शनिवार, 1 जून 2024

राजस्थान की 25 सीटों में से भाजपा की 12 सीटें खतरे में.देश के हालात।




* करणीदानसिंह राजपूत *

राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटें हैं जिनमें भाजपा प्रत्याशी 12 सीटों पर कमजोर हालत में और कहीं कड़ी टक्कर के खतरे में फंसे है। 

भाजपा टिकटें अग्रणी नेताओं सतीष पूनिया और राजेंद्र सिंह राठौड़ की सलाह पर बांटी गई। सतीष पूनिया भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रहे और उनका कार्यकाल भी कुछ बढाया गया। इनके कार्यकाल में संगठन की स्थिति कमजोर रही और इस पर ध्यान नहीं दिया गया। राजेंद्र सिंह राठौड़ पूर्व मंत्री और अब धरातल पर हैं। दोनों का सहयोग एक वर्ग से रहा और इसका नतीजा तो खतरे की हालत में आगे आ रहा है। मूल ओबीसी को हाशिये पर रखा गया जिससे वो कट गये। मूल ओबीसी कटाव का विधानसभा चुनाव 2023 में असर हुआ और अब लोकसभा चुनाव में भी असर हुआ है। विधानसभा चुनाव में राजपूतों को हाशिये पर रखना और लोकसभा चुनाव में तो नाराज ही कर देना बड़ा नुकसान दे गया है। लोकसभा चुनाव परिणाम आने और सीटें हारने के बाद दिल्ली के नेताओ जे.पी. नड्डा,नरेंद्र मोदी अमित शाह  को समझ में तो आएगा और फिर राजस्थान में बदलाव भी करेंगे लेकिन नुकसान की भरपाई तो नहीं हो सकेगी।


* लोकसभा चुनाव 2024 के प्रत्याशी तय करते वक्त भी वसुंधरा राजे को ठिकाने लगाए रखने के चक्कर में विधानसभा चुनाव से चली चालें लोकसभा चुनाव तक चली।

सभी जानते हैं कि राजस्थान की राजनीति से वसुंधरा राजे को निकालते हैं तो फिर कुछ भी बचता नहीं है। विधानसभा में 152 जीतने की घोषणा से फिसलते हुए 115 सीटों पर आए। पर्ची से भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की भी लोकसभा की सभी 25 सीटें विजयी बनाने की जिम्मेदारी तो  होती है लेकिन राज खुद ही कमजोर हालत में हो तो लोग बात क्यों मानेंगे?

लोगों को प्रदेश में शासन प्रशासन और राजकीय कार्यालयों में लग नहीं रहा कि राज बदला है और लोगों के काम आसानी से हो रहे हैं। हर ओर से नकारात्मक रिपोर्ट्स हैं।

* सतीष पूनिया और राजेंद्र सिंह राठ़़ौड़ की भी लोकसभा चुनाव में जिम्मेदारी थी। विधानसभा चुनाव में राजस्थान में ठीक ठीक मजबूत रही भाजपा लोकसभा चुनाव में बहुत कमजोर कैसे और  क्यों हो गई? 

वसुंधरा राजे की अगुवाई में सन 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सभी 25 सीटें और सन 2019 के लोकसभा चुनाव में भी सभी 25 सीटें मिली। अबकी बार 2024 में भजनलाल शर्मा के मुख्यमंत्री काल में 25 सीटें नहीं मिल रही। 5 से 7 सीटें हार जाने का तो लगभग माना ही जाने लगा है। लेकिन 12 सीटों पर खतरा होने तथा 8 से 10 सीटें जाने की संभावना की रिपोर्ट्स भी आ रही है। विधानसभा की 200 सीटों में से 115 सीटें भाजपा जीत पाई और उस हालात पर भी मीडिया रिपोर्ट्स खतरनाक हैं कि इंडिया गठबंधन 12 सीटों तक पहुंच सकता है। अगर ऐसा होता है तो हालत बहुत बुरे मानने चाहिए। वैसे तो 5-7 सीटें हारना ही बड़ा नुकसान होगा।


👍 भाजपा के साधन संपन्न नेताओं कार्यकर्ताओं संगठन पदाधिकारियों ने लोकसभा चुनाव 2024 में वोटों के लिए संपर्क करने की कोशिश नहीं की। कारों कोठियों फार्मो और अच्छे काम धंधे कारोबार करने वाले घरों और अपने काम धंधों पर रहे,लोगों के दरवाजों पर नहीं गये। विधानसभा चुनाव में यह कमजोरी रही। टिकट मांगने वाले अपने घरों में रहे। दो चार हर विधानसभा क्षेत्र में मुंह दिखाई फोटो खिंचाई में रहे। यह कमजोरी लोकसभा चुनाव में खत्म करनी थी लेकिन यह और अधिक बढ गई। 

* 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं समर्थकों के बल और सहयोग से जीते। सन् 2024 में कांंग्रेसी और भ्रष्टाचारी लोगों को भाजपा में लेकर 400 सीटें पार करने की महान गलती की गई। ये बाहरी लोग भाजपा में लिए गये इन्होंने भाजपा को वोट नहीं दिलाए। यह कड़ी समीक्षा भी करनी पड़ेगी। इनको शामिल करने से मूल भाजपा वाले असंतुष्ट हुए लेकिन उनके असंतोष को समझा ही नहीं गया। जो शामिल किए गये उन्होंने काम नहीं किया तथा असंतोष के कारण पुराने घरों से बाहर ही नहीं निकले। ल़ोक दिखाई के लिए सीमित नेता और कार्यकर्ता चुनाव कार्यालयों में पहुंचे। भ्रष्टाचारियों दुराचारियों के विरूद्ध दस बीस सालों से लड़ते रहे और वे बराबर आकर बैठ गये। भाजपा के नेताओं को यह महसूस क्यों नहीं हुआ? अपने ही निष्ठावान कार्यकर्ताओं नेताओं की राजनीति को उनके जीते जी ही मार डाला। 

* संगठन में मनोनीत करने की प्रणाली भी नुकसान देह रही। भाजपा अपने संविधान के अनुसार पार्टी में लोकतंत्र रखती।


* वोट मोदी की गारंटी के नारे से कमल पर आएंगे ही फिर इधर उधर घूमने को व्यर्थ मान लिया। पहले पार्टी के नाम पर सभी काम करते थे। किसी व्यक्ति के नाम पर काम नहीं होता था।   अब एकेले मोदी के नाम पर होना, मोदी की गारंटी होना भी खतरनाक रहा है। पुराने कदावर  राष्ट्रीय नेताओं को एकदम से हाशिये पर कर देना भी खतरनाक रहा है जिसका असर चलते चलते इस 2024 के चुनाव पर संपूर्ण भारत में पड़ा है। ०0०

1 जून 2024.

करणीदानसिंह राजपूत,

पत्रकारिता 60 वर्ष,

सूरतगढ़ ( राजस्थान )

94143 81356.

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