मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

दिल्ली ऐसे मार देती है:मफलर से गला घोट कर:चिल्ला भी नहीं सकी भाजपा कांग्रेस:


- करणीदानसिंह राजपूत-
दिल्ली ऐसे बुरी तरह से मार डालती है मफलर से गला घोट कर कि मरने वालों की चिल्लाहट भी सुनाई नहीं पड़े। मृत्युदंड वाले के लिए जिस तरह से उसके गले के लिए फांसी का फंदा तैयार किया जाता है। खास मजबूत रस्सा मंगवाया जाता है और उसमें गांठ लगा कर कस कर देख परख लिया जाता है। ताकि मृत्युदंड वाला किसी भी हालत में बच न सके। रस्से की खिंचाई के साथ ही तड़पता दम तोड़ दे।
दिल्ली में दनदनाने वाले भाजपा व कांग्रेस के गलों को एक साथ मफलर से कस दिया गया। राजनीति में पहले ऐसी सामूहिक मौत देखी सुनी नहीं। कांग्रेस पूरी साफ हो गई तथा भाजपा के मुंह दिखाने को 3 बचे। कम से कम ये तीन भाजपा नेताओं को समीक्षा के लिए बतला सकते हैं कि किस तरह से साथी मारे गए। एक प्रकार से चश्मदीद गवाह।
    दिल्ली वालों ने ऐसा फैसला क्यों कर ले लिया? अभी तो मोदी का सितारा बुलंदी पर चढ़ रहा था। अभी अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा मित्रता का हाथ मिला कर मोदी जी की चाय पीकर लौटे ही थे। उनके समाचार टिप्पणियां छप ही रही थी।
देश को अभी तो मोदी जी बहुत कुछ देने वाले थे।
सच्च आखिर है क्या?
भाजपा के नेताओं नरेन्द्र मोदी व अन्य तथा कांग्रेस नेताओं ने जिस भाषा का अपने भाषणों में इस्तेमाल किया वो दिल्ली वालों को गाली से कम नहीं लगी। भाषणों में शालीनता नहीं थी।
केजरीवाल को बंदर कहा गया। कलाबाजियां खाने वाला बताया गया।
केजरीवाल को झूठा कहा गया।
केजरीवाल को नौटंकी करने वाला कहा गया।
भाग जाने वाला बताया गया।
केजरीवाल दिल्ली के दिल में था और इस प्रकार के भाषणों से वह दिल्ली के दिल में और भीतर तक समाता चला गया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लाखों रूपए के कोट के बजाय दिल्ली वालों ने केजरीवाल के मफलर को चुना।
गांधी का नाम लेना और उनकी जेसी दिनचर्या निभाते लंगोटी धारण करने में बहुत अंतर है। भाजपा ने केवल भाषणों में ही गांधी को बयान किया। देश का आम नागरिक भाूखा नंगा सोता है वहां प्रधानमंत्री लाखों का कोट पहने।
नरेन्द्र मोदी अगर रेहड़ी पर से 50 रूपए वाला कमीज खरीद कर पहनते तब भी वे प्रधानमंत्री ही कहलाते। कम कीमत वाली कमीज से उनका पद छोटा नहीं होता। वे और अधिक ऊंचाईयों पर पहुंचते। बीच रास्ते में इस प्रकार मामूली कहे जाने वाले हंसी उड़ाए जाने वाले मफलर से राजनैतिक मौत नहीं होती।
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही समझ लें कि दिल्ली ने भ्रष्टाचार को अहम मुद्दा माना है और ईमानदारी की छवि वाली पार्टी को चुना है।
भाजपा और कांग्रेस स्थानीय स्तर पर भी सोच ले कि उनके लीडर केस तरह रहते हैं। उनमें कितनों ने लोगों के अधिकारों पर अतिक्रमण कर रखा है। कितने सरकारी भूमि पर सड़कों पर कोठियां महल बना कर मार्केट काम्पलेक्स बना कर भ्रष्आचार फैला रखा है। जहां आम आदमी को रहने को मकान नहीं और ये लीडर लोग गरीबों के मकान आए दिन तुड़वा देते हैं। अन्य सुविधाएं भी हड़पने वालों को हटाया नहीं गया तो दिल्ली सारे हिन्दुस्तान में गली गली में गांव गांव में बोलेगी।
स्थानीय स्तर पर भी भ्रष्टाचारियों के विरूद्ध मुंह खोलना और लिखित शिकायतें करना जल्दी होगा उतना ही अच्छा होगा।
दिल्ली से सबक लें।

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