सोमवार, 4 अप्रैल 2022

💐 मां का आंचल है हिंद की धरती - कविता- करणीदानसिंह राजपूत






💐 जीवन के रंग अनेक

सुख दुख संघर्ष परेशानियां

दुख परेशानियां नहीं बांटते 

दूसरों को और अपनों को भी नहीं

क्योंकि हम निर्दयी नहीं।


हम ये सब भोगते हैं अकेले

ढोते रहते है पहाड़ से क्रूर अनुभव।

यह सच्च है कि दुख परेशानियां

कोई दूसरा नहीं बांटता।

ये सामान भी नहीं हैं कि बांटे जा सकें।

लेकिन ये अनुभव होते हैं जो

अपने बांट लेते हैं हंसते हंसते

चाहे पहाड़ जैसे हों विशाल।

अपनों के आसपास की हवा भी

हर लेती है दुख दर्द परेशानियां।

क्यों होता है ऐसा चमत्कार

अपनों के आसपास फैला रहता है

हरेक का अपना अपना प्रभा मंडल

ये करते हैं एक दूसरे को स्पृश

हर लेते हैं दुख दर्द परेशानियों की मलीनता।

दुख दर्द परेशानियों पर सुख की चद्दर 

बदल देती है आनन्द में हर पल।


हम जब होते हैं अपने सब आमने सामने

एक दूजे के नजदीक सुन सकते हैं सांसों को

तब संघर्ष भी बदल जाता है आनन्द में 

बन जाता है खुशी का समंदर।

यह अहसास यह चमत्कार होता है सच्च में

हम सभी जानते हैं अनुभव करते हैं

मां का आंचल छुपा लेता है सभी कष्ट

वह होती है ईश्वर का साक्षात स्वरूप।

आओ,हम सब मां के आंचल में खो जाएं

सुनें मीठी लोरी उसकी गोदी में 

सुंदर सपनों में खो जाएं।

वह जननी पुकारती हिंद की धरती

स्वर्ग का आनंद मिलता इसमें

यही है मां का आंचल।

यही है जननी का आंचल।०0०


दि. 4 मार्च 2022.




करणीदानसिंह राजपूत,

सूरतगढ़. भारत.

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