शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

इतनी मत पियो कि खुशियां मौत बन जाए.

 

* करणीदानसिंह राजपूत *

शादी ब्याह हो या कोई समारोह हो उनमें पीने से क्या सच्च में खुशियां बढ जाती है? यह प्रश्न  साधारण सा है मगर यह मौजमस्ती किधर ले जा रही है इसका अनुमान कोई भी लगा नहीं रहा है।   लेख का शीर्षक ही बता रहा है कि ये खुशियां कुछ घंटों की या एक दो दिनों की जब धीरे धीरे लत बन जाती है और मौत नजदीक होती है तब केवल परिवार वाले ही ईलाज कराते हैं और भगवान से जीवन बचाने की प्रार्थना करते हैं। कोई मित्र कोई सग्गा संबंधी रिश्तेदार पूछता नहीं और सहायता भी नहीं करता। वह समय डाक्टर कहता कि इसमें कुछ बचा ही नहीं है कि उपचार किया जा सके। घर में सेवा करलो दो चार दिन जितने दिन सांस है। यकृत खराब से खराब फिर भी शराब। शादी ब्याह समारोह की या फिर मित्र मंडली की,रिश्तेदारी की मस्ती की मुफ्त की शराब जब पैग से बोतल बन जाती है यदा कदा से रोजाना की आदत बन जाती है, जब लोग कहने लगते हैं कि यार ये तो टैंक है। कोई ड्रम कहते हैं। बस ये शब्द पीने वाले के मन में खुशियां भरते कि कितना पापुलर हो गया और एक दिन यह पापुलर्टी  मौत को लाकर खड़ा कर देती हैं। 


 पद और पैसे की पावर काम नहीं आती। शराब से खराब हुआ लीवर ठीक नहीं हो पाता। बड़े से बड़ा शहर बड़े से बड़ा  चिकित्सक भी बचा नहीं पाता।

*अनेक लोग शराब पीने को पिलाने को रुतबा समझने लगते हैं। * अधिकांश व्यवसाय करने वाले,ठेका पद्धति से काम करने वालों के मन में यह बात बैठी हुई है कि दारू साथ में बैठ कर पीने से काम बन जाता है। 

शराब पीना पिलाना एक बड़प्पन बनता जा रहा है और तेजी से मौत का आंकड़ा भी बढ रहा है। किसी से बातचीत करें तो अधिकांश से उत्तर मिलता है कि वे सस्ती नहीं पीते, महंगी अंग्रेजी विदेशी पीते हैं। दारू तो दारू ही होती है चाहे किसी ब्रांड की हो उससे यकृत को तो नुकसान पहुंचता ही है। 

👌 दारू पीना दारू से आवभगत करना कराना हो सकता है पीने वाले को खुश करता हो लेकिन यह खुशी है तो मौत का पहला कदम। बस! किसी का यकृत जल्दी तो किसी का देरी से खराब होता है लेकिन पीड़ादायक बहुत दर्दनाक मौत होती है।०0०

22 फरवरी 2025.

करणीदानसिंह राजपूत,

* पत्रकारिता 61 वां वर्ष.

स्वतंत्र पत्रकार( राजस्थान सरकार से आजीवन मान्यता) सूरतगढ़ ( राजस्थान )

94143 81356.

*******






यह ब्लॉग खोजें