दीपावली की सुबह दो बच्चियां
मांग रही थी रोटियां
काव्य - * करणीदानसिंह राजपूत *
चार पांच साल की बच्चियां
दिवाली की सुबह खड़का रही थी द्वार
मांग रही थी रोटियां।
एक तरफ यह दुर्दशा
दूसरी तरफ हजारों करोड़ रूपये
कर्जा लेकर विदेश भाग गए लोग।
अनेक जिनको दिवाली के दिन भी
रोटी मांग कर गुजारा करना होता है।
सरकार साथ में हो तो
हजारों करोड़ लेकर
विदेश भाग जाना कितना
आसान होता है।
सरकार किनका सहयोग करती है?
गरीब जिनके बच्चे कचरा इकट्ठा करते हैं
त्योहार पर भी मांग कर खाते हैं
बासी रोटी।
सरकार उन बड़े कर्जदारों का
सहयोग करती है बेझिझक
जिन्हें बैंक अधिकारियों ने,
सरकार के मंत्रियों ने
कर्जा दिलाने में हर नियम को
ताक पर रख दिया था।
बेईमानी का मालूम होने पर भी
कभी कर्जा वसूली की कोशिश नहीं की।
ऐसी मित्रता निभाई कि
कर्जा जमा कराने का नोटिस भी नहीं दिया।
उनके पासपोर्ट और वीजा
कभी जब्त ही नहीं हुए।
गरीब के लिए तो
बैंक के द्वार बार-बार बंद होते रहे।
बैंक के आगे चिलचिलाती धूप हो
या ठिठुरन में वह मरता रहा।
देश में भरे पड़े हैं बड़े समीक्षक राजनेता बुद्धिजीवी पत्रकार
वे बताएं तो सही।
सरकार किसकी सहायता करती है?
दीपावली के दिन जिन्हें
रोटी मांग कर खानी पड़ती है।
या उनकी सहायता करती है
जो हजारों करोड़ रुपए लेकर भाग गए।
अब दूसरे देशों में बैठे
वहां के कानूनों का सहारा लेकर भारत को आंखें दिखा रहे हैं।
सरकार क्या सचमुच में अंधी होती है।
उसे दिखाई नहीं देते हजारों करोड
लेकर भाग जाने वाले।
उसे दिखाई नहीं देते
दीपावली के दिन रोटी मांग कर खाने वाले।
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दि.14 नवंबर 2020. दीपावली.
सुबह दो बच्चियां रोटी मांग रही थी द्वार पर.
- करणीदानसिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार ( राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय से अधिस्वीकृत)
सूरतगढ़ ( राजस्थान)
94143 81356.
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