रविवार, 28 जून 2020
शनिवार, 27 जून 2020
👌 तेरी बांसुरी बजेगी मौसम खुशनुमा होगा* कविता- करणीदानसिंह राजपूत.
तेरी बांसुरी बजाने को
मेरा जी करता रहता है
तूं बुलाले या मैं आऊं
यह तुझे ही सोचना है।
तेरी बांसुरी बजाने को
मेरा जी करता रहता है।
मैं आकर बांसुरी बजाऊं
इससे मुझे खुशी तो होगी
तूं मुझे बुलाकर बजवाए
उससे तुझे भी खुशी होगी।
तेरी बांसुरी बजाने को
मेरा जी करता रहता है।
मेरे बजाने से बांसुरी की
नयी गूंज नयी बहार होगी
समझ में आए तब बुलाना
वह समय मनोरम होगा।
तेरी बांसुरी बजाने को
मेरा जी करता रहता है।
यह मौसम बदलते रहना
कभी गरमी कभी बरखा
बांसुरी बजेगी तो और
खुशनुमा सुगंधित होगा।
तेरी बांसुरी बजाने को
मेरा जी करता रहता है।
०००००
काव्य शब्द:-
करणीदानसिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार,
सूरतगढ़।
94143 81356.
*******
मेरा जी करता रहता है
तूं बुलाले या मैं आऊं
यह तुझे ही सोचना है।
मेरा जी करता रहता है।
इससे मुझे खुशी तो होगी
तूं मुझे बुलाकर बजवाए
उससे तुझे भी खुशी होगी।
मेरा जी करता रहता है।
नयी गूंज नयी बहार होगी
समझ में आए तब बुलाना
वह समय मनोरम होगा।
मेरा जी करता रहता है।
कभी गरमी कभी बरखा
बांसुरी बजेगी तो और
खुशनुमा सुगंधित होगा।
मेरा जी करता रहता है।
काव्य शब्द:-
करणीदानसिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार,
सूरतगढ़।
94143 81356.
*******
शुक्रवार, 26 जून 2020
👌आपातकाल काला दिवस पर लोकतंत्र सेनानी स्व.गुरूशरण छाबड़ा की प्रतिमा पर माल्यार्पण-
*सूरतगढ़ 26 जून 2020.
लोकतंत्र सेनानी गुरूशरण छाबड़ा की प्रतिमा पर आज 26 जून को लोकतंत्र सेनानी पत्रकार करणी दान सिंह राजपूत और पत्रकार महेंद्र सिंह जाटव ( संपादक ब्लास्ट की आवाज़) ने माल्यार्पण किया।
गुरुशरण छाबड़ा के नेतृत्व में यहां सूरतगढ़ में आपातकाल लगने के दिन ही 26 जून 1975 को आम सभा हुई थी। आम सभा में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जबरदस्त विरोध किया गया था।
लोकतंत्र सेनानी गुरुशरण छाबड़ा ने बाद में प्रदर्शन करते हुए गिरफ्तारी भी दी और कई महीनों तक जेल में रहे थे। उनके नेतृत्व में चले सरकार विरोधी कार्यक्रम में 12 लोग सीआरपीसी की धाराओं और 12 लोग रासुका में जेलों में बंद किए गए थे। करणीदानसिंह राजपूत स्व.छाबड़ा के अनेक आंदोलनों और संघर्षों के साथी रहे हैं।
गुरूशरण छाबड़ा ने राजस्थान में पूर्ण शराबबंदी की मांग को लेकर आमरण अनशन करते हुए 3 नवंबर 2016 को जयपुर में प्राण त्यागे। उनके नाम पर सूरतगढ़ के राजकीय महाविद्यालय का नाम गुरूशरण छाबड़ा राजकीय महाविद्यालय किया गया है। ००
गुरुशरण छाबड़ा के नेतृत्व में यहां सूरतगढ़ में आपातकाल लगने के दिन ही 26 जून 1975 को आम सभा हुई थी। आम सभा में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जबरदस्त विरोध किया गया था।
लोकतंत्र सेनानी गुरुशरण छाबड़ा ने बाद में प्रदर्शन करते हुए गिरफ्तारी भी दी और कई महीनों तक जेल में रहे थे। उनके नेतृत्व में चले सरकार विरोधी कार्यक्रम में 12 लोग सीआरपीसी की धाराओं और 12 लोग रासुका में जेलों में बंद किए गए थे। करणीदानसिंह राजपूत स्व.छाबड़ा के अनेक आंदोलनों और संघर्षों के साथी रहे हैं।
गुरूशरण छाबड़ा ने राजस्थान में पूर्ण शराबबंदी की मांग को लेकर आमरण अनशन करते हुए 3 नवंबर 2016 को जयपुर में प्राण त्यागे। उनके नाम पर सूरतगढ़ के राजकीय महाविद्यालय का नाम गुरूशरण छाबड़ा राजकीय महाविद्यालय किया गया है। ००
गुरुवार, 25 जून 2020
जयप्रकाश नारायण अमर रहे जयघोष से लोकतंत्र सेनानियों का सम्मान
* भारतसरकार लोकतंत्र सेनानी सम्मान और सम्मान निधि व स्वतंत्रता सेनानी समान सुविधाएं प्रदान करे- करणीदानसिंह राजपूत*
सूरतगढ़ 25 जून 2020.
भारतीय जनता पार्टी सूरतगढ़ द्वारा विधायक श्री रामप्रताप कासनियां के नेतृत्व में आपातकाल दिवस पर भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता आपातकाल लोकतंत्र सेनानी 85 वर्षीय स.गुरनामसिंह कम्बोज ने की। बाबू जयप्रकाश नारायण के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पण के बाद आपातकाल 1975 के लोकतंत्र रक्षक सेनानी श्री गुरनाम सिंह, पत्रकार श्री करणीदान सिंह,श्री मुरलीधर उपाध्याय को विधायक रामप्रताप कासनिया ने मालाएं पहनाकर शाल ओढा कर सम्मानित किया।
कासनिया ने आपातकाल के बारे में बताते हुए कहा कि 25 जून, 1975 की रात को भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास के काला अध्याय को पढ़ना चाहिए। देश के लोकतंत्र पर पहरा बैठा दिया गया था।पूरा देश सड़कों पर उतरा और सरकार को जनता की चुनौती मिली।
करणीदानसिंह राजपूत व मुरलीधर उपाध्याय ने आपातकाल में संघर्ष और जेलयात्रा के बारे में संस्मरण सुनाए।
करणीदानसिंह राजपूत ने कहा कि भारतसरकार को लोकतंत्र सेनानी सम्मान,सम्मान निधि और स्वतंत्रता सेनानी समान सुविधाएं दी जाए और इसके लिए संपूर्ण भारत के लिए एक कानून बनाया जाए। सिंह ने कहा कि स्वतंत्रता दिवस तक यह कार्य करने के मांगपत्र और ज्ञापन देशभर से सेनानियों और संगठनों द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी और गृहमंत्री अमितशाह को भेजे गए हैं तथा यह प्रक्रिया अभी चल रही है।
सिंह ने कहा कि कांग्रेस ने तो स्वतंत्रता आंदोलन के लोगों को अपना मानते हुए स्वतंत्रता सेनानी घोषित करने में तुरंत पहल की अब भाजपा ग्रुप सरकार को लोकतंत्र सेनानियों को लोकतंत्र सेनानी सम्मान प्रदान करने में देरी नहीं करनी चाहिए।
इस अवसर पर नगरमंडल अध्यक्ष सुरेश मिश्रा,जिला उपाध्यक्ष शरणपालसिंह मान व प्रमुख कार्यकर्ता उपस्थित थे। मंडल सचिव सुभाष गुप्ता ने आपातकाल पर अनेक विवरण देते हुए कार्यक्रम का संचालन किया। सभी ने आपातकाल का विरोध करते हुए बांहों पर काले रिबन बांधे।
भाजपा प्रदेश नेतृत्व के निर्देशानुसार यह 25 जून को आपातकाल कार्यक्रम किया गया। राष्ट्रगान और भारतमाता के जयघोष के साथ कार्यक्रम सम्पन्न किया गया।**
कासनिया ने आपातकाल के बारे में बताते हुए कहा कि 25 जून, 1975 की रात को भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास के काला अध्याय को पढ़ना चाहिए। देश के लोकतंत्र पर पहरा बैठा दिया गया था।पूरा देश सड़कों पर उतरा और सरकार को जनता की चुनौती मिली।
करणीदानसिंह राजपूत व मुरलीधर उपाध्याय ने आपातकाल में संघर्ष और जेलयात्रा के बारे में संस्मरण सुनाए।
करणीदानसिंह राजपूत ने कहा कि भारतसरकार को लोकतंत्र सेनानी सम्मान,सम्मान निधि और स्वतंत्रता सेनानी समान सुविधाएं दी जाए और इसके लिए संपूर्ण भारत के लिए एक कानून बनाया जाए। सिंह ने कहा कि स्वतंत्रता दिवस तक यह कार्य करने के मांगपत्र और ज्ञापन देशभर से सेनानियों और संगठनों द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी और गृहमंत्री अमितशाह को भेजे गए हैं तथा यह प्रक्रिया अभी चल रही है।
सिंह ने कहा कि कांग्रेस ने तो स्वतंत्रता आंदोलन के लोगों को अपना मानते हुए स्वतंत्रता सेनानी घोषित करने में तुरंत पहल की अब भाजपा ग्रुप सरकार को लोकतंत्र सेनानियों को लोकतंत्र सेनानी सम्मान प्रदान करने में देरी नहीं करनी चाहिए।
इस अवसर पर नगरमंडल अध्यक्ष सुरेश मिश्रा,जिला उपाध्यक्ष शरणपालसिंह मान व प्रमुख कार्यकर्ता उपस्थित थे। मंडल सचिव सुभाष गुप्ता ने आपातकाल पर अनेक विवरण देते हुए कार्यक्रम का संचालन किया। सभी ने आपातकाल का विरोध करते हुए बांहों पर काले रिबन बांधे।
भाजपा प्रदेश नेतृत्व के निर्देशानुसार यह 25 जून को आपातकाल कार्यक्रम किया गया। राष्ट्रगान और भारतमाता के जयघोष के साथ कार्यक्रम सम्पन्न किया गया।**
मंगलवार, 16 जून 2020
हिन्दु देवी देवताओं में अपार शक्ति चमत्कार:बाबाओं की पूजा भेड़चाल
👌हिन्दु देवी देवताओं में बाबाओं से ज्यादा शक्ति है ज्यादा चमत्कार है तो
फिर किसी भी हिन्दु मंदिर में हिन्दु देवी देवताओं के साथ किसी बाबा की प्रतिमा की ना तो जरूरत है और न उनकी पूजा पाठ की।
विशेष टिप्पणी- करणीदानसिंह राजपूत
अपार अतुलनीय बलशाली हनुमानजी ने बाल्यकाल में फल जान कर सूरज को मुंह में डाल लिया था। युद्ध में लक्ष्मण के मूच्र्छित होन पर उनकी मूच्र्छा दूर करने को संजीवनी बूटी के लिए पर्वत ही उखाड़ लाए। ऐसे बलशाली हनुमान के मंदिरों में किसी बाबा की प्रतिमा लगाना और पूजना कि उसकी पूजा अर्चना से बड़े बड़े लाभ मिलते हैं, या लाभ हो सकते हैं। जब आपके पास में शक्तिशाली हनुमान हैं तब उनसे किसी भी प्रकार से शक्ति में रती भर भी मुकाबला नहीं कर सकने वाले बाबाओं की पूजा आराधना की जरूरत कहां है? मेरे विचार में तो किसी भी बाबा में हनुमान जी जितनी शक्ति तो नहीं बताई गई और न किसी बाबा के चमत्कार में प्रगट हुई। जब ऐसी स्थिति है तब हनुमान मंदिर में किसी बाबा की प्रतिमा लगाना और पूजा करना और करवाना केवल भेड़चाल है। सुने सुनाए चमत्कार के पीछे भाग दौड़ करना और कुछ लोगों के कहने सुनने मात्र से किसी बाबा के पीछे लग जाना। यही तो भेड़चाल है।
जब अपार शक्तिशाली और अपार चमत्कारी आपके पास में है तो फिर मामूली शक्ति वाले के पीछे दौडऩे की जरूरत ही नहीं होनी चाहिए।
एक हनुमान तो उदाहरण मात्र है।
हिन्दु देवी देवताओं में बाबाओं से ज्यादा शक्ति है ज्यादा चमत्कार है तो फिर किसी भी हिन्दु मंदिर में हिन्दु देवी देवताओं के साथ बाबाओं की प्रतिमाओं की ना तो जरूरत है और न उनकी पूजा पाठ की। वैसे भी किसी अन्य धर्म मुस्लिम ईसाई व अन्य को मानने वाले बाबाओं की प्रतिमाओं को तो हिन्दु मंदिरों में लगाया ही नहीं जाना चाहिए। पूजा आराधना पद्धतियां अलग अलग होती है तो उनसे अवरोध तो पैदा होता ही है।
कोई किसी बाबा की पूजा पाठ आराधना करता है तो अलग से कहीं भी प्रतिमा लगा सकता है,लेकिन वह हिन्दु मंदिरों में लगाने को तत्पर क्यों रहता है?
बाबा का पूजा स्थल अलग हो और प्रतिमा अलग स्थान पर लगाई हो तो ना किसी का आपसी विवाद ना आलोचना ना कोई झगड़ा फसाद।
अगर पहले कहीं हिन्दु मंदिरों में किसी बाबा की प्रतिमा लगा दी गई है तो भी बाबा के अनुयायी भक्त दूसरे स्थान पर लगा कर विवाद की उत्पति को ही रोक सकते हैं।
पुन एक बार कहना चाहता हूं कि अपार शक्तिशाली हिन्दु देवी देवताओं को मानने वाले को किसी बाबा के फेरे में पडऩे की आवश्यकता ही नहीं है।
जहां तक बाबाओं की प्रतिमाओं की बात है और किसी भी बाबा की प्रतिमा किसी भी मंदिर में पूर्व में किसी उत्सुकता में भुलावे में लगादी हुई हो तो हटनी ही चाहिए।
इसके अलावा देव प्रतिमाओं के पास में व उनके चरणों के पास में कथा वाचकों साधु संतों की मंढी हुई तस्वीरें और कैलेंडर आदि लगा दिए जाते हैं। किसी प्रभावशाली दानदाता ने भेंट कर दी और पुजारी ने लगादी। इनसे भी ध्यान बंटता है। ऐसी हर तस्वीर को भी हटा दिया जाना चाहिए।
नोट- किसी बाबा विशेष से जोड़ कर देखने की जरूरत नहीं कोई भी बाबा हो उसकी प्रतिमा मंदिर में लगनी ही नहीं चाहिए।
*****
15 जुलाई 2014
अपडेट 16 जून 2020.
विशेष टिप्पणी- करणीदानसिंह राजपूत
अपार अतुलनीय बलशाली हनुमानजी ने बाल्यकाल में फल जान कर सूरज को मुंह में डाल लिया था। युद्ध में लक्ष्मण के मूच्र्छित होन पर उनकी मूच्र्छा दूर करने को संजीवनी बूटी के लिए पर्वत ही उखाड़ लाए। ऐसे बलशाली हनुमान के मंदिरों में किसी बाबा की प्रतिमा लगाना और पूजना कि उसकी पूजा अर्चना से बड़े बड़े लाभ मिलते हैं, या लाभ हो सकते हैं। जब आपके पास में शक्तिशाली हनुमान हैं तब उनसे किसी भी प्रकार से शक्ति में रती भर भी मुकाबला नहीं कर सकने वाले बाबाओं की पूजा आराधना की जरूरत कहां है? मेरे विचार में तो किसी भी बाबा में हनुमान जी जितनी शक्ति तो नहीं बताई गई और न किसी बाबा के चमत्कार में प्रगट हुई। जब ऐसी स्थिति है तब हनुमान मंदिर में किसी बाबा की प्रतिमा लगाना और पूजा करना और करवाना केवल भेड़चाल है। सुने सुनाए चमत्कार के पीछे भाग दौड़ करना और कुछ लोगों के कहने सुनने मात्र से किसी बाबा के पीछे लग जाना। यही तो भेड़चाल है।
जब अपार शक्तिशाली और अपार चमत्कारी आपके पास में है तो फिर मामूली शक्ति वाले के पीछे दौडऩे की जरूरत ही नहीं होनी चाहिए।
एक हनुमान तो उदाहरण मात्र है।
हिन्दु देवी देवताओं में बाबाओं से ज्यादा शक्ति है ज्यादा चमत्कार है तो फिर किसी भी हिन्दु मंदिर में हिन्दु देवी देवताओं के साथ बाबाओं की प्रतिमाओं की ना तो जरूरत है और न उनकी पूजा पाठ की। वैसे भी किसी अन्य धर्म मुस्लिम ईसाई व अन्य को मानने वाले बाबाओं की प्रतिमाओं को तो हिन्दु मंदिरों में लगाया ही नहीं जाना चाहिए। पूजा आराधना पद्धतियां अलग अलग होती है तो उनसे अवरोध तो पैदा होता ही है।
कोई किसी बाबा की पूजा पाठ आराधना करता है तो अलग से कहीं भी प्रतिमा लगा सकता है,लेकिन वह हिन्दु मंदिरों में लगाने को तत्पर क्यों रहता है?
बाबा का पूजा स्थल अलग हो और प्रतिमा अलग स्थान पर लगाई हो तो ना किसी का आपसी विवाद ना आलोचना ना कोई झगड़ा फसाद।
अगर पहले कहीं हिन्दु मंदिरों में किसी बाबा की प्रतिमा लगा दी गई है तो भी बाबा के अनुयायी भक्त दूसरे स्थान पर लगा कर विवाद की उत्पति को ही रोक सकते हैं।
पुन एक बार कहना चाहता हूं कि अपार शक्तिशाली हिन्दु देवी देवताओं को मानने वाले को किसी बाबा के फेरे में पडऩे की आवश्यकता ही नहीं है।
जहां तक बाबाओं की प्रतिमाओं की बात है और किसी भी बाबा की प्रतिमा किसी भी मंदिर में पूर्व में किसी उत्सुकता में भुलावे में लगादी हुई हो तो हटनी ही चाहिए।
इसके अलावा देव प्रतिमाओं के पास में व उनके चरणों के पास में कथा वाचकों साधु संतों की मंढी हुई तस्वीरें और कैलेंडर आदि लगा दिए जाते हैं। किसी प्रभावशाली दानदाता ने भेंट कर दी और पुजारी ने लगादी। इनसे भी ध्यान बंटता है। ऐसी हर तस्वीर को भी हटा दिया जाना चाहिए।
नोट- किसी बाबा विशेष से जोड़ कर देखने की जरूरत नहीं कोई भी बाबा हो उसकी प्रतिमा मंदिर में लगनी ही नहीं चाहिए।
*****
15 जुलाई 2014
अपडेट 16 जून 2020.
शुक्रवार, 12 जून 2020
भाजपा नेता पूर्व विधायक राजेंद्र भादू व दो भाईयों के सीज शापिंग काम्पलेक्स की पुनः नापजोख .रिपोर्ट डीडीआर को पेश होगी.
* करणीदान सिंह राजपूत *
सूरतगढ़ 12 जून 2020.
भाजपा नेता पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह भादू और उनके दो भाइयों देवेंद्र व रविंद्र का शहर के मुख्य बाजार में निर्माणाधीन विशाल कटला (शॉपिंग कांप्लेक्स) का आज पुनः नापजोख किया गया। नगर परिषद श्रीगंगानगर के नगर नियोजक सहायक फरसा राम बिश्नोई ने नापजोख किया। नगर पालिका के एईएन सुमित माथुर और भूमि शाखा के लिपिक रामप्रकाश भी नाप जोख कराने में शामिल थे।
नगरपालिका ने यह कटला छ माह पहले 13 दिसंबर 2019 को सीज किया था जिसमें 6 माह तक की अवधि नोटिसों पर लिखी थी।
सील करते वक्त तीनों भाईयों के नाम से अलग अलग नोटिस कटले पर चिपकाए गए थे।
नगरपालिका ने यह प्रकरण। स्वायत्त शासन के बीकानेर स्थित उपनिदेशक को पेश कर दिया।
उपनिदेशक के समक्ष राजेंद्रसिंह भादू व दोनों भाईयों की ओर से अपना पक्ष पेश किया गया जिसमें पालिका सूरतगढ़ के बजाय किसी अन्य एजेंसी से नाप आदि करवाने की मांग की गई थी।
उपनिदेशक ने कुछ दिन पहले नगरपालिका को अन्य से नापजोख कराने का निर्देश दिया। इस निर्देश पर पहले यूआईटी श्रीगंगानगर को लिखा गया।वहां से इन्कार के बाद यह कार्य नगर परिषद श्रीगंगानगर से करवाया गया है। यह रिपोर्ट उपनिदेशक को सौंपी जाएगी। इसके बाद उपनिदेशक निर्णय करेंगे।
नगरपालिका के तत्कालीन ईओ लालचंद सांखला ने निर्माण स्वीकृति के अनुसार निर्माण नहीं करने का आरोप लगाते हुए कटले को सीज किया था। शिकायतें थी कि तीनों भाईयों की तीन अलग अलग निर्माण स्वीकृति थी और अलग अलग तीन निर्माण करने के बजाय एकल विशाल निर्माण कर लिया गया। कटला लगभग पूर्णता के अंतिम चरण में था तब सीलमोहर लगा कर सीज कर दिया गया था। विशाल कटले के कुल तीन तल हैं। दो तल ऊपर और एक भूतल के नीचे है।
%% पाठकों की जानकारी ताजा करने के लिए सीज के समय का समाचार यहां दिया जा रहा है।%%
सूरतगढ़ 13 दिसंबर 2019.
नगर पालिका सूरतगढ़ की ओर से आज दोपहर बाद पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह भादू और उनके दो भाइयों देवेंद्र और रविंद्र द्वारा बनाया जा रहा कटला सील मोहर के साथ 6 माह के लिए सीज कर दिया गया।
अधिशासी अधिकारी लालचंद सांखला के नेतृत्व में नगरपालिका अधिकारियों व कर्मचारियों का बड़ा दल आज कार्यवाही के लिए पहुंचा।
अधिशासी अधिकारी एवं प्राधिकृत अधिकारी लालचंद सांखला के निर्देशन में एक लंबी रस्सी ताले लगाए जाने वाले स्थानों को लपेटते हुई सभी सटरों के साथ बांधी गई और बाद में चपड़ी मोहर करके और जब्ती की कार्यवाही की गई।
नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी की ओर से तीनों भाइयों के नाम से निर्माणाधीन कटले पर नोटिस चिपकाए गए हैं। उनमें लिखा गया है कि मानचित्र के अनुसार निर्माण नहीं हुआ।
यह जानते हुए सीज की यह कार्यवाही नगरपालिका की ओर से की गई है। नगरपालिका की कार्रवाई के समय कार्यवाही की रिकॉर्डिंग और फोटोग्राफी के लिए समाचार पत्रों से चैनल से जुड़े हुए पत्रकार और कैमरामैन मौके पर पहुंच गए। लालचंद सांखला के बयान भी लिए गए जिसमें उन्होंने कहा कि सभी कार्यवाही नियमानुसार की गई है। पूर्व में नोटिस दिये गये और अवैध निर्माण रोका नहीं गया तब नगरपालिका ने नियमानुसार कार्रवाई की है।
कार्रवाई के समय उत्सुकता से भारी भीड़ इकट्ठे हो गई थी जो काफी देर तक वहां जमी भी रही।
भादू सूरतगढ़ की राजनीति में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं इसलिए पालिका की इस कार्यवाही पर जनता की ओर से आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा था,और कहां जा रहा था कि समय समय की बात है जो पालिका ने इतने बड़े नेता पर हाथ डाला है। राजेंद्र सिंह भादू 2013 से 18 तक सूरतगढ़ से भाजपा टिकट पर जीते विधायक रहे हैं। भादू राज में नगरपालिका में भाजपा का बोर्ड रहा व काजल छाबड़ा अध्यक्ष रहीं।अब कांग्रेस का बोर्ड है तथा 2 दिसंबर को ही ओमप्रकाश कालवा ने अध्यक्ष पद पर कार्य शुरू किया है।
समझा जा रहा है कि राजेंद्र सिंह भादू व भाइयों की ओर से नगरपालिका की कार्यवाही के बाद अब अदालत का सहारा लिया जाएगा।**
सूरतगढ़ 12 जून 2020.
भाजपा नेता पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह भादू और उनके दो भाइयों देवेंद्र व रविंद्र का शहर के मुख्य बाजार में निर्माणाधीन विशाल कटला (शॉपिंग कांप्लेक्स) का आज पुनः नापजोख किया गया। नगर परिषद श्रीगंगानगर के नगर नियोजक सहायक फरसा राम बिश्नोई ने नापजोख किया। नगर पालिका के एईएन सुमित माथुर और भूमि शाखा के लिपिक रामप्रकाश भी नाप जोख कराने में शामिल थे।
सील करते वक्त तीनों भाईयों के नाम से अलग अलग नोटिस कटले पर चिपकाए गए थे।
नगरपालिका ने यह प्रकरण। स्वायत्त शासन के बीकानेर स्थित उपनिदेशक को पेश कर दिया।
उपनिदेशक ने कुछ दिन पहले नगरपालिका को अन्य से नापजोख कराने का निर्देश दिया। इस निर्देश पर पहले यूआईटी श्रीगंगानगर को लिखा गया।वहां से इन्कार के बाद यह कार्य नगर परिषद श्रीगंगानगर से करवाया गया है। यह रिपोर्ट उपनिदेशक को सौंपी जाएगी। इसके बाद उपनिदेशक निर्णय करेंगे।
नगरपालिका के तत्कालीन ईओ लालचंद सांखला ने निर्माण स्वीकृति के अनुसार निर्माण नहीं करने का आरोप लगाते हुए कटले को सीज किया था। शिकायतें थी कि तीनों भाईयों की तीन अलग अलग निर्माण स्वीकृति थी और अलग अलग तीन निर्माण करने के बजाय एकल विशाल निर्माण कर लिया गया। कटला लगभग पूर्णता के अंतिम चरण में था तब सीलमोहर लगा कर सीज कर दिया गया था। विशाल कटले के कुल तीन तल हैं। दो तल ऊपर और एक भूतल के नीचे है।
समझा जा रहा है कि राजेंद्र सिंह भादू व भाइयों की ओर से नगरपालिका की कार्यवाही के बाद अब अदालत का सहारा लिया जाएगा।**
मंगलवार, 9 जून 2020
👌 लोकतंत्र सेनानी पूर्व विधायक स्व. गुरूशरण छाबड़ा की जयंती 9 जून को प्रतिमा पर माल्यार्पण.👌
* करणी दान सिंह राजपूत *
सूरतगढ़ 9 जून 2020.
लोकतंत्र सेनानी पूर्व विधायक शराबबंदी आमरण अनशन में प्राण त्यागने वाले गुरुशरण छाबड़ा की जयंती 9 जून 2020 को सूरतगढ़ में उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया।
छाबड़ा जी के साथ आंदोलनों और श्रीगंगानगर जेल साथी करणीदानसिंह राजपूत,मुरलीधर उपाध्याय, रासुका बंदी सुगनपुरी ने भाग लिया।
आंदोलनों में शामिल रहे डा.टी.एल.अरोड़ा, बलदेवराज तनेजा,बलदेव छाबड़ा,नारी उत्थान केन्द्र की अध्यक्ष श्रीमती राजेश सिडाना,मुरलीधर पारीक बाबूसिंह खीची, ,पूरण कवातड़ा,शहर के मान्य योगेश स्वामी( विविधा) इंजी.रमेश माथुर,आकाशदीप बंसल,रामेश्वरदयाल तिवाड़ी ने भाग लिया।
प्रतिमा स्थल पर पेड़ों के पास ही एक पौधा लगाया गया।
गुरुशरण छाबड़ा के साथ विभिन्न आंदोलनों में संघर्षों में साथ रहने वाले साथी गण और शराबबंदी विचारधारा के मानने वाले एकत्रित हुए छाबड़ा जी के कार्य संस्मरण आदि पर विचार रखे। लोकडाउन के कारण बहुत नजदीकी लोगों ने सोशलडिस्टेंस को अपनाते हुए भाग लिया।**
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लोकतंत्र सेनानी पूर्व विधायक शराबबंदी आमरण अनशन में प्राण त्यागने वाले गुरुशरण छाबड़ा की जयंती 9 जून 2020 को सूरतगढ़ में उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया।
छाबड़ा जी के साथ आंदोलनों और श्रीगंगानगर जेल साथी करणीदानसिंह राजपूत,मुरलीधर उपाध्याय, रासुका बंदी सुगनपुरी ने भाग लिया।
प्रतिमा स्थल पर पेड़ों के पास ही एक पौधा लगाया गया।
गुरुशरण छाबड़ा के साथ विभिन्न आंदोलनों में संघर्षों में साथ रहने वाले साथी गण और शराबबंदी विचारधारा के मानने वाले एकत्रित हुए छाबड़ा जी के कार्य संस्मरण आदि पर विचार रखे। लोकडाउन के कारण बहुत नजदीकी लोगों ने सोशलडिस्टेंस को अपनाते हुए भाग लिया।**
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रविवार, 7 जून 2020
मोदी जी हम लोकतंत्र सेनानी आपके क्या लगते हैं? हम लोकतंत्र सेनानी कौन हैं? * करणीदानसिंह राजपूत *
आपने लोकसभा में 26 जून 2019 के दिन पर भाषण दिया था कि आपातकाल में जिन लोगों ने कुर्बानियां दी जिसके कारण लोकतंत्र बच सका। ऐसे कुर्बानियां देने वालों का सम्मान किया जाना चाहिए।
आप यह भाषण किसको और किस लिए दे रहे थे?
लोकसभा में बोले गये भाषण का एक एक शब्द स्वयं के लिए और प्रधानमंत्री बोले तो संपूर्ण देश के लिए होता है। आपने यूं ही गपशप में तो यह भाषण नहीं दिया। पूरी जानकारी रखते हुए ही दिया।
आपने बोला तो निश्चित मानें कि आपातकाल
में लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए कुर्बानियां देने वालों ने सच्च में बहुत कुछ किया था और उनका सम्मान किया जाना चाहिए।
आपने बोला तो सम्मान देने का सोचा भी होगा?
देश का प्रधानमंत्री सोचे तो वह सोच छोटी तो हो नहीं सकती। यह भी नहीं हो सकता कि लोकसभा में बोले और भूल गए।ऐसा कोई कैसे सोच सकता है कि प्रधानमंत्री बोल कर भूल गए हों।
आपने सोचा भी होगा कि लोकतंत्र की रक्षा करने वालों का सम्मान किस तरह से किया जा सकता है? यह भी मालूम किया होगा कि लोकतंत्र सेनानी कौन ही,कहां हैं,किस तरह से उनका जीवन है? आपसे विशेषकर देश के प्रधानमंत्री से तो कुछ भी छुपा हुआ नहीं रह सकता? आपने सम्मान का भी सोचा ही होगा कि किस तरह से सम्मानित किया जाए कि जो इतिहास में भी लिखा जाए और आने वाली
पीढियां उसे पढ सके। लोगों को और विदेश में भी लोग जानें कि भारत में देशभक्त लोगों की बड़ी पूछ होती है। देश का प्रधानमंत्री भी उनकी खोजखबर रखता है। देश के प्रधानमंत्री के दिल में लोकतंत्र रक्षकों के प्रति स्थान है।
आपके लोकसभा में दिए भाषण से मैं यही मानता हूं।
आपने मन में सोचते हैं और वही संकल्प लेकर कार्य करते हैं। लोकतंत्र सेनानियों का सम्मान कैसा होगा?कब प्रदान करेंगे सम्मान?
यह घोषणा 26 जून 2020 को करने का ही कहदें ताकि उस काले दिन की कालिमा से छुटकारा और सेनानियों के दिलों में आपका आदर्श स्थापित हो सके।
यदि आप सम्मान प्रदान करने का मन बना चुके हैं या मन बनाने वाले हैं तो आपकी सोच और संकल्प को कोई भी किसी भी शक्ति से रोक नहीं सकता। आपके नजदीकी और किसी की रोक से आप रूक भी नहीं सकते।
आप लोकतंत्र सेनानियों सम्मान करने के प्रति जो भाव रखते हैं वे प्रगट करें ताकि कोई भी यह नहीं पूछे कि हम लोकतंत्र रक्षा सेनानी आपके क्या लगते हैं और हम कौन हैं?
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सामयिक लेख- दि .7 जून 2020.
आप पत्रकार किसी भी अखबार में और किसी भी भाषा में अनुवाद कर प्रकाशित कर सकते हैं। संवाददाता भेज सकते हैं। कोई भी पाठक
सोशल मीडिया पर,किसी भी ग्रुप में और जानकारों को भेज सकते हैं।
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आप यह भाषण किसको और किस लिए दे रहे थे?
लोकसभा में बोले गये भाषण का एक एक शब्द स्वयं के लिए और प्रधानमंत्री बोले तो संपूर्ण देश के लिए होता है। आपने यूं ही गपशप में तो यह भाषण नहीं दिया। पूरी जानकारी रखते हुए ही दिया।
आपने बोला तो निश्चित मानें कि आपातकाल
में लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए कुर्बानियां देने वालों ने सच्च में बहुत कुछ किया था और उनका सम्मान किया जाना चाहिए।
आपने बोला तो सम्मान देने का सोचा भी होगा?
देश का प्रधानमंत्री सोचे तो वह सोच छोटी तो हो नहीं सकती। यह भी नहीं हो सकता कि लोकसभा में बोले और भूल गए।ऐसा कोई कैसे सोच सकता है कि प्रधानमंत्री बोल कर भूल गए हों।
आपने सोचा भी होगा कि लोकतंत्र की रक्षा करने वालों का सम्मान किस तरह से किया जा सकता है? यह भी मालूम किया होगा कि लोकतंत्र सेनानी कौन ही,कहां हैं,किस तरह से उनका जीवन है? आपसे विशेषकर देश के प्रधानमंत्री से तो कुछ भी छुपा हुआ नहीं रह सकता? आपने सम्मान का भी सोचा ही होगा कि किस तरह से सम्मानित किया जाए कि जो इतिहास में भी लिखा जाए और आने वाली
पीढियां उसे पढ सके। लोगों को और विदेश में भी लोग जानें कि भारत में देशभक्त लोगों की बड़ी पूछ होती है। देश का प्रधानमंत्री भी उनकी खोजखबर रखता है। देश के प्रधानमंत्री के दिल में लोकतंत्र रक्षकों के प्रति स्थान है।
आपके लोकसभा में दिए भाषण से मैं यही मानता हूं।
आपने मन में सोचते हैं और वही संकल्प लेकर कार्य करते हैं। लोकतंत्र सेनानियों का सम्मान कैसा होगा?कब प्रदान करेंगे सम्मान?
यह घोषणा 26 जून 2020 को करने का ही कहदें ताकि उस काले दिन की कालिमा से छुटकारा और सेनानियों के दिलों में आपका आदर्श स्थापित हो सके।
यदि आप सम्मान प्रदान करने का मन बना चुके हैं या मन बनाने वाले हैं तो आपकी सोच और संकल्प को कोई भी किसी भी शक्ति से रोक नहीं सकता। आपके नजदीकी और किसी की रोक से आप रूक भी नहीं सकते।
आप लोकतंत्र सेनानियों सम्मान करने के प्रति जो भाव रखते हैं वे प्रगट करें ताकि कोई भी यह नहीं पूछे कि हम लोकतंत्र रक्षा सेनानी आपके क्या लगते हैं और हम कौन हैं?
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सामयिक लेख- दि .7 जून 2020.
आप पत्रकार किसी भी अखबार में और किसी भी भाषा में अनुवाद कर प्रकाशित कर सकते हैं। संवाददाता भेज सकते हैं। कोई भी पाठक
सोशल मीडिया पर,किसी भी ग्रुप में और जानकारों को भेज सकते हैं।
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देश कुर्बानी मांग रहा था।हम देश के साथ खड़े थे।आज लोकतंत्र रक्षकों के साथ कौन खड़ा है? - करणीदानसिंह राजपूत.
👌 देश की स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र के बीच में आपातकाल 1975-77 में लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए हम देश के साथ खड़े थे। आज हमारे साथ कौन खड़ा ?*
देश कुर्बानी मांग रहा था। सोचने का वक्त नहीं था। जो जिस हालत में था अपने मां बाप,परिवार रोजी रोटी को छोड़ कर लोकतंत्र रक्षा के लिए घरों से निकल पड़े। बहुत कष्टदायक काल रहा।लाखों लोग जेलों में बंद किए गए और पीछे घर घर में असीमित कष्टों में परिवार।
सर पर मौत लेकर अपने परिवारों को संकट में छोड़ कर देश के साथ खड़े होने वालों के कारण देश में लोकतंत्र बच गया।संविधान बच गया।
लोकतंत्र रक्षकों की कुर्बानियों से 21 मार्च 1977 को आपातकाल हटा दिया गया। जेलों के दरवाजे खुले।
लोकतंत्र रक्षकों का सब कुछ स्वाहा हो गया था। आगे का जीवन आजतक साल दर साल कष्टों में बीतते 43 साल बीत गए।
लाखों लोगों में से अब करीब 30,000 लोग बचे हैं जो भयानक कष्टों और पीड़ाओं में एक के बाद एक मौत का शिकार होते जा रहे हैं।
मोदी है तो मुमकिन है तो फिर 6 साल से हमारे ज्ञापनों पर न कोई कार्यवाही और न कोई उत्तर।
हमारे ही कारण सत्ता में आए नेताओं द्वारा हमारी तिल तिल भयानक कष्टों से होती जा रही मौतों पर गहन चुप्पी के साथ कैसे चला रहे हैं राज!
26 जून 1975 को लगाए गए आपातकाल में हम लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए सब कुछ छोड़कर देश के साथ खड़े थे,उन्हें वृद्धावस्था में लोकतंत्र सेनानी सम्मानऔर सम्मान निधि प्रदान करने के बजाय उनकी मृत्यु की प्रतीक्षा की जा रही है।
लोकतंत्र रक्षा के लिए हम देश के साथ खड़े थे।
आज विकट हालात में लोकतंत्र रक्षकों के साथ कौन खड़ा है?
आज लोकतंत्र रक्षकों की कुर्बानियों के कारण राज कर रहे नेताओं से कल प्रश्न होंगे तब कोई उत्तर नहीं होगा।
'मोदी है तो मुमकिन है" तो मोदी के होते किसी पत्र का उत्तर तक क्यों नहीं है? लोकतंत्र रक्षकों को सम्मान पेंशन आदि पर कोई कार्यवाही नहीं। एक एक कर मर रहे हैं। सभी के मर जाने की प्रतीक्षा।
कभी कभी यह आवाज भी पैदा की जाती है कि आपातकाल में कुर्बानियां दी थी तो वह सम्मान और पेंशन के लिए तो नहीं दी थी। आज 70-80-90 साल की वृद्धावस्था में सम्मान और पेंशन देने पर निर्णय नहीं करके
एक प्रकार से लांछित करने की नीति तो कभी नहीं दिया गया था। यह नीति तो हमारी मिट्टी में भी नहीं थी।
मोदी है तो मुमकिन है की नीति ही रहे तो पिछले 6 सालों में रही गलती को भूल कह कर सुधार लेना लोकतांत्रिक मोदी सरकार के लिए भविष्य के राज की आशा के लिए अच्छा कदम होगा।
आपातकाल में देश के साथ हम खड़े थे और आज वृद्धावस्था में लोकतंत्र रक्षकों के साथ कौन खड़ा है? तो दिल्ली और देश के हर कोने से एक ही आवाज आनी चाहिए कि लोकतंत्र रक्षकों के साथ मोदी खड़ा है,मोदी की सरकार खड़ी है।**
दि.6 जून 2020.
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करणीदानसिंह राजपूत,
आपातकाल बंदी,
पत्रकार,
सूरतगढ़( राजस्थान)
94143 81356.
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सर पर मौत लेकर अपने परिवारों को संकट में छोड़ कर देश के साथ खड़े होने वालों के कारण देश में लोकतंत्र बच गया।संविधान बच गया।
लोकतंत्र रक्षकों की कुर्बानियों से 21 मार्च 1977 को आपातकाल हटा दिया गया। जेलों के दरवाजे खुले।
लोकतंत्र रक्षकों का सब कुछ स्वाहा हो गया था। आगे का जीवन आजतक साल दर साल कष्टों में बीतते 43 साल बीत गए।
लाखों लोगों में से अब करीब 30,000 लोग बचे हैं जो भयानक कष्टों और पीड़ाओं में एक के बाद एक मौत का शिकार होते जा रहे हैं।
मोदी है तो मुमकिन है तो फिर 6 साल से हमारे ज्ञापनों पर न कोई कार्यवाही और न कोई उत्तर।
हमारे ही कारण सत्ता में आए नेताओं द्वारा हमारी तिल तिल भयानक कष्टों से होती जा रही मौतों पर गहन चुप्पी के साथ कैसे चला रहे हैं राज!
26 जून 1975 को लगाए गए आपातकाल में हम लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए सब कुछ छोड़कर देश के साथ खड़े थे,उन्हें वृद्धावस्था में लोकतंत्र सेनानी सम्मानऔर सम्मान निधि प्रदान करने के बजाय उनकी मृत्यु की प्रतीक्षा की जा रही है।
लोकतंत्र रक्षा के लिए हम देश के साथ खड़े थे।
आज विकट हालात में लोकतंत्र रक्षकों के साथ कौन खड़ा है?
आज लोकतंत्र रक्षकों की कुर्बानियों के कारण राज कर रहे नेताओं से कल प्रश्न होंगे तब कोई उत्तर नहीं होगा।
'मोदी है तो मुमकिन है" तो मोदी के होते किसी पत्र का उत्तर तक क्यों नहीं है? लोकतंत्र रक्षकों को सम्मान पेंशन आदि पर कोई कार्यवाही नहीं। एक एक कर मर रहे हैं। सभी के मर जाने की प्रतीक्षा।
कभी कभी यह आवाज भी पैदा की जाती है कि आपातकाल में कुर्बानियां दी थी तो वह सम्मान और पेंशन के लिए तो नहीं दी थी। आज 70-80-90 साल की वृद्धावस्था में सम्मान और पेंशन देने पर निर्णय नहीं करके
एक प्रकार से लांछित करने की नीति तो कभी नहीं दिया गया था। यह नीति तो हमारी मिट्टी में भी नहीं थी।
मोदी है तो मुमकिन है की नीति ही रहे तो पिछले 6 सालों में रही गलती को भूल कह कर सुधार लेना लोकतांत्रिक मोदी सरकार के लिए भविष्य के राज की आशा के लिए अच्छा कदम होगा।
आपातकाल में देश के साथ हम खड़े थे और आज वृद्धावस्था में लोकतंत्र रक्षकों के साथ कौन खड़ा है? तो दिल्ली और देश के हर कोने से एक ही आवाज आनी चाहिए कि लोकतंत्र रक्षकों के साथ मोदी खड़ा है,मोदी की सरकार खड़ी है।**
दि.6 जून 2020.
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करणीदानसिंह राजपूत,
आपातकाल बंदी,
पत्रकार,
सूरतगढ़( राजस्थान)
94143 81356.
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