शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

💐 आ सावन में मिलें 💐 *काव्य शब्द: करणीदानसिंह राजपूत*


सावन का महीना 

बरखा का महीना

ठंड का महीना

सब कुछ ठंडा।


तो फिर तन में

आग क्यों लगी

जब सब होता है

ठंडा बहुत ठंडा।


सावन की अगन

होती है अजब

बुझाते हैं जितनी

और ही भड़कती।


सावन की आग 

बुझेगी मिलन से

मिलने कौन दे

जग होता बैरी।



सावन का महीना

ठंडा ठंडा मौसम

रात का मिलन हो

जब सब सोते हों।


मिलन भी होगा

तेरा मेरा भी होगा

मैं जागता रहूंगा

तूं भी जागना।


तूं भी चंदा देखना

मैं भी देखता रहूंगा

वहां मिलेंगी नजरें

अद्भुत मिलन होगा।


मैं भी धरती पर हूं

तूं भी धरती पर

मिलन होगा दूर

चंदाकी धरतीपर।


मैं तो चाहता यहां

धरती पर मिलन हो

अब तूं बता अपनी

कहां पर मिलन हो।


कुछ कोशिश तूं कर

कुछ कोशिश मैं करूं

मैं सड़क पर आऊंगा

तूं भी द्वार पर आना।


तूं देखना मेरी ओर

मैं देखूंगा तेरी ओर

अपना यह मिलन 

कोई कैसे रोकेगा।


सावन में मिलन हो

कितनी खुशी होगी

मत डरना जमाने से

निश्चय अडिग रखना।


आंखों का मिलन पहले

फिर तन मन मिलेंगे।

यह मिलन होगा ऐसे

धरा नभ मिलन जैसे।


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दि. 23 जुलाई 2020.

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काव्य शब्द-

करणीदानसिंह राजपूत,

सूरतगढ़।

94143 81356.

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