देश के हालात,संविधान व गांधी पर विचार: रमेश छाबड़ा की काव्यकृति की विमोचन रिपोर्ट
*असहमति का अर्थ अराजकता नहीं होता— प्रो त्यागी*
सूरतगढ़ 12 जून 2022.
असहमति का अर्थ अराजकता नहीं होता। असहमति के मूल में भूत,वर्तमान और भविष्य तीनों सम्मिलित होते हैं।यह लोकतन्त्र की सबसे बड़ी विशेषता है”-यह बात प्रख्यात शिक्षाविद् और गीतकार प्रो चंद्रभानु त्यागी ने रमेश चंद्र छाबड़ा की पुस्तक “असहमति के स्वर” के विमोचन समारोह में कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप अपने संबोधन में कही। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रख्यात साहित्यकार डा मंगत बादल और विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार करणीदानसिंह राजपूत थे।
प्रो चंद्र भानु त्यागी ने अपने संबोधन में कहा कि असत्य का बोलबाला तभी तक है जब तक सत्य प्रकट नहीं होता। सत्य की अनुपस्थिति ही असत्य है। इसलिये आवश्यकता केवल सत्य को सामने लाने की है। उन्होंने कहा कि जिसके भीतर की कविता समाप्त हो जाती है वही व्यक्ति हत्यारा या दंगाई हो सकता है। उन्होंने कहा कि आज गांधीवाद की आवश्यकता न केवल भारत को है, अपितु पूरी दुनिया को है। प्रो त्यागी ने कहा कि जिस व्यक्ति में जिज्ञासा बरक़रार रहती है वह शिखर से भी आगे नये शिखर गढ़ता है।लेखक का जिज्ञासु होना अति आवश्यक है, तभी वह अपने कर्त्तव्य का पालन भली भाँति कर सकता है। उन्होंने गीता के अनेक कथ्यों का विस्तार से वर्णन किया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि डा. मंगत बादल ने कहा कि हालाँकि कविता क्रांति नहीं कर सकती लेकिन क्रांति के लिये बीज ज़रूर तैयार कर सकती है।जब तक सत्ता को चुनौती देने वाले साहित्यकार रहेंगे तब तक समाज को किसी चिंता की ज़रूरत नहीं है।
विशिष्ट अतिथि करणीदानसिंह राजपूत ने कहा कि आज जिस देश राह पर जा रहा है वहाँ, तहज़ीब का बचना मुश्किल लगता है। ऐसे माहौल में लेखकों को उठना ही होगा और अपनी असहमति दर्ज करवानी ही पड़ेगी। यदि साहित्यकार नहीं खड़ा होगा तो देश की विरासत विध्वंस का शिकार हो जायेगी। राजपूत ने रमेशचंद्र छाबड़ा के व्यक्तित्व और कवि रूप तथा काव्य यात्रा के कई सालों का रोचक वर्णन किया। राजपूत ने कहा कि कवि संघर्ष करने वाले,परेशानियां भोग रहे लोगों के बीच खड़ा होकर बात रख रहा है।
रमेशचंद्र छाबड़ा की काव्यकृति असहमति के स्वर पर दो पत्र पढे गए।
डा कृष्ण कुमार आशु ने पत्र वाचन करते हुए कहा कि कवि किसी के विपक्ष में नहीं होता अपितु वह सत्य का पैरोकार होता है।लेकिन आजकल कवियों ने भी सत्ता सुख के लालच में अपने कवित्व को ख़त्म कर दिया है। उन्होंने कहा कि रमेश चंद्र छाबड़ा ने इस दौर में असहमति का स्वर सशक्त रूप से दर्ज करवाया हैं।
प्रह्लाद पारीक ने भी पत्र वाचन करते हुए कहा कि रमेश चन्द्र छाबड़ा ने अपने कवि होने के धर्म का बखूबी पालन किया और वर्तमान समाज में मानवीय पीड़ाओं को अपना स्वर दिया है।
पुस्तक के लेखक रमेश चंद्र छाबड़ा ने अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि आज समाज का भी एक तरह से विभाजन हो गया है।ऐसे माहौल में चुप नहीं रहा जा सकता।इस नफ़रत के माहौल के ख़िलाफ़ व्यक्ति को खड़ा होना ही चाहिये। इसी भाव से इस पुस्तक की कविताओं की रचना हुई है। उन्होंने कहा कि इन कविताओं का स्वर किसी दल का राजनैतिक विरोध नहीं है बल्कि नकारात्मक माहौल के प्रति असहमति का स्वर है।
आकाशवाणी के पूर्व निदेशक दिनेश चन्द्र शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इससे पूर्व ब्लॉसम स्कूल के निदेशक अनिल चुघ ने सभी अतिथियों का स्वागत किया तथा कार्यक्रम के अंत में डा. विशाल छाबड़ा ने सभी का आभार व्यक्त किया।
काव्यकृति पर विचार रखते हुए वरिष्ठ कवि राजेश चड्ढा ने कार्यक्रम का रोचकता से संचालन किया।
कार्यक्रम में डा. संदेश त्यागी, प्रो. मोहित कुमार,डा. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख' लेखराज छाबड़ा, इंजीनियर रमेश चन्द्र माथुर, डा जयंत व्यास, लेखक नंदकिशोर सोमानी, संजय चुघ,मदन बैनीवाल, परसराम भाटिया, राकेश राठी, जयप्रकाश गहलोत, सिकंदर, विपिन छाबड़ा, विशाल छाबड़ा, अंतरिक्ष शर्मा, तनिष्क, कु.भूमिका आदि गणमान्य उपस्थित थे।०0०