शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021
सोमवार, 22 फ़रवरी 2021
इस तरह बचा लिया गया सीमेंटकंक्रीट में उगे हुए उखडे़ पीपल के पेड़ को- प्रेरणादायक रिपोर्ट. * करणी दान सिंह राजपूत*
सूरतगढ़ 22 फरवरी 2021.
रेलवे स्टेशन सूरतगढ़ के प्लेटफार्म नंबर चार पर ढलान वाले ओवर ब्रिज का निर्माण शुरू हुआ और वहां पर एक पुराने सीमेंट कंक्रीट के पिलर में उगा हुआ पीपल का पेड़ उखड़ गया।
मैं उस उखड़े हुए मैं देखता क्योंकि मेरा वहां से प्रतिदिन आना जाना होता था।
पेड़ की मामूली सी जड़े बची हुई थी बाकी पिलर के अंदर थी पेड़ को नष्ट होते हुए देखता और पीड़ा होती। मानसिक संताप भी बहुत हो रहा था की इस पेड़ को किसी भी तरह से बचाया जाए। सोशल साइटों पर ग्रुपों में और मेरी फेसबुक पर पर्यावरण प्रेमियों से अपील की गई।
कुछ पर्यावरण प्रेमी पहुंचे और देखा और बताया कि इस पेड़ को बचाया नहीं जा सकता। इसमें जड़े बहुत कम बची है और इस प्रकार के पेड़ों को दूसरी जगह लगाने के पूर्व के प्रयास भी सफल नहीं हुए हैं। किसी ने आगे प्रयास की कोशिश नहीं की।
मेरे दिल की पीड़ा को अपने ही छोटे भाई प्रेम सिंह सूर्यवंशी को बताया और कहा कि तुम्हारी पर्यावरण पेड़ लगाओ टीम लेकर किसी भी तरह इस पेड़ को दूसरी जगह रोपो तो सही शायद पेड़ बच जाए।
पेड़ को बचाने का प्रयास तो किया ही जा सकता है।
प्रेम सिंह सूर्यवंशी ने अपने टीम के कुछ साथियों को लेकर इस पेड़ को देखा और दूसरी जगह रोपने का निर्णय किया।
16 अक्टूबर 2020 को सुबह यह टीम पहुंची और पेड़ को उखड़े हुए स्थान से उठाया गया और रेलवे सीमा में ही दूसरे प्रवेश-निकास द्वार के आगे एक स्थान पर लगा दिया गया। सभी उत्साहित थे। यह कार्य करके आगे ईश्वर की कृपा पर छोड़ा गया।
आगे आने वाले सर्दियों में यह पेड़ बचेगा नहीं बचेगा यह सोचते हुए दिन निकलते रहे। प्रेमसिंह सूर्यवंशी और टीम के सदस्य भी पेड़ को लगाने के बाद देखने संभालने जाते रहे।
मैं रोजाना पेड़ के पास से निकलता और हर सातवें आठवें दिन पेड़ के तने को थोड़ा सा कुचर कर देख लेता कि तना गीला है।
बस यही आशा थी कि तना गीला है सूख नहीं रहा, लाभदायक स्थिति रहेगी।
मैं ईश्वर की कृपा से चकित हो गया।
मैं 22 फरवरी 2021 को पेड़ के पास पहुंचा तो देख कर आश्चर्यचकित था। पेड़ पर नई कोंपलें कुछ हरे पत्ते दिखाई दिए। यह ईश्वर की बहुत बड़ी कृपा रही। बसंत ऋतु में यह चमत्कार हुआ।
पर्यावरण प्रेमियों प्रेम सिंह सूर्यवंशी की पूरी टीम की यह सफलता मानता हूं।
उन सभी कार्यकर्ताओं को बधाई और शुभकामनाओं देता हूं कि उनका प्रयास सफल रहा और यह एक प्रेरणादायक कहानी बन गई।
पेड़ को 16 अक्टूबर 2020 को जब दूसरे स्थान पर रोपा गया तब के चित्र और रिपोर्ट मेरे ब्लॉग ' करणी प्रेस इंडिया' पर लगाए गए जो अभी भी इंटरनेट पर देखे जा सकते हैं।
उस समय के चित्र और रिपोर्ट यहां एक बार फिर पाठकों के लिए प्रस्तुत करता हूं।
* करणीदानसिंह राजपूत *
रेलवे पुलनिर्माण में खत्म होने वाले एक पीपल वृक्ष को दूसरी जगह स्थानांतरित कर बचाने का प्रयास सफलता से पूर्ण हुआ है।
पर्यावरण युवा मंडल के प्रयास से रेलवे पुल में खत्म हो रहे पीपल वृक्ष को बचाने के लिए कुछ दूरी पर रेलवे भूमि पर लगा दिया गया है।
दूसरे स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया है।
इस वृक्ष को बचाने की पहली अपील फेसबुक और सोशल साइट ग्रुप्स में 14 अक्टूबर 2020 को हुई थी। पर्यावरण संस्थाओं से जुड़े वृक्ष प्रेमी मौके पर पहुंचे। सूर्योदय नगरी के पर्यावरण युवा मंडल वृक्ष प्रेमियों ने अवलोकन के बाद विचार किया कि पीपल को दूसरी जगह लगा कर बचाया जा सकता है।
पर्यावरण युवा मंडल के कार्यकर्ता 16 अक्टूबर को प्रभात बेला में पहुंचे।
अध्यक्ष प्रेमसिंह सूर्यवंशी,सचिव परमजीत सिंह पम्मी( पूर्व पार्षद) उपाध्यक्ष दिनेश शर्मा, उपाध्यक्ष सतनाम वर्मा, प्रवक्ता ओम अठ वाल ( वर्तमान पार्षद) डाक्टर प्रकुल खत्री,संदीप सेन,मांगी सेन,बब्बू,सुरेन्द्र वर्मा,हरीश खुरीवाल आदि ने कार्य शुरू किया।
पारस मेहरड़ा ,रावत,शकील खान,आबिद खान भी कार्य में जुटे।
रेलवे अधिकारी बाबू लाल नाहड़िया और सुरेन्द्र गर्ग (ठेकेदार ओवर ब्रिज निर्माण) का इसमें सहयोग रहा।
इस सहयोगी कार्य से करीब दो घंटों के परिश्रम से नीचे गिरे हुए पीपल को पुराने पिल्लर की कंक्रीट में से जड़ों सहित निकाला गया। पीपल को पास की खाली भूमि तक ले जाया गया। एक विशाल गड्ढा खोदा गया। रस्सियों के सहारे पीपल को गड्ढे में सीधा खड़ा किया गया। सही स्थिति होने पर गड्ढे को मिट्टी से भरा गया।
सभी आश्वस्त हुए की पीपल सही लगा दिया गया तब पानी डाला गया।
सभी प्रसन्न हुए कि इस सामूहिक कार्य से पीपल पेड़ बच जाएगा।००
💐 और यह पीपल बच गया💐
*****
रविवार, 14 फ़रवरी 2021
फेस बुक पर तुम्हारा रूप -कविता-करणीदानसिंह राजपूत
फेस बुक पर रोजाना
तुम्हारा बदलता हुआ,
इतराता हुआ लुभावना रूप,
कितनों की करता है,नींद हराम,
आती है अलग अलग टिप्पणियां,
कितने कितने अर्थ लिए,
लेकिन तुम्हें भाती है,
तभी तो रूप बदल बदल आती हो,
अंग प्रत्यंग देख देख,
कैसे कैसे शब्दों में नाइस,गुड लुकिंग,
वेलकम सी टिप्पणियां,
लेकिन हर रूप में
दंत पंक्तियां वही,
सामने के दो दांतों में झिरी,
कहा जाता है,मान्यता है,
अविश्वसनीय होते हैं दंत झिरी वाले।
अब बताओ,
कैसे करूं टिप्पणी?
और क्या करूं टिप्पणी।
लेकिन
तुम चाहने वालों के लिए,
आती रहो,
नहीं तो वे बेचैन होंगे
और उनकी टिप्पणियों के बिना
तुम भी रहोगी बेचैन। 00
शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021
सृजन सम्मान ( राष्ट्रीय) वर्ष 2020 घोषित.साहित्यिक क्षेत्र श्रीगंगानगर से बड़ी खबर
* करणीदानसिंह राजपूत *
श्रीगंगानगर 12 फरवरी 2021.
सृजन सेवा संस्थान की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर दिए जाने वाले वार्षिक सम्मान घोषित कर दिए गए हैं। सृजन के अध्यक्ष डॉ. अरुण शहैरिया ताइर ने बताया कि वर्ष 2020 के लिए सभी सम्मान व्यंग्य विधा पर आधारित हैं।
* पंडित रामचंद्र शास्त्री स्मृति जनमंगल ट्रस्ट, जयपुर की ओर से देय डॉ. विद्यासागर शर्मा सृजन सम्मान प्रख्यात व्यंग्यकार डॉ. हरीश नवल (नई दिल्ली) को दिया जाएगा।
गोपीराम गोयल चेरिटेबल ट्रस्ट प्रदत श्री गोपीराम गोयल सृजन कुंज सम्मान पंकज सुबीर (सिहोर, मध्य प्रदेश) की सृजन कुंज में प्रकाशित व्यंग्य रचना ‘आइए, देश को भाड़ में भेजें’ पर दिया जाएगा। ये दोनों सम्मान 11-11 हजार रुपए के हैं।
*समाजसेवी प्रहलादराय टाक प्रदत श्री सुरजाराम जालीवाला सृजन सम्मान (हिंदी) वरिष्ठ व्यंग्यकार पूरण सरमा (जयपुर) को तथा श्री सुरजाराम जालीवाला सृजन सम्मान (राजस्थानी) बुलाकी शर्मा (बीकानेर) को, वरिष्ठ रंगकर्मी भूपेंद्रसिंह प्रदत माता जसवंतकौर प्रोत्साहन सृजन सम्मान शशिकांत शशि (बिहार) को, अंशुल आहुजा की ओर से देय माता रामदेवी वागीश्वरी सृजन सम्मान अर्चना चतुर्वेदी (नई दिल्ली) को तथा संदीप-बॉबी अनेजा प्रदत श्री सुभाष अनेजा साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान व्यंग्य पत्रिका अट्टहास के अनूप श्रीवास्तव (लखनऊ) को दिया जाएगा। ये सभी सम्मान 5100-5100 रुपए के हैं।
डॉ. शहैरिया ने बताया कि जुलाई में होने वाले व्यंग्य के राष्ट्रीय सेमिनार में ये सम्मान प्रदान किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि निर्णायक मंडल में वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ. प्रेम जनमेजय, सुभाष चंदर एवं डॉ. मंगत बादल शामिल थे।00
गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021
कैसा मन है प्रधानमंत्री का- काव्य करणीदानसिंह राजपूत.
आप भावुक हुए
रोए भी तो किसके लिए।
वह तो सदस्यता अवधि
पूरी करके गये
उनके 6 साल पूरे हुए थे।
लोकतंत्र सेनानी दस बारह
मर रहे रोजाना
दो शब्द कहते कभी।
सेनानियों की तो
उम्र पूरी होती गई।
समय अवधि पूरी होने
और उम्र पूरी होने में
बहुत बड़ा अंतर।
सच्च में आपके
रोने से यह जाना।
वह जो कभी
आपका न था
लेकिन फिर भी आप रोए
आपका बड़प्पन है यह
पराए के लिए रोए।
लोकतंत्र सेनानी तो
अपने ही हैं
उनसे कैसी भावुकता
नहीं निकलती आह
उनके मरते जाने पर।
न संघ और न संगठन
कोई भी नहीं संग।
सभी का मौन
तिरस्कार सा।
सभी मरते हैं
पहले भी मरते रहे
आगे भी मरेंगे।
कोई नयी बात नहीं
यह नियम है सृष्टि का।
सेनानियों के कर्तव्य और
मरने पर आपका मन
नहीं करता मन की बात।
आपका मन है महान
कोई मामूली मन नहीं
प्रधानमंत्री का मन है
संसार के बड़े लोकतांत्रिक
देश के प्रधानमंत्री का मन।
प्रतिमाओं में
प्राण प्रतिष्ठा कर
पूजने वाले भारत में
जीवन में से प्राण
जाते देखते रहना
कैसा मन है आपका।
परमब्रह्म
हमारे सेनानियों को
मोक्ष और आपको
अमरत्त्व प्रदान करे।
आप देखते रहें
सेनानियों का गमन।
आज सभी साधन
सभी अधिकार हैं
स्वतंत्रता की अलख
जगाने वाले
स्वतंत्रता सेनानी।
आपातकाल में
संविधान के रक्षक बने
लोकतंत्र सेनानी
आपकी नजरों से
ओझल हैं।
कृष्ण की गीता अपनाओ
वही संसार में पढी जा रही
काल का चक्र घूम रहा
पल पल हर पल।
देश पर मर मिटने का
मन रखने वालों पर
अपना मन करो
समय बीत रहा।
यह भी इतिहास बनेगा
जो कोई तो लिखेगा।
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दि. 11 फरवरी 2021. अमावस्या.
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करणीदानसिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार (राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत)
सूरतगढ़ ( राजस्थान)
94143 81356.
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आपातकाल 1975-77 जेलयात्री,
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गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021
👌 विजय भंडारी जी की आत्मकथ्य पत्रकारिता पुस्तक 'भूलूं कैसे'- करणीदानसिंह राजपूत.
* राजस्थान पत्रिका जयपुर से भेजी गई माननीय विजय भंडारी जी की पुस्तक 'भूलूं कैसे'आज मुझे मेरे कार्यालय में आनंद डागा के माध्यम से प्राप्त हुई।
भंडारी जी राजस्थान पत्रिका में काफी समय तक प्रधान संपादक रहे। विजय भंडारी जी की यह है पुस्तक आत्मकथ्य है।
श्रद्धेय कर्पूर चंद कुलिश जी की जीवनी पढ़ने के बाद समझता हूं कि यह दूसरी महत्वपूर्ण पुस्तक है। अभी मिलने के बाद प्रारंभ के कुछ पृष्ठ पढ़ पाया हूं। कुछ पृष्ठों के पढने से ही लग रहा है कि भंडारी जी ने अपना बचपन छात्र जीवन जब देश आजादी की लड़ाई लड़ रहा था उस समय का भी रोचक वर्णन किया है। पत्रकारों पर भी बहुत कुछ लिखा है। अनेक पत्रकारों का उल्लेख है।
मैंने माननीय विजय भंडारी जी के कार्यकाल में बहुत कुछ सीखा और बहुत छपा भी था।
मेरा यह मानना है कि यह पुस्तक पत्रकारों के लिए भी अति महत्वपूर्ण पुस्तक है जो इसे पढ़ पाएंगे बहुत कुछ सीख देने वाली है।
पूरी पढ़ने के बाद फिर कुछ लिखूंगा।
पत्रिका की यह खूबी रही है कि माननीय गुलाब जी की पुस्तकें भी जब नई आई तब सूरतगढ़ में विशेष रूप से मुझे भिजवाई गई।
आज यह पुस्तक मिलने पर भी बहुत प्रसन्नता हुई।
विजय भंडारी बहुत सख्त संपादक रहे। समाचारों में त्रुटियां सहन नहीं करते थे। उस समय प्रत्येक संस्करण में स्थानीय संपादक ही प्रथम पृष्ठ पर पहली खबर बनाते थे। शाम को 5 से साढे पांच बजे भंडारी जी फोन पर बात करते। उनकी निगाह से समाचारों की त्रुटियां छिपी नहीं रहती। स्थानीय संपादक को जवाब देना होता था।
उनके कार्यकाल में हर पत्रकार को जो पत्रिका में किसी भी पद पर रहा उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला।
इस पुस्तक में बहुत से पत्रकारों का भी वर्णन है। वर्तमान प्रधान संपादक गुलाब कोठारी और मिलाप कोठारी का भी वर्णन है।
अभी तो यही कह सकता हूं कि इस पुस्तक में राजस्थान पत्रिका का एवं राजस्थान का बहुत बड़ा इतिहास पत्रकारिता के साथ लिखा हुआ है।
पत्रिका के बाद विजय भंडारी जी ने स्वतंत्र पत्रकारिता भी की।
दि.4 फरवरी 2021.
करणी दान सिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार,
सूरतगढ़।
94143 81356.
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