बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

किसान मांगे पानी खाद:मोदी राजे देंगे कार्ड:


पानी मांगने पर दे गोली:यूरिया मांगने पर पुलिस के डंडे धक्के:




किसान खेतों में फसल पकाने को पानी और यूरिया खाद मांग रहा है। किसान की इन मांगों पर वर्षों से परवाह नहीं और उसकी मांग पर कोई तत्परता की कार्यवाही का न सोच कर दूर की कौड़ी लाई गई है तथा मृदा परीक्षण कार्ड बांटा जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे 19 फरवरी 2015 को सूरतगढ़ में पूरे देश के लिए इसका शुभारंभ करेंगे। इस योजना के तहत प्रत्येक खेत की मिट्टी की जांच होगी और उसका रिकार्ड रहेगा। यह मिट्टी परीक्षण कराने के लिए प्रयोगशालाएं होंगी व मिट्टी परीक्षण करवाना अनिवार्य होगा। राजस्थान में सींचित कृषि जिले श्रीगंगानगर को इसके लिए चुना गया व इसके शुभारंभ के लिए सूरतगढ़ को चुना गया।
    श्रीगंगानगर जिले के किसान पिछले कई सालों से पूरा पानी दिए जाने की मांग को लेकर आंदोलन करते रहे हैं। किसानों को पर्याप्त पानी नहीं दिया जा रहा। किसान ने जब जब पूरे पानी की मांग को लेकर संघर्ष किया तब तब उसे पुलिस के धक्के मिले। भाजपा की पिछली वसुंधरा सरकार के कार्यकाल में तो सरकारी हठ इतना बढ गया था कि निहत्थे किसानों पर पुलिस की गोलियां बरसाई गई और घड़साना रावला पानी आंदोलन में 6 किसान मृत्यु की गोद में धकेल दिए गए। आज भी पानी की कमी है और किसान लगातार मांग पर मांग करने में लगा है।
    खाद के मुद्दे पर भी किसान परेशानियों में जूझ रहा है। यूरिया का संकट बताया जाता है लेकिन उसका उत्पादन कम है तो कालाबाजार में वह कैसे उपलब्ध हो जाती है? सरकार को इतना तो मालूुम होता ही है कि प्रतिवर्ष किन किन फसलों के लिए कब कब कितनी कितनी यूरिया चाहिए और किस प्रदेश को कितनी? लेकिन इसके लिए कोई प्रयास नहीं किए जाते। यूनिया के लिए ीाी किसान को पुलिस के धक्के और डंडे मिलते हैं। सवाल यह है कि पहले से ही यूरिया का उत्पादन और वितरण समय पर किए जाने का प्रबंध हो तो पुलिस की और कृषि विभाग की तथा राजस्व अधिकारियों की ड्यूटी लगाने की जरूरत ही नहीं होगी। पानी खाद के लिए प्रशासन व पुलिस की ड्यूटी लगाने से उनके असली कार्य भी बाधित होते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया को बदलने की परिवर्तन करने की कोशिश ही नहीं की जाती।
जब राज से बाहर होते हैं तब राजनैतिक पार्टियां किसानों के साथ शामिल होती हैं और जब सत्ता में होती हैं तो किसान उनको खारा लगने लगता है। किसानों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है मानो वे किसी गुलाम देश के नागरिक हों। इन शब्दों को समझने के लिए किसान के खेत में पहुंच कर ही सोचा जा सकता है। राजनैतिक मंच या सभा मंच पर भाषण देते वक्त या सुनते सुनाते वक्त यह समझ में नहीं आ सकता। यही देश है जहां अन्नदाता कहलाने वाला किसान राजनेताओं के झांसे और पुलिस की गोलियां खाता है।
किसान खेत के लिए पानी और खाद मांग रहा है सरकार उसे ये नहीं दे रही। किसान को मिट्टी की जाँच का कार्ड देगी। यह मिट्टी जांच का कार्य पहली बार शुरू नहीं किया जा रहा। देश में मिट्टी जांच का कार्य कई सालों से चल रहा है और खेतों में मोबाइल प्रयोगशालाएं तक पहुंचती रही हैं।
पानी खाद की मांग कर रहे किसानों में यह नया शगूफा छोड़ा जा रहा है। कुछ सोच कर ही छोड़ा जा रहा होगा। वैसे भी प्रयोगशाला से भी अधिक किसान स्वयं जानता है कि उसके खेत की मिट्टी किस प्रकार की है तथा उसमें कौनसी अधिक लाभ देने वाली फसल पैदा की जा सकती है।
इस कार्ड देने की योजना में सूरतगढ़ में आम सभा की जाने की तैयारियां हैं तथा उसमें 4 लाख लोग दूर दूर से लाए जाने का निर्देश भाजपा कार्यकर्ताओं को दिया गया है। अभी तो कोई चुनाव भी नहीं हैं कि प्रधानमंत्री की सभा के लिए करोड़ रूपये तक सभा व्यवस्था में सरकार के खर्च कर दिए जाऐं।
श्रीगंगानगर में पानी खाद की मांग करने वाले किसानों को अपनी ओर खींचने के लिए भाजपा ने भी किसान मोर्चा बनाया था। उस किसान मोर्चा को संचालित करने वाले मंत्री और विधायक बने हुए हैं। वे जानते हैं कि किसानों को पानी व खाद चाहिए। वे यह भी जानते हैं कि मिट्टी परीक्षण तो किसानों ने करवाया हुआ है।

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