ठूंस ठूंस कर खाओ,
मस्त मस्त हो जाओ।
अपने को फलता फूलता देख
जिनको नहीं सुहाता,
वे बहाने से बोलते हैं,
मोटापा आ रहा है
खराब करेगा आगे।
ऐसे डाक्टर घर घर में बैठे हैं।
ये तो दुश्मन हैं,बस टोकते रहते हैं।
मन की मानो ,अपनी करो,
ठू़ंस ठूंस कर खाओ,
मस्त मस्त रहो।
तली तलाई तेज मिर्ची खटाई
कचोरी समोसे आलू टिकिया,
और मजेदार दही बड़े,
पानीपूरी का पानी,
चाऊमिन के चटखारे।
जै बोलो इन सबकी।
सुंदरता खूबसूरती को
बचाने वचाने के चक्कर में
परेशान मत होवो।
ठूंस ठूंस कर खाओ,
मस्त मस्त हो जाओ।
आदमी हो या औरत
युवा हो या ब्याहता
रोकने टोकने पर
रूकें नहीं, न उनकी मानें
अपना मुंह अपनी जीभ
अपना ही तो पेट है,
फिर क्यों उनकी मानें।
अपनी ईच्छा है
और तन मन अपना
इसलिए सभी के सामने खाएं,
उनके सामने खाएं।
ये रोकने टोकने वाले,
अपने आप चुप रह जाएंगे।
ये घर वाले खुद रोकते टोकते हैं,
सुंदरता खूबसूरती
स्वास्थ्य का नाम लेकर,
वैद्य से भी कहलवा देते हैं।
मिर्च तेल खटाई का परहेज,
नहीं तो बन जाओगी हथिनी।
वैद्य के कहने पर भी रूकना नहीं,
अपनी ईच्छा को मारना
बड़ा अपराध ही तो है।
परिवार वाले रोकें
चाहे रिश्तेदार टोकें
अपना जीवन अपनी मस्ती है,
अब रोका टोकी का जमाना नहीं।
ठूंस ठूंस कर खाओ,
मस्त मस्त हो जाओ।
खुद खाओ,
अपने साथी सहेली को खिलाओ।
कोई दिन न चूकें
चटपटा एक दिन न भूलें।
दुनिया चार दिनों की
फिर क्या सुंदरता और क्या
खूबसूरती का पचड़ा।
अरे,जिएं तो मस्ती से जीएं।
इसलिए युवा लोगों
घर दफ्तर यात्रा हो,
जन्मदिन या ब्याह का
प्रीति भोज हो।
ठूंस ठूंस कर खाओ,
मस्त मस्त हो जाओ।
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व्यंग्य काव्य - करणीदानसिंह राजपूत,
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