शनिवार, 24 नवंबर 2012

सूरतगढ़:भूखंडों के आवंटन का महाघोटाला:जांचमें गलत पाए 46 आवंटन की सूची:खास रिपोर्ट-करणीदानसिंह राजपूत


सरकार ने भूखंड निरस्त करने का आदेश जारी किया:पहले आवंटियों को सुना जाएगा

तथ्य जो आए:प्रभावशाली लोगों ने अल्प आय के प्रमाणपत्र दिए:राजस्थान में मकान होते हुए भी झूठा हल्फनामा:
जिस आय के लिए जो साईज निर्धारित था उससे बड़ा प्लॉट आवंटित कर दिया गया
अधिशाषी अधिकारियों भंवरलाल सोनी और राकेश अरोड़ा-मेंहदीरत्ता पर सरकारी सपत्ति कम मूल्य में लुटाने का आरोप:
आईडीएसएमटी योजना में हुआ था यह महाघोटाला
सूरतगढ़,24 नवम्बर 2012. सूरतगढ़ में आईडीएसएमटी योजना के तहत वर्तमान टैगोर कॉलेज के साथ की कॉलोनी में भूखंड के लिए सन 2009 में आवेदन आमंत्रित किए गए। इनमें 4 हजार रूपए प्रतिमाह तक की आय और सरकारी कर्मचारियों की 5 हजार रूपए तक की मासिक आय वालों को ही आवेदन करना था। लेकिन अनेक प्रभावशाली लोगों ने जो सत्ताधरियों के नजदीकी थे,ने झूठे हल्फनामें देकर अधिक साईज के भूखंड पा्रप्त कर लिए। आवेदकों ने अपनी आय कम बतलाई और मकान होते हुए भी तथ्य को छुपाया। आवेदकों ने कुछ भी भरा हो मगर ड्यूटी तो अधिशाषी अधिकारियों की थी जिनको तथ्यों की जांच करनी चाहिए थी। उन्होंने जांच नहीं की और अपात्र आवेदकों भूखंड आवंटित कर दिए। सत्ताधारी के नजदीकी आवेदकों की जांच की हिम्मत किसी भी अधिकारी ने नहीं की। दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य तो यह रहा है कि विधायक की सिफारिश पर जिसे लाया हुआ हो वो अधिकारी सरकार के नहीं विधायक और उसके खास का कहना मानता है। इस लापरवाही में दो अधिकारी आरोपों के लपेट में आ गए हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता बाबूसिंह खीची ने सूचना के अधिकार के तहत नगरपालिका से दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियां प्राप्त की और 11 जून 2012 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से उनकी जन सुनवाई में मिला तथा शिकायत पेश की। इस शिकायत पर स्वायत शासन विभाग के अतिरिक्त निदेशक ने 14 जून को नगरपालिका सूरतगढ़ में जांच की उसमें 46 लोगों को अपात्र माना गया जिनको निर्धारित साईज से अधिक के भूखंड दे दिए गए। इसके अलावा भी जांच रिपोर्ट में अनेक तथ्य सामने आए।
जांच रिपोर्ट की संपूर्ण फोटो यहां दी जा रही है।




राजस्थान सरकार ने एक माह पूर्व 23 अक्टूबर 2012 निरस्तीकरण की कार्यवाही के लिए श्रीगंगानगर के जिला कलक्टर को आदेश दिया। इस आदेश में लिखा था कि कुछ भूखंडों का कब्जा दिया जा चुका है तथा उनकी रजिस्ट्री भी हो चुकी है। नियमानुसार निरस्तीकरण करने की कार्यवाही शुरू की जाए और इससे पहले उनकी सुनवाई करली जाए। इस आदेश को एक माह बीत चुका है। अब यह मामला अखबारों में छप चुका है। अपात्र लोगों की सूची में उन लोगों के ही नाम हैं जिनको निर्धारित साईज से अधिक साईज के भूखंड दे दिए गए।
संपूर्ण आवंटित भूखंड मालिकों की जांच एक बार और की जानी चाहिए और यह मालूम किया जाना चाहिए उनमें झूठी आय नहीं दिखाई है और उनके पास राजस्थान में वास्तव में मकान नहीं है।
लॉटरी में डाली गई संपूर्ण सूची भी यहां दी जा रही है।




सामाजिक कार्यकर्ता बाबूसिंह खीची
सामाजिक कार्यकर्ता बाबूसिंह खीची ने अपने ताजा बयान में घोषणा की है कि शहीद सैनिकों की वीरांगनाओं की,उनके परिवार की, अनूसूचित जाति जनजाति परिवारों की भूखंडों की लूट मचाने वाले व दोषी अधिशाषी अधिकारियों को बक्सा नहीं जाएगा व भूखंडों की निरस्तीकरण की कार्यवाही व दोषियों को दंडित कराने तक की कार्यवाही करवाई जाएगी। राज्य सरकार से कार्यवाही की अपेक्षा है और अगर राज्य सरकार इसमें ढ़ील बरतेगी तो सक्षम न्यायालय में भी की जाऐंगे। खीची ने कहा कि व्यक्तिगत रूप से 11 जून 2012 को उपस्थित होकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को शिकायत की थी। इसके बाद  14 जून 2012 को अतिरिक्त निदेशक ने जांच की मगर कार्यवाही ठप रही। इस पर 15 अक्टूबर को मुख्यमंत्री से मिल कर हाल बताया तब जाके 23 अक्टूबर को जिला कलक्टर को गलत आवंटन को निरस्त करने का आदेश जारी हुआ। अब तेजी से कार्यवाही नहीं होती हे तो एक बार फिर से मुख्यमंत्री का ध्यान दिलाया जाएगा। खीची ने कहा है कि विधायक गंगाजल मील के अत्यन्त नजदीकी साथ रहने वालों ने गलत जानकारियां देकर राजनैतिक और सत्ता के दबाव से भूखंड हथिया लिए हैं, जो बहुत ही दुर्र्भाग्यपूर्ण है। दबाव के लिए आवेदन पत्रों में नई धान मंडी दुकान नं 82 और रिलांयस पेट्रोल पम्प के पते दिए गए। इन पर तो तत्काल ही कार्यवाही होनी चाहिए। विधायक स्वयं क्या फैसला लेते हैं,ये उन पर निर्भर है। 
राजनैतिक सामाजिक संगठनों का कर्तव्य क्या होगा?
शहर में राजनैतिक दलों में भाजपा,शिव सेना,माकपा,बसपा और अनेक संगठन जो क्रांतिकारी होने की घोषणा करते हैं। उनकी क्या प्रतिक्रिया होती है? मामला शहीदों की वीरांगनाओं व परिवारों को भूखंड देने का है। संघ जो अपने हर बौधिक में देश की सुरक्षा करने वाली सेना औा उसके परिवारों को खासकर वीरांगनाओं को बड़ा महत्व देता है,देखना है कि इस मसले पर उसकी क्या प्रतिक्रया होती है?

 

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रविवार, 18 नवंबर 2012

भाजपा के तीन नेता रामप्रताप कासनिया,राजेन्द्र भादू और अशोक नागपाल क्यों डरते हैं और किससे डरते हैं?


टिप्पणी-करणीदानसिंह राजपूत


भारतीय जनता पार्टी की ओर से एडीएम के माध्यम से 9 नवम्बर 2012 को शहर की समस्याओं को दूर करने का सात सूत्री ज्ञापन राज्यपाल को भेजा गया। इस ज्ञापन में पीने के पानी के शुद्ध वितरण की मांग के साथ चेतावनी दी गई थी कि सात दिनों में सुधार नहीं किया गया तो आंदोलन किया जाएगा। शहर के तीस वार्डों में शुद्धपानी का वितरण होने की कोई सूचना जनता की ओर से तो नहीं है। किसी ने भी नहीं कहा कि पानी शुद्ध मिलने लगा है और निर्धारित समय पर मिलने लगा है। लाईनपार के क्षेत्र को सूर्याेदय नगर कहा जाता है,वहां तो पानी एक दिन छोड़ कर दिया जा रहा है और वह भी निर्धारित समय पर नहीं दिया जाता। भाजपा ही नहीं कोई अन्य पार्टी व नेता भी इस पर नहीं बोले। भाजपा ने आगे चतावनी के अनुरूप कोई आंदोलन शुरू नहीं किया। सच तो यह है कि आंदोलन की चेतावनी देना और आंदोलन करना दोनों में बहुत अंतर है।

यहां पर वे मांगे दी जा रही है जिनमें से किसी एक पर भी काई कार्यवाही हुई हो,ऐसा लग नहीं रहा है।

भाजपा ने जब यह ज्ञापन तैयार किया और जिन नेताओं ने यह उपखंड अधिकारी के मार्फत राज्यपाल को भिजवाया,वे सभी जानते हैं कि राज्यपाल को दिया गया ज्ञापन कितने दिन बाद जाकर कार्यवाही में आता है।

भाजपा यह ज्ञापन स्थानीय अधिकारियों को ही सौंपती जो मांगें स्थानीय स्तर पर हल हो सकती थी। भाजपा ने जो मांगें दी हैं वे हम दुबारा यहां बता रहे हैं, ताकि जनता समझ जाए कि इनमें से पानी शुद्ध दिए जाने,सीवरेज के 8 ईंची व्यास पे पाईपों के बजाय अधिक व्यास के पाईप लगाने,अस्पताल और यातायात की व्यवस्था सुधारने तथा बिजली के एवरेज बिलों को शुद्ध करने की मांगें तो स्थानीय स्तर पर ही हल हो सकती हें।


1.शहर में गंदे पेयजल का वितरण हो रहा है,इसमें 7 दिन में सुधार नहीं किया गया तो आंदोलन किया जाएगा। जनता

2.सीवरेज पाईप कम व्यास के हैं,बड़े व्यास वाले पाईप लगवाए जाऐं।

3.ग्वार को एनसीडीएक्स में शामिल किया जाए।

4.सबसीडी वाले एलपीजी सिलेंडरों की संख्या को सीमित नहीं किया जावे।

5.अस्पताल में अव्यवस्था को दूर किया जावे।

6.यातायात व्यवस्था में सुधार किया जावे।

7.बिजली के एवरेज बिल आ रहे हैं। इस व्यवस्था में सुधार किया जावे।

   

उक्त ज्ञापन देने वालों में जिला किसान मोर्चे के अध्यक्ष राजेन्द्र भादू, पूर्व राज्यमंत्री रामप्रताप कासनिया,जिला महिला मोर्चा अध्यक्ष रजनी मोदी,देहात अध्यक्ष नरेन्द्र घिंटाला,युवा मोर्चे के अध्यक्ष गौरव बलाना,नगर मंडल के प्रयागचंद अग्रवाल,परसराम भाटिया,धर्मदास सिंधी,पूरण कवातड़ा,पार्षद सत्यनारायण छींपा,मुरलीधर पारीक,सुभाष सैनी,गोपीराम दग्गल,प्रेमसिंह राठौड़,प्रभुदयाल,पवन औझा,त्रिलोक कलसी,ओम चाहर, सम्पत बगेरिया,घनश्याम सैनी आदि थे।

ज्ञापन देकर ये भूल गए कि 9 नवम्बर के ज्ञापन में 7 दिन की अवधि दी गई थी जो बीत गई है। ये सभी जानते हैं,मगर सच कुछ और है। भाजपा का  नगरमंडल काम नहीं कर सकने वाला,किसी भांति चलने फिरने में लाचार और जनता की आवाज नहीं सुनने वाला जिसे  लूला लंगड़ा बहरा कहा जा सकता है,उसके चार पांच पदाधिकारी कभी दो चार ज्यादा हो सकते हैं, झटपट बिना दूरगामी सोचे निर्णय लेते हैं। उसकी विज्ञप्ति जारी कर देते हैं कि फलां दिन ज्ञापन दिया जाएगा। अनेक बार एसएमएस के जरिए भी तुरंत फुरंत बुलावा देते हैं और सीधे उपखंड कार्यालय पर ही पहुंचने का निर्देंश देते हैं। चालीस पचास एकत्रित हो जाते हैं जो एक लाख की आबादी में साधारण बात है। उसमें भी बीस तीस तहसील,उपखंड और एडीएम कार्यालयों में काम कराने आए हुए शामिल हो जाते हैं। भाजपा का लूला लंगड़ा बहरा संगठन इस मामूली संख्या को भी इतराते हुए अच्छी संख्या बतलाता है।

किसान मोर्चा के जिला अध्यक्ष राजेन्द्र भादू, पूर्व राज्यमंत्री रामप्रताप कासनिया और पूर्व विधायक अशोक नागपाल भी साथ होते हैं। आगामी चुनाव के चक्कर में भयभीत ये नेता सब कुछ जानते हुए संगठन के नाम पर मजबूरी में साथ होते हैं। अन्यथा यह कह दिया जाएगा कि कार्यकर्ताओं को साथ नहीं देते। लेकिन जिनको चुनाव लडऩा है,उनको इतना तो जान ही लेना चाहिए कि पांच दस लोग जो निर्णय कर लेते हैं, बाद में कार्यवाही नहीं होती,उससे कितनी भद्द होती है।

इस प्रकार के निर्णय करने वालों को जब तक फटकार नहीं लगती तब तक वो भद्द पिटने वाली कार्यवाही करते रहेंगे। इस प्रकार के निर्णयों पर साथ नहीं देने पर पार्टी कोई निकालने वाली नहीं है। नेताओं को झूठा भय सताने लगता है उस स्थानीय संगठन का जिसमें विगत चुनाव में मील को साथ देने वाले हैं। ये तीनों दिग्गज शक्तिहीन संगठन के चंद पदाधिकारियों से डरना छोड़ें और ज्यादा ही संगठन की बात हो तो नए अध्यक्ष और नई कार्यकारिणी का गठन करवाएं। नगरमंडल के अध्यक्ष गुरदर्शनसिंह सोढ़ी तो एक बार इस्तीफा दे चुके हैं और कई बैठकें उनकी अनुपस्थिति में ही होती रही हैं,जो पांच सात जनों का निर्णय होता है। देहात मंडल की हालत भी न होने के बराबर है। क्या हालत है देहात मंडल की और कितनी ताकत है देहात मंडल में।

साफ साफ हालात तो यह हैं कि वर्तमान नगर और देहात मंडलों के भरोसे तो आगामी विधान सभा चुनाव लड़ा गया तो भगवान ही मालिक होगा। साफ तय करके लडऩा की हार के लिए लड़ रहे हैं।

दिग्गज नेता विगत चुनाव पर नजर डालें कि गुरदर्शसिंह सोढ़ी कहां थे और देहात मंडल के अध्यक्ष नरेन्द्र घिंटाला का पार्टी प्रत्याशी को कितना और कैसा सहयोग रहा था?

अब एक प्रसिद्ध भजन...

उठ जाग मुसाफिर भोर भई,अब रैन कहां जो सोवत है।

जो सोवत है सो खोवत है,जो जागत है सो पावत है।

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फोटो-भाजपा नेताओं अशोक नागपाल,रामप्रताप कासनिया और राजेन्द्र भादू व अन्य नेताओं ने 24-10-2010 को नगरपालिका की समस्याओं पर तत्कालीन उपखंड अधिकारी कालूराम को ज्ञापन दिया था। उसके बाद धरना लगाया था और जैसे तैसे कई दिनों तक चलाने के बाद जैसे तैसे समझौता आश्वासन से उठाया था।

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सूरतगढ़ में नन्दी शाला का शिलान्यास:संतों ने लगाई नींव:खास खबर- करणीदानसिंह राजपूत:




गौ रक्षा सम्मेलन में गौ वंश के पालन और संरक्षण का आह्वान
पूर्व राज्यमंत्री रामप्रताप कासनिया,विधायक गंगाजल मील और पूर्व विधायक अशोक नागपाल समारोह में शामिल-
सूरतगढ़, 18 नवम्बर 2012. हनुमान खेजड़ी मंदिर धाम के सटते हुए दक्षिण पश्चिम दिशा में अठारह नवम्बर को शुभ बेला में संतों के कर मिलों से नन्दी शाला की नींव रखी गई। बाल संत भोले बाबा व अन्य संतों की ओर से मंत्रोच्चार के साथ यह कार्य सम्पन्न करवाया गया। शिलान्यास पट का अनावरण विधायक गंगाजल मील से करवाया गया।
श्री गौशाला के अध्यक्ष ओम प्रकाश राठी व एडवोकेट व नोटेरी एन.डी.सेतिया,पूर्व राज्यमंत्री रामप्रताप कासनिया,विधायक गंगाजल मील और पूर्व विधायक अशोक नागपाल सहित सैंकड़ों गौ भक्त नर नारी समारोह में शामिल हुए। एन.डी.सेतिया ने बताया कि करीब 17 बीघा भूमि पर यह नन्दी शाला बनाई जा रही है।
इस नन्दी शाला से शहर की श्रीगौशाला को सांडों के संरक्षण के लिए यह स्थान मिलेगा। अभी शहर में बाजारों और गलियों मोहल्लों में विचरण करते असहाय निराश्रित सांडों को इसमें रखा जा सकेगा।
इस अवसर पर गौ रक्षा सम्मेलन भी आयोजित किया गया।
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शनिवार, 10 नवंबर 2012

सूरतगढ पालिका:औद्यौगिक प्लॉट नीलामी घोटाला:हरचंदसिंह ने कहा एसीबी जांच में सबूत दूंगा।

सूरतगढ पालिका:औद्यौगिक प्लॉट नीलामी घोटाला:
पूर्व विधायक हरचंदसिंह ने पुलिस को कहा एसीबी जांच में सबूत दूंगा।
विशेष खबर-करणीदानसिंह राजपूत

सूरतगढ़, 10 नवम्बर। नगरपालिका के औद्योगिक प्लॉट निलामी और उसके बाद प्लाटों के उपविभाजन पर भ्रष्टाचार से सरकार को लाखों रूपए के राजस्व की हानि होने की एक शिकायत पूर्व विधायक एडवोकेट हरचंदसिंह सिद्धु ने राजस्थान के मुख्यमंत्री से की थी। इस शिकायत की जांच पर बयान लेने को सूरतगढ़ सिटी थाने के उपनिरीक्षक किशोरसिंह 7 नवम्बर को बयान लेने सिद्धु के पास गए। सिद्धु ने अपने बयान में कहा कि सूरतगढ़ पुलिस को अनुसंधान में कुछ भी तथ्य नहीं बताऊंगा। यह प्रकरण भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से संबंधित है। राज्य सरकार ब्यूरो को अनुसंधान का दायित्व सौंपेगी तब ब्यूरो को संपूर्ण सबूत दूंगा।
सिद्धु ने बताया कि नगरपालिका ने औद्योगिक प्लॉट 174 और 175 की नीलामी में घोटाला किया। मास्टर प्लान में घोषित कार्य के अनुसार प्लाटों की नीलामी हुई। उसके बाद में उनका उपविभाजन करके बेचे नहीं जा सकते। प्लॉटों का उप विभाजन और उनकी रजिस्ट्री व पालिका रिकार्ड में नामांतरण तक कर दिया गया। सिद्धु ने आरोप लगाया है कि 120 गुणा 150 फुट के प्लॉटों को उप विभाजन करके दुकानों के रूप में टुकड़े करके नहीं बेच सकते।
सिद्धु ने यह आरोप भी लगाया कि एक प्लॉट की छह जनों के ग्रुप ने बोली दी। वह प्लॉट 50 लाख 40 हजार में छूटा। उसकी एक चौथाई रकम भी बोली पूरी होते ही जमा करवा दी गई। उसके बाद मिली भगती करके नियम विरूद्ध दो जनों के नाम निकाल कर चार जनों के नाम रजिस्ट्री करवा दी गई। घोटाला इसके बाद और हुआ कि भूखंड के टुकड़े करके गिफ्ट दिखलाए गए। उनमें भी गोलमाल हुआ। इसमें सब रजिस्ट्रार ने बिना स्टाम्प शुल्क के रजिस्ट्री कर दी। सिद्धु ने आरोप लगाया है कि वर्कशॉप का बड़ा भूखंड पालिका खुद ही टुकड़े करके बेचती तो करोड़ों में बिकता मगर पालिका ऐसा कर नहीं सकती थी। पालिका ने वर्कशॉप को वर्कशॉप के रूप में ही बेचा,मगर बाद में उपविभाजन को स्वीकार करके घोटाला किया।
सिद्धु ने कहा कि इस मामले में विधायक पुत्र,नगरपालिका का अधिशाषी अधिकारी राकेश मेंहदीरत्ता, सब रजिस्ट्रार व कई और लोग शामिल हैं।

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

शुद्ध के लिए युद्ध:जांच में आटा शामिल करो:चावल कणी और भूसी की मिलावट:



तीखे तेवर-सामयिक टिप्पणी:-करणीदानसिंह राजपूत

दीपावली पर्व के आते ही प्रशासन को जनता की सेहत का ध्यान आता है और पर्व से कुछ दिन पहले सरकार की ओर से केवल हलवाईयों की दुकानों पर छापेमार कार्यवाही शुरू होती है। आरोप होता है कि मिठाईयों में जम कर मिलावट की जाती है। इसलिए सरकार अपने प्रशासनिक अधिकारियों तक को जांच की कार्यवाही में लगा देती है। जांच में सड़ी हुई चाशनी और मिठाईयां,मावा आदि नष्ट करवाने की कार्यवाही होती हे और अखबारों में व चैनलों पर तस्वीरों सहित समाचार प्रसारित होते हैं।
शुद्धता के लिए युद्ध केवल हलवाईयों के यहां ही क्यों होता है।
दीपावली पर और रोजाना जो आटा हलवाईयों के यहां, भोजनालयों में उपयोग में लाया जाता है,उसकी शुद्धता की जांच भी होनी चाहिए। इन दुकानों से तो नमूने लिए ही जाएं साथ में आटा बनाने वाली मिलों पर और उनके आटे के थैलों में से भी नमूने लिए जाकर प्रयोगशाला में जांच करवाई जानी चाहिए।
आटे के थैलों पर गेहूं का शुद्ध आटा छपा हुआ होता है और उसकी 100 प्रतिशत शुद्धता की गारंटी तक छपी हुई होती है। अनेक आटा निर्माता
गेहूं के आटे में चावलों की कणी और भूसी मिलाते हैं। स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन दोनों ही यह जानते हैं। अब सवाल पैदा होता है कि जानते हैं तो फिर छापे की और प्रयोगशाला में जांच करवाने की कार्यवाही क्यों नहीं करते?
क्या केवल मिठाईयों की अशुद्धता से ही लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है,आटे की अशुद्धता से आदमी बीमार नहीं होता?
बड़े गौर करने वाला बिंदु है कि मिठाईयां तो लोग यदा कदा ही खाते हैं,मगर आटा तो रोजाना ही उपयोग में लिया जाता है।
जो खाद्य रोजाना इस्तेमाल हो रहा है उसकी शुद्धता की जांच की जरूरत क्यों नहीं समझी जाती?
स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन  हर कार्य हल्ला मचने मचाने के बाद शुरू करते हैं। तो क्या आटे की शुद्धता के लिए भी हल्ला ही मचाया जाए?
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