सीता मेरे सामने
धीर गंभीर मौन
अविचलित शांत स्वरूप
आती है हर युग में
चेतन करने को संसार
और खो जाती है
अनन्त में
स्मृति अपनी छोड़।
...सीता मेरे सामने
धीर गंभीर मौन
मन में तरंगित होती
हलचल मचाती
एक रेख।
रेख जो बना देती है अक्षर
गढ़ देती है काव्य आख्यान
बना देती है सुंदर कलाकृति
रच देती है वन उपवन
और सुगंधित नगर उप नगर।
एक रेख
की तरंग
रच देती है रामायण
और गीता का ज्ञान।
...सीता मेरे सामने
रेख की शक्ति को
सीता जानती है
इसलिए हर युग काल में
रहती है धीर गंभीर मौन।
सीता के ध्यान में होता है
जब रेख रचती है सृष्टि
और उसमें भरती है
नाना प्रकार का
जीवन।
रेख मात्र की परम शक्ति
इतनी अपार
तब कौन लगाए अनुमान
सीता की शक्ति का।
...सीता मेरे सामने
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करणीदानसिंह राजपूत
स्वतंत्र पत्रकार,
सूरतगढ़।
94143 81356.
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