सोमवार, 15 सितंबर 2025

राजनैतिक विरोधियों से भी सीखा जा सकता है.

 


* नारायण बारेठ.प्रसिद्ध पत्रकार.

वो भी एक दौर था -1984 की बात है। बीजेपी को वजूद में आये चार साल हुए।कांग्रेस का सिक्का चल रहा था।पार्टी ने सीकर में  अपना अधिवेशन तय किया।जाहिर है श्री घनश्याम तिवारी को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई।उस वक्त भारत में न शॉपिंग माल थे न रिसोर्ट और आलीशान होटलस ।सराय और धर्मशालाओं का भारत था। नेता खुद  को कार्यकर्ता ,कार्यकर्ता स्वयं को नेता समझते थे। 

सीकर में जगह छोटी पड़ गई।आयोजकों की उम्मीद से ज्यादा लोग  आने लगे।  राज्य में कांग्रेस की सरकार थी।स्व हरिदेव जोशी मुख्यमंत्री थे।श्री तिवारी ने CM जोशी से सम्पर्क किया।जोशी जी बोले आप सम्मेलन कर रहे हो।श्री तिवारी ने उनसे कहा -स्थान की दिक्कत आ गई है।CM जोशी ने  -चुटकी ली ,बोले आप हमारे विरुद्ध  सम्मेलन करोगे ,हमारे खिलाफ रणनीति तैयार करोगे। और जगह भी हमसे लोगे !


CM जोशी के निर्देश पर शिक्षा विभाग की स्कूलों में  जगह मिल गई।बकौल श्री तिवारी -न केवल स्थान बल्कि सरकार ने बिजली और पानी महकमे को बिजली  पानी का इंतजाम करने को भी कह दिया।बीजेपी उस वक्त खड़ी हो रही थी।लेकिन ये वो भारत था जिसमे कोई भी   यह नहीं कहता था कि मेरे अलावा कोई नहीं।लक्ष्मण सिल्वेनिया का नारा  -घर के सारे बदल दूंगा' -इश्तिहारों और दीवारों तक सीमित था। असहमति को राष्ट्र विरोधी नहीं माना जाता था।अपने से भिन्न  विचारों को देश का दुश्मन घोषित  नहीं किया जाता था। 


स्व सुखाड़िया राज्य के पहले CM थे। पक्ष विपक्ष के रिश्तो में आदर्शवाद की नीव रखी। उनके वक्त स्व कुम्भाराम आर्य किसानो के दिग्गज  नेता और आवाज थे / दोनों ने बहुत तीखे मतभेद उभरे।आर्य को यकायक स्वास्थ्य के लिहाज से एक सर्जरी करवानी थी।लोगो ने उन्हें कहा -ये ऑपरेशन दिल्ली करवाना ,यहाँ सुखाड़िया कोई खेल कर देंगे। स्व आर्य बोले -पहले दिल्ली का विचार था। अब ये जयपुर में ही  होगा।जब ऑपरेशन हुआ ,स्व सुखाड़िया राज काज छोड़ कर हॉस्पिटल तब तक बैठे रहे जब तक डॉक्टरों ने यह नहीं कहा -अब सब ठीक है !


हाल के वर्षो की  बात है -श्री जावेड़कर राजस्थान के इंचार्ज होकर आये। उस वक्त गुर्जर आंदोलन चल रहा था।हम रिपोर्टिंग में थे।श्री जावेड़कर ने  मुझे चाय पर बुलाया। पहले तो मुझे हैरानी हुई वे फाइव स्टार की जगह  खासा कोठी में ठहरे थे।उनसे मिला। पूछा आप कहाँ से है/  बोले पुणे से ! पुणे में एक बुजुर्ग नेता है -बाबा आढाव / आज़ादी के  वक्त से जनता के लिए लड़ते रहे है। त्यागी तपस्वी।हमाल पंचायत ,झोंपड़ी संघ ,जैसे संगठन बना कर काम किया। 

मैंने पूछा -बाबा कैसे आदमी है ? 

कहने लगे - बाबा ने पूरा जीवन मानवता की  सेवा में लगा दिया। बहुत ही अच्छे है।मुझे श्री जावेड़कर अच्छे इंसान लगे।क्योंकि  बाबा बीजेपी के पूरी तरह विरोधी  है।मैंने उनकी  तारीफ की।श्री  जावेड़कर बोले-बाबा क्या , मेधा पाटकर भी हमारी  विरोधी है। लेकिन उनका भी सम्मान है/हम स्टूडेंट पॉलिटिक्स में साथ थे। हाल के वर्षो में जावेड़कर की भाषा बदलते देखी /लेकिंन इसमें जावेड़कर का दोष नहीं है। कोई नयी  सियासी शक्ति है जो भाषा में तल्खी का तकाजा करती है। 


भाषा इंसान में भाव पैदा करती है।इससे भंगिमा बनती है। ये शीतल भी हो सकती है ,तीव्र भी। जैसी भाषा होगी ,वैसा समाज बनेगा।   

डेरेक ओ ब्रायन बंगाल से राज्यसभा सदस्य है/ भास्कर में आज ऐसे ही विषय पर लेख छपा है। पढ़ने लायक है। 

तभी वाजपेयी कहते है -छोटे मन से  कोई बड़ा नहीं होता टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता। एक वो सियासत थी एक ये सियासत है। सादर / 

प्रसिद्ध पत्रकार नारायण बारेठ मेरे मित्र की फेसबुक से लिया।०0०

 करणीदानसिंह राजपूत.

पत्रकार (राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क सचिवालय से अधि स्वीकृत लाईफटाइम) सूरतगढ़.०0०




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