शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014
मंगलवार, 15 अप्रैल 2014
राजकीय चिकित्सालय और पुलिस थाने के बीच की 80 फुट की सडक़ पर भूमाफियाओं के कब्जे
सडक़ बंद होने से राजकीय चिकित्सालय के शवगृह का पीछे का दरवाजा बंद |
सडक़ बंद होने से राजकीय चिकित्सालय के शवगृह का पीछे का दरवाजा बंद
सडक़ पर अतिक्रमणों के पट्टे नहीं दिए जा सकते मगर गैर कानूनी दिए गए
खास रपट- करणीदानसिंह राजपूत
सूरतगढ़, राजकीय चिकित्सालय और पुलिस थाने के बीच में 80 फुट चौड़ी सडक़ थी जिस पर भू माफिया लोगों ने चिकित्सालय की तरफ अतिक्रमण किया और राजनैतिक मिलीभगत से गैर कानूनी रूप से अतिक्रमणों का नियमन करवा कर पट्टे बनवा लिए और उनको आगे से आगे बेचते हुए चले गए। सडक़ पर किसी भी अतिक्रमण का नियमन नहीं किया जा सकता और उसके पट्टे भी जारी नहीं किए जा सकते लेकिन भू माफिया और राजनैतिक मिली भगती से यह गैरकानूनी कार्य किया जाता रहा। हालात यह है कि पट्टे आगे से आगे बेचे नहीं जा सकते थे मगर मूल पट्टे का हवाला विक्रयपत्र में छिपा कर उसका पंजियन भी करवाया जाता रहा। मूल पट्टे का हवाला रजिस्ट्री में उल्लेख ही नहीं किया गया। यह भी हुआ कि आलीशान आरसीसी के मकान बने हुए भूखंडों को कच्चा पक्का तो कहीं कच्ची छत का तो कहीं टिनशेड का लिख कर रजिस्ट्री करवाई गई। दस्तावेजों में जानबूझ कर तथ्य छिपा कर झूठे तथ्यों पर सरकार को धोखा देते हुए रजिस्ट्री करवाई गई। विक्रेता और क्रेता दोनों ने सरकार से यह ठगी की और इसमें साक्ष्य देने वाले भी शामिल हुए। इसस धोखे से रजिस्ट्री का शुल्क कम लगा।
इस चौड़ी सडक़ पर पुलिस थाने की तरफ तो पुलिस के डर से कब्जे नहीं हुए लेकिन राजकीय चिकित्सालय की तरफ कब्जे हुए। इन अतिक्रमणों से सडक़ बंद हुई और राजकीय चिकित्सालय के शवगृह का इस सडक़ पर खुलने वाला दरवाजा बंद हो गया। पहले शवों को अंत्य परीक्षण के लिए इसी गेट से लाया जाता था और उसी तरफ से ही ले जाया जाता था। इससे चिकित्सालय में आम रोगियों को यह दृश्य देखने को नहीं मिलता था। यही प्रबंध किया जाता है ताकि अन्य लोग किसी सदमें का शिकार नहीं हो सके। भू माफिया और राजनैतिक लोगों ने बाद में दरवाजे को पक्के तौर पर बंद करवा दिया।
लोगों ने समय समय पर विरोध किया मगर आम लोगों की कोई सुनवाई नहीं हुई।
यह मामला अब इसलिए सामने आ गया कि राजकीय चिकित्सालय में ट्रोमा सेंटर के निर्माण के बाद एक गेट से ही तुरता फुरता घुसना और निकलना परेशानी वाल है । एक ही गेट से घायल लाए जाऐं और उसी से अन्य लोग आवागमन करें।
सडक़ खुलती है तो राजकीय चिकित्सालय की बड़ी परेशानी दूर होती है तथा भू माफिया और धोखा देकर आगे से आगे बेचान करने वालों को भी सबक मिलेगा।
पीलीबंगा में उच्च न्यायालय के आदेश पर सडक़ों के अतिक्रमण हटा दिए गए थे तथा वहां पर पालिका का भवन तक हटाना पड़ गया था। सूरतगढ़ में भी हाल ही में 21 फरवरी 2013 को सांसी मोहल्ले में भी उच्च न्यायालय के आदेश से अतिक्रमण हटा कर पालिका ने बंद सडक़ खुलवाई है।
रविवार, 13 अप्रैल 2014
शिक्षण संस्थाएं लूट खसोट के अड्डे:संतों महापुरूषों देवों के नाम की संस्थाएं भी शामिल:
= करणीदानसिंह राजपूत =
संतों महापुरूषों देवी देवताओं के नाम पर बनाई गई संचालित की जा रही शिक्षण संस्थाएं अथवा कोई अन्य प्रभावी नाम रख कर चलाई जा रही शिक्षण संस्थाओं में से अनेक का संचालन देख कर तरीके देख कर कुछ साल पहले तक उनको दुकानें कहा जाता था। लेकिन आज जो स्वरूप सामने आ रहा है,उसके अनुसार तो अब दुकानें नहीं कह सकते। अब उनको लूट खसोट के अड्डे कहना उचित होगा।
प्रतिदिन बच्चों से रूपए हड़पने के नए नए तरीके अपनाए जाते हैं।
कोई भी एक दिन ऐसा नहीं बीतेगा जिसमें किसी न किसी बहाने से रूपए ना हड़पे जाऐं।
पहले अंग्रेजी माध्यम के नाम पर चलाई जाने वाली शिक्षण संस्थाओं में लूट खसोट चलाई जाती थी। लेकिन अब हिन्दी माध्यम वाली संस्थाओं में भी लूट खसोट शुरू हो चुकी है।
कुछ साल पीछे लौट कर देखें।
सबसे पहले बस्ते से लूट शुरू हुई थी। अब बस्ता कोई नहीं कहता। अब स्कूल बैग कहा जाता है। जब से स्कूल बैग कहा जाने लगा है तब से लूट की रकम भी बढ़ गई।
इसके बाद स्कूल की डे्रस के नाम पर लूट शुरू हुई।
स्कूल के परिचय पत्र के नाम पर लूट शुरू हुई।
शिक्षण संस्थाओं के संचालकों ने लगातार लूट खसोट पर अभिभावकों को चुप पाया तो उनका दुस्साहस बढ़ता चला गया। वे और जयादा लुटेरे बन गए।
पुस्तकों के नाम पर लूट शुरू हो गई। एक तरफ तो आवाज उठ रही है कि बच्चे के बस्ते का वजन कम होना चाहिए,लेकिन लुटेरों ने पुस्तकों के आकार बहुत बड़े कर दिए और उनको रंगीन कर दिया। इसके बाद भी लूट में कमी मानी तथा रंगीन से बहु रंग यानि मल्टीकलर ग्लेज पेपर कर दिया। ताकि लूट वाजिब मानली जाए।
संचालकों का पेट नहीं कुआ बनता चला गया।
अब भावनात्मक लूट चली। बच्चे दूरी तक पैदल कैसे चलें और समय पर स्कूल पहुंचें? साईकिल को आऊट ऑफ फैशन कर दिया गया। साईकिल चलाने वाला बच्चा गरीब बना दिया गया। हेय घृणा किए जाने वाला बना दिया गया। स्कूली वाहन से आओ और जाओ।
अभिभावकों से बहुत अच्छी रकम ली जाने के बाद वाहन में भेड़ बकरियों की तरह भर कर स्कूल लाना और वापस पहुंचाना। स्कूल वाहन का रंग पीला और उसमें चालक व परिचालक तथा निर्धारित संख्या में ही बच्चों को बिठाना अनिवार्य है। जब जब हादसे होते हैं तब तब मालूम पड़ता है कि चालक बिना लायसेंस वाला था। बच्चे अधिक थे। परिचालक नहीं था।
स्कूली वाहन में आग लग जाए और उसमें बाहर निकलने की हालत ही नहीं हो,तब बच्चे तो गैस या अग्रि चैम्बर में होंगे। स्कूल का पूरा प्रबंधन इस प्रकार की घटनाओं के लिए जिम्मेदार होता है। स्कूलों में प्रबंधन समिति के नाम पर मोहल्ले वालों के,जान पहचान वाले राजनैतिक व्यक्तियों के नाम लिखे जाते हैं और बैठकें नियमित नहीं होती। जिनके नाम होते हैं। उनको भी मालूम नहीं होता। उनके हस्ताक्षर तक फर्जी कर लिए जाते हैं।
स्कूल संचालक अपने बचने के लिए अपनी पत्नी या परिवार के किसी सदस्य को सत्ताधारी पार्टी में किसी न किसी पद से जोड़ देता है। ऐसी अनेक घटनाएं घोटाले सामने आते रहते हैं। लेकिन अभिभावक जागरूक हो तो स्कूल संचालक गड़बडिय़ां नहीं कर सकता,चाहे वह कितना ही प्रभावशाली हो।
शनिवार, 5 अप्रैल 2014
दारू को दवा मानती वसुंधरा सरकार:दारू से चलती है राजस्थान सरकार:
टिप्पणी- करणीदानसिंह राजपूत
दारू गुजरात में बंद है और राजस्थान में खुला है। इसी दारू से राजस्थान सरकार यानि कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार यानि कि वसुंधरा राजे की सरकार जीवित है।
वसुंधरा राजे ने अपनी सुराज संकल्प यात्रा और उसके बाद भी सरकारी चिकित्सालयों में मिल रही दवाओं को जहर बताया था। वसुंधरा राजे जब मुफ्त दवाओं को जहर बतला रही थी,उस समय कांग्रेस की अशोक गहलोत की सरकार थी और मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के तहत राजकीय चिकित्सालयों में दी जा रही थी।
उस समय दवाओं को जहर बताने वाली वसुंधरा राजे दारू को कैसे और क्यों बेच रही हैï? क्या दारू से सेहत बनती हैï? दारू दवा है?
राजस्थान के करोड़ों लोगों का स्वस्थ्य खराब करके, उनके पारीवारिक जीवन की सुख शांति खत्म करके,हजारों नारियों व बालिकाओं का भविष्य उजाड़ कर,राजस्थान में अपराधों को पनपा कर वसुंधरा राजे कितना बड़ा पाप कर रही है।
ठेके जहां भी हैं वहां से महिलाओं व बालिकाओं का राह गुजरना कठिन होता है। महिलाएं ठेके बंद कराने का आंदोलन करती हैं या धरना प्रदर्शन करती है तो उन पर मुकद्दमें बना दिए जाते हैं।
नवरात्रा में एक तरफ तो देवियों का पूजन,शक्ति की आराधना और दारू बंद कराने वाली महिलाओं शक्तियों पर मुकद्दमें। कैसा लगता है? यह सुन कर देख कर।
पूर्व विधायक गुरूशरण छाबड़ा 1 अप्रेल 2014 से जयपुर में आमरण अनशन पर हैं। उनकी मांग है कि राजस्थान में संपूर्ण शराबबंदी कानून बनाया जाए व लागू किया जाए। छाबड़ा का कहना है कि जब गुजरात में दारू बंद है तथा वहां दारू से एक रूपए की आय नहीं है और वहां की सरकार चल रही है,तब राजस्थान की सरकार दारू बिना क्यों और कैसे नहीं चल सकती?
जब मोदी मोदी हो रहा है। गुजरात के विकास के दावे करते हुए उनको प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत कर चुनाव लड़ा जा रहा है,तब राजस्थान में गुजरात सरकार की तरह दारू बंद क्यों नहीं किया जाता?
वसुंधरा राजे अपनी सरकार के लिए दारू को दवा क्यों मान रही है?
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