तुमने सालों बाद
मेरे दिल को थप थपाया,
काश तुम पहले बतियाती।
छत की सुहावनी
संध्या और
गुलाबी सर्दी में
बदन को छूकर निकलती
हवा।
कुछ कुछ करने लगी।
तुमने सालों बाद
मेरे दिल को थप थपाया।
यह तो सच्च है
तुम्हारे कोई असर
नहीं पड़ा है सालों का।
वही रूप वही मुखड़ा
वही बोली वही मुस्कराहट।
तुमने सालों बाद
मेरे दिल को थप थपाया।
तुम्हारी नजरें दिल में
उतर कर बातें करने वाली,
पहले भी थी और अब भी है।
तुम्हारी डायरी का हर पन्ना
बयां करता है
खूशबू भरी सी
पल पल की कहानी
जो तुमने जीया है
इंतजार में।
तुमने सालों बाद
मेरे दिल को थप थपाया।
तुम अभी भी छिपते सूरज
की बातें करने में
इधर उधर गरदन घूमाती,
कभी नभ कभी फर्श को
निहारती रही।
मैं कैसे खोलूं दिल
के द्वार।
मैं भी
तुम्हारी घूमती गरदन
और उसी छिपते
सूरज को देख रहा हूं।
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करणीदानसिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार,
सूरतगढ़. 93143 81356.
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