शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2020

वह सजीधजी खूब प्रेमदिवस पर: कविता-करणीदानसिंह राजपूत.

 



वह खूबसूरत परिधान में

इतराती इठलाती निकली

बार बार सामने भी आई

मगर मैं चुप शांत रहा।


दुनिया का आज प्रेम दिवस

दुनिया मना रही प्रेम दिवस

वह भी सजी धजी खूब

इस प्रेम दिवस पर आज।


रूप गजब ऊपर सिंगार

बसंत की रितु मदमाती

ऐसे में यौवन का नशा

और हंसिनी सी चाल।


आज वेलेंटाइन डे पर

खूबसूरती को प्रशंसा

नहीं मिल पाई मेरी

मैं अनजान सा रहा।


वह गुलाबी पीली सी

खुशबू बिखेरती निकली

मगर आज उसे देखने को

मैंने नहीं घुमाई गरदन।


वह खूबसूरत परिधान में

बार बार सामने से निकली

प्रेम दिवस पर सुंदर 

सुनने की तो आशा थी।


दुनिया का आज प्रेम दिवस

दुनिया मना रही प्रेम दिवस

लेकिन मैं आज देखा देखी

क्यों मनाऊं प्रेम दिवस।


दुनिया के प्रेम दिवस पर

क्यों भेजूं उसे प्रेम संदेश

प्रेम संदेश तो भेजे अनेक

पढे़,नहीं पढे, उसकी मर्जी।


आज वह मना रही प्रेम दिवस

खूबसूरती में इतरा रही है

चाहे इत्र की सुगंध बिखेरे

मै नहीं,नहीं देखूंगा उसे।


मेरे संदेशों को पहले पढा नहीं

मेरी पाती को खोला नहीं 

अब चाहती संदेश सुनना

तो नहीं है कोई प्रेम संदेश।


आज केश कुंतल दिखाती

रूप का नजारा दिखाती

मुस्कान बिखेरती इठलाती को

मैंने नहीं देखा नहीं देखा।


दुनिया का आज प्रेम दिवस

दुनिया मना रही प्रेम दिवस

वह मना रही प्रेम दिवस

पर आज मेरा नहीं प्रेमदिवस।

०००००

काव्य शब्द * करणीदानसिंह राजपूत


*******०००००००********




यह ब्लॉग खोजें