ऐटा सिंगरासर माइनर आँदोलन जाट आरक्षण व गुर्जर आरक्षण आँदोलन जैसा नहीं है और न बनाया जा सकता है:
सरकारी कार्यवाही का इंतजार करते हुए सुलह का रास्ता अभी खुला है:
- करणीदानसिंह राजपूत -
सूरतगढ़ 17 मई 2016.
ऐटा सिंगरासर माइनर आँदोलनकारियों की समिति ने 26 मई को सूरतगढ़ थर्मल पावर स्टेशन की कोयला पहुंचाने वाली रेल लाइन को जाम करने व थर्मल में पहुंचने वाले पानी को रोकने की चेतावनी दी हुई है। आँदोलनकारियों के दिमाग में संभवत: यह बात है कि थर्मल का कोयला पानी बंद कर देने से सफलता मिल जाएगी जैसे आरक्षण आँदोलन में जाटों व गुर्जरों को रेल मार्ग जाम करने से मिली थी। नेताओं के भाषण ग्रामीणों को गुमराह करने वाले रहेंगे। ऐटा सिंगरासर माइनर आँदोलन जाट आरक्षण व गुर्जर आरक्षण आँदोलन जैसा नहीं है और इस आँदोलन को वैसा बनाया भी नहीं जा सकता। जाट आरक्षण आँदोलन व गुर्जर आरक्षण आँदोलन में जातिगत बल था और उनका प्रभाव कोई दो चार दिन में पैदा नहीं हुआ था। उन दोनों आंदोलनों में संख्या बल को देखना भी जरूरी है। ऐटा सिंगरासर माइनर आँदोलन में संख्याबल अभी तक प्रभावी दिखाई नहीं दिया है। सभी 54 ग्रामों की औसत से जनसंख्या मानें तो करीब 54 हजार तो होगी। इनमें बच्चे और बुड्ढे आधे तो जरूर होंगे जो सभाओं में नहीं पहुंच सकते।
अभी तक सभाओं में अधिकत्तम भीड़ पाँच हजार के लगभग रही है। इससे कुछ अधिक भी मान लें तो भी मानव बल इतना नहीं पहुंचा। थर्मल गेट का महापड़ाव की घोषणा,थर्मल कूच की घोषणा,सूरतगढ़ उपखंड कार्यालय के घेराव की घोषणा और पल्लू में मेघा हाईवे जाम की घोषणा में से एक भी पूरी नहीं हुई।
आँदोलनकारियों ने जो धमकियां या चेतावनियां दी थी वे पूरी क्यों नहीं हो पाई? इसकी समीक्षा की जानी चाहिए थी लेकिन समीक्षा में अपनी समस्त शक्तियों का भी मालूम पड़ता है और समस्त कमजोरियों का भी मालूम पड़ता है।
आरक्षण आँदोलनों में ललकारने औा वार्ता करने के निर्णय एक दो नेताओं के हाथ में रहे हैं लेकिन ऐटा सिंगरासर माइनर आँदोलन में कई नेता हैं जो विभिन्न राजनैतिक दलों के हैं। सभी नेताओं के भाषण और भूमिकाएं तथा प्रत्येक नेता द्वारा जुटाई गई भीड़ का आकलन करना चाहिए।
कई असलीयतें हैं जिनको देखा परखा जाना चाहिए था जो अब तक नहीं हुआ। लेकिन एक सच्च यह भी है कि यह कार्य कौन करे? आँदोलन में भाग लेने वाले नेताओं दिल एक नहीं है। आँदोलन में भाषण देने वाले नेता इलाके के कम हैं और बाहर से पहुंचे नेताओं के भाषण तो गरमागरम रहे मगर वे भीड़ कहां से लाते? औसत एक ग्राम से 100 आदमी ही रहे यानि कि अधिकत्तम भीड़ पांच छह हजार। एक बात और विचारणीय है कि 54 ग्रामों में सभी किसान नहीं होंगे और सभी के पास में जमीनें भी नहीं होंगी। तब अन्य कार्य करने वाले इस आँदोलन में सीधे कैसे और क्यों जुड़ जाऐंगे? उनको सीधे रूप में क्या लाभ होगा? वे लोग भी सोचते तो होंगे। बाहर से पहुंचे नेताओं के भरोसे कोई कदम उठ गया तो भविष्य में किसके पीछे लगेंगे। ग्राम का आदमी यह जरूर सोचता है और जुडऩे से पहले हजार बार सोचता है।
इसी सोच विचार में सभाओं में और चेतावनियों के पूरा करने में लोग हिचकिचाए हुए रहे और कुछ पूर्व के नेताओं व सत्ताधारियों के कार्यकाल में जो कुछ होता रहा,उस पर विचार करते रहे।
ऐटा सिंगरासर माइनर की मांग जायज है। सभी नेता कह रहे हैं और सरकार के मंत्री विधायक भी कह रहे हैं। सुलह समझौतों के अवसर आते रहे हैं जो बंद नहीं हुए हैं।
थर्मल का कोयला रेल मार्ग जाम करना और पानी बंद करने की चेतावनी का पूरा होना असंभव लग रहा है जिसका वर्णन पहले किया जा चुका है कि इस आँदोलन को आरक्षण आँदोलन जैसा समझने की भूल हो रही है।
इस चेतावनी के पीछे की गंभीरता को नेताओं ने समझा नहीं है कि इसके आगे के परिणाम क्या हो सकते हैं?
नागरिक प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने थर्मल प्रशासन से वार्ता कर सभी प्रकार की रिपार्टें लेकर सुरक्षा प्रबंध शुरू कर दिए हैं।
26 मई के लिए जो डर है वह भयानक है। ऐसा नहीं है कि यह पंक्तियां आँदोलनकारियों में भय पैदा करने के लिए लिखी जा रही हो।
कानौर हैड और पल्लू में भीड़ की ओर से कुछ भी हुआ हो पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा जिसे कानूनी भाषा में चाहे हल्का बल प्रयोग कहें चाहे तीतर बीतर करना कहें। पुलिस ने पीछा किया और लोग भागे जिधर जगह मिली। रेल लाइन को जाम करने पानी को बंद करने जैसे कदम उठाते ही अगर पुलिस बल का इस्तेमाल होगा तक भीड़ जहां जगह मिलेगी उधर भागेगी। इस मौसम में जहां पारा 48 डिग्री के करीब चल रहा है और आसपास केवल रेत के टिब्बे हैं। वहां पर जो जंगल में भाग निकलेंगे उनका क्या हाल होगा? भयानक गर्मी और लू में पांच दस मिनट रेत में भागते हुए निकालना मुश्किल होगा। आँदोलनकारियों के उकसावे की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता और पुलिस कार्यवाही से भी इन्कार नहीं किया जा सकता और इस प्रकार की कोई घटना हो जाने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। अगर इस प्रकार की कोई घटना हो गई तब किसे दोष दिया जाएगा?
जैसे नेता बाहर से पहुंचे हुए हैं वेसे ही प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी भी बाहर के हैं और अपनी अपनी अवधि पूर्ण कर इलाके से तबादले पर चले जाऐंगे।
इस रूह कांपने वाले डर के अलावा एक डर है मुकद्दमों का जो भी व्यक्ति फंसता है। उसे अपना मुकद्दमा खुद को ही खुद के ही धन से और समय से लडऩा पड़ता है। उसमें कोई नेता सहयोगी नहीं होता और कोई समिति भी सहयोगी नहीं होती। आजतक के मुकद्दमों में तो यही हुआ है और व्यक्ति पीड़ाएं सुनाने वाला हो जाता है। आजकल राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की धाराएं सबसे खतरनाक होती है और वह लगती है।
अभी 26 मई तक आँदोलनकारी लोग समिति नेता गंभीरता से सोच सकते हैं और निर्णय ले सकते हैं।
किसी आँदोलन में सुलह और समझौते को पीछे हटना नहीं माना जाता। जायज मांग के लिए भी बहुत सोच समझ कर सरकार से वार्ता करते हुए आगे बढ़ा जा सकता है। क्योंकि यह मांग तो सरकार के द्वारा ही पूरी की जाने वाली है इसलिए सरकारी प्रयास को एकदम से इन्कार करना भी समझदारी नहीं कही जा सकती।
आँदोलनकारियों की एक मांग है कि सरकार पहले 54 ग्रामों की भूमि को कमांड यानि कि सिंचित घोषित करदे। यह इलाके की भौगोलिक हालत की चप्पे चप्पे की खोज कराए बिना और पानी उपलब्धि के बिना संभव नहीं है। इसके लिए नियम बने हुए हैं।
यहां पर एक तथ्य रखना चाहता हूं कि इस मांग में 3 स्थानों पर लिफ्ट की बात चर्चा में आ रही है। पहले कोलायत क्षेत्र में 6 लिफ्टों की योजना थी जो सरकारों ने नहीं बनाई कि खर्च अधिक होगा व लाभ कम होगा। वे करीब पैंतीस चालीस साल बाद में जाकर शुरू हो पाई थी।
ऐटा सिंगरासर माइनर का मुद्दा सबसे पहले उठाने वाले राजेन्द्रसिंह भादू इस समय विधायक हैं और वे बार बार कह चुके हैं कि सरकार प्रास कर रही है। पूर्व राज्यमंत्री रामप्रताप कासनिया भी आँदोलनकारियों के बीच में ठुकराना पड़ाव में पहुंचे हैं तथा मांग को जायज बतलाया है। अब सभी प्रकार की संभावनाओं पर विचार कर सभी प्रकार के लाभ हानि की बातें भी सोचते हुए कार्य करना चाहिए।
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