तुम्हें समझाते सदियां बीती,
भरे पड़े इतिहास।
क्यों लड़ते रहते हो?
क्यों झगड़ा करते हो?
सब कुछ यहीं रह जायेगा।
काया का चोला भी,
नहीं रहेगा साथ।
अब जिन से लड़ते हो,
अगले जन्म में वहां,
पैदा हो सकते हो।
जीवन मरण का खेल है,
उस ईश्वर अल्लाह के हाथ।
स्वर्ग की अभिलाषा तुम्हारी,
उनकी जन्नत की तैयारी।
इतना तो बतला दो,
दुनिया को।
यह एक है या अनेक?
तुम प्रवेश पा लोगे,
वहां दूजा घुस नहीं पाएगा।
न यह है विश्वास,
न यह निश्चित है।
इस अनिश्चय के भंवर में,
क्यों करते हो विषपान।
स्वर्ग और जन्नत के भ्रम में,
क्यों करते हो यह जीवन बरबाद?
धर्म के नाम पर सुंदर जीवन को छोड़,
क्यों मौत से मिल हो?
दंड दूजों को मिले या ना मिले,
तुमने तो नर्क दोजख के,
द्वार खोले हैं।
इस लोक का अभिमान,
यहीं धरा रह जाएगा।
आये खाली,
हाथ भरे नहीं जा पाओगे।
ईश्वर अल्लाह,
क्या अलग-अलग हैं?
यह भी तो समझा दो।
यह सब के सांझे हैं,
फिर तुमने क्यों बांटे हैं?
धरती आकाश समुंदर,
सूरज चांद और तारे,
सब सांझे हैं,
फिर ईश्वर अल्लाह को,
तुमने क्यों बांटे हैं ?
क्यों लड़ते रहते हो,
क्यों झगड़ा करते हो?
क्यों लड़ते रहते हो,
क्यों झगड़ा करते हो?
**************************
22 मार्च 2017
अपडेट 22 जून 2022.
यह रचना करीब 15 -16 साल पूर्व लिखी गई थी । उस समय आकाशवाणी से भी प्रसारित हुई थी।
*********************************
करणी दान सिंह राजपूत,
राजस्थान सरकार द्वारा अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार,
सूरतगढ़, राजस्थान ।
संपर्क. 94143 81356.
**********************