* करणीदानसिंह राजपूत *
फूल पार्टी किसी के प्राण नहीं लेती मारती नहीं। बस,गूंगा बहरा लूला लंगड़ा बनाती है,यह भी स्वयं को अपने आप बनाना और प्रमाणित करना होता है। इसका नाम है स्व अनुशासन! राजनीति में कुछ बनने की ईच्छा है तो फूल पार्टी में पहुंच कर सदस्य बन जाना चाहिए।
जो सदस्य बनता है उसे अनुशासन में रहना पड़ता है। यही अनुशासन है
अनुशासन का कोई लिखित पाठ नहीं है। बड़े जो चाहें वैसे करते रहें। जो बड़े हैं वे और ऊंचे बैठे बड़े का कहना मानते हुए आशीर्वाद लिए हुए होते हैं। बड़ा जैसा चाहे वैसे
गूंगा बहरा लूला लंगड़ा बन कर रहें। ये जो बड़े होते हैं प्रदेशों की राजधानियों से देश की राजधानी दिल्ली तक कड़ी के रूप में हैं। बड़े प्यारे बोलते हैं मिश्री से भी अधिक मधुरता होती है। नाम के साथ जी लगाकर बात करते हैं।
एक बात का ध्यान रखना होता है कि सुनते रहो हां भरते रहो लेकिन कभी भी जिज्ञासा के लिए भी प्रश्न नहीं पूछना। प्रश्न पूछ लिया उस दिन आंख की किरकिरी बन जाते हैं। सम्मेलन स्थानीय हो तो भी उसमें बाहर से आने वाले का उपदेश सुनना है। यहां भी प्रश्न नहीं करना। संचालन कर्ता कहेगा जरूर कि कोई प्रश्न पूछना है तो पूछ लें। प्रश्न पूछने के लिए एक दो होते हैं जो सकारात्मक उत्तर वाला प्रश्न पूछते हैं। पार्टी की सदस्यता ली है तो सभा सम्मेलन बैठक का संचालन देखें।पंक्ति में बिठाते हैं लेकिन आसपास बैठे से बात नहीं करने का निर्देश होता है। एक छूट भी होती है। बड़े को मालाएं पहनाने पुष्प गुच्छ भेंट की मनाही नहीं होती। सालों तक यह कार्य करते रहें चर्चा में तो रहेंगे ही।
गूंगे बहरे बने रहें। दूसरी पार्टियों से जो पहुंचे पटके पहने स्वागत की तस्वींरें सोशल मीडिया पर देकर खुश हुए। मालुम नहीं कहां गुम हो गये। एक को दूसरे से पछाड़ करवा देते हैं। जैसे पर्ची खुलवाते हैं और खोलने वाला ही गूंगा बहरा लूला लंगड़ा बन जाता है। कुछ भी कर नहीं पाता। अच्छे खासे न जाने कितने हर जगह बहरे गूंगे लूले लंगडे़ बने बैठे हैं। ०0०
9 सितंबर 2024.
करणीदानसिंह राजपूत,
पत्रकारिता 60 वर्ष.
सूरतगढ ( राजस्थान )
94143 81356.
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