शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

बड़े भाई की मृत्यु के अगले दिन दूसरा व पांचवें दिन तीसरा भाई चल बसा: रिपोर्ट:करणीदानसिंह राजपूत:

-- छगनलाल स्वामी            बल्लुराम स्वामी      बजरंगदास स्वामी-

सूरतगढ़ में 20 जनवरी को छगनलाल स्वामी के निधन पर उसी के घर में आया छोटा भाई बजरंगदास स्वामी 21 को चल बसा: दोनों की चिताएं एक साथ ही जली:परिवार इस शोक में खोया था कि पांचवें दिन 24 जनवरी को एक और भाई बल्लुराम भी चल बसा: ईश्वर की लीला-विधि का विधान-
तीनों के मरणोपरांत किया गया नेत्रदान:

सूरतगढ़ 27 जनवरी 2012. ईश्वर कई बार चमत्कारिक खेल दिखलाता है। देवी देवता तक अनेक घटनाओं को विधि का विधान टाला नहीं जा सकता कहते हुए सहन करते रहे हैं। ऐसा ही विधि का विधान या ईश्वरीय लीला या खेल में स्वामी समाज में तीन सग्गे भाई एक एक कर पांच दिन में यह संसार छोड़ गए।
    यहां वार्ड नं 13 में 83 उम्र में छगनलाल स्वामी का 20 जनवरी की रात्रि में करीब 10-30 पर स्वर्गवास हो गया। अगले दिन 21 जनवरी को सुबह अंतिम यात्रा की तैयारी की जा रही थी। सभी उसी में व्यस्त थे कि अपने भाई की देह को देखते देखते छोटे भाई बजरंगदास स्वामी ने भी यह संसार छोड़ दिया। बजरंगदास स्वामी की वार्ड नं 4 के निवासी व 78 साल के थे। दोनों भाईयों की अर्थियां एक साथ उठी। दोनों को एक समय में ही मुखाग्रि दी गई। कल्याण भूमि में सैंकड़ों लोगों ने अंतिम संस्कार में भाग लिया। यह घटना शहर और आसपास के इलाके में चर्चा का विषय बन गई। अपने अपने हिसाब से लोग बताने लगे। कितना प्यार प्रेम रहा दोनों में कि भाई की मृत्यु को दूसरा भाई सहन नहीं कर सका। ईश्वर के घर भाई के साथ ही चला गया। अभी इस घटना की चर्चा चल ही रही थी कि पांचवें दिन 24 जनवरी को दोपहर में करीब 1-30 बजे तीसरा भाई बल्लुराम भी यह संसार छोड़ दोनों भाईयों की राह पर निकल गया। बल्लुराम की उम्र करीब 80 वर्ष थी। वार्ड नं 13 में बड़े भाई छगनलाल स्वामी के घर के पास में ही घर बनाया हुआ।
    छगनलाल स्वामी राजकीय सेवा में सूरतगढ़ तहसील में जमादार के पद से सेवा निवृत हुए थे। बहुत लोकप्रिय थे। विशेष अवसरों पर साफा बंधवाने के लिए उनको आमंत्रित किया जाता था। उनका एक पुत्र तोला राम स्वामी धर्म प्रचारक के नाम से विख्यात है। तोला राम स्वामी धार्मिक आयोजनों मेले व जागरणों में,रक्तदान शिविरों आदि में उल्लेखनीय सेवाएं देने में अग्रणी है।
    धर्म प्रचारक तोला राम स्वामी इस संपूर्ण घटनाक्रम को ईश्वर की लीला और विधि का विधान मानते हुए सांसारिक कार्यों में लगे हैं जो मृत्यु के बाद समाज में निभाए जाते हैं। शोक व्यक्त करने वालों की संख्या अपार।
    तीनों भाईयों के मरणोपरांत नेत्रदान किया गया। महावीर इंटरनेशनल सूरतगढ़ प्रेरणा देने में अग्रणी।
    बड़े भाई छगनलाल स्वामी की मृत्यु के तुरंत बाद महावीर इंटरनेशनल की प्रेरणा से उनके पुत्रों जगदीश, तोलाराम,राजाराम व रविकांत ने उनके नेत्रदान की स्वीकृति दे दी। महावीर इंटरनेशनल के अध्यक्ष नरेन्द्र चाहर ने उनके नेत्र उत्सारित किए।
    मध्यम भाई बल्लुराम जी की मृत्यु पर उनके पुत्रों महावीर, पृथ्वीराज, मांगीलाल,और चन्द्रेश की स्वीकृति के बाद नरेन्द्र चाहर ने ही उनके नेत्रों का उत्सारित किया। 
    बजरंगदास स्वामी की मृत्यु के बाद महावीर इंटरनेशनल की नेत्रदान कराने के लिए पुन: प्रेरणा रही। उनके पुत्रों राम स्वरूप, मनीराम,किशनलाल व लूणाराम की स्वीकृति के बाद नरेन्द्र चाहर ने नेत्र उत्सारित किए।
तीनों के नेत्रों को श्री जगदम्बा धर्मार्थ नेत्र चिकित्सालय श्रीगंगानगर भिजवा दिया गया।
ये कुल पांच भाई थे। जिनमें एक भाई करीब एक साल पहले चल बसा था।
पन्नाराम भी अपने तीन भाईयों को इस तरह से संसार छोड़ देने को ईश्वर की लीला और विधि का विधान ही मानते हैं।

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गुरुवार, 26 जनवरी 2012

कवि सम्मेलन में राजनेताओं की खूब उतारी गई आरती-रिपोर्ट: करणीदानसिंह राजपूत-




गुलाब से स्वागत और शॉल ओढ़ा कर किया गया सम्मान:
जय हिन्द लगाओ नारा:इतनी मिली आजादी कि कॉलर पकड़ कर नेताओं से होते हैं सवाल:
आज गधे भी मिलेंगे सरकार में:
सूरतगढ़, 26 जनवरी, 2012. गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर महाराजा में हुए कवि सम्मेलन में राजनेताओं जम कर आरती उतारी गई औा किसी को भी सूखा नहीं रहने दिया गया। कवियों ने प्रतातंत्र के गुणगान किए मगर देश की आजादी में जो कुछ हो रहा है, उसका चित्रण भी जम कर किया।
    संदेश त्यागी की कविताओं का रंग खूब जमा.....आज गधे भी मिलेंगे सरकार में। कविता यह थी कि विदेशों में कहीं कुत्तों को प्यार किया जाता है तो कहीं किसी और जानवर से। कवि ने बताया कि हिन्दुस्तान में सबसे अधिक प्यार किया जाता है कि गधे भी सरकार में मिलते हैं।
    रूपसिंह राजपुरी जिन्हें हास्य का कवि कहा जाता है। राजपुरी ने कहा कि पहले हर कवि सम्मेलन में उनको रात के बारह बजे ही बुलाया जाता था। उन्होंने कहा कि सरदार के आगे अ लगा दिया जाए तो वह असरदार हो जाता है। उन्होंने अध्यापक,महिलाओं, छात्रों, पुलिस व ग्रामीणों व राजनैतिक पार्टियों को खूब उछाला। दावे से कहा कि उनको पाजामा खेंच कर नीचे नहीं बैठाया जा सकता क्यों कि उन्होंने पाजामा ही नहीं पहना है।
    वरिष्ठ कहे जाने वाले कवि मोहन आलोक ने तीर तुकों पर बनी अपनी तीस साल पुरानी विधा राजस्थानी डांखले सुनाए। आलोंक ने पंजाबी में भी खूब डके तोड़े।
लाज पुष्प ने जय हिन्द लगाओ नारा से समा बांधा।
    राजेश चड्ढा के संयोजन में चले कवि सम्मेलन में दीनदयाल हास्य कवि ने भी खूब रंग जमाया। ओम पुरोहित कागद,सुरेन्द्र सुन्दरम, जनकराज पारीक,डा. अरूण सोहरिया,नन्द किशोर सोमानी ने अपनी रचनाएं सुनाई।
महाराजा मल्टीपलेक्स सिनेमा के शानदार हॉल में प्रशाशन की ओर से कवियों कर ही नहीं हर श्रोता का सवागत गुलाब के फूल भेंट कर स्वागत किया गया। कवियों का सम्मान श्रीफल व शॉल ओढ़ाकर किया गया।
इस अवसर पर विधायक गंगाजल मील, पालिका अध्यक्ष बनवारीलाल,प्रशासन की ओर से एडीएम एस.के.बुडानिया,एसडीएम मदनलाल सिहाग,तहसीलदार कुंजबिहारी शर्मा, अधिशाषी अधिकारी राकेश मेंहदीरत्ता व शहर की सामाजिक संस्थाओं व राजनैतिक सगठनों के पदाधिकारी कार्यकर्ता मौजूद थे। कवि सम्मेलन में शौर्य, श्रंगार,हास्य आदि सभी रसों को परोसा गया जिसमें गीत,कविताएं गजलें परोसी गई।
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गुरुवार, 19 जनवरी 2012

प्राचीन सूरतेश्वर महादेव मंदिर सूरतगढ़: विशेष लेख व चित्र- करणीदानसिंह राजपूत:











सूरतगढ़ के गढ़ के सामने यह मंदिर सूरतगढ़ की स्थापना के समय का बताया जाता है:
मंदिर का भवन और गर्भगृह आदि सब जीर्ण शीर्ण हो चुके हैं-जिनके जीर्णाेद्धार की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

सूरतगढ़ के गढ़ के सामने बना है सूरतेश्वर महादेव का मंदिर। इस मंदिर की प्राचीनता का इतिहास यह बताया जाता है कि गढ़ के निर्माण के साथ ही इस मंदिर का निर्माण हुआ था। पहले यह एक ही मंदिर था और इसी में स्थापित शिव लिंग पर लोग दुग्ध व जल का अभिषेक किया करते थे। इसी का पूजन अर्चन होता था। यह क्षेत्र बीकानेर रियासत में था। बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह के नाम पर प्राचीन ग्राम सोढ़ल का नया नाम रखा गया था। बीकानेर महाराजा की तरफ से ही मंदिर के रखरखाव आदि के लिए माफी की कृषि भूमि भी दी गई थी। कुछ वर्ष पहले पुजारी के अभाव व स्थानीय रख रखाव में और कुछ विवाद के कारण दूर रहने के कारण यह सार संभाल देव स्थान विभाग के अधीन करदी गई।
    मंदिर के जीर्ण हालत में जाते रहने के कारण श्रद्धालुओं को मानसिक पीड़ा भी होने लगी और इसके जीर्णाेद्धार की मांग की जाने लगी। इसके समाचार रपटें समाचार पत्रों में छपी। सामाजिक संगठनों व श्रद्धालुओं ने यह मांग देव स्थान विभाग से की। इसका सुखद परिणाम आया। देव स्थान विभाग ने इसके जीर्णाेद्धार के लिए बजट निश्चित किया। यह जीर्णाेद्धार सार्वजनिक निर्माण विभाग के माध्यम से होगा।
    मंदिर में शिवलिंग और नन्दी की प्रतिमाएं पुरानी व क्षतिग्रस्त हो चुकी है। इनको हरद्वार में विसर्जित किया जाएगा। मंदिर के गर्भगृह के जीर्णाेद्धार के बाद नया शिवलिंग व नन्दी स्थापित होंगे व प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। यह कार्य यहां की समिति करेगी। इसके लिए श्रद्धालु जुट गए हैं। नई स्थापना के बाद में पुराने शिवलिंग व नन्दी की प्रतिमा को विर्सजन के लिए ले जाया जाएगा। अभी ये प्रतिमाएं शिव बगीची में ही एक पेड़ के नीचे विराजमान रहेंगी।
शिवलिंग व नन्दी की प्रतिमा को हटाए जाने से पूर्व पश्चाताप पूजा 18 जनवरी 2012 को यजमान महावीर प्रसाद सेखसरिया सूरतगढ़ ने की एवं यह पूजा पंडित जगदीश प्रसाद कौशिक हनुमानगढ़ जंकशन ने करवाई।
    मंदिर के जीर्णाेद्धार बाबत एक बैठक मंदिर प्रांगण में 19 जनवरी 2012 को हुई जिसमें देव स्थान विभाग के हनुमानगढ़ टाऊन स्थित कार्यालय के सेवागिर राजेन्द्रप्रसाद शर्मा भी उपस्थित थे। समिति के संयोजक दिलात्मप्रकाश जैन सहित इस बैठक में गणमान्य श्रद्धालुओं ने भी भाग लिया। यह कार्य जल्दी ही आजकल में ही शुरू हो जाएगा।

- करणीदानसिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार,
सूरतगढ़।
मोबाईल  94143 81356

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