ब्यावर नगरपरिषद चेयरमेन(भाजपा) की गिरफ्तारी पर भाजपा कार्यकर्ताओं में खुशी: कोई शिक्षा लेगा:
*ब्यावर नगरपरिषद सभापति की रिश्वतखोरी में गिरफ्तारी,कई बड़ो के खुलेंगे राज! ब्यावर में मचा हड़कम्प...! कई हुए भूमिगत !*
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*सिद्धार्थ जैन पत्रकार, ब्यावर (राज.)*
ब्यावर नगर परिषद सभापति श्रीमती बबिता चौहान अपने पति नरेंद्र के साथ आखिरकार आज पुलिस गिरफ्त में आ ही गई। इससे ना तो मुझे कोई अचरज हुआ और ना ही भाजपा कार्यकर्ताओं को! *बबिता "भाजपा" से ही चेयरमैन है... इसके बावजूद कार्यकर्ता परस्पर खुशियां व्यक्त करते दिखे...!!! यह अतिश्योक्ति नही है। आज मुझे आश्चर्य है। अपने ही दल की सभापति की गिरफ्तारी पर भाजपा में पत्ता तक नही खड़का! इससे लगता है ब्यावर नगर परिषद की कारगुजारियों से आम जन ही नही भाजपा कार्यकर्ताओं में भी किस कदर निराशा, गुस्सा और हताशा का माहौल रहा होगा?* इस सबका आकलन मेने बहुत समय पूर्व ही कर लिया था। यह सब पिछले अरसे से लगातार मेरे लिखे ब्लाग्स से पता चलता है। मैं वो सब *"नगर परिषद बनाम प्राइवेट लिमिटेड कंपनी"* के नाम से लिखता रहा। लगभग साढ़े तीन साल पहले सभापति की ताजपोशी के पीछे के किस्से तब ही आम लोगो की जुबान पर चढ़ गए थे। ब्यावरवासियो में आम धारणा यही बनी थी कि अब की बार "सेटिंग्स" के पुराने रिकार्ड ध्वस्त होंगे। यह भी तय है कि आगे भविष्य में भी यही सब होता रहेगा। हाँ... डॉ. राजीव जैन जैसे पीड़ितों के आगे आने से ही कुछ हद तक डर का माहौल पैदा हो सकेगा।
भाजपा के वर्तमान बोर्ड से ठीक पहले का कांग्रेस बोर्ड ही काफी चर्चित हो गया था। नगरपरिषद बोर्ड को "प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी" के समान हांकने की शुरूआत वही से होने लगी। *वर्तमान भाजपा बोर्ड गठित होने के बाद तो मानो "पंख" लग गए। भाजपा कार्यकर्ताओं में भी भारी असन्तोष उमड़ने लगा। लेकिन वे बेबस हो तमाशबीन बने रहे। उधर "कांग्रेस" भी मृतप्रायः बनी रही। कुछ अरसा हुआ "आप पार्टी" ने नगरपरिषद भृष्टाचार के विरुध्द बिगुल फूंकना शुरू किया। हालात यह हो गए कि नगरपरिषद की बेशकीमती सम्पत्तियों को बचाने के लिए खुद आप पार्टी को जनआंदोलन छेड़ना पड़ा। यह सब नगरपरिषद के ऐसे ही कर्णधार आपसी मिलीभगत से खुर्दबुर्द करने पर आमादा है।* नगरपरिषद में कोई भी काम बिना लिए दिए सम्भव ही नही रहा! भाजपा कार्यकर्ता ही नही स्वयं पदाधिकारी भी इस सबका स्वाद चखते रहे। फिर भी वो सब अनुसाशन के डंडे के जोर से बंधे बेबस नजर आते रहे।
जानकारों के आकलन अनुसार साढ़े तीन साल की अवधि दौरान नगरपरिषद में ऊपरी इन्कम की करोड़ों रुपयो की गंगा बही है। *सभापति अकेले ही इस गंगा में नहा रही हो। यह कतई सम्भव नही है। इस पाप की अथाह कमाई में अनेको सम्मिलित रहे होंगे। बहती गंगा में कौन हाथ नही धोना चाहेगा...! यह एक रैकेट है। उसमें हैसियत मुताबिक ही रेट्स तय होते है। पुलिस को पुख्ता सबूत मिले है। इसमें कई नपेंगे!* यह चुनावी साल है। प्रशासन समय की नजाकत को भांपते हुए ही कदम उठाएगा। सभापति की इस काली कमाई में कितने "मोटे हाथ" शामिल है! सभापति के बयानों से ही खुलासा सम्भव होगा। वे नेता-अधिकारी भी हो सकते है। उन सबको किसको कितना प्रोटेक्ट करना है? *चुनावी साल की नजाकत के चलते जांच अधिकारी किस हद तक परते उधेड़ेंगे...! सभापति बबिता अपनी पाप की कमाई में मिलीभगत बाबत किस कदर मुखर होकर बोलेगी...?* अभी कुछ भी नही कहा जा सकता। जांच अधिकारी पत्नी-पति की जोड़ी को ही "बलि का बकरा" बना कर इतिश्री कर लेंगे या कुछ ठोस कदम उठाएंगे? सब भविष्य के गर्त में है। गौरव रथ यात्रा के वर्तमान दौर में सरकार को भी इसे गम्भीरता से लेना होगा। आखिरकार आम जन-जन का वास्ता तो इन्ही स्थानीय इकाइयों से ही पड़ता है। यह सब वोट बैंक को ही प्रभावित करते है।