रामलीला (राजस्थानी मांय)-कृति मनोज कुमार स्वामी:समीक्षा हिंदी
मंचन के उद्देश्य से रचित यह कालजयी कृति मील का पत्थर सिद्ध होगी - केसरी कान्त शर्मा ’केसरी’
पत्रकारिता और साहित्य - सृजन में संलग्न एंव विशेषतया राजस्थानी भासा के प्रति समर्पित जाने माने नाम मनोज कुमार स्वामी की प्रकाशित कृति रामलीला (राजस्थानी मांय ) पढ़ कर सुखद अनुभूति होती है। हिन्दी ब्रज व अवधी की बोलियों में दशकों पहले रामलीला पार्टियां शेखावाटी के कस्बों में चौत्र नवरात्रो में व अन्य अवसरो पर नौ दिनों तक रामलीला का आयोजन करती थी। वह लोकरंजक परम्परा टेलीविजन संस्कृति के दौर में बंद प्राय: है।
ऐसे में जन जन के आराध्य भगवान राम के लोकोत्तर चरित्र का राजस्थानी भाषा में नारद मोह से रावण - वध तक की सभी घटनाओं और प्रसंगों के क्रमबद्ध मंचन के उद्देश्य से रचित, यह कालजयी कृति मील का पत्थर सिद्ध होगी। नौ रात्रियों तक प्रस्तुति की सामग्री का मायड़ भाष राजस्थानी में मंचन हो तो, इस भासा से जुड़े करोड़ों लोगों के लिये एक एक नये सांस्कृतिक जागरण का माध्यम सिद्ध होगी और राजस्थानी के प्रचार प्रसार में भी सहायक होगी ।
अपनी भासा में अपने पन की खुशबू, मिठास और संप्रेषणीयता आम और खास सभी के लिए विशिष्ट होगी। हम कहीं भी जाएं, देश विदेश में कहीं भी रहें पर अपने लोगों सें अपनी भाषा में वार्तालाप होता है तो जीवन में अपनत्व सहज ही बरस जाता है।
इसकी प्रमुख विशेषता यह कि, पात्रों के कथोपकथन और संवाद की तुकान्त पद्दात्मक रूप में प्रस्तुति रचनाकार की विलक्षण प्रतिभा की परिचायक है जो राधेश्याम रामायण के तत्स्वरूप संवादों से भी विस्तृत और विशिष्ट और प्रभावी है।
बचपन में देखी गयी रामलीलाओं में प्रस्तुत काव्यात्मक लक्ष्मण-परशुराम संवाद, हनुमान रावण संवाद पर दर्शको के सीधे मनोगत जुड़ाव और तालियों के जोश से पण्डाल गुंजायमांन हो उठता था। इस कृति में भी ऐसे संवाद- स्थलों के प्रसंग ऐसे ही भाव से आपूरित है।
यदि इस राजस्थानी रामलीला की रामानंन्द सागर की टी. वी. रामकथा की तरह टी. वी. सीरियल बनने की व्यवस्था हो और राजस्थानी भाषा के विकास के प्रति जुड़ाव रखने वाले लोक कलाकार, रंगकर्मी रामलीला पार्टियां गठित कर इसका जगह जगह मंचन करें तो एक महती कार्य होगा।
नानी बाई रो मायरो की भांति राजस्थानी रामलीला भी अत्यन्त लोकप्रिय होगी और लोगों में राजस्थानी सीखने की प्रवृति जागृत होगी। राजस्थानी रामलीला की टोलियां गठित कर राजस्थानी भाषा की मान्यता हेतु जन जागरण करें तो सोने पे सुहागा । अभी राजस्थानी मान्यता से वंचित होने के कारण पाठ्यक्रमों में भी इसके माध्यम से शिक्षण नही हो रहा है। इस लिये राजस्थानी के प्रति पाठकीय रूझान का अभाव है भले ही अनेक राजस्थानी साहित्यकारों ने ही केवल अपनी मायड़ भाषा की जोत जगा रखी है। भगवान राम का विशाल भक्त समुदाय राजस्थानी रामलीला के मंचन से अपनी ही भाषा से जुड़ेगें ओर भाषा में पढ़ कर सीखेंगे। जिस प्रकार देवकीनंदन खत्री के जासूसी उपन्यासों के पठन के लिए लाखों लोगो नें हिन्दी सीखी। अतरू प्रस्तुत राजस्थानी रामलीला ऐसे ही उपन्यास का सेतु बननें की संभावना से आपुरित है। तमिल रामायण, कम्ब रामायण, बंग रामायण आदि आदि पच्चिसों रामायण है किन्तु तुलसी के रामचरित मानस की लोकप्रियता का कारण समग्र उतरी और पूर्वी भारत में सरलता सें समझी जा सकने वाली अवधी भाषा रही है।
इस कृति को आद्दोपरान्त अक्षरशरू पढ़नें वाला पाठक अंक दर अंक पर्दा गिरने व उठने पर आगत घटनाओं को मनोगत भाव लोक में घटते देखने की भावानुभूति रखे तो, पूरी रामलीला साक्षात देखा हुआ सा हो जाता है। राम के वन-गमन, दशरथ-मरण, श्रवण-प्रसंग, सीता-हरण, राम-विलाप आदि प्रसंगों के स्थलो को मैं भी ऐसी ही भावातीत स्थिति में अश्रुपात करते हुए पढ़ पाया। राजस्थानी के विशिष्ट शब्दभण्डार द्वारा ऐसी मार्मिकता पैदा करना भाई मनोज का कौशल अनुभव है।
अपने प्राक्कथन में रचनाकार का यह मन्तव्य कि राजस्थानी को मान्यता का प्रशन हो तो कोई यह नहीं कहे कि, राजस्थानी में रामलीला ही नही है। एक अभाव की पूर्ती करता है जिस प्रकार अनेक राजस्थानी कोश और व्याकरण इसे मान्यता दिलाने के लिए वजनदार आधार है। इस प्रकार भाई मनोज स्वामी इस मान्यूमेटल रचना के द्वारा राजस्थानी साहित्य की श्री वृद्धि करने के साथ-साथ महती उद्देश्य में सफल हुए है। भाषा की ऐसी अनूठी सेवा के लिए उन्हें कोटिश धन्यवाद और बधाईयां । उन पर भगवान राम की कृपा सदा बनी रहे।
**
पुस्तक - ’रामलीला - राजस्थानी मांय’
लेखक - मनोज कुमार स्वामी
बोधि प्रकाशन - जयपुर, पैली खेप- मई 2017
मोल- 200 - पृष्ठ - 244
केसरीकान्त शर्मा ’केसरी’
आनन्द पुरा वार्ड नं. 01
मण्डावा - 333704
जिला - झुंझनू (राज.)