गुरू विष पीए और शिष्यों को अमृत दे.हरिराम शास्त्री से बातचीत.
*करणीदानसिंह राजपूत *
गुरू विष पीए और शिष्यों को अमृत दे। यह विचार हरिराम शास्त्री से फोन बातचीत में उनके मुख से निकले जो कभी उनके गुरू ने उनको कहे थे।
धार्मिक आध्यात्मिक की"संयुक्त भारतीय धर्म संसद" में होने के कारण भ्रमण पर रहने वाले हरिराम शास्त्री इन दिनों अपने घर रिड़मलसर ( जिला श्रीगंगानगर) आए हुए हैं। दीपावली की रामरमी के दिन संध्या में फोन पर बातचीत में यह मंत्र जैसा वाक्य निकला। गुरू की बहुत बड़ी गरिमा इस सीख के वाक्य में समाई है जिसकी कोई कल्पना नहीं की जा सकती। कोई समझ सकता है इस सीख को,गुरू के कर्तव्य को। शिक्षक मृत्यु को वरण करता हुआ अपने गुरूत्व में रहता हुआ शिष्य को जीवन देता रहे। शिक्षक स्वयं को खत्म करता हुआ शिष्य को उन्नति की ओर बढाता रहे। शिष्य के आचार विचार में गुरू ही दिखाई दे। गुरू का आचरण ही शिष्य का आचरण बन जाए। तब माना जा सकता है कि गुरू ने विष पीते हुए शिष्य को अमृत रूपी जीवन प्रदान किया।
हालांकि आज के हलाहल भरे विश्व में ऐसे गुरू मिलने मुश्किल हो सकते हैं लेकिन मेरा मानना है कि ऐसी स्थिति में भी ऐसे सद्विचार सद्भाव वाले गुरू अवश्य ही हैं, हम उनको मन से ढुंढने का परिश्रम करें।
* बातचीत में कुछ और महत्त्वपूर्ण विचार अन्य विषयों पर भी मालुम हुए। उनको निश्चित ही अलग दूंगा।०0०
1 नवंबर 2024.
करणीदानसिंह राजपूत,
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