कट गए हजारों
बिना पेच लड़े।
आकाश में उड़ने के सपने
धरती पर ढेर हो गए।
हर शहर में
हर गली में
मिलेंगे बिलखते
कोई नहीं उनके
आंसू पोंछने वाला।
कितने रंगों से सजे
कितने संपर्क बनाए
कितने रिश्ते जोड़े
कितने हाथ जोड़े
कितने चरण दबाए।
मगर कट गए हजारों
बिना पेच लड़े।
सोचते थे
हम ही उड़ेंगे
मगर आरक्षण के
धागे से
बिना उड़े ही
कट गए।
बड़े भी नहीं बचे
जो ढाल कहलाते थे
बड़े का गुमान था
बड़े की ताकत थी
वे भी कट गए।
ये तो चुनाव का
खेल था
पांच साल का
सरकारी नौकरियों में तो
लाखों सिमट गए।
***
करणीदानसिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार,
सूरतगढ़।
94143 81356.
बिना पेच लड़े।
आकाश में उड़ने के सपने
धरती पर ढेर हो गए।
हर गली में
मिलेंगे बिलखते
कोई नहीं उनके
आंसू पोंछने वाला।
कितने संपर्क बनाए
कितने रिश्ते जोड़े
कितने हाथ जोड़े
कितने चरण दबाए।
बिना पेच लड़े।
हम ही उड़ेंगे
मगर आरक्षण के
धागे से
बिना उड़े ही
कट गए।
जो ढाल कहलाते थे
बड़े का गुमान था
बड़े की ताकत थी
वे भी कट गए।
खेल था
पांच साल का
सरकारी नौकरियों में तो
लाखों सिमट गए।
***
करणीदानसिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार,
सूरतगढ़।
94143 81356.