सोमवार, 10 अगस्त 2020

एक बूंद सबको हर्षा गई - काव्य :करणीदानसिंह राजपूत



एक बूंद
आकाश से टपकी
धूल में जा मिली
पल भर का जीवन था
सबको हर्षा गई।

एक बूंद
स्वाति नक्षत्र में टपकी
सीप में जा समाई
पल भर में जीवन बदला
सच्चा मोती बन गई।

एक बूंद शीशी से टपकी
नाड़ी में समा गई
पल में जीवन को संभाला
सांसे दिला गई।

एक बूंद
दवात से टपकी
पेन में समा गई
पल में उतरे शब्द
चेतना जगा गई।

एक एक से नदियां बनती
एक एक से बनता जीवन
एक एक से बनती शक्ति
एक एक से दुनिया रचती।

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* यह कविता 1987 -88 के करीब लिखी गई थी। आकाशवाणी के सूरतगढ़ केन्द्र से प्रसारित हुई थी।
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करणीदानसिंह राजपूत,
पत्रकार,
सूरतगढ़.
94143 81356.
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