चुनावों के दौरान राजनीतिक दल आपस में किस प्रकार आरोप प्रत्यारोप लगाते हुए दुश्मनों जैसा व्यवहार करते हैं, ये किसी से छिपा नहीं है। संसद और विधान सभाओं में भी हंगामो के दौरान ऐसा ही कुछ देखने को मिलता है।संसद का पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ जाये इनकी सेहत पर कोई असर नहीं होता और बहुत मामूली बातों को बढ़ा चढ़ा कर कहते हुए सदन को ठप्प किये रखते हैं।पर उसी संसद में हंगामो के बीच भी कुछ विधेयक बिना चर्चा पास हो जाते हैं जो सत्ता व विरोधी पक्ष के सौहार्द व सहयोग का एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करने जैसा होता है।पिछले दिनों मार्च, 2018 में संसद ने एक ऐसे ही हंगामे के बीच एक विधेयक बिना चर्चा के पारित कर लिया जिसके तहत अब राजनीतिक दलों से विदेशी चंदों की जाँच नहीं हो सकेगी और वो भी 1976 से लागू कर किया गया ताकि पूर्व के किसी मामले में भी किसी दल को कोइ परेशानी न झेलनी पड़े । इस विधेयक को राष्ट्रवादी और ईमानदार चौकीदार की सरकार संसद में लेकर आई और पूरा दिन सत्ता को कोसने वाले किसी विपक्षी दल ने इसका विरोध नहीं किया।यूँ तो संसद को ठप्प करने का आरोप सत्ता व विपक्ष एक दूसरे पर मढ़ते रहते हैं पर जो काम इन्हें करना होता है वो उसे चुपचाप बिना चर्चा कर लेते हैं ।उसमे इनको कोई कठिनाई नहीं होती।
ऐसा ही एक कानून यूपी में अखिलेश यादव ने 2016 में मुख्यमंत्री रहते हुए पारित किया जिसके तहत राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियो को आजीवन सरकारी बंगला रखने की सुविधा प्रदान कर दी गयी।ये तो भला हो सुप्रीम कोर्ट का जिसने एक लोकहित याचिका पर निर्णय देते हुए इस कानून को अवैध करार दे दिया और इसका लाभ ले रहे सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों से 31 मई तक आवास ख़ाली करने का आदेश दे दिया।अब इन पूर्व मुख्यमंत्रियो ने जिसमे वर्तमान गृह मंत्री राजनाथसिंह, राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह,मुलायम सिंह यादव ,मायावती और खुद अखिलेश यादव शामिल हैं,इन सभी ने लखनऊ के सरकारी बंगले जो इनको पूर्व मुख्य मंत्री होने के कारण हासिल थे ,खाली कर दिए हैं।
लेकिन राजस्थान की वसुंधरा सरकार तो इनसे कहीं आगे निकल गयी है।26 अप्रेल 2017 को वसुंधरा सरकार विधान सभा में 'मंत्री वेतन संशोधन विधेयक' लायी व इसके नाम से यही लगता था कि इसमें राज्य के मंत्रियों के वेतन संशोधन के बारे में कुछ होगा।पर वेतन संशोधन के साथ इसमे बड़ी होशियारी से एक धारा 7 ख(ख)जोड़ी गयी जिसमे पूर्व मुख्यमंत्रियों को दी जाने वाली सुविधाओं का विस्तार से उल्लेख है। इसके अनुसार राज्य पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन केबिनेट मंत्री के दर्जे का सरकारी बंगला व इसके साथ सभी सुविधाएँ जैसे बिजली,पानी,टेलीफोन ,इंटरनेट आजीवन मुफ्त मिलती रहेगी।इतना ही नहीं पूर्व मुख्य मंत्रियों की आजीवन सेवा के लिए 9 कर्मचारी जिसमे एक आरएएस, निजी सचिव,सुचना सचिव,लिपिक व ड्राइवर कुल 9 कर्मचारी आजीवन पूर्व मुख्यमंत्री की सेवा करते रहेंगे।इतना ही नहीं किसी पूर्व मुख्यमंत्री को स्वयं इस उड़के परिवार के सदस्य को कहीं यात्रा करनी है तो एक सरकारी वाहन व ड्राइवर उसे मुफ्त मिलता रहेगा। इसमे ये व्यवस्था रहेगी कि अगर कोई पूर्व मुख्यमंत्री ये सुविधा नहीं ले रहा है तो बो इसके एवज में सरकारी बंगले का किराया , कर्मचारियों का वेतन व अन्य सुविधाओं का खर्च नगद भुगतान ले सकता है।एक और चौंकाने वाली व्यवस्था ये की गयी है कि अगर कोई पूर्व मुख्यमंत्री भविष्य में सांसद, किसी और सदन का सदस्य या राज्यपाल हो भी जाता है तो भो ये सुविधाएँ किसी न किसी रूप में उसे मिलती रहेगी।इस प्रकार वसुंधरा राजे द्वारा अपने लिए सरकारी खर्चे पर की गयी इस आजीवन व्यवथा का विरोध भी किसी विपक्षी ने नहीं किया जैसे वो भूल गए हों कि ये सब खर्च उसी जनता की गाढ़ी कमाई से वहन होगा जिस के लिए कसमें खा कर वो सत्ता में आये हैं।सरकारी नजरिया स्पष्ट करने के लिये ये जानना जरूरी है कि जनवरी 2004 से नियुक्त होने वाले कर्मचारियों की हैं, पेंशन बंद कर दी गई है।
कुछ लोग भारत को नफरत की राजनीती के लिये नाहक बदनाम करते हैं।क्या ऊपर दिए सभी उदाहरण यहाँ राजनीतिक दलों में आपसी सौहार्द और भाईचारे की अद्भुत मिसाल पेश नहीं करते?
रमेश छाबड़ा सूरतगढ