विशाल ओम सृष्टि का प्रतीक और उस पर भी शेष नाग की छत्र छाया |
अखेनाथ यानि शिव का धूणा निरंतर जल रहा है। इस धूणे के पास में यहां ब्रह्मा विष्णु महेश की प्रतिमाएं स्थापित हैं। श्रद्धालु धूणे की भभूति मस्तक पर लगाते हैं। |
कुटिया में शिव लिंग स्थापित है और उस पर भी लेटा है एक काला नाग, प्रतिमा रूप में। इस कुटिया में वीर बजरंग बली,मां दुर्गा और मां करणी की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं |
बाबा लहरी नाथ की कई घुमाव लिए हुए गुफा है, जिसमें वो ध्यान लगाते हैं। |
धूणे के तीन ओर ब्रह्मा विष्णु महेश की प्रतिमाओं के अनूठे दर्शन
बाबा लहरीनाथ की त्रिवेणी संग कुटिया में यह अद्भुत लोक और उस पर नाग की छत्र छाया में ओम
कान्हाराम को हुआ आदेश तेरा नाम लहरीनाथ है, जा केर की झाड़ी के पास अखेनाथ का धूणा लगाले
लहरीनाथ तंबूरे में शिव आवो शिव आवो में अपने शरीर के बाहर धुन में लीन था और आभास हुआ कि शिव नृत्य कर रहे हैं-
यह अद्भुत संयोग 20 मिनट तक चला
इस मंदिर में शिव लिंग,वीर बजरंग बली, मां दुर्गा और मां करणी की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं
करणीदानसिंह राजपूत
सूरतगढ़, 28 जून2014।
विश्व विख्यात सूरतगढ़ में से गुजरता हुआ राष्ट्रीय उच्च मार्ग नं 15 और
वहीं आसपास गूंजती प्रवचनों तथा शिक्षा लोक से घिरे क्षेत्र में सूरतगढ़
पी.जी.कॉलेज और शेरवुड स्कूल के सामने सन सिटी रिसोर्ट से सटी हुई है बाबा
लहरीनाथ की त्रिवेणी संग कुटिया। इस कुटिया के प्रवेश द्वार के बाहर से ही
शुरू हो जाता है अद्भुत आध्यात्मिक संसार।
हरियाली में कई नाग प्रतिमाओं के अद्भुत लोक में अखेनाथ यानि शिव का धूणा
निरंतर जल रहा है। अखे नाथ यानि कि जो अक्षय है, अमर है जिसका क्षय नहीं
हो सकता। इस धूणे के पास में यहां ब्रह्मा विष्णु महेश की प्रतिमाएं
स्थापित हैं। धूणे के सामने दिखाई देती है भगवान विष्णु की पश्चिम मुखी
प्रतिमा और शेषनाग की छाया। धूणे के उत्तर की तरफ विराजे भगवान ब्रह्मा की
दक्षिण मुखी प्रतिमा की झलक दिखाई देती है तथा दक्षिण में बिराजे शिव की
उत्तरमुखी प्रतिमा की झलक दिखती है। भगवान ब्रह्मा और शिव की इन प्रतिमाओं
के पूर्ण दर्शन घूम कर किए जा सकते हैं।
यह अखेनाथ का धूणा और उसके चारों कोनों पर स्तंभ जिन पर विशाल ओम सृष्टि
का प्रतीक और उस पर भी शेष नाग की छत्र छाया। यह सब बाबा लहरी नाथ की
कल्पना से श्रद्धा और आस्था से बना है या इसके लिए हुआ था आदेश। भगवान शिव
के आदेश के बाद बनता गया यह अद्भुत लोक। इस कुटिया में तेरह चौदह काले
नागों की प्रतिमाएं ध्यान आकर्षित करती हैं। कुटिया में शिव लिंग स्थापित
है और उस पर भी लेटा है एक काला नाग, प्रतिमा रूप में। इस कुटिया में वीर
बजरंग बली,मां दुर्गा और मां करणी की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। काफी
संख्या में सफेद चूहे यानि की काबे भी हैं, जो मां करणी की प्रतिमा
स्थापना से भी पहले से हैं। यहां पर बाबा लहरी नाथ की कई घुमाव लिए हुए
गुफा है, जिसमें वो ध्यान लगाते हैं।
कान्हाराम पर हुई कृपा और बने लहरीनाथ
भगवान
किस पर कृपा करदे और उसका संसार ही बदल दे। राजस्थान के सुजानगढ़ में सन्
1949-50 में एक साधारण बावरी बिदावती परिवार में जन्म हुआ। देवी तुल्य
माता रूखमणी और पिता पेमाराम के घर में जन्म हुआ। नाम रखा गया कान्हा राम।
कान्हा राम की 12 साल की आयु में मां का स्वर्गवास हो गया और 20 साल की
आयु हुई तग पिता भी चल बसे। कान्हाराम जब 15 साल के थे तब चिनाई मिस्त्री
के काम की दैनिक मजदूरी बारह आने मिला करती थी। उन्नीस साल की आयु में
ब्याह हो गया परिवार बढ़ चला।
सुजानगढ़ में ही फूसानाथ का सानिध्य मिला और भजन कीर्तन की धुन लगी।
फूसानाथ को गुरू मान लिया तथा आस्था के संसार से नाता जुड़ता गया। सूरतगढ़
में करीब करीब 1985 में आना हुआ। उस समय इन्दिरा गांधी के नाम
से कच्ची बस्ती बस रही थी। इसी बस्ती में कान्हा राम ने भी आसरा लिया।
यत्र तत्र चिनाई मिस्त्री का काम और ईंट भ पर काम लेकिन वह तो था पेट पालन
का एक जरिया। भगवान तो कोई और रूप में बदल रहा था। करीब 1994 के आसपास
साक्षात एक आवाज ने सब कुछ बदल दिया। कहां से आई थी वह आवाज। तेरा पहले का
नाम लहरी नाथ है और आज से वही धारण करले और विशाल केर के पास में बाबा अखे
नाथ का धूणा रमाले। यह स्थान है सन सिटी रिसोर्ट के चिपते हुए उत्तर की
दिशा में।
उस विशाल केर के पास में ही साफ सफाई करके एक कुटिया बनाई गई तथा धूणा रमा
लिया गया। यह धूणा निरंतर अग्रि प्रदीप्त है। इसी स्थान पर धूणे के पास
में ही कोई दो तीन साल बाद बाबा लहरी नाथ अपने तंबूरे पर शिव की पुकार में
आत्मसात हो रहे थे। उनका मानना है कि वो उस समय अपने शरीर में नहीं थे
कहां विचर रहे थे। तंबूरे पर केवल गंूज रहे थे शब्द या मंत्र। यह कौनसी
पुकार थी। शिव बिना मेरी कुटिया सूनी। शिव आवो शिव आवो। लेकिन उस समय
आभास हुआ कि साक्षात शिव पास में ही नृत्य कर रहे हैं। लहरी नाथ का मानना
है कि आगे धुन जारी ही रही । अंग सर्प लपेटे, शिव नाचे रे, हाथ में
त्रिशूल बिराजे, अंग भभूत रमाई रे। नंदी आया जोड़ी बजावे, पार्वती ढ़ोल
बजावे रे। गणेश आया शिव धुन सुनावे रे।
बाबा लहरी नाथ आजीविका के लिए मिस्त्री का काम करते थे जो करीब 12 साल से
बंद कर दिया। हां भगवान का मंदिर कहीं बनता हो तो वहां पर काम करने निकल
पड़ते हैं मगर उसका कोई मेहनताना अब नहीं लेते। इस कुटिया में जो कुछ बना
हुआ है वह उनके ही दिमाग से बनाया हुआ है।
यहां पर ब्रह्मा विष्णु महेश की प्रतिमाएं 15 फरवरी 2009 को स्थापित की गई
थी। इसी दिन ही बजरंगबली, मां दुर्गा और मां करणी की प्रतिमाएं स्थापित
हुई। बाबा लहरी नाथ यहां बनी हुई गुफा में ध्यान लगाते हैं। गुरूओं की
वाणियां इस कुटिया में गूंजती हैं। लहरीनाथ कभी पाठशाला नहीं गए, मगर अपनी
वाणियां भी लिखी हुई हैं तथा उनको सुनाते भी हैं।
बाबा तंबूरे पर गाते हैं। इस तरह के बीसियों तंबूरे अपने हाथों से बना कर
भक्तों को भेंट कर चुके हैं। कोई कीमत नहीं लेते केवल यह आश्वासन कि भगवत
भजन कीर्तन में वह व्यक्ति इसका उपयोग करता रहेगा।
बाबा लहरी नाथ की कुटिया त्रिवेणी संग कुटिया के प्रवेश द्वार से ही
आध्यात्मिकता की लहर तरंग या झलक या आभास मिलने लगता हैं। मुख्य द्वार के
दोनों ओर शिव लिंग बने हुए दिखाई देते हैं। नागों की छत्र छाया इन पर भी
है। दाहिनी ओर शिव लिंग है जो ऊर्जा का प्रतीक ही नहीं यही माना जाता है
कि संपूर्ण संसार की गर्मी निकलती है ओर उसे ठंडा करने के लिए बाईं ओर
जलेरी बनी हुई है जिसमें जल है।
इस
कुटिया के आगे ही बड़ नीम पीपल के वृक्ष लगे हुए हैं। इन्हें ही त्रिवेणी
कहा जाता है। वृक्ष दूर लगे हुए हैं तने लिपटे हुए नहीं हैं। लेकिन जो
आध्यात्मिक ज्ञान का तत्व है वो व्यक्त किया जाता है। इन तीनों वृक्षों की
जड़ें आपस में मिली हैं और ऊपर डालियां मिली हुई हैं। पूरा संसारिक रूप
दिखता है कि सब अलग अलग लगते हैं मगर एक ही हैं आपस में मिले हुए। ब्रह्मा
विष्णु महेश तीनों एक ही तो हैं।
अखेनाथ
यानि शिव का धूणा : नाग प्रतिमाओं के अद्भुत लोक में ब्रह्मा विष्णु महेश।
अखेनाथ का धूणा और उसके चारों कोनों पर स्तंभ जिन पर विशाल ओम सृष्टि का
प्रतीक और उस पर भी शेष नाग की छत्र छाया।
अखेनाथ
यानि शिव का का धूणा और उसके सामने शेषनाग की छत्र छाया में भगवान विष्णु
की प्रतिमा व दोनों ओर स्थापित भगवान ब्रह्मा व महेश की प्रतिमाओं की झलक,
लेकिन इन प्रतिमाओं को घूम कर पूरा देखा जा सकता है। श्रद्धालु धूणे की
भभूति मस्तक पर लगाते हैं।
इस मंदिर में शिव लिंग और वीर बजरंग बली, मां दुर्गा व मां करणी की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं
मुख्य
द्वार के दोनों ओर शिव लिंग बने हुए दिखाई देते हैं। नागों की छत्र छाया
इन पर भी है। दाहिनी ओर शिव लिंग है जो ऊर्जा का प्रतीक ही नहीं यही माना
जाता है कि संपूर्ण संसार की गर्मी निकलती है ओर उसे ठंडा करने के लिए
बाईं ओर जलेरी बनी हुई है जिसमें जल है।
इस
कुटिया के आगे ही बड़ नीम पीपल के वृक्ष लगे हुए हैं। इन्हें ही त्रिवेणी
कहा जाता है। वृक्ष दूर लगे हुए हैं तने लिपटे हुए नहीं हैं। लेकिन जो
आध्यात्मिक ज्ञान का तत्व है वो व्यक्त किया जाता है। इन तीनों वृक्षों की
जड़ें आपस में मिली हैं और ऊपर डालियां मिली हुई हैं। पूरा संसारिक रूप
दिखता है कि सब अलग अलग लगते हैं मगर एक ही हैं आपस में मिले हुए।00
अपडेट 8-2-2018.
अपडेट 17 फरवरी 2023
अपडेट 7 मार्च 2024.
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