गुरुवार, 9 फ़रवरी 2023

मील रवैया सुधारे.



* करणीदानसिंह राजपूत *

सूरतगढ़ की राजनीति में 10 साल सत्ता से बाहर रहे मील को अपना रवैया बदलना चाहिए क्योंकि   चुनावी वर्ष 2023 में उनके पास में केवल 8 महीने ही हैं। 

मार्च 2023 से अक्टूबर 2023 तक के 8 महीने हैं। अक्टूबर के मध्य में चुनाव की तारीखें घोषित होने और आचार संहिता लगने के बाद तो कुछ भी कर पाना संभव नहीं होता। मील चाहकर भी बाद में तो कुछ कर पाने की स्थिति में ही नहीं होंगे। 

* 2018 में पराजित हो चुके और अब फिर 2023 के चुनाव में कांग्रेस टिकट व चुनाव की तैयारी करने वाले हनुमान मील और पूर्व विधायक गंगाजल मील के मीडिया से संपर्क कैसे हैं? हनुमान मील से पहले गंगाजल मील भी 2013 में हार चुके हैं। मील परिवार के लिए आगामी चुनाव सत्ता में लौटने के लिए अंतिम अवसर है और इसलिए महत्वपूर्ण है कि हनुमान मील और गंगाजल मील के मीडिया से संपर्क और संबंध कैसे हैं? क्या मीडिया से संबंध मील की तरफ से मधुर हैं या मील की तरफ से कोई कमी है। मील का रवैया मीडिया मेन के प्रति क्या है? मील परिवार को अपने कार्य को देखना चाहिए और यह कमी रहती है तो इसका नतीजा मील के लिए लाभदायक नहीं है। क्या मील अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं?

अभी नगरपालिका के पट्टे वितरण कार्यक्रम 6 फरवरी 2023 को ही ध्यान करें जिसे मामूली नहीं मान सकते। मीडिया मेन आए नहीं और जो दो चार पहुंचे वे नोट ही नहीं कर रहे थे हंसते बतियाते रहे।

गंगाजल मील के पूरे भाषण को मीडिया ने ब्लैक आउट कर दिया जो सीधे रूप से आम जनता के लिए था और वह नहीं छपा। मील ने लोगों से अपील की थी कि पट्टे हो या नामांतरण आदि हो किसी भी कार्य के लिए निर्धारित राशि से अधिक नहीँ दें। कोई मांगे तो हमें बतलाएं और पालिकाध्यक्ष को बताएं। मांगेने वाले पर कार्रवाई होगी। यह अपील वाला भाषण न छपना ही साबित करता है कि कोई बड़ी गड़बड़ है। आखिर यह अपील क्यों नहीं छापी गई? मीडिया से संपर्क और संबंध में सुधार नहीं हुआ तो आने वाले समय में और महत्त्वपूर्ण भाषण या कार्यवाहियां नहीं छपी तो क्या होगा?

चुनाव में मीडिया मेन के संपर्क और संबंध महत्वपूर्ण साबित होते हैं। नगरपालिका में खीचतान चल रही है। मील के साथ कौन है? अब तो एक अखबार भी नहीं। 9 फरवरी 2023 को पालिकाध्यक्ष ओमप्रकाश कालवा के विरुद्ध दिन में जली लालटेन रैली प्रदर्शन को मीडिया मेन ने कवर ही नहीं किया। क्या समझा जाए मीडिया मेन मील के बजाय कालवा के साथ खड़ा है या कालवा ने अपने संबंध मजबूत किए हैं।

 मीडिया मेन आए ही नहीं। बड़े मीडिया यह छापते हैं या नहीं।

इसे मील कालवा संदर्भ में देखा जाए तो लगता है कि मीडिया मेन किसके साथ खड़ा है।

मील जो गलतियां कर रहे हैं उनको मालुम नहीं हो ऐसा हो नहीं सकता। 

चुनाव वर्ष में समय के फेर को समझना जरूरी है।०0०




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