तुम्हारा एकाकी जीवन
खारे स्वाद का समंदर
मिलन से मीठा होता
समय आया था ऐसा।
दोनों थे आमने सामने
निकल रही थी पुरानी
बातें रसीली सुरीली
सालों साल पुरानी।
हर बात में चेहरों के
छुपे रूप दिख रहे थे
कौन कितना चतुर था
सामने आ रहा था।
एक रूप था सामने का
बड़े अच्छे रिश्तों का
दूसरा रूप था परदे का
उसका सच्च और था।
परदे का रूप लचीला
मिलन को उकसाता
उसका आकर्षण अजब
बस लिपटा ही जाता।
रिश्तों में नए रिश्ते
बनते देह मिलन के
अजब गजब कैसे कैसे
नित सामने आते।
उनके मोह लालसा
दूर रूकने नहीं देते
आपस में गडमड
कर देते मिलते ही।
पुराने रिश्तों का आदर्श
नई परिभाषा से दब जाता
नया मिलन और देह सुख
नया नाम दे जाता।
तुम्हें बता दिए रिश्ते
नए नाम नए आदर्श
प्रीत की दावत में तुम
आओ वह इंतजार है।
तुम्हारी तस्वीर से बातें
होंगी दिन हो या रात
तस्वीर को सुनाते रहेंगे
अपने दिल की कहानी।
- करणीदानसिंह राजपूत,
विजयश्री करणी भवन,
सूर्यवंशी विद्यालय के पास,
मिनि मार्केट,सूर्याेदयनगरी,
सूरतगढ़।
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