गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

कैसा मन है प्रधानमंत्री का- काव्य करणीदानसिंह राजपूत.

 


आप भावुक हुए
रोए भी तो किसके लिए।
वह तो सदस्यता अवधि
पूरी करके गये
उनके 6 साल पूरे हुए थे।
लोकतंत्र सेनानी दस बारह
मर रहे रोजाना
दो शब्द कहते कभी।
सेनानियों की तो
उम्र पूरी होती गई।

समय अवधि पूरी होने
और उम्र पूरी होने में
बहुत बड़ा अंतर।
सच्च में आपके
रोने से यह जाना।

वह जो कभी
आपका न था
लेकिन फिर भी आप रोए
आपका बड़प्पन है यह
पराए के लिए रोए।

लोकतंत्र सेनानी तो
अपने ही हैं
उनसे कैसी भावुकता
नहीं निकलती आह
उनके मरते जाने पर।

न संघ और न संगठन
कोई भी नहीं संग।
सभी का मौन
तिरस्कार सा।

सभी मरते हैं
पहले भी मरते रहे
आगे भी मरेंगे।
कोई नयी बात नहीं
यह नियम है सृष्टि का।

सेनानियों के कर्तव्य और
मरने पर आपका मन
नहीं करता मन की बात।

आपका मन है महान
कोई मामूली मन नहीं
प्रधानमंत्री का मन है
संसार के बड़े लोकतांत्रिक
देश के प्रधानमंत्री का मन।

प्रतिमाओं में
प्राण प्रतिष्ठा कर
पूजने वाले भारत में
जीवन में से प्राण
जाते देखते रहना
कैसा मन है आपका।

परमब्रह्म
हमारे सेनानियों को
मोक्ष और आपको
अमरत्त्व प्रदान करे।
आप देखते रहें
सेनानियों का गमन।

आज सभी साधन
सभी अधिकार हैं

स्वतंत्रता की अलख
जगाने वाले
स्वतंत्रता सेनानी।
आपातकाल में
संविधान के रक्षक बने
लोकतंत्र सेनानी
आपकी नजरों से
ओझल हैं।

कृष्ण की गीता अपनाओ
वही संसार में पढी जा रही
काल का चक्र घूम रहा
पल पल हर पल।

देश पर मर मिटने का
मन रखने वालों पर
अपना मन करो
समय बीत रहा।
यह भी इतिहास बनेगा
जो कोई तो लिखेगा।
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दि. 11 फरवरी 2021. अमावस्या.

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करणीदानसिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार (राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत)
सूरतगढ़ ( राजस्थान)
94143 81356.
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आपातकाल 1975-77 जेलयात्री,

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