सिंगरासर माईनर विधायक जी का ड्रीम प्रोजेक्ट है और यह जयपुर में बतलाते हैं। सूरतगढ़ में संघर्ष कर रहे लोगों को पुलिस ठोकती है तो यहां पर उनका मुंह नहीं खुलता:
- करणीदानसिंह राजपूत -
राजेन्द्रसिंह भादू को इलाके की जनता समझ नहीं सकी और अभी भी नहीं समझ रही,अगर भादू को सही मायने में समझ जाती तो उसकी कड़तू पुलिस नहीं कूट पाती। सिंगरासर माइनर की मांग को राजेन्द्र भादू ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट में बताया है। यह बात विधायक ने यहां नहीं कही। विधायक ने यह बात जयपुर में राजस्थान पत्रिका को कही। इसका मतलब है कि इसको बनाने का विधायक जी का सपना है। इस सपने को पूरा कराने की मांग कर रही जनता की कड़तू कुटवाने का कौनसा ड्रीम प्रोजेक्ट है यह भी जनता को समझा दिया जाना चाहिए।
ही इलाके की जनता को साथ लेकर 2007 में शुरू किया।
यह बात लिखने का कारण है कि एक तरफ तो लोगों की कड़तू कुटवाने और उन पर मुकद्दमा बनाने वाली सरकार के विधायक जी मौज मस्ती में जुट गए। विधायक जी ने राजस्थान पत्रिका के मौज मस्ती वाले मेले का उदघाटन किया ।
राजेन्द्रभादू का ड्रीम प्रोजेक्ट और मौज मस्ती को समझना चाहिए कि इसके पीछे कितनी धूर्तता भरी है।
राजेन्द्र भादू का विधायक बनने का सपना था और उसने सींगरासर माइनर का सपना इलाके के लोगों को दिखलाया। विधायक राजेन्द्र भादू ने अपना सपना तो पूरा कर लिया और जनता को सपना पूरा होने के बजाय कड़तू तुड़वानी पड़ी। इस घटना का विधायक ने कहीं भी दुख प्रगट नहीं किया। विधायक जी की सरकार ने कड़तू तो ठोकी साथ में सरकारी सम्पति को नुकसान पहुंचाने का मुकद्दमा भी सैंकड़ों लोगों पर ठोक दिया। अपना सपना पूरा करने वाले विधायक राजेन्द्र ने मुकद्दमा निरस्त करवाने और गिरफ्तारियां नहीं होने देने की घोषणा नहीं की है।
लोगों को सपना दिखलाकर राजेन्द्र भादू ने वोट बटोरे और विधायक बनने के बाद भूल गए। एक एक करके जब राजस्थान सरकार का तीसरा बजट आ गया और उसमें सिंगरासर माइनर के लिए एक पैसे की घोषणा नहीं हुई तो लोगों का संघर्ष जायज था। अब आगे कैसे विश्वास किया जा सकता है कि विधायक राजेन्द्र भादू इस माइनर के लिए वसुंधरा राजे से बात कर लेंगे और बजट भी रखवा लेंगे। वसुंधरा राजे से बात करते हुए मंत्रियों की हिम्मत नहीं होती वहां पर भादू कहां से अपनी बात रख देंगे और भादू को अपनी बात रखनी थी तो अब तक क्यों नहीं रखी? क्या लोगों की कड़तू कुटवाने का इंतजार था?
इसी माइनर के निर्माण का सपना दिखला कर गंगाजल मील ने 2008 के चुनाव में जीत हासिल की और विधायक बने। उन्होंने कागजी घोषणा करवाई और बाद में भूल गए। अब राकेश बिश्रोई के नेतृत्व में संघर्ष शुरू हो गया तब सभी को अपनी जमीन ख्सिकती नजर आने लगी और मांग के समर्थन में लग गए। लेकिन उसमें कितने शामिल हुए हैं? इसका प्रमाण कड़तू कुटवाने से हो सकता है कि इनकी यानि कि गंगाजल मील साहेब,पृथ्वी मील,गगनदीप विडिंग आदि किसी की कड़तू पर एक भी लठ नहीं पड़ा। जब लोगों की कड़तू पुलिस कूट रही थी तब ये महान नेता कहां पर थे?
लोगों को अभी तक मालूम नहीं है कि मील में और राजेन्द्र भादू में कोई फर्क नहीं है। एक ही सिक्के के दो पहलू नहीं बल्कि समझना चाहिए कि एक ही सिक्का है।
भादू को समझने के लिए एक और सबूत है। सूरतगढ़ अनूपगढ़ सड़क को निर्माण करवाने का सपना दिखलाया और जिन लोगों ने इस मंाग को उठाया उन पर मुकद्दमें बनवा दिए। इतना ही नहीं 31 दिसम्बर 2015 को तीन चार पत्रकारों को बुलाकर उनके सामने घोषणा तक कर डाली। भास्कर में 1 जनवरी 2016 को और पत्रिका में 2 जनवरी 2016 को सड़क निर्माण शुरू होने का समाचार छपा। विधायक जी ने इतना तक कहा कि 1 सप्ताह में टेंडर प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी। आजतक यह प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है।
लोगों को कुटवा कर, उन पर मुकद्दमें बनवा कर मौज मस्ती में खो जाने वाले विधायक आगे क्या क्या सलूक लोगों से करेंगे और प्रशासन से करवाऐंगे? लोगों को सावधान रहना चाहिए। यह आगे का दो साल का समय सतर्क रहने का है जाते जाते न जाने कौनसा सपना दिखा जाऐं?