राजपूत - करणीदानसिंह
चुनाव में मत मांगने के लिए घर घर में संपर्क करने के लिए निकले प्रत्याशियों व उनके समर्थकों की टोलियां दरवाजा खुलते ही सामने कोई भी आया तो बिना सोचे समझे तत्कालिक नए रिश्ते बना कर संबोधित कर बैठते हैं। ये संबोधन बड़े रोचक हंसी मजाक वाले होते हैं। जब कोई इनकी बानगी सुनाता है तो हंसते हंसते पेट में बल पड़ जाते हैं।
विशाल एक हंसोड़ व्यक्तित्व का धनी। अपने ही घर में मत मांगने आए लोगों की बातें सुनाने लगा। मत मांगने वालों ने उसके घर में किस तरह से अजीबोगरीब रिश्ते बना दिए। ये रिश्ते एक ही टोली ने कुल मिला कर पांच सात मिनट में ही बना डाले। टोली का हर व्यक्ति संबोधित कर रहा था। टोली का कोई भी व्यक्ति उम्र में तीस पैतीस साल से कम का नहीं था मतलब उनमें अधेड़ और बुजुर्ग भी शामिल थे। विशाल की उम्र होगी करीब 25 साल की होगी। इससे कुछ ज्यादा भी हो सकती है।
् दरवाजा खटका तो विशाल की पत्नी ने दरवाजा खोला। अपने सामने बहुत सारे लोगों को देख कर वह घूंघट निकालने ही वाली थी कि जल्दी से आगे बढ़ कर एक ने पैरों के हाथ लगाते हुए कहा, माताजी, पांवाधोक करूं। वोट म्हाने दिज्यो। उसने जल्दी से घूंघट निकाल ही लिया। टोली के उस सदस्य ने यह देखने की कोशिश ही नहीं की कि सामने खड़ी युवती उम्र में उससे छोटी है। जल्दी से हां कराने के चक्कर में माता जी बना लिया। कई आवाजें सुन कर विशाल भी दरवाजे पर आ गया। आगे खड़े उसी व्यक्ति ने कहा, भाई साहब वोट हमें देना।
विशाल कुछ बोल पाता कि फिर एक ने कहा अंकल कहां है? उनसे भी वोट मांग लेते हैं।
विशाल ने पूछ लिया अंकल कौन?
उस व्यक्ति ने तत्परता से जवाब दिया आपके पिताजी, और कौन?
विशाल सोच में पड़ गया कि मेरी पत्नी माताजी,मैं भाई साहब और मेरे पिताजी अंकल। वाह।
लेकिन ये नए रिश्ते यहीं पूर्ण नहीं हुए इससे आगे भी बनते चले गए।
विशाल की मां भी बातचीत सुन दरवाजे पर आ गई तो उन में से एक बुजुर्ग ने अपना मुंह खोला-मां सा वोट म्हाने दीज्यौ।
एक साठ साले बुजुर्ग ने तो सारा दिमाग ही लगा दिया होगा जो बोल पड़ा दादीजी वोट म्हानै दीज्यो। विशाल की माँ ने गौर से ताका बोली-थारै जिता बड़ा बड़ा म्हारा पोता वोट मांगण नै आया है तो वोट तो जरूर देस्यां।
विशाल ने घूंघट में खड़ी पत्नी से धीमे से कहा-अरे भागवान,अब अंदर जाणे में भलाई है। इंयां को भरोसो कोनी कोई घूंघट में कोई दादी मां कह बैठेलो।
वार्ड में एक सत्तर साल के प्रत्याशी ने वोट मांगते जो कहा उस संबोधन ने तो सिटीपिट्टी गुम करदी।
वह बुड्ढा आया और बोला, थारा अंतिम दर्शन करण आयो हूं। वोट मनैं जरूर दीज्यो।
विशाल बोला, बाबाजी, अंतिम दर्शन तो मर जावै जिकै रा होवै। म्हारे घर में तो सारा जीता जागता बैठ्या है।
वह बोला-अरे बेटा,मेरो मतलब ओ कोनी हो, मैं ओ कहणो चावूं हूं के मैं तो ओ अंतिम चुनाव लड़ रयो हूं। ईं वास्ते अंतिम दर्शन करण आयो हूं। मेरी भावनावां नै समझ।
सत्तर साल की एक महिला को तिकड़म से पार्टी का टिकट दिला दिया गया। चयन समिति के सदस्यों व पर्यवेक्षक से कहा गया कि इसका तो यह आखिरी चुनाव है। इसके बाद इसे कब टिकट मिलेगी। पार्टी ने टिकट दे दी। अब उनके पति वोट मांगने के लिए विशाल के घर पर पहुंचे। वे बोले, देख भाई तेरी दादी ने टिकट दिला दी है। तेरो आखिरी वोट दे देई।
विशाल का मुंह खुला का खुला रह गया। वह बोला, दादाजी, मेरो आखिरी वोट को मतलब समझो हो कांई? थारो कहवणे रो मतलब ओ निकले है के वोट देवण रै बाद म्हारी मौत हो जावेगी। मतलब ओ के मैं मरण आळो हूं , और उण सूं पैलां थानै वोट जरूर दे दूं।
वे बोले, मेरो मतलब यो है के तेरी दादी को यो चुनाव आखिरी है। तूं हिंदी में मतलब ना काढ़। मेरी बात नै समझ। तेरी दादी को आखिरी चुनाव अर बिनै मिलण वाला वोट आखिरी वोट।
विशाल बोला, मैं समझ गया दादाजी। अच्छी तरह से समझ गया कि घर का दरवाजा खोलने से पहले छत पर जाकर झांक लूं कि दरवाजे पर कौन आया है।
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