गुरुवार, 1 नवंबर 2012

शुद्ध के लिए युद्ध:जांच में आटा शामिल करो:चावल कणी और भूसी की मिलावट:



तीखे तेवर-सामयिक टिप्पणी:-करणीदानसिंह राजपूत

दीपावली पर्व के आते ही प्रशासन को जनता की सेहत का ध्यान आता है और पर्व से कुछ दिन पहले सरकार की ओर से केवल हलवाईयों की दुकानों पर छापेमार कार्यवाही शुरू होती है। आरोप होता है कि मिठाईयों में जम कर मिलावट की जाती है। इसलिए सरकार अपने प्रशासनिक अधिकारियों तक को जांच की कार्यवाही में लगा देती है। जांच में सड़ी हुई चाशनी और मिठाईयां,मावा आदि नष्ट करवाने की कार्यवाही होती हे और अखबारों में व चैनलों पर तस्वीरों सहित समाचार प्रसारित होते हैं।
शुद्धता के लिए युद्ध केवल हलवाईयों के यहां ही क्यों होता है।
दीपावली पर और रोजाना जो आटा हलवाईयों के यहां, भोजनालयों में उपयोग में लाया जाता है,उसकी शुद्धता की जांच भी होनी चाहिए। इन दुकानों से तो नमूने लिए ही जाएं साथ में आटा बनाने वाली मिलों पर और उनके आटे के थैलों में से भी नमूने लिए जाकर प्रयोगशाला में जांच करवाई जानी चाहिए।
आटे के थैलों पर गेहूं का शुद्ध आटा छपा हुआ होता है और उसकी 100 प्रतिशत शुद्धता की गारंटी तक छपी हुई होती है। अनेक आटा निर्माता
गेहूं के आटे में चावलों की कणी और भूसी मिलाते हैं। स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन दोनों ही यह जानते हैं। अब सवाल पैदा होता है कि जानते हैं तो फिर छापे की और प्रयोगशाला में जांच करवाने की कार्यवाही क्यों नहीं करते?
क्या केवल मिठाईयों की अशुद्धता से ही लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है,आटे की अशुद्धता से आदमी बीमार नहीं होता?
बड़े गौर करने वाला बिंदु है कि मिठाईयां तो लोग यदा कदा ही खाते हैं,मगर आटा तो रोजाना ही उपयोग में लिया जाता है।
जो खाद्य रोजाना इस्तेमाल हो रहा है उसकी शुद्धता की जांच की जरूरत क्यों नहीं समझी जाती?
स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन  हर कार्य हल्ला मचने मचाने के बाद शुरू करते हैं। तो क्या आटे की शुद्धता के लिए भी हल्ला ही मचाया जाए?
---------------------------------

यह ब्लॉग खोजें