शनिवार, 27 अक्तूबर 2018

सूरतगढ में पुलिस की नशामुक्ति कार्यशाला: क्या हुआ जानेंं


श्रीगंगानगर, 27 अक्टूबर 2018. जिला पुलिस अधीक्षक श्री योगेश यादव के निर्देशानुसार पुलिस प्रशासन द्वारा स्वास्थ्य एवं शिक्षा विभाग के सहयोग से चलाए जा रहे नशा मुक्ति अभियान के अंतर्गत लगाए जाने वाले नशा मुक्ति शिविरों की कड़ी में गुरूवार 25 अक्टूबर 2018 को सेठ रामदयाल राठी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय सूरतगढ़ जिला श्रीगंगानगर में नशा मुक्ति जनजागृति कार्यशाला का आयोजन पुलिस थाना सूरतगढ़ शहर के सहयोग से किया गया।

 कार्यक्रम में सीओ सूरतगढ़ पुलिस उपअधीक्षक श्री लोकेन्द्र दादरवाल ने मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित विद्यार्थियों ,अभिभावकों व कस्बा वासियों को संबोधित करते हुए कहा कि नशा विनाशक होता है, नशा व्यक्ति की प्रगति में मुख्य बाधक का रोल अदा करता है तथा नशा व्यक्ति को अपराधी बना देता है। समाज में हो रहे अपराधों चोरी, डैकेती, हत्या, दुष्कर्म,सडक दुर्घटना, परिवारों के विघटन व कुरीतियों के पीछे अधिकतर नशा ही कारक होता है। नशे पर काबू पाकर इन सभी अपराधों व समस्याओं  पर काबू पाया जा सकता है। इस कार्य में छात्र वर्ग को अहम भूमिका निभानी चाहिए।

 कार्यक्रम में नशा मुक्ति विशेषज्ञ डॉ0 रविकांत गोयल ने मुख्य वक्ता के रूप में अपने संबोधन में कहा कि युवा वर्ग अपनी यौन क्षमता बढ़ाने की गलतफहमी में नशे का सेवन करने लगता है तथा इसका आदी हो जाता है, जिसके फलस्वरूप नंपुसकता का शिकार हो जाता है। ऐसे में परिवार में विद्यटन होने लगता है। नशा छोड़कर व्यक्ति स्वस्थ खुशहाल एवं सम्मानित जीवन जी सकता है। डॉ0 गोयल ने नशा छोड़ने व छुडवाने के सरल उपायों की जानकारी देते हुए उपस्थित जनसमूह को जीवन भर नशा न करने की शपथ दिलवाई।

 इस अवसर पर श्री इंद्रमोहन सिंह जुनेजा ने अपने संबोधन में कहा कि नशा मानवता का दुश्मन है तथा मानव जीवन अनमोल है, जिसे नशों की भेट नही चढ़ाना चाहिए। श्री जुनेजा ने पुलिस द्वारा चलाए जा रहे नशा मुक्ति अभियान की जानकारी देकर इससे मिल रही सफलताओं पर प्रकाश डाला।

 थानाधिकारी श्री निकेत पारीक ने विद्यार्थिओं से संवाद स्थापित करते हुए कहा कि विद्यार्थिओं को जीवन में संयम और अनुशासन का कड़ाई से पालन करना चाहिए। नशों, अपराधों व समाज में फ़ैल रही बुराईयों से दूर रहते हुए देश निर्माण एवं सुसज्जित समाज के निर्माण में अपनी भूमिका निभाने के लिए विद्यार्थिओंको प्रेरित किया। सामाजिक कार्यकर्ता बनवारी लाल शर्मा ने नशे को बीमारीयों व समस्याओं की जड़ बताते हुए नशों से दूर रहने हेतु प्रेरित किया।

 इस अवसर पर कार्यवाहक प्रधानाचार्य श्रीमती नीलम पाटनी ने सभी विद्यार्थिओं को नशे के कंटीले मार्ग से दूर रहने, अपने विद्यालय, अपने समाज को नशा मुक्त करने के लिए प्रेरित किया जिससे आने वाली पीढ़ियाँ नशा मुक्त वातावरण में सांस ले सके। कार्यक्रम में मनीषा गोयल, बाबुराम सुथार, चुन्नीलाल, विकास वर्मा, तथा वेद प्रकाश ने भाग लेकर कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना सहयोग प्रदान किया। कार्यक्रम का मंच संचालन व्याख्याता अंजनी कुमार ने किया। 


बुधवार, 24 अक्तूबर 2018

अरावली पर्वत माला की 138 पहाड़ियों में से 28 पहाड़ियां गायब:




* अरावली पर राजस्‍थान सरकार का कबूलनामा, सुप्रीम कोर्ट को बताया- 138 में से 28 पहाड़ियां गायब*

राजस्‍थान में अरावली की पहाड़ियों पर हो रहे अवैध खनन पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अपना लिया है। कोर्ट में राजस्थान सरकार ने ये स्वीकार किया है कि अरावली की 138 में से 28 पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं। कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को 48 घंटे के भीतर अरावली के 115.34 हेक्टेयर क्षेत्र मेें अवैध खनन रुकवाने के आदेश दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई करने वाली न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि वह यह आदेश देने के लिये मजबूर हो गई क्योंकि राजस्थान सरकार ने इस मामले को ‘बहुत ही हल्के’ में लिया है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या लोग हनुमान हो गए और पहाड़ियां लेकर गायब हो गए। 

कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार अवैध खनन रोकने में बुरी तरह नाकाम रही है।


शीर्ष अदालत ने केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समिति की रिपोर्ट का भी जिक्र किया कि राज्य के अरावली इलाके में 28 पहाड़ियां अब गायब हो चुकी हैं। 


पीठ ने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण स्तर में बढ़ोत्तरी का एक कारण राजस्थान में इन पहाड़ियों का गायब होना भी हो सकता है। 

पीठ ने अपने आदेश पर अमल के बारे में एक हलफनामा दाखिल करने का राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश भी दिया है।

सर्वोच्च न्यायालय अरावली पहाड़ियों में गैरकानूनी खनन की गतिविधियों से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहा था। बता दें कि कोर्ट ने अपने आदेश के अनुपालन पर राज्य के मुख्य सचिव से हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने कहा कि पर्यावरण मंत्रालय को लगता है कोई चिंता नहीं है, राज्य सरकार भी मसले पर बेपरवाह है।

सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय को 6 सप्ताह के भीतर अध्ययन रिपोर्ट पेश करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट में पर्यावरण मंत्रालय को ये भी बताने को कहा था कि निर्माण कार्यों के लिए बजरी या फिर बालू क्यों आवश्यक है। राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर राज्य में पूरी तरह से बजरी पर बैन को गलत बताया था।

* जनसत्ता ऑनलाइन*24 अक्टूबर 2018.


रविवार, 21 अक्तूबर 2018

सूरतगढ़ भाजपा टिकट:दावेदारों से हटकर नये विवाद रहित व्यक्ति की संभावना



करणीदानसिंह राजपूत *

सूरतगढ़ में भाजपा की जीत पर खतरे की संभावना को टालने के लिए वर्तमान दावेदारों से हटकर नया चेहरा उतारने की कोशिश है। संघ की पसंद और भाजपा संगठन में से निर विवाद सक्रिय पर गुप्त मंथन जारी है और उच्च नेताओं की जानकारी में ही यह चेहरा लाने का प्रयास है। अभी संगठन में संभाग की जिम्मेदारी पर और सूरतगढ़ क्षेत्र में सालों से पार्टी कार्यों में व जनप्रतिनिधि के एक पद पर पूर्व में रह चुके व्यक्ति पर चुनाव का दावं पार्टी खेल सकती है।

नेताओं के आपसी विवाद में भाजपा को नुकसान से बचाने के लिए चल रही कवायद में यही कामयाब तरीका है कि ऐसा व्यक्ति हो जिस पर किसी तरह का आरोप प्रतिपक्ष नहीं लगा सके।

सूत्र के अनुसार पार्टी के नेताओं में चर्चा है कि वर्तमान विधायक राजेंद्रसिंह भादू से लोगों की नाराजगी से पैदा हुई खाई को नया चेहरा  पाटने में और  सीट निकालने में कामयाब रहेगा। अभी जो टिकट के दावेदार हैं उनमें यह सांमजस्य नहीं दिखता कि टिकट एक को मिलने पर अन्य उसका पक्का सहयोग करेंगे। विधायक राजेंद्रसिंह भादू ने रणकपुर में अपना पक्ष रखते हुए विकास का बखान करते हुए पुनः टिकट मांगी और यह भी स्पष्ट कहा कि पार्टी जिसे भी टिकट देगी उसका सहयोग करेंगे।

 राजस्थान में वर्तमान विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के 160 विधायकों में से 80 - 90 विधायकों को अगले चुनाव के अंदर उतारने पर संकट मानते हुए पार्टी इनके स्थान पर अन्य को उतारना चाहती है।

 अब यह बात खुलासा हो गई है दबी हुई नहीं रही कि परिवर्तन होने वाला है।

 भारतीय जनता पार्टी की वर्तमान सरकार मुख्यमंत्री और विधायकों के विरुद्ध जबरदस्त आक्रोश है। जनता और कार्यकर्ता दोनों ही परिवर्तन चाहते हैं। 

सूरतगढ़ सीट पर वर्तमान विधायक राजेंद्र सिंह भादू का विरोध है। गाँवों और शहर में यह विरोध बहुत ज्यादा है। शहर में विधायक जनसंपर्क करने तक की हालत में नहीं होने का बताया जा रहा है। लोगों की मांग प्रमुख चर्चा बनी हुई है कि राजेंद्र भादू की बजाए अन्य को टिकट दिया जाए।

अन्य में  टिकट के प्रबल दावेदारों में पुराने  दो चेहरे हैं। 

प्रतिपक्ष कांग्रेस के नेता और अनेक अनुभवी लोग राजनीति की तह तक जाकर भी मानते हैं कि रिकॉर्ड के विकास और निर्माण कार्यों  के कारण विधायक राजेंद्रसिंह भादू की टिकट कटना संभव नहीं है और नाराजगी का कोई पैमाना नहीं है।

लेकिन किन्हीं परिस्थितियों में अगर भादू को फिर से टिकट नहीं दी जाती है तो कोई जरूरी नहीं है कि बाद में दावा ठोक रहे रामप्रताप कसनिया का नंबर आ जाए। रामप्रताप कसनिया और राजेंद्र भादू के विवाद की स्थिति में पार्टी यह टिकट गंवा भी सकती है। अशोक नागपाल का मानना है कि भादू कासनिया को टिकट नहीं मिलने की स्थिति में ही उनका नंबर लग सकता है। दोनों नेता कासनिया और नागपाल सन 2008 के 10 साल बाद ही सक्रिय हुए हैं। 

संभव है कि दावेदारों की इस प्रकार की राजनैतिक स्थिति और आपसी मेल नहीं होने के कारण पार्टी में जाने माने पर कार्य हुआ। अभी मंथन और चर्चाएं जारी है और नाम की सार्वजनिक घोषणा का इंतजार है।







गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018

मेरा सुखद प्रवेश 74 वें वर्ष में : लेखन पत्रकारिता के 53 वर्षों की आनन्दी यादें- करणीदानसिंह राजपूत:


माँ हीरा और पिता रतनसिंहजी की सीख तूं चलते जाना निर्भय होकर-पीड़ितों की आवाज बन कर:

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पत्रकारिता एवं लेखन के वर्षों के संघर्ष और आनन्ददायी अनुभवों व महान लेखकों पत्रकारों की रचनाओं को पढ़ते और उनसे मिलते हुए मेरे जीवन के तिहेतर वर्ष पूर्ण हुए एवं 19 अक्टूबर 2018 को 74 वें वर्ष में प्रवेश की सुखद अनुभूति।
सीमान्त क्षेत्र का छोटा सा गांव जो अब अच्छा कस्बा बन गया है अनूपगढ़ जिसमें मेरा जन्म हुआ। माता पिता हीरा रतन ने और परिवार जनों ने वह दिया जिसके लिए कह सकता हूं कि मेरी माँ बहुत समझदार थी और पिता ने संषर्घ पथ पर चलने की सीख दी।
सन् 1965 में दैनिक वीर अर्जुन नई दिल्ली में खूब छपा और सरिता ग्रुप जो बड़ा ग्रुप आज भी है उसमें छपने का गौरव मिला।
हिन्दी की करीब करीब हर पत्रिका में छपने का इतिहास बना।
धर्मयुग और साप्ताहिक हिन्दुस्तान में छपना गौरव समझा जाता था। दोनों में भी कई बार छपा।
छात्र जीवन में वाचनालय में दिनमान पढ़ता था तब सोचा करता था कि इसके लेखक क्या खाते हैं कि इतना लिखते हैं। वह दिन भी आए जब दिनमान में भी मेरी रिपोर्टें खूब छपी।

सन् 1974 में प्राणघातक हमला हुआ। राजस्थान की विधानसभा में कामरोको प्रस्ताव 20 विधायकों के हस्ताक्षरों से पेश हुआ। 48 विधायक बोले और फिर संपूर्ण सदन ही खड़ा हो गया था। मुख्यमंत्री को खड़े होकर सदन को शांत करना पड़ा था। राजस्थान विधानसभा की प्रतिदिन की कार्यवाही उन दिनों छपती थी। मेरे पास वह एक प्रति है। सात दिनों तक यह हंगामा किसी न किसी रूप में होता रहा था। बीबीसी,रेडियो मास्को, वायस ऑफ अमेरिका सहित अनेक रेडियो ने दुनिया भर में वह घटना प्रसारित की। देश के करीब करीब हर हिन्दी अग्रेजी अखबार में संपादकीय छपे।आरएसएस का पांचजन्य,वामपंथी विचारधारा और जवाहर लाल नेहरू के मित्र आर.के.करंजिया का ब्लिट्ज,कांग्रेसी टच का करंट और समाजवादी विचार धारा के जॉर्ज फरनान्डीज के प्रतिपक्ष में 1974-75 में खूब छपा।/ प्रतिपक्ष साप्ताहिक था जिसने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नींद हराम करके रखदी थी और बाद में तो इस पर आपातकाल में प्रतिबंध लग गया था।
 आपातकाल अत्याचार का काल था जिसमें मेरा साप्ताहिक भारत जन भी सरकारी कोपभाजन का शिकार बना। पहले सेंसर लगाया गया। सरकार की अनुमति के बिना कोई न्यूज छप नहीं सकती थी। विज्ञापन रोक दिए गए। अखबार की फाइल पेश करने के लिए मुझे गंगानगर बुलाया गया और  30 जुलाई 1975 को वहां गिरफ्तार कर लिया गया। आरोप लगाया गया कि पब्लिक पार्क में इंदिरा गांधी के विरोध में लोगों को भड़का रहा था। एक वर्ष की सजा भी सुनाई गई। सवा चार माह तक जेल मे बिताए और उसके बाद एक संदेश बाहर कार्य करने का मिलने पर 3 दिसम्बर 1975 को बाहर आया। आपातकाल में बहुत कुछ भोगा। मेरी अनुपस्थिति में छोटी बहन,पिता और नानी को क्षय रोग ने ग्रस लिया। इलाज तो हुआ वे ठीक भी हुए लेकिन वह काल बड़ा संघर्षपूर्ण रहा। परिवार ने कितनी ही पीड़ाएं दुख दर्द भोगे मगर वह अनुभव राजपूती शान के अनुरूप और देशभक्ति से पूर्ण रहे जो जीवन की श्रेष्ठ पूंजी हैं।
 मैं सरकारी पीडब्ल्यूडी की नौकरी में था तब लेख कहानियां आदि बहुत छपते थे लेकिन गरीबों व पिछड़े ग्रामों आदि पर लिखने की एक ललक थी कि दैनिक पत्रों में लिखा जाए तब 1969 में पक्की नौकरी छोड़ कर लेखन के साथ पत्रकारिता में प्रवेश किया। अनेक अखबारों में लिखता छपता हुआ सन 1972 में राजस्थान पत्रिका से जुड़ा और 15 मई 2009 तक के 35 साल का यह सुखद संपर्क रहा।
राजस्थान पत्रिका का एक महत्वपूर्ण स्तंभ कड़वा मीठा सच्च था। इस स्तंभ में लेखन में घग्घर झीलों के रिसाव पर सन् 1990 में लेखन पर सन् 1991 में राज्य स्तरीय प्रथम पुरस्कार मिला। इंदिरागांधी नहर पर 12 श्रंखलाएं लिखी जो सन् 1991 में छपी तथा दूसरी बार 1992 में पुन: राज्य स्तरीय प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ। राजस्थान की शिक्षा प्रणाली पर व्यापक अध्ययन कर दो श्रंखलाओं में सन् 1993 में प्रकाशित लेख पर तीसरी बार राज्य स्तरीय प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके बाद सन 1996 में राजस्थान की चिकित्सा एवं स्वास्थ्य पद्धति पर व्यापक अध्ययन कर 4 श्रंखलाएं  लिखी। इस पर सन् 1997 में राज्य स्तरीय दूसरा पुरस्कार मिला।
राजस्थान पत्रिका के संस्थाथापक प्रसिद्ध पत्रकार श्रद्धेय कर्पूरचंद कुलिश का मेरे पर वरद हस्त रहा और उन्होंने जोधपुर में पत्रकारों के बीच में कहा कि मैं तुम्हारे हर लेख को पढ़ता हूं। यह एक महान गौरववाली बात थी। गुलाब कोठारी और मिलाप कोठारी एक घनिष्ठ मित्र के रूप में आते मिलते और अनेक विषयों पर हमारी चर्चाएं होती। माननीय गुलाब जी सुझाव लेते और वे पत्रिका में लागू भी होते। गुलाब कोठारी ने श्रीगंगानगर में सर्वश्रेष्ठ संवाददाता के रूप में सम्मानित किया तब कई मिनट तक एकदूजे से गले मिले खड़े रहे। आज भी पत्रिका परिवार के साथ घनिष्ठ संबंध हैं।


राजस्थान पत्रिका के प्रधानसंपादक गुलाब कोठारी सर्व श्रेष्ठ पत्रकारिता पर करणीदानसिंह राजपूत को सम्मानित करते हुए। बीच में नजर आ रहे तत्कालीन शाखा प्रबंधक अवधेश जैन और पास में उपस्थित तत्कालीन शाखा प्रभारी संपादक हरिओम शर्मा। दिनांक 16-4-2004.

वर्ष 1997 में शिक्षा संस्थान ग्रामोत्थान संगरिया के बहादुरसिंह ट्रस्ट की ओर से पत्रकारिता में पुरस्कार प्रदान किया गया।
    रामनाथ गोयनका के इंडियन एक्सप्रेस का विस्तार जब जनसत्ता दैनिक के रूप में हुआ तब जनसत्ता दिल्ली में खूब छपा। जब चंडीगढ़ से छपने लगा तब ओमप्रकाश थानवी के कार्यकाल में चंडीगढ़ में भी छपा। साप्ताहिक हिन्दी एक्सप्रेस बम्बई में भी लेख कई बार छपे।
राजस्थान की संस्कृति,सीमान्त क्षेत्र में घुसपैठ,तस्कर,आतंकवाद पर भी खूब लिखा गया। पंजाब के आतंकवाद पर टाइम्स ऑफ इंडिया बम्बई ने लिखने के लिए कहा तब कोई तैयार नहीं हुआ। वह सामग्री वहां से छपने वाली पत्रिका धर्मयुग में छपनी थी। मैंने संदेश दिया और मेरा लेख सन् 1984 में दो पृष्ठ में छपा। धर्मयुग में लेख छपना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी। धर्मयुग में बाद में कई लेख प्रकाशित हुए।
मेरे लेख और कहानियां बहुत छपी।

आकाशवाणी सूरतगढ़ से वार्ताएं कहानियां कविताएं रूपक आदि बहुत प्रसारित हुई हैं। रूपक राजस्थान के सभी केंद्रों से एक साथ प्रसारित हुए।
इंदिरागांधी नहर पर दूरदर्शन ने एक रूपक बनाया जिसमें कई मिनट तक मेरा साक्षात्कार रहा। वह साक्षात्कार मेरे इंदिरागांधी नहर पर लेखन के अनुभवों के कारण लिया गया। दूरदर्शन के दिग्गज प्रसारण अधिकारी के.के.बोहरा के निर्देशन में वह साक्षात्कार हुआ व राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारण हुआ।
मेरा लेखन कानून नियम के लिए सच्च के प्रयास में रहा। कई बार ऐसा लेखन अप्रिय भी महसूस होता है लेकिन जिन लाखों लोगों के लिए लिखा जाता है,उनके लिए आगे बढऩे का कदम होता है। राजनीति,राजनेताओं व राजनैतिक दलों पर और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लिखना लोगोंं को सुहाता है वहींं अप्रिय भी लगता है। साधारणतया ऐसे लेखन से पत्रकार बचना चाहते हैंं लेकिन मैं ऐसे लेख लिखना अच्छा समझता हूं,क्योंकि समाज लोग सतर्क तो होते ही हैं।


मेरे परिवार जन,मित्रगण और कानून ज्ञाता जो साथ रहे हैं वे भी इस यात्रा में सहयोगी हैं। 

मेरे लेखन में माता पिता की सीख रही है इसलिए उनका संयुक्त छायाचित्र यहां पर दे रहा हूं।


मैंने मेरे पूर्व के लेखों में भी लिखा है कि लिखने बोलने की यह शक्ति ईश्वर ही प्रदान करता है और वह परम आत्मा जब तक चाहेगा यह कार्य लेखन और पत्रकारिता चलता रहेगा और लोगों का साथ भी रहेगा।


यह जन्मदिन तिथि विजयादशमी पर्व 19-10-2018  के दिन होना ईश्वरीय देन है। यह नया जोश देगा। 
आज शारदीय नवरात्रा के पूर्ण होने पर मां करणी माता मंदिर में धर्मपत्नी विनीता सूर्यवंशी सहित पूजन अर्चन और हवन में भाग लेकर शक्ति का संकल्प लिया है।


मेरी वेब साईट   www.karnipressindia.com आज अत्यन्त लोक प्रिय साईट है जो देश और विदेश में प्रतिदिन हजारों लोग देखते हैं।
दिनांक 19-10-2018.
करणीदानसिंह राजपूत,
राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क सचिवालय से
अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार,

सूरतगढ़ / राजस्थान/ भारत।
91 94143 81356.
मेरा ई मेल पता.   karnidansinghrajput@gmail.com

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बुधवार, 17 अक्तूबर 2018

यौनशोषण आरोपों से घिरे एमजे अकबर का मंत्री पद से इस्‍तीफा:मोदी मंत्री मंडल में राज्यमंत्री रहे




*****अकबर पर लगभग 20 महिला पत्रकारों ने यौन शोषण का आरोप लगाया है *****

October 17, 2018.

यौन शोषण के आरोपों में फंसे विदेश राज्य मंत्री एम.जे.अकबर ने बुधवार (17 अक्टूबर) को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन पर करीब 20 महिलाओं ने छेड़खानी करने का आरोप लगाया था, जिसमें सभी पत्रकार हैं। उन्होंने त्यागपत्र में कहा, “मैंने यौन शोषण के मामले में कानूनी मदद लेने का फैसला लिया है, इसलिए मैं मानता हूं कि मुझे अपने पद को छोड़कर इन झूठे आरोपों को चुनौती देनी चाहिए।”

 एमजे अकबर के खिलाफ आईं 19 महिला पत्रकार, केंद्रीय मंत्री के खिलाफ देंगी गवाही

‘आपने अंडरवियर में दरवाजा खोला’, एमजे अकबर के खिलाफ एक और महिला सहकर्मी ने लगाए आरोप

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नई दिल्ली 17-10-2018.


महिला पत्रकारों के साथ यौन दुर्व्यवहार के आरोपों से घिरे केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री एम. जे. अकबर ने आखिरकार बुधवार  17-10-2018 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। 

अकबर के एशियन एज अखबार के संपादक रहने के दौरान उनकी तत्कालीन महिला सहयोगी पत्रकारों ने पिछले दिनों उनपर यौन शोषण के आरोप लगाए थे। अकबर ने इससे पहले रविवार को अपने आधिकारिक बयान में आरोपों पर अपना पक्ष रखा था। उन्होंने आरोपों को बेबुनियाद बताया था। अकबर ने आरोप लगाने वाली एक पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ दिल्ली की एक अदालत में मानहानि का केस भी किया है।

रविवार को  अकबर ने अपने ऊपर लगे आरोप को पूरी तरह से झूठ करार दिया था और यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली पत्रकारों में से एक प्रिया रमानी के खिलाफ सोमवार को आपराधिक मानहानि का मुकदमा कर दिया था। हालांकि, रमानी के समर्थन में 20 अन्य  महिला पत्रकार सामने आ गई हैं। ये सभी पत्रकार 'द एशियन एज' अखबार में काम कर चुकी हैं। अकबर की ओर से रमानी को मानहानि का नोटिस भेजे जाने पर इन महिला पत्रकारों ने एक संयुक्त बयान में रमानी का समर्थन करने की बात कही और अदालत से आग्रह किया कि अकबर के खिलाफ उन्हें भी सुना जाए। 


किस-किस ने लगाए थे आरोप? 


67 वर्षीय अकबर अंग्रेजी अखबार ‘एशियन एज’ के पूर्व संपादक हैं। सबसे पहले रमानी ने उनके खिलाफ आरोप लगाय था और बाद में धीरे-धीरे और महिला पत्रकार भी अपनी शिकायतों के साथ खुलकर सामने आ गई थीं। इन महिला पत्रकारों ने उनके साथ काम किया था। अकबर के खिलाफ खुलकर सामने आनेवाली पत्रकारों में फोर्स पत्रिका की कार्यकारी संपादक गजाला वहाब, अमेरिकी पत्रकार मजली डे पय कैंप और इंग्लैंड की पत्रकार रूथ डेविड शामिल हैं। 

अकबर का पत्रकारिता से राजनीति तक का सफर 

दैनिक अखबार ‘द टेलीग्राफ’ और पत्रिका ‘संडे’ के संस्थापक संपादक रहे अकबर 1989 में राजनीति में आने से पहले मीडिया में एक बड़ी हस्ती के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था और सांसद बने थे। अकबर 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुए थे। मध्य प्रदेश से राज्यसभा सदस्य अकबर जुलाई 2016 से विदेश राज्य मंत्री थे। 








मंगलवार, 16 अक्तूबर 2018

राजस्थान में भाजपा हाईकमान 150और वसुंधरा 50 सीटें बांटेंंगे

राजस्थान विधानसभा चुनाव की कमान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अपने हाथों में ले ली है। 

इसके पीछे पार्टी का मकसद लोकसभा चुनाव से पहले मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पर दबाव बनाना होगा। खबर तो यह भी है कि राजस्थान में सबकुछ कंट्रोल करने के इरादे से इसबार पार्टी आलाकमान टिकट बंटवारे को लेकर सीएम वसुंधरा राजे के अधिकार सीमित कर सकती है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक चुनाव तो एक साथ पांच राज्यों में हो रहे हैं लेकिन अमित शाह सबसे ज्यादा वक्त राजस्थान में ही बिताएंगे। इसके पीछे तर्क है कि राज्य में शाह के कमान संभालने के बाद भाजपा राज्य में अच्छा प्रदर्शन कर सकेगी। इसके अलावा पार्टी के बिखराव का खतरा भी खासा कम होगा।

दरअसल इसके पीछे रणनीति है कि राज्य में भाजपा के हारने की जितनी संभावनाएं जताई जा रही हैं, उतनी है नहीं। 

चुनाव नजदीक आते-आते शाह राज्य में हालात बदल सकने में सक्षम हैं। चूंकि पार्टी का मानना है कि अगर राजस्थान चुनाव भाजपा के नाम रहा तो 2019 में कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों की उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा। 

भाजपा के दिग्गज नेताओं के मुताबिक मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो हालात करीब-करीब ठीक हैं और यहां के मुख्यमंत्री बेहतर प्रदर्शन कर सकने में सक्षम भी हैं। 

इसमें पार्टी आलाकमान राजस्थान को सीएम राजे के भरोसे नहीं छोड़ना चाहता। 

यही कारण है कि इस बार 200 विधानसभा सीटों में से 150 का चयन पार्टी आलाकमान के हस्तक्षेप से होगा। जबकि सीएम खेमे के लिए करीब 50 सीटें रखी जाएंगी। यहां इसका मतलब यह है कि इन सीटों पर वसुंधरा के पसंद के उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है। मगर बाकी सीटों पर पार्टी का दखल होगा।

अमित शाह ने अपने प्रवास के दूसरे और अंतिम दिन सोमवार को कांग्रेस पर जोरदार हमले बोले और कार्यकर्ताओं से कहा कि यह चुनाव सरकार बनाने के लिए नहीं, बल्कि कांग्रेस को मूल सहित उखाड़ फेंकने के लिए लड़ना है। रीवा में रीवा-शहडोल संभाग के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए शाह ने कहा, ‘आपने सरकार बनाने के लिए कई चुनाव लड़े हैं, मगर आने वाला चुनाव सरकार बनाने के लिए नहीं है, यह चुनाव कांग्रेस को मूल सहित उखाड़ फेंकने के लिए है।’ उन्होंने कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाया, ‘वर्ष 2019 में नरेंद्र मोदी को फिर प्रधानमंत्री बनाओ, मैं आपको गारंटी देता हूं कि अगले 50 वर्ष तक पंचायत से संसद तक भाजपा का भगवा ध्वज ही लहराएगा।



राजनीतिक भेंट के बहाने नई लड़कियों का यौन शोषण:NSUI अध्यक्ष फिरोज का इस्तीफा

नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) के अध्यक्ष फिरोज खान ने मंगलवार (16 अक्टूबर) को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने यह फैसला खुद पर यौन शोषण के आरोप लगने के बाद लिया है। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी आलाकमान ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया है।

खान, मूलरूप से जम्मू और कश्मीर के रहने वाले हैं और उन्होंने सोमवार (15 अक्टूबर) को त्याग-पत्र पार्टी दफ्तर भेजा था। जून में इसी साल उन पर छत्तीसगढ़ के एनएसयूआई ऑफिस की बियरर ने उन पर यौन शोषण के आरोप लगाए थे। मामले में जांच-पड़ताल के लिए आंतरिक कमेटी बनाई गई थी, जो शुक्रवार को इस मामले में रिपोर्ट सौंपेगी।

पीड़िता ने खान के खिलाफ इस संबंध में पुलिस को शिकायत भी दी थी। आरोप है, “राजनीतिक मुलाकातों के नाम पर खान नई लड़कियों का यौन शोषण करते थे।” जांच के लिए बनी कांग्रेस की आंतरिक कमेटी में ऑल इंडिया महिला कांग्रेस अध्यक्ष सुष्मिता देव, लोकसभा सदस्य दीपेंद्र हुड्डा और पार्टी की नेशनल मीडिया पैनलिस्ट रागिनी हैं।

शुक्रवार को मिलने वाली रिपोर्ट से गुजरने के बाद कमेटी खान पर आगे फैसला लेगी। इससे पहले, बुधवार को कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने इस मामले में जांच के लिए आंतरिक कमेटी बनाए जाने की बात की घोषणा की थी। उनका कहना था कि यह कमेटी सभी पक्षों को बराबरी से सुनेगी।

रिपोर्ट्स में खान के हवाले से कहा गया, “कल मैंने इस्तीफा भेजा था। मुझ पर लगे आरोप गलत हैं, मैं इस बात पर अभी भी अडिग हूं। मैं कोर्ट का दरवाजा खटखटाऊंगा। पार्टी के छवि के लिए मैंने पद छोड़ा है।”

वहीं, एनएसयूआई प्रवक्ता साइमन फारूकी का कहना था, “फिरोज पर इस्तीफे का कोई दबाव नहीं था। पर लगातार लग रहे आरोपों के मद्देनजर उन्होंने यह फैसला लिया। संगठन ने उनका इस्तीफा स्वीकार लिया है।

जनसत्ता ओन लाइन 16-10-2018.


बा सुहागण बड़भागण है जिकी सदांई पति री आज्ञा में हुवै-राजस्थानी रामलीला


* करणीदानसिंह राजपूत *

* राजस्थानी रामलीला में सीता हरण ,बाली -सुग्रीव जुद्ध आदि रे माध्यम सूं दी गई सीख *

सूरतगढ़ 16 अक्टूबर 2018.

राजस्थानी रामलीला री छठी रात मांय  सुंदरी स्वरूपनखा, खर-दूषण वध ,सीताहरण,भीलणी रा बेर , बाली -सुग्रीव जुद्ध आदि दरसाव माथै दरसकां खुस होय तालियां घणी बजाई।

 राजस्थानी संवाद अदायगी के साथ रोचक ढंग से किया गया। 

बनवास बिचालै सती अनुसुइया खानी सूं सीता के माध्यम सूं लुगायां नै दी गई सीख बेटी पतिव्रत धरम जगत में सैसूं बड़ो हुवै। बा सुहागण बड़भागण है जिकी सदांई पति री आज्ञा में चालै।


रावण साधू को वेश बणा र पंचवटी में आवै अर  सीता सूं कहवै जै भिक्षा देणी हैं तो रेखा सूं बारै आ माई।जोगी बाबा कद लेवै हैं इण तरिया भिक्षा माई।सीता, देवर री आंण रैवे ना रैवे, राखूली धरम गिरस्थी रो,अबै हे रेख उलांघ गे पालू हू धरम गिरस्थी रो। 

भीलणी बोरिया चाख चाख राम लखन नै खावण सारूं देवै पण लखण जूठा समझ कर फेंक देवै जणा राम कहवै हैं,लछमण थूं खाया कोनि  चाख तो सरी कितरा मीठा हैं.....आ बोरियां  मांय भगती रो नेह भरयो है।


रविवार, 14 अक्तूबर 2018

सास-ससुर की संपत्ति पर बहू का कोई हक नहीं,

*दिल्ली हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय *

- हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों की देखरेख व कल्याण के लिए बने नियमों को ध्यान में रखते हुए वरिष्ठ नागरिकों को अपने घर में शांति से रहने का अधिकार है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। हाई कोर्ट ने फैसला दिया है कि सास-ससुर की चल या अचल संपत्ति में बहू का कोई अधिकार नहीं है। फिर चाहें वह संपत्ति पैतृक हो या खुद से अर्जित की गई हो। ये अपील महिला ने जिलाधिकारी के द्वारा ससुर का घर खाली करने के आदेश के खिलाफ दायर की थी। इससे पहले इसी साल जुलाई में एकल पीठ ने मामले की सुनवाई की थी और जिलाधिकारी के आदेश को बरकरार रखा था। एकल पीठ के आदेश के खिलाफ महिला ने पुन: डबल बेंच में अपील की थी। इसी मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये आदेश सुनाया है। कोर्ट ने जिलाधिकारी और एकल पीठ के आदेश को बरकरार रखने का फैसला सुनाया है।

इस मामले की सुनवाई दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस वी. कामेश्वर राव की पीठ ने की। उन्होंने अपने फैसले में कहा है कि ऐसी कोई भी चल या अचल, मूर्त या अमूर्त या ऐसी किसी भी संपत्ति जिसमें सास-ससुर का हित जुड़ा हुआ हो, उस पर बहू का कोई अधिकार नहीं है। पीठ ने कहा है कि यह बात मायने नहीं रखती है कि संपत्ति पर सास-ससुर का मालिकाना हक कैसा है।

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों की देखरेख व कल्याण के लिए बने नियमों को ध्यान में रखते हुए वरिष्ठ नागरिकों को अपने घर में शांति से रहने का अधिकार है। सास-ससुर को अपने घर को बेटे-बेटी या कानूनी वारिस ही नहीं, बल्कि बहू से भी घर खाली कराने का अधिकार है।

हाईकोर्ट ने महिला की उन दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया जिसमें उसने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक के देखरेख व कल्याण के लिए बने नियम का हवाला देते हुए कहा था कि चूंकि उसने ससुर से गुजाराभत्ता नहीं मांगा है, इसलिए वह उससे घर खाली नहीं करा सकते हैं। इतना नहीं, हाईकोर्ट ने महिला की उन दलीलों को भी ठुकरा दिया जिसमें कहा गया था कि कानून के तहत उसके ससुर सिर्फ अपने बेटे-बेटी व कानूनी वारिस से ही घर खाली करा सकते हैं।

वैसे बता दें कि याचिका दायर करने वाली महिला अपने पति व सास-ससुर के खिलाफ दहेज उत्पीड़न व अन्य आरोपों में मुकदमा दर्ज करा चुकी है। ये मामले अदालत में लंबित हैं। महिला का उसके पति से तलाक का भी मुकदमा चल रहा है। इसी बीच महिला के पति का उसके घर से अलगाव हो गया।

इसके बाद ससुर ने जिलाधिकारी के सामने अर्जी दाखिल की और आरोप लगाया कि उनकी बहू उन्हें प्रताड़ित कर रही है। ससुर ने ये भी मांग की उनकी बहू से उनका घर खाली करवाया जाए। तथ्यों और साक्ष्यों का अध्ययन करने के बाद जिलाधिकारी ने महिला को घर खाली करने का आदेश दिया। महिला ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

जनसत्ता ओनलाईन 14-10-2018.




शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2018

सूरतगढ़:कांग्रेस टिकट पर जबरदस्त युद्ध शुरू:मील की राह में रोड़े बने नये दावे

- करणीदानसिंह राजपूत -

सूरतगढ़ सीट पर कांग्रेस की टिकट पाने के लिए चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी में ही युद्ध शुरू हो गया है। टिकट के लिए जबरदस्त टक्कर हो रही है।सूरतगढ़ में भाजपा की हालत बहुत कमजोर मानी जाने के कारण कांग्रेस की टिकट पर युद्ध होने लगा है।


 टिकट किसको मिल पाएगी यह अभी पर्दे के पीछे है। इस बार विगत के प्रत्याशी पूर्व विधायक गंगाजल मील को जबरदस्त चुनौतियों के कारण तीसरी बार सूरतगढ़ से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव में उतारने में बाधाएं खड़ी हैं। पांच साल 2008 से 2013 के विधायक काल के बाद 2013 के चुनाव में मील का पराजित होकर तीसरे क्रम पर गिरना और 32 हजार वोटों से हारने के हालात की कमजोरियों में टिकट मिलना संभव नहीं।जब पार्टी सत्ता में लौटने के लिए सूरतगढ सीट को जीतना चाहती है। 

कांग्रेस भी जीत के लिए बदलाव कर टिकट देगी का मतलब साफ है कि दूसरा चेहरा होगा।

इस बार पूर्व विधायक वरिष्ठ वकील सरदार  हरचंद सिंह सिद्धू  और  विमलकुमार पटावरी ( जैन) प्रबल दावेदार हैं। सिद्धु पहली बार 1977 में और दूसरी बार 1998 में विधायक बने थे। सिद्धु का दूसरी बार का कार्यकाल 2003 तक रहा। अब 15 साल बाद सूरतगढ सीट से टिकट मांग रहे हैं।

काग्रेस टिकट के ये दोनों दावेदार लगातार संपर्क बनाए हुए हैं। विमल कुमार पटावरी सूरतगढ के मूल निवासी हैं और सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। कांग्रेस के उच्च नीतिकारों नेताओं के संगी हैं।

इनके पिता स्व.गौरीशंकर पटावरी पुलिस अधिकारी होते हुए  सन 1978 में तत्कालीन गृहमंत्री केदारनाथ के पी.ए.रहे थे।

इस बार कांग्रेस के जिला उपाध्यक्ष बलराम वर्मा भी पुराने दावेदारों में हैं। विधानसभा चुनावों के अनुभवी भी हैं। अनूपगढ़ पंचायत समिति के पूर्व प्रधान परमजीत सिंह रंधावा पुराने कांग्रेसी भी टिकट के सशक्त दावेदार हैं। 

कांग्रेस टिकट के दावेदारों में अमित कड़वासरा,राकेश बिश्नोई, गगनदीप सिंह विडिंग के नाम भी हैं। अमित कड़वासरा का परिवार 60 सालों से कांग्रेस से जुड़ा है। पिता वेदप्रकाश कड़वासरा सरपंच रहे हैं। वे और अमित छात्र जीवन से राजनीति में हैं। राकेश बिश्रोई टिब्बा क्षेत्र आंदोलन के जूझारू नेता हैं। गगनदीपसिंह युवक कांग्रेस के सूरतगढ विधानसभा क्षेत्र के संघर्षशील अध्यक्ष रहे हैं।













मंगलवार, 9 अक्तूबर 2018

प्रैस को प्रदूषण से बचाना जरूरी!


विपक्षी दल या मीडिया सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाते रहते हैं भले ही सत्ता में कोई दल हो और ये गलत नहीं है । सरकार से सवाल करना उनका फर्ज है और अधिकार भी क्योंकि यहाँ  लोकतंत्र है।किसी भी लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए वहां न्यायपालिका की स्वतंत्रता कायम  रहना जितना जरुरी है उतना जरुरी प्रैस का स्वतंत्र बने रहना भी है।इसके साथ साथ चुनाव आयोग भी एक संवैधानिक संस्था है जिसकी निष्पक्षता किसी संदेह से परे रहनी चाहिए। सरकार के बजाय अगर प्रैस, न्यायपालिका और चुनाव आयोग पर प्रश्न चिन्ह लगते हैं तो ये स्वीकारना होगा कि कहीं न कहीं  लोकतंत्र की कड़ियाँ कमजोर हो रही हैं। देश में लोकतंत्र की रक्षा के लिए इन सब संस्थाओं की ये नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे न  सिर्फ निष्पक्ष रहें वरन निष्पक्ष दिखाई भी दें।ये काम  खुद उन्ही को  करना होगा। पिछले कुछ समय से संवैधानिक संस्थाओं और प्रैस पर जिस तरह सवाल उठे है वो एक  चिंता का विषय है क्योकि इनकी स्वतंत्रता के बिना सच्चे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की  जा सकती। इन दिनों एक नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है। देश में पहली बार ऐसा हो रहा है जब किसी भी बात के लिए सत्ता के बजाय विपक्ष को, पिछली सरकारों को  या अन्य किसी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।सत्ता से सवाल पूछना अब बंद होता जा रहा है।

इसके साथ ये लगता है कि मोटे तौर पर देश की प्रैस किसी दबाव में है या उसे सत्ता के द्वारा अपने प्रभाव में ले लिया गया  है जो  लोकतंत्र के लिए खतरनाक है क्योंकि उसके इस आचरण से देश में तानाशाही के पनपने का पूरा अवसर है। मीडिया का काम लोगों को सच्चाई से अवगत करवाने का होता है व इसके स्थान पर अगर वो लोगों को गुमराह करती है तो निश्चित रूप से वो जनता का नहीं वरन सरकार का काम कर रही  है । इसलिए प्रजातंत्र के लिए  पहली लड़ाई ऐसी प्रैस और मीडिया के खिलाफ लड़ी जानी चाहिए जो जनता के बजाय सरकार का हथियार बन रही है। प्रैस एक तरह से देश की जन भावना को प्रदर्शित करने का  जरिया समझी जाती है और  वो न सिर्फ सरकार पर एक अंकुश की तरह रहती है वरन किसी न किसी तरह  चुनाव आयोग हो या न्याय पालिका जैसी संवैधानिक संस्थाओं को भी प्रभावित करती है चाहे ऐसा प्रत्यक्ष रूप में न दिखाई पड़ता हो।प्रैस की स्वतंत्रता और निष्पक्षता ही सच्चे लोकतंत्र की पहचान है इसलिए ये आवश्यक है कि लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई  की शुरुआत में सत्ता से प्रदूषित होती प्रैस को बचाया जाय ताकि वो स्वतंत्र और निष्पक्ष रह कर  अपना काम कर सके।

रमेश छाबड़ा

सूरतगढ़


शनिवार, 6 अक्तूबर 2018

भाजपा का गमन:कांग्रेस का आगमन:राजस्थान,मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ का सर्वे

* जनता के मन की बात बताने वाला यह सर्वे एक से 30 सितंबर के बीच किया गया।*

जनसत्ता ऑनलाइन

October 6, 2018.

* 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव कार्यक्रम जारी होने के बाद एबीपी न्यूज-सी वोटर का ओपीनियन पोल सामने आया है।*

 आगामी विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को करारा झटका लग सकता है। 

एबीपी न्यूज-सी वोटर के ताजा ओपीनियन पोल के मुताबिक, तीन राज्यों से बीजेपी की सरकार जा सकती है। इन राज्यों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान शामिल हैं। सर्वे के अनुसार, कांग्रेस इन राज्यों में अपने दम पर वापसी कर सकती है। 

200 सदस्यीय राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस को 142 सीटें मिल सकती है, जबकि सत्तारूढ़ बीजेपी के खाते में महज 56 सीटें आ सकती हैं। अन्य की झोली में दो सीटें जा सकती हैं।

सर्वे में आगे बताया गया कि 90 सदस्यों वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत यानी कि कुल 47 सीटें मिल सकती हैं, जबकि बीजेपी को 40 और अन्य को तीन सीटें मिलने का अनुमान है। राज्य में बीते 15 सालों से बीजेपी की रमन सिंह सरकार है। सर्वे में उनके खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर हावी नजर आया। 

230 सीटों वाले मध्य प्रदेश विस में कांग्रेस को 122 सीटें और बीजेपी को 108 सीटें मिलने के आसार हैं। सर्वे के अनुसार, यहां अन्य के खाते में एक भी सीट नहीं आएगी। मध्य प्रदेश में कांग्रेस पिछले 15 सालों से सत्ता से दूर है।

जनता के मन की बात बताने वाला यह सर्वे एक से 30 सितंबर के बीच किया गया। इसमें राजस्थान में लोस की 25 और विस की 200 सीटों पर 7797 लोगों का मूड जाना गया, जबकि छत्तीसगढ़ के लोस की 11 और विस की 90 सीटों पर लगभग 9906 लोगों की राय जानी गई। वहीं, एमपी में लोस की 29 और विस की 230 सीटों पर 8493 लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दीं।

राजा ने फिर मांग लिया ताज:कासनिया तैयार:जनता पूरे बदलाव मूड में


- भादू के सिर से ताज हटा कर कासनिया के सिर पर ताज रखने का मतलब?



- भादू और कासनिया एक सिक्के के दो पहलू है,जनता इस सिक्के को ही बदलना चाहती है-

* करणी दान सिंह राजपूत  *

विरोध की बढ़ती आवाजें और उठते सवालों के बीच विधायक राजेंद्र सिंह भादू ने 5 साल के लिए फिर से  ताज और राज मांग लिया है। विधायक राजेंद्र सिंह भादू ने सीवरेज सिस्टम के उद्घाटन पर 30 सितंबर के समारोह में जनता के बीच विकास के दावे गिनाते हुए नरेंद्र मोदी और वसुंधरा राजे के गीत गाते हुए अपने लिए भी राज और ताज फिर से मांग लिया।

 विधायक का कहना था कि सूरतगढ़ क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के करोड़ों रुपए लगा कर के विकास कार्य करवाए गए हैं और उनसे अनेक प्रकार की समस्याओं को दूर किया गया है लेकिन सूरतगढ़ इलाके में अभी भी समस्याएं कायम है जिन्हें दूर करने के कार्य शुरू किए जा चुके है,उन्हें पूरा करने के लिए और बहुत से कार्य जो  अभी शुरु नहीं हो पाए हैं उन्हें भी शुरू करना है,इसलिए निरंतरता के वास्ते भारतीय जनता पार्टी को फिर से राजस्थान में विजय बनाएं। उनका कथन खुद के लिए भी था कि वे इस इलाके को पूर्ण विकसित करने के लिए अभी और वक्त चाहते हैं,एक मौका और मिलना चाहिए। 

अब यह अलग निर्णय जनता के हाथ में है कि वह विधायक राजेंद्र सिंह भादू को  कोसते हुए भी एक मौका देगी या नहीं देगी? अभी तो भारतीय जनता पार्टी की टिकट मिलने पर ही आगे कहानी बढ सकेगी। उसके बाद जनता का निर्णय चुनाव में होगा कि वह भादू को फिर से ताज सौंपना चाहती है या नहीं चाहती? 

फिलहाल बात करें  सूरतगढ़ की राजनीति की तो भारतीय जनता पार्टी की टिकट के लिए पूर्व राज्य मंत्री रामप्रताप कसनिया भी  प्रबल दावेदार हैं। उन्होंने 10 अक्टूबर को नयी धानमंडी में महा जन पंचायत बुलाई है जिसमें  उनके द्वारा शक्ति प्रदर्शन होगा की टिकट उन्हें मिले। अगर टिकट रामप्रताप कसनिया को मिलती है तो भादू का दुबारा राज और  ताज मांगने का मौका ही हाथ से चला जाएगा। फिलहाल यह सोच है कि सीटिंग एमएलए की टिकट  पार्टियां नहीं काटती इसलिए दोबारा राजेंद्र सिंह भादू को भाजपा की टिकट मिल सकती है लेकिन संपूर्ण इलाके में विरोध के उठते स्वर और सवाल भादू की टिकट के लिए खतरा बन रहे हैं। ये सवाल और आवाजें  तेज और अधिक तेज होती जा रही हैं ।  जो पार्टी का टिकट का निर्णय बदलने में प्रभावी हो सकती है। यह टिकट भादू को नहीं मिले तो फिर किसको मिले?भारतीय जनता पार्टी सूरतगढ़ सीट को अपने कब्जे में रखने के लिए यहां पर भारतीय जनता पार्टी के विकास दूत कहलाए जाने वाले मगर विवादों में आलोचनाओं का शिकार हो रहे राजेंद्र सिंह भादू के अलावा किसी दूसरे चेहरे को मैदान में उतारे तो दूसरा चेहरा भी राजनीतिक होना जरूरी है। 

चूंकि यह चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए पुराने खिलाड़ी राम प्रताप कासनिया को भारतीय जनता पार्टी की ओर से चुनाव में  उतारा जाना संभव हो सकता है। रामप्रताप कसनिया काफी समय से गांव और शहर में अपने पक्ष में प्रचार करने के लिए अपने पक्ष में हवा बनाने के लिए प्रयत्नशील है।

 फिलहाल जनता के बीच भारतीय जनता पार्टी की ओर से कोई है तो केवल 2 चेहरे राजेंद्र सिंह भादू और रामप्रताप कासनिया ही हैं।

भारतीय जनता पार्टी अपनी सीट को बचाने के लिए जनता के रुख, गुप्त रिपोर्टों को, पार्टी रिपोर्टों  को ध्यान में रखकर कोई निर्णय ले सकेगी। 

अभी राजेंद्र सिंह भादू का दावा बहुत मजबूत है मगर जनता का विरोध भी मजबूत है। 

 जनता इस बार भाजपा का विरोध भी कर रही है। ऐसी स्थिति में भाजपा का कोई भी खिलाड़ी इस सीट पर आसानी से चुनाव जीत लेने की सोच भी नहीं सकता। 

भाजपा ने बहुत से विकास कार्य किए हैं मगर कार्यकर्ताओं के सही कार्य भी नहीं हो पाए। कार्यकर्ता चक्कर लगा लगा कर थकते रहे। उनकी सुनवाई स्थानीय स्तर से लेकर पार्टी के जयपुर मुख्यालय तक नहीं हुई। प्रशासन को जितने प्रकरण कार्यकर्ताओं ने दिए उनमें से किसी का निस्तारण सही नहीं हो पाया। सूरतगढ़ में कार्यकर्ताओं को सबसे अधिक परेशानी हुई है तो वह नगर पालिका और राजस्व तहसील स्तर पर हुई है। इसके अलावा सार्वजनिक रूप से पुलिस विभाग जिसके चार थाने  सूरतगढ़, सूरतगढ़ सदर,राजियासर और जैतसर में आम जनता किसी न किसी मामले में पीड़ा हुई और उसकी सुनवाई विधायक स्तर पर नहीं हुई।पार्टी संगठन और टिकटार्थियों की ओर से भी पीड़ित लोगों के आंसू पौंछने का साथ देने का कोई प्रयास कभी नहीं किया गया।

आम जनता के बीच जब बात चलती है टिकट और ताज की  तब एक ही सोच का उत्तर मिलता है की राजेंद्र भादू के सिर से  ताज हटाकर कासनिया के सिर पर ताज रखने का क्या मतलब है?

 यह तो  एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक तरफ भादू और दूसरी ओर कासनिया है।  जनता इस संपूर्ण सिक्के को ही ही चलन से बाहर करना चाहती है। अब देखना यह है कि भारतीय जनता पार्टी का निर्णय क्या होता है और नया सिक्का कौन हो सकता है?

 



 

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

पुलिस के विरुद्ध सूरतगढ मेंं गांधी जयंती से धरना शुरू:उपखंड कार्यालय पर अनिश्चितकाल धरना

* सूरतगढ संघर्ष समिति का धरना*

 * सखी मोहम्मद मामला व 6सितंबर का मामला *

 सूरतगढ 2 अक्टूबर 2018.

सखी मोहम्मद पर हथियार का मुकदमा बनाने के चक्कर में पुलिस द्वारा थाने में दी गई यातनाएं और उसकी जांच की मांग को लेकर 6 सितंबर को उपखंड कार्यालय के आगे के आंदोलन में पुलिस लाठीचार्ज और बाद में मुकदमा बनाकर थाने में यातनाएं देने के मामले में संघर्ष समिति ने 2 अक्टूबर गांधी जयंती के दिन से उपखंड कार्यालय सूरतगढ़ पर अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया है। सूरतगढ संघर्ष समिति के अध्यक्ष श्याम मोदी और सचिव राजेंद्र मुद्गल की अगुवाई में धरना शुरू किया गया है।

इससे संबंधित एक ज्ञापन उपखंड अधिकारी को 1 अक्टूबर को दिया गया  जिसमें न्याय मिलने तक इस संघर्ष को जारी रखने की घोषणा की गई थी।

दोषी पुलिस अधिकारी कर्मचारियों को दंडित करने की मांग का यह निर्णय नागरिक संघर्ष समिति की बैठक में हुआ जिसकी अध्यक्षता श्यामकुमार मोदी ने की।बैठक में पत्रकार हरिमोहन सारस्वत,परसराम भाटिया,मदन औझा,लक्ष्मण शर्मा,राजेंद्र मुद्गल,रतन पारीक,उमेश मुद्गल,पूर्व सरपंच इब्राहिम व अन्य शामिल थे।

विदित रहे कि कि सखी मोहब्बत प्रकरण में प्रशिक्षु आईपीएस मृदुल कच्छावा और सूरतगढ़ चौकी इंचार्ज सब इंस्पेक्टर कलावती के विरुद्ध आरोप है कि इन्होंने सखी मोहम्मद को फर्जी रूप से से हथियार के झूठे मुकदमे में फंसाने के प्रयास किए पुलिस कस्टडी में बुरी तरह से मारपीट की।

इसके बाद इन दोनों पर कार्रवाही की मांग प्रदर्शन में पुलिस ने फिर एक नया मुक्दमा बनाया,जिसमें सीआई की हत्या की कोशिश का आरोप मंढा गया। इस मुकदमे में फिर गिरफ्तारियां और पुलिस कस्टडी में अमानवीय यातनाएं देने का आरोप है।

गांधीगिरी से यह संघर्ष उस रूप में चलेगा जहां उग्र रूप बताया नहीं जा सकेगा। 

यह माना जा रहा है कि इस गांधीगिरी रूप के संघर्ष का असर भाजपा राज में विधायक राजेंद्र भादू व पूर्व राज्यमंत्री रामप्रताप कासनिया की राजनीति पर पड़ेगा और चुनाव तक  को प्रभावित कर सकने तक पहुंचेगा।

यह भी आशंका है कि 6 सितंबर की सभा में भाषण देकर बाद में दूर होने वाले पूर्व विधायक गंगाजल मील और डूंगरराम गेदर की चुनावी राजनीति को प्रभावित करेगा।

 

 

 

सोमवार, 1 अक्तूबर 2018

गांधीगिरी से चलेगा पुलिस के विरुद्ध संघर्ष: सखी मोहम्मद मामला व 6सितंबर का मामला

 सूरतगढ 1 अक्टूबर 2018.

 सखी मोहम्मद पर हथियार का मुकदमा बनाने के चक्कर में पुलिस द्वारा थाने में दी गई यातनाएं और उसकी जांच की मांग को लेकर 6 सितंबर को उपखंड कार्यालय के आगे के आंदोलन में पुलिस लाठीचार्ज और बाद में मुकदमा बनाकर थाने में यातनाएं देने के मामले में संघर्ष समिति ने 2 अक्टूबर गांधी जयंती के दिन से उपखंड कार्यालय सूरतगढ़ पर अनिश्चितकालीन धरना शुरू करने की घोषणा की है।

आज 1 अक्टूबर को इससे संबंधित एक ज्ञापन उपखंड अधिकारी को दिया गया है जिसमें न्याय मिलने तक इस संघर्ष को जारी रखने की घोषणा है। 

यह मामले और दोषियों को दंडित करने की मांग का यह निर्णय नागरिक संघर्ष समिति की बैठक में हुआ जिसकी अध्यक्षता श्यामकुमार मोदी ने की।बैठक में पत्रकार हरिमोहन सारस्वत,परसराम भाटिया,मदन औझा,लक्ष्मण शर्मा,राजेंद्र मुद्गल,रतन पारीक,उमेश मुद्गल,पूर्व सरपंच इब्राहिम व अन्य शामिल थे।


विदित रहे कि सखी मोहब्बत प्रकरण में प्रशिक्षु आईपीएस मृदुल कच्छावा और सूरतगढ़ चौकी इंचार्ज सब इंस्पेक्टर कलावती के विरुद्ध आरोप है कि इन्होंने सखी मोहम्मद को फर्जी रूप से हथियार के झूठे मुकदमे में फंसाने के प्रयास किए पुलिस कस्टडी में बुरी तरह से मारपीट की।

इसके बाद इन दोनों पर कार्रवाही की मांग प्रदर्शन में पुलिस ने फिर एक नया मुक्दमा बनाया,जिसमें सीआई की हत्या की कोशिश का आरोप मंढा गया। इस मुकदमे में फिर गिरफ्तारियां और पुलिस कस्टडी में अमानवीय यातनाएं देने का आरोप है।

गांधीगिरी से यह संघर्ष उस रूप में चलेगा जहां उग्र रूप बताया नहीं जा सकेगा। 

यह माना जा रहा है कि इस गांधीगिरी रूप के संघर्ष का असर भाजपा राज में विधायक राजेंद्र भादू व पूर्व राज्यमंत्री रामप्रताप कासनिया की राजनीति पर पड़ेगा और चुनाव तक  को प्रभावित कर सकने तक पहुंचेगा।

यह भी आशंका है कि 6 सितंबर की सभा में भाषण देकर बाद में दूर होने वाले पूर्व विधायक गंगाजल मील और डूंगरराम गेदर की चुनावी राजनीति को प्रभावित करेगा।


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