रविवार, 29 जून 2025

कासनिया का राज ! डाउन नहीं हो रहा!! कारण!!!

 

* करणीदानसिंह राजपूत *

सूरतगढ़। विधानसभा चुनाव में हरा दिया लेकिन उसी की चल रही है। हारा हुआ नेता राज करे तो  जीना ही हराम। ऐसा जीवन जीने की मजबूरी है जिसमें नेता और अनेक कार्यकर्ता छटपटा रहे हैं मगर कुछ कर नहीं पा रहे। इस परेशानी में सूख रहे हैं कि कासनिया को कैसे गिराएं। इस सोच में तड़पते हुए एक एक दिन बिता रहे हैं।

* एक कार्यकर्ता पदाधिकारी से अचानक  बात हो गई।  उसके मुंह से निकल गया कि कुछ भी करने का मन नहीं करता, जब तक कासनिया की चलती है। पहले उसको कैसे नीचे गिराएं। सभी यही सोच रहे हैं,और इसी में कोई भी काम नहीं हो रहा।

* कार्यकर्ता पदाधिकारी को एक तरकीब बताई कि कासनिया का राज इस तरह से खत्म किया जा सकता है लेकिन वह कुछ कह नहीं पाया। न हां और न ना। 

👌 करीब साठ पैंसठ साल पहले एक साप्ताहिक पत्रिका में  एक  खड़ी लकीर छपी थी और साथ में प्रश्न छपा था। इस लकीर को बिना काटे बिना छुए छोटी करनी है। कैसे करें? लोगों ने पत्रिका को उत्तर लिखे ही होंगे। उत्तर अगले अंक में छपा। छोटी लकीर के पास में उससे अधिक लंबी लकीर छपी थी। साथ में छपा था बड़ी लकीर खींच दें। पहले वाली लकीर बिना छुए छोटी हो गई। कार्यकर्ता पदाधिकारी को तरकीब बताई कि कासनिया राज को खत्म करना है तो उससे अधिक काम करके बड़ी लकीर खींच दो। जब काम करोगे तो लोग तुम्हारे पास आने लगेंगे। काम करना पड़ेगा। जो कासनिया से अलग हैं दूसरे तीसरे खेमों में हैं वे नेता और कार्यकर्ता हर समस्या पर जनता यानि पीड़ित परेशान के साथ लगकर काम करें और कासनिया के कामों से अधिक काम करके बड़ी लकीर खींचने में जुट जाएं। यह तरकीब सभी को मालुम है। 

* कासनिया मतलब रामप्रताप कासनिया के यहां रोजाना  एक सौ से दो ढाई सौ लोग अपनी समस्या, अपना काम या मिलने के लिए पहुंचते हैं। आने वाले के लिए चाय पानी की पूछ और सेवा भी होती है। कासनिया बड़े मैटर सुनते हैं और अपने बेटे संदीप कासनिया को भी आगे कर दिया, सो वह भी परेशानियां सुनता है और काम करता है। अब सीधे सीधे कहें तो नेता नेतियां इस तरकीब पर काम करें। अपनी संतान को पैसे कमाने में लगाने व्यापारी बनाने सर्विस में लगाने के बजाय लोगों के काम कराने में लगाएं। निश्चित ही कासनिया राज खत्म हो सकता है लेकिन इस तरकीब पर चलना होगा। कासनिया के अलावा जो खेमे हैं वे  जनता के साथ खड़े हों और चायपानी की पूछ में दो पैसे भी लगाएं। जनता का काम होगा तो बड़ी लकीर खींच कर कासनिया की लकीर को छोटी कर सकेंगे।

* कासनिया को टिकट मिली और जिनको नहीं मिली वे एक भी जनता के काम करवाने के बजाय अपने काम धंधों में लग गए। ऐसे में परेशान लोग किसी के पास तो जाएंगे। एक काम यह भी किया जाए कि उन टिकटार्थियों को भी खोज कर काम सौंपे जाएं। उनसे पूछा भी जाए कि वे कहां गुम हो गए। न चिट्ठी न संदेश। कहां चले गए?

* कुछ माह पहले भाजपा के कुछ लोग जयपुर जाकर प्रदेश अध्यक्ष से मिले थे। भाजपा को मजबूत करने का उद्देश्य भी बताया था। लेकिन यहां भाजपा मजबूत करने का उद्देश्य तो तभी पूर्ण हो सकता है जब जनता के काम हों। * कुछ दिन पहले एडीएम से भी मिले और लोगों को विभागों में हो रही समस्याओं को दूर करने की मांग रखी थी। बाद में कुछ भी नहीं हो पाया। जो लोग जयपुर जाकर प्रदेशाध्यक्ष से मिले और जो एडीएम से मिले वे बाद में निष्क्रिय आलसी क्यों हो गए? जिस विभाग की समस्या है तो उसको लिखित में दिया जाए मौके पर जाकर देखा जाए तो कुछ समाधान भी हो। अधिकारियों से हर दूसरे तीसरे दिन काम के होने के बारे में आमने सामने बात हो तो बदलाव हो सकता है। यह लिखित का काम नगर मंडल देहात मंडल के अध्यक्ष महामंत्री उपाध्यक्ष कर सकते हैं। नेता भी कर सकते हैं। सभी के पास अपने लैटरपैड होंगेऔर रबड़ मोहरें भी होंगी। एक संकल्प लेकर सौगंध खाकर नगरपालिका और पंचायत चुनाव से पहले बड़ी लकीर खींचने के लिए पहली जुलाई से ही जुट जाएं। यदि ऐसा करने में पीछे रहते हैं तो फिर कासनिया बाप बेटे की ही सन 2028 के विधानसभा चुनाव आने तक चलेगी। दि. 29 जून 2025.०0०











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