* सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मूल अधिकारों में महिलाओं के अधिकार भी होते हैं, लिहाजा समाज में महिलाओं के साथ गैर-बराबरी नहीं की जा सकती।*
जनसत्ता ऑनलाइन
27 सितंबर 2018.
- सीजेआई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने आम राय से यह फैसला दिया है।-
- सुप्रीम कोर्ट ने एडल्ट्री से जुड़ी आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया है। सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने इसे मनमाना, एकपक्षीय और महिलाओं के खिलाफ करार दिया। धारा 497 158 साल पुरानी है। इसमें पति की अनुमति या मंजूरी के बिना शादीशुदा महिला से शारीरिक संबंध बनाने को अपराध करार दिया गया है। धारा 497 में मौजूद प्रावधानों के तहत इस तरह के शारीरिक संबंध को रेप के बजाय एडल्ट्री माना गया है। दोषी पाए जाने पर अधिकतम 5 साल कैद या जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान किया गया है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अब इसे खारिज कर दिया है। सीजेआई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने आम राय से यह फैसला दिया है।
संबंध खत्म करने का बन सकता है आधार:
संविधान पीठ में सीजेआई दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस आर. नरीमन, जस्टिस एएम. खानविलकर, जस्टिस डीवाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल थीं।
आम राय से दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एडल्ट्री को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। हालांकि, पीठ ने सपष्ट किया कि एडल्ट्री संबंध खत्म करने का आधार बन सकता है। सीजेआई ने अपने फैसले में कहा कि पति महिला का स्वामी या मालिक नहीं हो सकता है। वहीं, जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया कि आईपीसी की धारा 497 महिलाओं की यौन स्वतंत्रता को बाधित करता है।
"समाज डालता है महिलाओं पर सदाचार का बोझ"
न्यायाधीश डी.वाई चंद्रचूड़ ने एकमत लेकिन अलग फैसले में कहा कि समाज में यौन व्यवहार को लेकर दो तरह के नियम हैं, एक महिलाओं के लिए और दूसरा पुरूषों के लिए। उन्होंने कहा कि समाज महिलाओं को सदाचार की अभिव्यक्ति के रूप में देखता है, जिससे ऑनर किलिंग जैसी चीजें होती हैं।
समाज नहीं तय कर सकता महिला क्या सोचे : सुप्रीम कोर्ट
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "किसी भी तरह का भेदभाव संविधान के कोप को आमंत्रित करता है। एक महिला को उस तरह से सोचने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जिस तरह से समाज चाहता है कि वह उस तरह से सोचे।" न्यायाधीश रोहिंटन एफ. नरीमन ने फैसला सुनाते हुए कहा।
"महिलाओं के साथ जानवरों जैसा बर्ताव नहीं किया जा सकता"
फैसला सुनाने वाले एक जज ने कहा कि महिलाओं के साथ जानवरों जैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता। मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने कहा, "व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता। यह निजता का मामला है। पति, पत्नी का मालिक नहीं है। महिलाओं के साथ पुरूषों के समान ही व्यवहार किया जाना चाहिए।"
सीजेआई ने पढ़ा फैसला, सबने जताई सहमति
न्यायमूर्ति मिश्रा ने अपनी और न्यायमूर्ति खानविलकर की ओर से फैसला पढ़ते हुए कहा, ‘‘हम विवाह के खिलाफ अपराध से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198 को असंवैधानिक घोषित करते हैं।’’ अलग से अपना फैसला पढ़ते हुए न्यायमूर्ति नरीमन ने धारा 497 को पुरातनपंथी कानून बताते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा और न्यायमूर्ति खानविलकर के फैसले के साथ सहमति जताई।
महिलाओं के प्रति असमानता असंवैधानिक: सीजेआई
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने भी आईपीसी की धारा 497 को लेकर सख्त टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि महिलाओं के प्रति असमानता बरतने वाला प्रावधान संविधान के अनुकूल नहीं हो सकता है। सीजेआई के अनुसार, एडल्ट्री से वैवाहिक जीवन क्लेशपूर्ण नहीं भी हो सकता है, लेकिन एडल्ट्री अंसतुष्ट दांपत्य जीवन का परिणाम हो सकता है।
'गरिमा और प्रतिष्ठा से वंचित करती है धारा 497'
जस्टिस डीवाई. चंद्रचूड़ ने भी आईपीसी की धारा 497 में मौजूद प्रावधानों के प्रति असहमति जताई। उन्होंने कहा, 'धारा 497 महिलाओं को उनकी प्रतिष्ठा और गरिमा से वंचित करती है।'
'आश्रय के सिद्धांत पर आधारित है धारा 497'
संविधान पीठ में शामिल जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने आईपीसी की धारा 497 पर बेहद तल्ख टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि एडल्ट्री से जुड़ी धारा 497 'आश्रय के सिद्धांत' पर आधारित है, जिसमें यह व्यवस्था की गई है कि शादी के बाद एक महिला अपनी पहचान और कानूनी अधिकार गंवा देती है। जस्टिस मल्होत्रा ने इसे मौलिक अधिकार का हनन करार दिया और कहा कि यह सिद्धांत संविधान सम्मत नहीं है।
अधिकतम पांच साल सजा का था प्रावधान
आईपीसी की धारा 497 में एडल्ट्री का दोषी पाए जाने पर अधिकतम 5 साल कैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट ने अब इस व्यवस्था को खत्म कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अन्य देशों का दिया उदाहरण
सुप्रीम कोर्ट ने एडल्ट्री पर फैसला सुनाते हुए कई अन्य देशों में मौजूद कानूनी प्रावधानों का भी उदाहरण दिया। पीठ ने चीन और जापान जैसे देशों का हवाला दिया।
एडल्ट्री अब अपराध नहीं
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ के फैसले के बाद अब एडल्ट्री अपराध नहीं रहा। मतलब यह कि शादी के बाद गैर से संबंध बनाने की स्थिति में अब जेल नहीं जाना पड़ेगा। बता दें कि मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह ऐतिहासिक फैसला दिया है।
एडल्ट्री पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
एडल्ट्री पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। कोर्ट ने आईपीसी की धारा 497 पर फैसला देते हुए कहा कि शादी के बाद किसी गैर से शारीरिक संबंध बनाना अपराध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि इस मसले पर पति या पत्नी में से किसी को आपत्ति है तो उनके के लिए तलाक का दरवाजा खुला हुआ है।
साभार