कविता
मेरा तिरंगा आज भी ऊंचा
- करणीदानसिंह राजपूत
मेरा तिरंगा आज भी ऊंचा
मेरे नाम की चतुर्दिक गूंज
मैं प्रगति की ओर निरंतर
आगे बढ़ता जा रहा
तुम्हारी ओछी सोच
मुझे गिराने की
मेरा नाम मिटाने की
तुम लेते रहो सपने
और एक दिन
तीर उल्टा जब खाओगे
नेस्तनाबूद हो जाओगे
तुमने कितनी बार टक्करें ली
हर बार मुंह की खाई
बेशर्मी तुम्हारे जेहन में
मात खाने को फिर पागलपन
कीड़ा तुम्हारे कुलबुलाने लगा है
सच, तम्हारे में अक्ल नहीं
मोल उधार भी तो मिलती नहीं
तुम्हारा जन्म हुआ बुद्धिहीन अवस्था में
और तुम भी तो
बुद्धि वाले पैदा नहीं कर पाए
नापाक तुम और नापाक इरादे
कच्चे कोठे से ढह जायेंगे
तुम्हे तो मरना है
आत्महत्या करके
मुझे छेड़ कर
यही तो कर रहे हो
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करणीदानसिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार
23, करनाणी धर्मशाला,
सूरतगढ़ 335 8o4
राजस्थान
सूरतगढ़ 335 8o4
राजस्थान
94143 81356
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पाठकवृंद 13-8-2011 को यह कविता लिखी गई और ब्लॉग व फेस बुक पर डाली गई थी।
आज भी परिस्थितियां बदली नहीं है।
Up date 26-1-2019.
आज भी परिस्थितियां बदली नहीं है।
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