बुधवार, 13 जुलाई 2016

एसडीएम रामचन्द्र पोटलिया रिश्वत मामले में महत्वपूर्ण हलफनामा सामने आया:


एसीबी शिकायतकर्ता गोधाराम के इकरारनामें मुखत्यारनामें हलफनामें दस्तावेजों का देने वाले मालिक से सत्यापन कर लेता तो फर्जी एनकाडंटर जैसी भयानक भूल या गलती नहीं होती: एसडीएम जैसे बड़े अधिकारी को रिश्वत में फंसने की सोच ने एसीबी को सही चलने नहीं दिया:
भूमि मालिक दलीपसिंह ने अदालत सरकार व एसीबी को हलफनामें से शिकायत की है जिसमें गोधाराम को झूठा बतलाया है:
स्पेशल रिपोर्ट- करणीदानसिंह राजपूत -


एसडीएम जैसे बड़े अधिकारी रामचन्द्र पोटलिया के रिश्वत लेते हुए पकड़े जाने पर सारे राजस्थान में नाम व हलचल होगी के सोच से संभवतया एसीबी की जल्दबाजी हुई। एसीबी गोधाराम की शिकायत पर भरोसा करते हुए हर हालत में पकडऩे के चक्कर में छापामार कार्यवाही में जुटी जिसकी पूरी कार्यवाही की समीक्षा की जाए तो फर्जी एनकाऊंटर जैसी लगती है। एसीबी की एफआआईआर में रिश्वत मांगने के वाक्य साफ लिखे जाने चाहिए थे जो टेप में होना बतलाया गया है कि एसडीएम और गोधाराम की बातचीत हुई जो टेप में है। टेप में जो है वह लिखा क्यों नहीं गया? अनेक बिंदुओं के खुलासे के बिना ही मान लिया कि पोटलिया ने रिश्वत मांगी और दलाल के मारफत ले भी ली। उक्त रिश्वत की रकम 3 लाख रूपए है कहां? उसको किसने लिया? जिस आढ़तिए की फर्म नारायणदास राकेश कुमार से 4 लाख रूपए लिए जाना बताया गया है उसमें गोधाराम के हस्ताक्षर नहीं है और जिस मुनीम राजू के हस्ते लिखा गया है। उस राजू के भी हस्ताक्षर नहीं। यह प्रमाणित साक्ष्य नहीं है लेकिन बड़े अधिकारी के पकड़े जाने फंसने का सोच। उस दिन पोटलिया सूरतगढ़ में होता तो एसीबी जल्दबाजी में उसे गिरफ्तार करने से शायद ही चूकती। बाद में चाहे जो होता लेकिन एक बार कार्यवाही हो ही जाती। गोधाराम के फैलाए जाल में एसीबी यह फर्जी एनकाउन्टर जैसी गलती भी करती, जो हो नहीं पाई।
    गोधाराम के षडय़ंत्र को इस तरह से समझा जा सकता है कि दलीपसिंंंह के साथ किए इकरारनामे,मुखत्यारनामे आदि की प्रमाणित प्रतियां वह एसीबी को शिकायत में लगाता है,लेकिन ये दस्तावेज मूल आवंटन पत्रावली में नहीं है जो एसडीएम कार्यालय में थी तथा जो आवंटन सलाहकार समिति के सामने आती। उसने शिकायत में भूमि आवंटन का कार्य केवल एसडीएम का ही लिखा व समिति का उल्लेख तक नहीं किया? यह इसलिए किया गया कि पकड़वाना तो पोटलिया को ही था। इस पूरी कार्यवाही में गोधाराम के साथ किसी और का दिमाग भी काम करने का शक होता है। जमीन का आवंटन हो गया उसके बाद दलीपसिंह अपील में भी चला गया। उसके बाद पांच महीने बाद गोधाराम एसीबी को बड़ा भोला सा बन कर सूचना देता है कि रिश्वत की रकम 3 लाख रूपए एसीबी को सूचित किए बिना देदी है। कोई मुकद्दमा बनता हे तो कार्यवाही की जाए। वाह। इसी सूचना पर एसीबी ने तीन स्थानों पर एक साथ छापामार कार्यवाही कर डाली।
    एसीबी ने एसडीएम के पास टेप बार बार भेजा सत्यापन के लिए। अगर एसीबी गोधाराम के दस्तावेजों का सत्यापन करवा लेती मूल मालिक से ही पूछ लेती कि उसने ये दस्तावेज दिए हैं या नहीं? अगर यह जांच हो जाती तो गोधाराम का सारा खेल उजागर हो जाता। यह सारी फर्जी एनकाऊंटर जैसी कार्यवाही नहीं होती। जिस दिप छापामार कार्यवाही हुई उस दिन प्रेस को बयान भी लापरवाही से दिए गये। रिश्वत की रकम एक फर्म नारायणदास राकेश कुमार से दूसरी फर्म माँ ब्रह्माणी ट्रेडिंग कंपनी में जमा होने तक का कह दिया गया। अगले दिन एसीबी अधिकारी के हवाले से ये समाचार छपे।
गोधाराम का षडय़ंत्र दलीपसिंह के शपथपत्र से सामने आया है।
आवंटित भूमि के आधे हिस्से के मालिक दलीपसिंह मानेवाला का हलफनामा सामने आया है जिसकी एक एक पंक्ति में एसडीएम रामचन्द्र पोटलिया को रिश्वत के मुकद्दमें में फंसाने की शिकायत करने वाले गोधाराम पर आरोप लगाए गए हैं तथा जाँच करवाने की मांग की है। दलीपसिंह 80 साल का वृद्ध व्यक्ति है जिसने आरोप लगाया है कि उसने गोधाराम को अपनी भूमि के बेचान का कोई इकरारनामा नहीं किया,उसने गोधाराम को जमीन संबंधी काम करवाने का कोई मुखत्यारनामा नहीं दिया। गोधाराम ने ये दस्तावेज दिए हें तो फर्जी हैं, व झूठे बनवाए हुए हैं। उसने गोधाराम को किसी प्रकार की रिश्वत देने का नहीं कहा न अधिकार दिया और न उसने खुद ने किसी प्रकार की रिश्वत एसडीएम को दी है।
एसीबी अपनी जल्दबाजी में हुई भूलों को सुधारती है या फिर दलीपसिंह के शपथपत्र के बाद भी गोधाराम के भरोसे व षडय़ंत्र पर कार्यवाही में जुटी रहती है। यह उसके सही और फर्जी एन्काऊंटर जैसी कार्यवाही को साबित करेंगे।
वैसे दलीपसिंह के द्वारा दिए गए शपथपत्र को अब टालना संभव नहीं है। इसका एक बड़ा महत्वपूर्ण कारण है कि कोई भी व्यक्ति किसी को मुखत्यारनामा देता हे तो उस अधिकार से वह व्यक्ति केवल कानून सम्मत कार्यवाही ही कर सकता है। उस अधिकार पत्र से किसी को भी रिश्वत दिए जाने आदि की बातचीत करना व रिश्वत देना अधिकार में नहीं आता। अगर रिश्वत मांगी जा रही थी तो गोधाराम इसकी सूचना दलीपसिंह को देता,लेकिन ऐसा कहीं नहीं हुआ।
यह सारा प्रकरण जब अखबारों में छपा तब दलीपसिंह को मालूम हुआ और उसे लगा कि वह गोधाराम के किसी षडय़ंत्र में न फंस जाए तब उसने शपथ पत्र दिया जिसमें एक एक पंक्ति में पूरे दस्तावेजों व कार्यवाही का खुलासा कर दिया।
यह शपथपत्र सूरतगढ़ के नोटेरी एवं वकील साहबराम स्वामी ने 8 जुलाई 2016 को प्रमाणित किया है। दलीपसिंह ने यह शपथपत्र भ्रष्टाचार निरोधक अदालत श्रीगंगानगर, राजस्थान की मुख्यमंत्री,अतिरिक्त महानिदेशक एसीबी जयपुर,एसीबी बीकानेर के संबंधित मुकद्दमा जांच अधिकारी को भेजी है। इसकी एक प्रति एसडीएम रामचन्द्र पोटलिया को भी भेजी गई है।
इस शपथपत्र में अखिर लिखा हुआ क्या है? इसके लिए मूल हिस्से की फोटो पाठकों के लिए दी जा रही है। 



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