रविवार, 29 मई 2011

कहानी पूजा घर में बिल्ली का जापा

                       कहानी
                    पूजा घर में बिल्ली का जापा
               
                      - करणीदानसिंह राजपूत   


            सात जून को प्रात: वेला में देवी देवताओं के चित्रों के आगे धूप करती मेरी पत्नी विनीता सूर्यवंशी के पास के पास से बिल्ली घुसी और पूजा घर में एक कोने में रखे पायेदार बड़े बक्से के नीचे चली गई। बिल्ली वापस नहीं निकली। विनीता ने पूजा करने के बाद में एक डंडे से बिल्ली को बक्से के नीचे से निकालने का प्रयास किया तो वह गुर्राने लगी। विनीता ने गुर्राने का कारण जानने के लिए टॉर्च की रोशनी में बक्से के नीचे झांका तो आश्चर्य चकित रह गई।  बिल्ली के पास में चार नवजात बच्चे दिखाई पड़े जो उसके स्तन चूंघ रहे थे।

अरे...तेरे को जापे के लिए मेरा पूजा घर ही मिला क्या? विनीता ने मुझे और दोनों पुत्रों को आवाज देकर बुलाया...देखो...देखो पूजा घर में बिल्ली ने बच्चे जने हैं। इसने बीती रात में न जाने किस समय यहां जापा कर लिया। यह कई बार रात में पूजा घर में जोत के लिए रखे घी को चट कर जाती थी। शायद रातों में आते जाते इसने यह स्थान सुरक्षित मान कर कर जापा यहां कर लिया। हम सभी ने यह मान लिया कि अब बच्चे बड़े होने से पहले बिल्ली को यहां से निकालने का प्रयास करना व्यर्थ होगा। बच्चों के बड़े हो जाने पर बिल्ली खुद ही लेकर दूसरे स्थान पर चली जाएगी। बिल्ली अपना जापा सात घरों में फैला देती है। किसी काम के अधिक फैला दिए जाने के बाद जब समेटे जाने में परेशानी होने पर कह दिया जाता है कि बिल्ली के जापे सा फैला दिया है।

                        मोहल्ले में जब कुतिया बच्चे देती है तब उसे तेल में पका कर गुड़ का हलवा खिलाने की परंपरा आज भी है। बिल्ली को बक्से के नीचे से बाहर निकालने का प्रयास छोड़ कर उसको दूध पिलाना तय किया गया। उसको सुबह शाम दो वक्त दूध पिलाना तय हो गया। दूध पिलाने में मामूली देरी भी होती तो वह पास में आकर म्याऊं म्याऊं करने लग जाती। विनीता किसी काम में लगी होती तो वह पास में जाकर उसकी साड़ी के साथ अपना बदन रगडऩे लग जाती। विनीता फ्रीज में से दूध निकालती और एक तस्तरी में डाल कर सीढिय़ों पर रख देती। बिल्ली दूध पी लेती। बिल्ली की आदत हो गई। बिल्ली के मन में किसी से भी डर नहीं रहा। वह आती और सभी के साथ प्यार जताने लगती। पत्नी रसोई घर में भोजन बनाती तब पास तें घूमती रहती। हम भोजन करते तब पास में आ कर बैठ जाती। वह कूलर की ठंडी हवा में सो जाती। हमारा सभी का ध्यान उस पर लगा रहने लगा। उसकी चर्चा भी दिन में हर वक्त होने लगी।

            आसपास कहीं जाना होता तो ध्यान रखना पड़ता। बिल्ली अपने बच्चों के पास आती जाती रहे, इसलिए कमरे को खुला रखते। उस कमरे के ताला नहीं लगाते। पड़ोस में या बाजार में जाना होता तो लौटने की जल्दी रहती कि कमरा खुला पड़ा है।

             बिल्ली के जापे को सात दिन से अधिक हो गए। बच्चे बड़े होने लगे। चार बच्चों को दूध पिलाती है। उसे दूध अधिक दिया जाने लगा। बड़ा पुत्र योगेन्द्र और छोटा रवि बिल्ली को अलग से दूध देने लगे। वे कहते बेचारी का पेट ही नहीं भरता। उसके दूध में रोटी चूर के दी जाने लगी। बिल्ली दूध पी लेती और रोटी के टुकड़े तस्तरी में पड़े रहते।

            योगेन्द्र ने कहा कि बिल्ली को पाल लेते हैं। वह बिल्ली के दूध पर कुछ ज्यादा ही ध्यान रखने लगा। वह अलग से भी जब चाहे बिल्ली को दूध दे देता। सोलह रूपए किलो महंगे भाव का आधा किलो या कुछ ज्यादा दूध दिया जाता रहा तो महीने में ही ढ़ाई तीन सौ रूपए का दूध तो अकेली बिल्ली के लिए ही चाहिए। इसके अलावा घर को कब बंद और कब खुला रखने की परेशानी सदा के लिए हो जाने का खतरा।

            बिल्ली का घर में जापा करना और बिल्ली को घर में पालना शुभ होता है या अशुभ होता है की जानकारी ली जाने लगी। लोगों ने बताया कि बिल्ली का घर में बच्चे जनना तो शुभ होता है मगर घर में पालना अशुभ होता है। शगुन विचार पुस्तक में भी यही छपा हुआ मिला तो लोगों की बात की पुष्टि हो गई। बिल्ली को घर में पालने का विचार छोड़ दिया गया। हां, यह तय कर लिया गया कि बिल्ली जितने दिन अपने घर में रहे तब तक उसे दूध भरपूर दिया जाता रहे।

            बिल्ली के बच्चे बड़े होने के साथ ही घर में घूमने लगे। वे रसोई घर में घुस जाते। भोजन करते समय थाली के पास मंडराते। मैं पूजा करता तब मेरी पालथी मारी गोद में आकर बैठने लगे। उन्हें हटाओ तो पूजा बीच में रोको या फिर उन्हें खेलने दो। वे पूजा में भी घूमने लगे। पूजा की तस्वीरों के पास में लकड़ी का पाटा लगाने लगे ताकि बिल्ली के बच्चे तस्वीरों को खराब ना कर पाएं।

             एक दिन सुबह मैं जागा और पलंग से पांव जमीन पर धरने ही वाला था कि बिल्ली के बच्चों पर टिक जाता। बिल्ली अपने बच्चों के साथ लेटी थी। विनीता का पांव एक दिन जल्दबाजी में कूलर के पास से निकलते हुए बिल्ली की पूंछ पर टिक गया। उसने तत्काल ही झपट्टा मार लिया। उसका झपट्टा साड़ी में लगा नहीं तो पिंडली पर नाखूनों की खरोंच लग ही जाती। विनीता चिल्लाई...हट...हट..। सभी ने सुना। मैं चिल्लाया- क्या हुआ? वह बोली- देखो अभी काट खाती। इसकी पूंछ पर पांव पड़ गया। यह बैठती भी रास्ते में है। विनीता बिल्ली को कहने लगी- ऐ...तेरे को सुबह शाम मैं दूध देती हूं और तूं मुझे ही काट खाएगी।

        बिल्ली के जापे को करीब बीस दिन हो चुके थे। बिल्ली के चारों बच्चे बड़े होने के साथ घर में उधम भी मचाने लगे। हमें लगने लगा कि अब बिल्ली अपने स्वभाव के अनुसार इस घर से लेकर चली जाएगी। वह अपने बच्चों को लेकर चली जाए तो हमें कुछ राहत मिले।

        तीन जुलाई को शुक्रवार के दिन विनीता ने मां संतोषी की पूजा की और व्रत रखा। वह पूजा पूरी कर उठी ही थी कि देखा। बिल्ली का एक बच्चा मुंह मेंं एक मरे हुए चूहे को लिए इधर उधर दौड़ रहा है। चूहे के मुंह के पास में मांस निकला हुआ दिखाई दे रहा था। वह भागा और मरे हुए चूहे को मुंह में दबाए पूजा घर में ही जा घुसा। ब्ल्लिी न जाने कब चूहा मार कर ले आई थी। बिल्ली तो अपने हिंसक स्वभाव के कारण अपने बच्चों की भूख मिटाने के लिए चूहा मार कर लाई थी। उस बेचारी को तो यह मालूम नहीं था कि हम लोग मांसाहारी नहीं हैं। उस समय लगा कि अब इसे घर छोड़ कर चला जाना चाहिए। मुझे तो मिचली सी आने लगी और विनीता बिल्ली के बच्चे को पूजा घर से बाहर निकालने के लिए जल्दी मचाने लगी।

        विनीता ने पहले रसोईघर और दूजे कमरे आदि के दरवाजे बंद कर दिए ताकि उनमें ना घुस सके। मुख्य द्वार खोल दिया गया जिससे बिल्ली का बच्चा जाए तो बाहर की ओर ही भागे। मैं एक डंडा और कचरा उठाने वाला प्लाटिक पात्र लेकर पूजा में गया। वहां पर ब्ल्लिी भी बक्से के नीचे बैठी थी। मेरे मुंह से निकला- अब तूं अपने बच्चों को लेकर चली जा। अब और नहीं...सारा पूजा घर गंदा कर दिया।

        मैंने बिल्ली के बच्चे को बाहर निकालने की कोशिश की। वह मरे हुए चूहे को मुंह में दबाए ही पूजाघर में से निकला और आंगन में से भागता हुआ मुख्य द्वार से बाहर सडक़ पर जा पहुंचा। बिल्ली भी उसके साथ ही बाहर निकली। मैंने जल्दी से मुख्य द्वार बंद किया ताकि वे वापस ना घुस जाएं। बिल्ली ने अपने बच्चे को गर्दन के पास से मुंह में दबाया और पास की गली में भाग गई। बिल्ली के मुंह में उसका बच्चा और बच्चे के मुंह में चूहा। बंसल नर्सिंग होम के गेट पर खड़े लोग यह अनोखा दृश्य देखने लगे।

            मैं और विनीता दोनों आश्वस्त हो गए कि अब बिल्ली दूसरे बच्चों को भी ले जाएगी। वह सभी को लेकर चली जाए तो बाद में पूजाघर की धुलाई आदि कर साफ किया जाए। आधा घंटे के बाद बिल्ली सीढिय़ों से नीचे आंगन में उतरी। वह अपने बच्चे को कहीं छोड़ कर आई थी। हमने अनुमान लगाया कि गली में आगे टिम्बर स्टोरों के बड़े बड़े बाड़े हैं और कुछ घरों के भी गायों के बाड़े हैं, जिनमें से कहीं बच्चे को छोड़ आई है।

            बिल्ली ने अपने दूसरे बच्चे को भी गर्दन के पास से मुंह में दबाया। हमने तत्काल ही मुख्य द्वार खोल दिया। वह अपने बच्चे को लेकर चली गई। आधा घंटे के बाद वह फिर सीढिय़ों से आई और तीसरे बच्चे को भी ले गई। हम चौथे बच्चे को भी ले जाने का इंतजार करने लगे, मगर वह नहीं आई। काफी देर तक इंतजार हुआ। चौथा बच्चा आंगन में बैठा था। विनीता ने पूजाघर को धोकर साफ किया तथा बंद कर दिया ताकि फिर से बिल्ली का बच्चा वहां घुस ना सके।

            बिल्ली काफी देर तक नहीं आई। हम इंतजार कर थक गए। मैं बोला- अगर नहीं आई तो इस बच्चे को तो पालना ही होगा। दूध भी देना होगा। लेकिन ऐसे छोडऩा तो नहीं चाहिए...उसकी ममता का क्या होगा... नहीं वह आयेगी...वह अपने बच्चे को भूल थोड़े ही जाएगी। गर्मी बढ़ गई है... इसलिए नहीं आई।

            बिल्ली का चौथा बच्चा अकेला रह गया था जो कुछ देर तक तो आंगन में म्याऊं म्याऊं करता हुआ घूमता रहा। बाद में उसकी आवाज दर्दनाक विलाप में बदलती चली गई। विनीता का ममत्व जागने लगा। बोली- बेचारा रो रहा है... अकेला रह गया... ना जाने वह क्यों नहीं आई। विनीता ने बच्चे के आगे दूध रखा। उसने बहुत देर तक तो नहीं पिया। वह चिल्लाता रहा। बाद में उसने दूध पीया मगर तस्तरी में काफी दूध छोड़ दिया।

            योगेन्द्र और रवि दोपहरी में घर आए तो बताया कि बिल्ली अपने तीन बच्चों को लेकर चली गई है। चौथा यहीं है। शायद गर्मी के कारण अभी नहीं आई। हो सकता है शाम तक इसे लेने आ जाए। हमने सभी ने अनमने से भाव से भोजन किया। विनीता कमरे में जाकर सो गई। अपरान्ह में करीब चार बजे के करीब मैंने बिल्ली को आंगन में कूलर के पास में बैठे हुए देखा। मैंने विनीता को जगाया। उत्साहित होकर कहा- बिल्ली आ गई है। चौथा बच्चा कहां है?

            विनीता और मैं उसके चौथे बच्चे को खोजने लगे जो ना जाने कहां छुप गया था। वह बच्चा बैठक में पलंग के नीचे एक कोने में सोता हुआ मिला। विनीता ने उसे जगाया- अरे उठ...देख.. तेरी ममी आ गई है। विनीता उसको हाथ में उठा कर आंगन में आई। बच्चा म्याऊं म्याऊं करने लगा। बिल्ली भी बच्चे की आवाज सुन कर भागी। वह बच्चे को चूमने लगी। मां बेटे का मिलन हम दोनों देखने लगे। मैंने कहा- इसे दूध पिला दो। विनीता ने तस्तरी में दूध डाला। बिल्ली ने हमेशा की तरह दूध पिया। उसने चौथे बच्चे को भी गर्दन के पास से मुंह में दबाया और घर से बाहर भाग गई। हम दोनों उसे गली में भाग कर काफी दूर निकलते हुए देखा। वह एक बाड़े में घुसती हुई दिखाई पड़ी।

            शाम तक घर सूनासूना सा लगने लगा। मानों घर के कोई सदस्य चले गए हों। घर में से कोई छोटा बच्चा चला जाता है तब उसके बाद में ऐसा सूनापन सा  लगने लगता है। विनीता शाम की चाय पीने लगी तब उसमें रस नहीं आया। शाम की चाय के वक्त बिल्ली के बच्चों की म्याऊं म्याऊं पास में गूंजती रहती थी जो नहीं थी। उसे लग रहा था कि कुछ खो सा गया है।

            योगेन्द्र और रवि घर आए तो उन्हें बताया कि बिल्ली अपने चौथे बच्चे को भी ले गई। उन दोनों के मुंह खुले रह गए। एक साथ दोनों के मुंह से निकल पड़ा- हम दूध किसे पिलायेंगे। पता नहीं कहां ले गई होगी। कोई कुत्ता बच्चों को मार ना डाले। दोनों उदास हो गए।

            विनीता ने दोनों के चेहरे देखे और बोल पड़ी- बेटे,कहावत है कि बिल्ली अपने बच्चों को बड़ा होते होते सात घरों में घुमा देती है। वह उन्हें अपने आप पेट भरने का शिकार करने का और हमले में बचने व

आक्रमण करने के सारे तरीके सिखला देती है। हम चाहे कितना ही दूध पिलाते वह रूकने वाली नहीं थी।

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 करणीदानसिंह राजपूत

 स्वतंत्र पत्रकार,

23, करनाणी धर्मशाला,

 सूरतगढ    जिला श्रीगंगानगर राजस्थान

 मो  94143 81356

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