* करणीदानसिंह राजपूत *
नशा उनका उतरता है टूटता है जो पीते हैं लेकिन उनका नशा कभी नहीं उतरता जो पीते नहीं हैं। उनको नशा शराब से नहीं मिलता जो नशा या शक्ति पत्रकारिता से जनता से मिलती है
उसका नशा तो अटूट कभी खत्म न होने वाला होता है। यह शक्ति मिलती रहे तो इसके लिए जनता का होना पड़ता है। जनता सच्च तथा तथ्य चाहती है। नशेड़ियों को शराबियों को जनता समझती है कि उनका लेवल उच्च जलाशय का नहीं बल्कि गंदे पानी के तालाब का है जिसे गिन्नाणी ( घिन आणी) बोलते हैं। जो सच्च लिखता है उसे लोग "दारूड़िया"नहीं कहते। कुछ दारूड़िये छुपकर कहीं खोखों में तो कोई झाड़ियों के पीछे अंधेरे में पीते हैं। खुशी या जीत हो तो बोतल मांग भी लेते हैं। मंगते कहलो या लिगते कह लो। ऐसों का नशा मांगी हुई शराब का घंटे दो घंटे का होता है। मतलब रोजाना ही उतरता है।
* नशे में बहकते हैं। नशे में लिखते हैं। समझते हैं कि सामने वाले सच्च लिखने वाले को दो वाक्य लिख कर मार डाला है। लेकिन जो जनता की भावना से जुड़ा होकर लिखता है उसका नशा कभी नहीं टूटता। क्योंकि यह नशा शराब का नहीं होता।०0०
28 नवंबर 2024.
करणीदानसिंह राजपूत.
पत्रकारिता 61 वां वर्ष.
( राजस्थान सरकार से अधिस्वीकृत)
सूरतगढ़ ( राजस्थान )
94143 81356
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