सूरतगढ़ भाजपा टिकट:दावेदारों से हटकर नये विवाद रहित व्यक्ति की संभावना
करणीदानसिंह राजपूत *
सूरतगढ़ में भाजपा की जीत पर खतरे की
संभावना को टालने के लिए वर्तमान दावेदारों से हटकर नया चेहरा उतारने की
कोशिश है। संघ की पसंद और भाजपा संगठन में से निर विवाद सक्रिय पर गुप्त
मंथन जारी है और उच्च नेताओं की जानकारी में ही यह चेहरा लाने का प्रयास
है। अभी संगठन में संभाग की जिम्मेदारी पर और सूरतगढ़ क्षेत्र में सालों से
पार्टी कार्यों में व जनप्रतिनिधि के एक पद पर पूर्व में रह चुके व्यक्ति
पर चुनाव का दावं पार्टी खेल सकती है।
नेताओं
के आपसी विवाद में भाजपा को नुकसान से बचाने के लिए चल रही कवायद में यही
कामयाब तरीका है कि ऐसा व्यक्ति हो जिस पर किसी तरह का आरोप प्रतिपक्ष नहीं
लगा सके।
सूत्र के अनुसार पार्टी के नेताओं
में चर्चा है कि वर्तमान विधायक राजेंद्रसिंह भादू से लोगों की नाराजगी से
पैदा हुई खाई को नया चेहरा पाटने में और सीट निकालने में कामयाब रहेगा।
अभी जो टिकट के दावेदार हैं उनमें यह सांमजस्य नहीं दिखता कि टिकट एक को
मिलने पर अन्य उसका पक्का सहयोग करेंगे। विधायक राजेंद्रसिंह भादू ने
रणकपुर में अपना पक्ष रखते हुए विकास का बखान करते हुए पुनः टिकट मांगी और
यह भी स्पष्ट कहा कि पार्टी जिसे भी टिकट देगी उसका सहयोग करेंगे।
राजस्थान में वर्तमान विधानसभा
में भारतीय जनता पार्टी के 160 विधायकों में से 80 - 90 विधायकों को अगले
चुनाव के अंदर उतारने पर संकट मानते हुए पार्टी इनके स्थान पर अन्य को
उतारना चाहती है।
अब यह बात खुलासा हो गई है दबी हुई नहीं रही कि परिवर्तन होने वाला है।
भारतीय जनता पार्टी की वर्तमान
सरकार मुख्यमंत्री और विधायकों के विरुद्ध जबरदस्त आक्रोश है। जनता और
कार्यकर्ता दोनों ही परिवर्तन चाहते हैं।
सूरतगढ़ सीट पर वर्तमान विधायक
राजेंद्र सिंह भादू का विरोध है। गाँवों और शहर में यह विरोध बहुत ज्यादा
है। शहर में विधायक जनसंपर्क करने तक की हालत में नहीं होने का बताया जा
रहा है। लोगों की मांग प्रमुख चर्चा बनी हुई है कि राजेंद्र भादू की बजाए
अन्य को टिकट दिया जाए।
अन्य में टिकट के प्रबल दावेदारों में पुराने दो चेहरे हैं।
प्रतिपक्ष कांग्रेस
के नेता और अनेक अनुभवी लोग राजनीति की तह तक जाकर भी मानते हैं कि रिकॉर्ड
के विकास और निर्माण कार्यों के कारण विधायक राजेंद्रसिंह भादू की टिकट
कटना संभव नहीं है और नाराजगी का कोई पैमाना नहीं है।
लेकिन किन्हीं परिस्थितियों में अगर
भादू को फिर से टिकट नहीं दी जाती है तो कोई जरूरी नहीं है कि बाद में दावा
ठोक रहे रामप्रताप कसनिया का नंबर आ जाए। रामप्रताप कसनिया और राजेंद्र
भादू के विवाद की स्थिति में पार्टी यह टिकट गंवा भी सकती है। अशोक नागपाल
का मानना है कि भादू कासनिया को टिकट नहीं मिलने की स्थिति में ही उनका
नंबर लग सकता है। दोनों नेता कासनिया और नागपाल सन 2008 के 10 साल बाद ही
सक्रिय हुए हैं।
संभव है कि दावेदारों की इस प्रकार
की राजनैतिक स्थिति और आपसी मेल नहीं होने के कारण पार्टी में जाने माने
पर कार्य हुआ। अभी मंथन और चर्चाएं जारी है और नाम की सार्वजनिक घोषणा का
इंतजार है।