* करणीदानसिंह राजपूत *
राजनैतिक दलों में बिना कुछ काम किए पद मिल जाए तब कोई भी काम क्यो करेगा? यह खतरनाक परिपाटी चलने लगी है तब से कार्याकर्ता काम नहीं चापलूसी करने लगे हैं। बड़े नेता को धन की रिश्वत और अपना सर्वस्व अर्पण भी कर देना मामूली समझा जाने लगा है। माया नहीं तो काया और माया संग काया तो फिर क्या कहना।
राजनैतिक पदों की बढ़ती लालसा ने इतनी गिरावट पैदा कर दी है कि पार्टियों का संविधान नहीं चलता। माया और काया ने दलों का संविधान आलमारियों में बंद कर रखवा दिया। राजनैतिक पद घोषित होने में विलंब होता है उतना ही माया काया का खेल बढता जाता है और बार बार होता है। यहां तक कि बढे सो पाए। माया ही नहीं काया अर्पण और भोगने के आरोप बड़े बड़े पदों पर बड़े बड़े नेताओं पर खुलासे होते हैं। अर्पण करने वालों के मुंह से खुलासे होने पर भी न खंडन होता है न झूठा बताया जाता है। नेता नहीं बोलते न पार्टियों की तरफ से कोई स्पष्टीकरण आता है। माया और काया अर्पण करने और भोगने को एक सामान्य सी बात मान लिया गया है। अब राजनीति में इसे चरित्र पतन नहीं माना जाता बल्कि उत्थान के रूप में गरिमा के रूप में प्रचारित करने में भी शर्म वाली बात नहीं रही। जब कोई बिना काम के राजनैतिक नियुक्ति पाता है तो समझा जा सकता है कि यह चापलूसी से,माया और काया से लिया दिया गया है।
6 सितंबर 2025.
करणीदानसिंह राजपूत,
पत्रकारिता 61 वर्ष.
सूरतगढ़ ( राजस्थान )
94143 81356.
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