गुरूशरण का मतलब शराब बेईमानी झूठ से दूर.

* करणीदानसिंह राजपूत *
गुरूशरण छाबड़ा के जयकारे लगाने का सीधा साफ मतलब है कि शराब,बेईमानी, झूठ, छल कपट से दूर ईमानदारी का जीवन जीएं और भ्रष्टाचार छलकपट लोगों को बेवकूफ समझने और बनाने की राजनीति से दूर रहें। लेकिन इन सब में गोते लगाते हुए क्या गुरूशरण बन सकते हैं? गुरूशरण तो ईमानदार और उनकी राजनीति और हर कार्य ईमानदारी पूर्ण था।
शराब पिएं,छल कपट करें,जनता को बेवकूफ बनाएं भ्रष्टाचार करें और ऐसे ही लोगों से मित्रता करें तो ऐसा व्यक्ति तो कभी गुरूशरण नहीं बन सकता। गुरूशरण का नाम लेकर भी वह कम से कम सूरतगढ़ में राजनीति नहीं कर सकता और न नेता बन सकता है। गुरूशरण को जानने वाले मानने वाले वृद्ध तो हो गये हैं लेकिन अनेक अभी जिंदा है। सूरतगढ़ में जो हालात हैं जिस तरह से जनता परेशान है उसमें जनता के साथ तो कोई भी खड़ा हुआ दिखाई नहीं दे रहा। सूरतगढ़ में सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार फैला है और भ्रष्ट अधिकारी व भ्रष्टाचार के विरुद्ध कोई आवाज ही नहीं तो गुरूशरण जिंदा बाद गुरूशरण अमर कैसे है? भ्रष्टाचारियों से मित्रता साथ में फोटो हो तो गुरूशरण दिल दिमाग में नहीं। भ्रष्ट और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध खुली लड़ाई हो तो समझें कि गुरूशरण का नाम जिंदा है। आज साफ सवाल है कि गुरूशरण के नाम लेने वाले किन किन भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध खड़े हैं। एक भी नहीं। आज राजस्थान में सबसे अधिक भ्रष्टाचार लूटखसोट घोटाले अपराध सूरतगढ़ में हैं और करने वाले शान से कुर्सियों पर बैठे हैं।
जनता काम देखती है टिकट नहीं देखती यह पिछले विधानसभा चुनाव 2023 में सूरतगढ़ सीट पर साबित हो चुका है। संभलने का अभी मौका है कि गुरूशरण का नारा लगाएं तो स्वच्छ राजनीति और काम करें।
( गुरूशरण छाबड़ा पुण्यतिथि 3 नवंबर 2025.)०0०