हनुमान मील को चुनाव से पहले टिकट युद्ध जीतना भी आसान नहीं.सूरतगढ
* करणीदानीसिंह राजपूत *
सन् 2008 में गंगाजल मील के चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस की 2013 और 2018 में हार हुई मगर मील का दबदबा कायम रहा। 2018 के बाद परिस्थितियों में बदलाव पर बदलाव आते रहे लेकिन मील अपनी चलाते रहे। विरोध बढ़ता गया। इस विरोध के कारण सूरतगढ सीट पर मील की दशा और दिशा में आए परिवर्तन से अब हालात यह हो चुके हैं कि चुनाव से पहले टिकट पाने के लिए भी युद्ध चल रहा है और इस जीत में भी अनेक कठिनाइयां हैं। पहले यह युद्ध तो जीतें। टिकट पाने में ही चुनौती हो गयी।
वैसे तो सभी टिकटार्थी मील के विरुद्ध हैं। सबसे अधिक बाधा डुंगरराम गेदर ने खड़ी कर दी। डुंगरराम गेदर राजस्थान शिल्प एवं माटी कला बोर्ड के अध्यक्ष और राज्यमंत्री की पावर रखते हैं। पहले के हालात और अब के हालात में बहुत बदलाव आ गया। पहले कहा जाता था कि टिकट चल कर मील के पास आएगी। अब आवेदन करना और अपनी स्थिति बताना वाले हालात हो गये। मील का नाम अभी भी बड़ा है लेकिन 2008 वाले दिन हवा हो गए।
* एक साल से मील को चेताया जाता रहा लेकिन अपने चारों तरफ बने घेरे को खत्म नहीं कर पाए। इस घेरे ने मील को ऐसा चश्मा पहनाया और उतारने भी नहीं दिया कि मील कुछ देखते समझते।
नगरपालिका में परसराम भाटिया को अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाने का भी कोई लाभ नहीं मिल रहा। नगरपालिका में अव्यवस्था और शहर की सफाई की बुरी हालत से आमजन खुश नहीं। मील और परसराम कार्यक्रमों में भाषण दे लें लेकिन इसकी तालियां एक गली से दूसरी तक ही नहीं पहुंच रही। परसराम भाटिया और निर्माण कार्यों से गलत और भ्रष्टाचार शब्द मिट नहीं पाया। सड़कों पर नयी सड़कें,पुरानी टाईलेंं उखाड़ कर बनाई जा रही सड़कें हैं तो फिर भ्रष्टाचार खत्म कहां हुआ। ओमप्रकाश कालवा नहीं सुनता था तो परसराम भाटिया भी नहीं सुन रहा। तेज गति का मतलब मनमानी मनमर्जी से गलत निर्माण तो नहीं होने चाहिए। इन परिस्थितियों से मील का राजनीतिक भाग्य और टिकट मिलना न मिलना जुड़ा हुआ है। लेकिन जो किसी तरह से सत्ता में होते हैं उनको ऐसी खामियां और सिस्टम का भ्रष्टाचार नजर नहीं आता या वे इसे मामूली सी बात मानते हैं।
हालांकि अभी भी कुछ राजनीतिक वक्ता मानते हैं कि टिकट मील को ही मिलेगी। हनुमानमील ही चुनाव लड़ेंगे। यदि उम्र टिकट में बाधा नहीं होती तो गंगाजल मील को लोग अधिक ताकतवर मानते हैं। ०0०