी करणी ई पडै है । पण अबै...... ? थांनै आ कथा (कहाणी) सुणाया पछै म्हनै यूं लागै जाणै मुरगी अर बकरियां बाढणिया रो, बीं कचरै सूं पेट भरणियां रो अर बां साथै म्हारो भी पिंडदान हुग्यो । फीस कहाणी में भतीजी रै कॉलेज री फीस भरण सारू जाजा जतन करियां पछै ई जद सगळा दरवाजा बन्द हुय जावै तो आखर प्रैस मालक सूं पन्द्रै हजार रिपिया, दो रिपिया सैकडै सूं ब्याजूणा चकणा पडै । एक बरस तांई रकम नीं चूकीजै, करजो बाकी रैवै अर अजै कॉलेज रै तीजै बरस री फीस बाकी । उद्धरण (3):- “म्है गरीब आदमी हां । म्हारी बेटी आपरै कॉलेज में भणै है । फीस माफ करवावणी है ।
“म्हे के अठै माफी घर खोल राख्यो है । फीस तो देवणी ई पड्सी । बातां सूं कोनी चालै कॉलेज । सौ कीं अळो-थळो लगायो है जणां बण्यो है । ठा है नीं । आ जी सी ........ । अर उण धड देणी सी क्याड् भेड लिया । गरीबी रे जीवण में इसा दरसावां रो तो नाभी नाळ सम्बन्ध हुया करै ।
संग्रै में तीन कहाण्यां सरकारी तंत्र री राफडलीला री, देखावटी प्रचार री अर भिस्टाचार री है । कहाणियां रा नांव है “गोदनामो, प्रचार अर बारा’ आना । गोदनामो रो चिमनो पटवारी दोनूं हाथां सूं सूतो मारै । नाळी री जमीन री उपज मांयसूं ट्रॉलियां भर भर चिणा रा कट्टा पटवारी रै घरां पूगै । भिस्टाचार रै पाण सहैर में मकान, प्लोट, शॉरूम बणग्या । जीप आयगी । अथाक धन, धपाऊ गैणा, कोठी अर जाणै क्या क्या हुयग्या चिमनै पटवारी रै खनै । प्रचार कहाणी सरकारी दिखावै री पोल खोलण वाळी है । प्रचार सारू लोक कलाकारां ने बुलाईज्या पण उणां में के बीती पढियांई जाणीज सकै । आ एक तरै री संस्मरणात्मक कहाणी है । सगळा अफसर काम नै एक दूजै माथै टाळता रैवै । कलाकारां री गिनार कोई नीं करै । एक उद्धरण :- अरे तुम क्या हो ? तुम क्या हो ? मैं यहां का एसडीएम खड़ा हूं और तुम कुरसियों पर बैठे चाय पी रहे हो । “साब म्हे आदमी हां.... अर साब म्हानै के सोरम आवै के, थे कलेक्टर हो या एसडीएम हो.... म्हे खड्यो हुय’र कैयो । बो उकळ चुकळ हुयग्यो ।“ कहाणी इती रोचक है कै पाठक सुरु सूं आखर तांई रस लेय सके । इण संस्मरणत्मक कहाणी जियांई एक दूजी कहाणी “ओळ्यूं” रेखाचित्रात्मक है । मिरासी वाळी कहाणी बारा’आना में राजस्व मैकमै में खुलै भिस्टाचार रो बखाण है । पटवारयां री कलम री धार रै धक्कै जो लाग जावै उणनै तो चौरासी में चक्कर काटणा ई पडै । आखै देस में इण मैकमै रो ओ ई ढंग ढाळो है । जाणै किता गोता खावणा पड्या इंतकाल री बात दरज करावण में । पढियांई ठाह लागसी ।
एक कहाणी जात पांत री है । मेघवाळ रै बेटै रो नांव निकाळण में बिरामण दादा धन्नाराम जिण तरै सूं हाथ झड्काय दिया अर जात सुणतां ही बिदकग्यो उणरो जीवतो जागतो चित्रण है इण कहाणी में । कहाणी रो अंत इण तरै हुवै- “छोरो साईकिल सूं पडग्यो हो अर सिर फूटग्यो हो । डॉक्टर देख भाळ’र म्हनै कैयो ऐ दवाईयां लगा’र पाटी कर दे” । म्हे पाटी करण लाग्यो तो उण छोरै रै सागै दादो धन्नाराम खड्यो हो मूंडो उतारयां । म्हारै एक चढै अर एक उतरै । स्यात दादे म्हनै देख’र पिछाण लियो हो । म्है एकर तो करडी रीस सूं दादै साम्ही ताक्यो पण पछै म्हारै काम लागग्यो । पाटी करगे दादै नै कैयो “दादा, माणस जात सूं मोटी कोई जात कोनी हुवै । दादो तळै तकावण लागग्यो । “म्है पाछो म्हारै काम लागग्यो” । (जात पृष्ठ 50) दो कहाण्यां निपट स्वारथ री है । रोटी खरचो अर फीस । जापै में बेटी हुई तो बडोडै छोरै री बीनणी सासू नै कैयो “आ ल्यो थांरी लीद नै, थांरै बेटे सूं तो म्हानै ई पूरा सूरा टुकडा कोनी घालीजै । “म्है सगळा हाका-बाका, पण उण तो पाछो मुड’र कोनी देख्यो । पण जद दूजै जापै में बेटो हुयो तो खुद रै कनै ई राखियो (फीस-पृष्ठ 64-65) रोटी खरचो रो राजू बिना किसी खास जाण पिछाण रै सहैर में आय’र किणी रै घरां ठैरग्यो । दिनूगे सिंझ्या चाय अर दोनूं वेळा रोटियां जीमै पण जद रोटी खरचै रो चिन्होसी’क ई संकेत कियो तो आपरा गूदडा चक’र बईर हुयग्यो । जांवते जांवते कैयो “थारै अठै रैवण रो धरम कोनी, बणा कैयो । क्यूं भाई म्है के इस्यो माडो काम कर दियो ? छोरयां सूं काम करवावे । माटी ढुवावै । म्है कोनी रैहसूं इसी ठौड । ठीक है भाई । घणोई आछो, पधारो ।“ अर एक म्हीनै तांई फोकट रा चौखा रोट पाडगे राजू जांवतो रैयो ।
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मनोज कुमार स्वामी |
कहाणी संग्रै में आछै लोगां रा ई केई चरित्र चित्रण है । पण कुरूप चैरो अर बद शक्ल काया री झलक ई साम्ही आंवती रैवै । पोथी रे पूठै रो चितराम भोत प्रभावी है अर छपाई सांतरी हुवण सूं लगोतार पढण रो मन करै । पेपर बैक हुवण सूं पढण में सोरप बरतीजै । इणरै वास्तै पोथी ने छापणिया बोधि प्रकाशन ने भी घणैमान लखदाद है ।
भांत-भांत री सैलियां रो प्रयोग जियां संवाद सैली, फ्लैश बैक सैली, प्रश्नोतर सैली, मनोवैग्यानिक सैली आद रै सागै कसियोडा कथानक, शिल्प री सुघड्ता, भासा रो रूडो रळकवों प्रवाह, उपमावां री ताजगी, प्रतीकां री सोवणी छटा, मुहावरां री कोरणी अर छळछळावंतो कथा रस पाठकां रै मन नै रिझांवतो रैवै । गांव रे परिवेस री इसी प्रामाणिक रचना एक उस्ताद रचनाकार ने टाळ’र कोई नीं लिख सकै । म्है मनोज स्वामी नै इसै रूडै. रंजक अर टिकाऊ रचनावां सारू लखदाद देऊं ।
-- राजाराम स्वर्णकार
शिव-निवास, बर्तन बाजार, बीकानेर
मो.न. 8209463275
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प्रकासक- बोद्धि प्रकाशन, जयपुर.
पेपरबैक संस्करण.