रविवार, 7 जून 2020

देश कुर्बानी मांग रहा था।हम देश के साथ खड़े थे।आज लोकतंत्र रक्षकों के साथ कौन खड़ा है? - करणीदानसिंह राजपूत.


👌 देश की स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र के बीच में आपातकाल 1975-77 में लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए हम देश के साथ खड़े थे। आज हमारे साथ कौन खड़ा ?*
देश कुर्बानी मांग रहा था। सोचने का वक्त नहीं था। जो जिस हालत में था अपने मां बाप,परिवार रोजी रोटी को छोड़ कर लोकतंत्र रक्षा के लिए घरों से निकल पड़े। बहुत कष्टदायक काल रहा।लाखों लोग जेलों में बंद किए गए और पीछे घर घर में असीमित कष्टों में परिवार।
सर पर मौत लेकर अपने परिवारों को संकट में छोड़ कर देश के साथ खड़े होने वालों के कारण देश में लोकतंत्र बच गया।संविधान बच गया।
लोकतंत्र रक्षकों की कुर्बानियों से 21 मार्च 1977 को आपातकाल हटा दिया गया। जेलों के दरवाजे खुले।
लोकतंत्र रक्षकों का सब कुछ स्वाहा हो गया था। आगे का जीवन आजतक साल दर साल कष्टों में बीतते 43 साल बीत गए।
लाखों लोगों में से अब करीब 30,000 लोग बचे हैं जो भयानक कष्टों और पीड़ाओं में एक के बाद एक मौत का शिकार होते जा रहे हैं।
मोदी है तो मुमकिन है तो फिर 6 साल से हमारे ज्ञापनों पर न कोई कार्यवाही और न कोई उत्तर।
हमारे ही कारण सत्ता में आए नेताओं द्वारा हमारी तिल तिल भयानक कष्टों से होती जा रही मौतों पर गहन चुप्पी के साथ कैसे चला रहे हैं राज!
26 जून 1975 को लगाए गए आपातकाल में हम लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए सब कुछ छोड़कर देश के साथ खड़े थे,उन्हें वृद्धावस्था में लोकतंत्र सेनानी सम्मानऔर सम्मान निधि प्रदान करने के बजाय उनकी मृत्यु की प्रतीक्षा की जा रही है।
लोकतंत्र रक्षा के लिए हम देश के साथ खड़े थे।
आज विकट हालात में लोकतंत्र रक्षकों के साथ कौन खड़ा है?
आज लोकतंत्र रक्षकों की कुर्बानियों के कारण राज कर रहे नेताओं से कल प्रश्न होंगे तब कोई उत्तर नहीं होगा।
'मोदी है तो मुमकिन है" तो मोदी के होते किसी पत्र का उत्तर तक क्यों नहीं है? लोकतंत्र रक्षकों को सम्मान पेंशन आदि पर कोई कार्यवाही नहीं। एक एक कर मर रहे हैं। सभी के मर जाने की प्रतीक्षा।
कभी कभी यह आवाज भी पैदा की जाती है कि आपातकाल में कुर्बानियां दी थी तो वह सम्मान और पेंशन के लिए तो नहीं दी थी। आज 70-80-90 साल की वृद्धावस्था में सम्मान और पेंशन देने पर निर्णय नहीं करके
एक प्रकार से लांछित करने की नीति तो कभी नहीं दिया गया था। यह नीति तो हमारी मिट्टी में भी नहीं थी।
मोदी है तो मुमकिन है की नीति ही रहे तो पिछले 6 सालों में रही गलती को भूल कह कर  सुधार लेना लोकतांत्रिक मोदी सरकार के लिए भविष्य के राज की आशा के लिए अच्छा कदम होगा।
आपातकाल में देश के साथ हम खड़े थे और आज वृद्धावस्था में लोकतंत्र रक्षकों के साथ कौन खड़ा है? तो  दिल्ली और देश के हर कोने से एक ही आवाज आनी चाहिए कि लोकतंत्र रक्षकों के साथ मोदी खड़ा है,मोदी की सरकार खड़ी है।**
दि.6 जून 2020.
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करणीदानसिंह राजपूत,
आपातकाल बंदी,
पत्रकार,
सूरतगढ़( राजस्थान)
94143 81356.
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