शनिवार, 24 दिसंबर 2016

खेत और किसान मरे तो श्मशान बन जाएंगे शहर और शहरी कारोबार

-  करणीदान सिंह राजपूत -

 खेत और किसान मरे तो सब  श्मशान बन जाएंगे। न कोई शहर बचेगा न कोई कारोबार बचेगा ना कोई अट्टालिकाएं बचेगी और न कारों हवाई जहाजों में यात्रा करने वाले बचेंगे। आदमी की रीढ की हड्डी टूट जाती है या उसमें थोड़ा भी नुकसान हो जाता है तो उस आदमी की हालत क्या होती है? क्या रीढ की हड्डी टूटने के बाद आदमी चल फिर सकता है?मौज मस्ती कर सकता है? कोई कारोबार कर सकता है? पीड़ित व्यक्ति एक स्थान पर पड़ा रहता है।

 आज जो परिस्थितियां सत्ताधारियों ने और प्रशासनिक अधिकारियों ने पैदा कर दी है। इससे खेत और किसान दोनों की हालत रीढ टूटे हुए आदमी जैसी हो गई है, अगर अभी भी सब कुछ जानते हुए इलाज नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब किसान मर जाएगा खेत मर जाएंगे। लेकिन इतराने की जरुरत नहीं है कि शहर में रहते हैं, अलग से कारोबार है,बड़ी अट्टालिका हैं, चलने को सड़के हैं,कारें और हवाई जहाज हैं। यह सब या इन में से कोई भी जीवित नहीं बचेगा, और   न उनके अंश बचेंगे।

 हमारे देश में सारी जीवन प्रणाली खेत और किसान से जुड़ी हुई है। जब खेत में कुछ पैदा नहीं होता है तो सारा इलाका अकाल और अभाव  से पीड़ित हो जाता है। संपूर्ण क्षेत्र विकास के दौर में कई साल पीछे पहुंच जाता है।

 मैं संपूर्ण देश के बजाय अभी  राजस्थान और राजस्थान में भी फिलहाल कुछ इलाके की बात कर रहा हूं, जिस इलाके में अनेक सालों के प्रयत्नों के बाद करोड़ों रुपए लगाने के बाद गंग नहर निकली,भाखड़ा और राजस्थान नहर निकली।
 यह इलाका निरंतर मेहनत करने पर सरसब्ज हुआ और आगे और अधिक विकास की संभावनाएं तलाशने वाला शक्तिशाली क्षेत्र बना। इसे आज की ताकतवर हालत में पहुंचाने वाला इलाके का किसान है और उसका परिवार है, जिसने  न दिन देखा, न रात देखी। न सर्दी की बदन चीरती हुई हवाएं देखी। न जून जुलाई गर्मी की तपन देखी।
किसान और उसका परिवार दिन-रात जूटा हुआ रहा, लेकिन आज सरकारी और प्रशासनिक अव्यवस्थाओं ने इलाके के किसान को इलाके के खेतों को मरने के लिए मजबूर कर दिया है। मेरी सोच यह है कि किसान और खेत खुद नहीं मर रहे हमारी राज व्यवस्था हमारी प्रशासनिक व्यवस्था उनकी हत्या कर रहे हैं। उनको तड़पा तड़पा कर मार रहे हैं।

 जब किसी को मारा जाता है तो वह जीव चाहे कितना ही छोटा हो कितना ही कमजोर हो। वह अपने जीवन के लिए मरने और मारने के लिए तैयार हो जाता है और उसमें सैंकड़ों गुना ताकत अपने आप पैदा हो जाती है। वह संघर्ष के लिए अपने बचाव के लिए और ताकतवर समूह बना लेता है। फिर अपनी ताकत का इस्तेमाल करता है। उस जीव द्वारा जीवन के लिए किया जाने वाला संघर्ष कामयाब रहता है।वह जीव ही नहीं पूरा समूह मौत की ओर जाने से बच जाता है।


जब जीव संघर्ष करता है तब उसके सामने ना कोई अपना होता है ना कोई पराया होता है। उसे केवल और केवल अपना जीवन दिखाई पड़ता है। आज इलाके के खेत और किसान को जीवन देने वाली राजस्थान नहर भाखड़ा नहर और गंग नहर इन तीनों को बचाने के लिए अपने खेतों को बचाने के लिए किसान इलाके का मजदूर और इलाके का व्यापारी एक जुट खडे़ हैं। कहने का मतलब है कि सब कुछ खेत और किसान से जुड़ा हुआ है। अभी भी सत्ता और प्रशासन समझ नहीं पा रहे हैं या जानबूझकर सत्ता सुख में समझना नहीं चाहते हैं। वे भूल गए हैं कि  उनका जन्म भी इस इलाके के अंदर हुआ। इस इलाके के मतों ने विजयी बनाकर जयपुर और दिल्ली भेजा। यह इलाका उनके साथ नहीं होता तो वे न दिल्ली पहुंच पाते,न राजस्थान की राजधानी जयपुर पहुंच पाते। न जिले में और न तहसील में और पंचायत समितियों में ग्राम पंचायतों में प्रतिनिधित्व कर पाते।

 इस इलाके का किसान संघर्ष करें और जनप्रतिनिधि चाहे वह  सरपंच हो, चाहे अन्य पदों पर हो, विधायक सांसद हो या फिर मंत्री हो,नष्ट हो रहे मर रहे खेत और किसान को देखते हुए कैसे समारोह कर रहे हैं?  कैसे मालाएं पहन रहे हैं और कैसे विकास के थोथे भाषण दे रहे हैं। विकास मशीनों से पैदा नहीं होता बल्कि यह जो मशीन है बनी हैं वह सब खेत और किसान के उत्पादन के बाद  आवश्यकता के अनुरूप बनाई गई है किसान और खेत नहीं होते तो फिर मशीनें भी नहीं होती।


 मैं एक बात बहुत कड़वी कहना चाह रहा हूं बल्की कह रहा हूं की अगर खेत और किसान नहीं रहे तो बाकी भी नहीं रहेंगे। इस वाक्य को समझना चाहिए। यह वाक्य और बात केवल हवा में नहीं कह रहा और हवा में उड़ाने के लिए भी नहीं कह रहा हूं। मैं इस इलाके में 50 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रहा हूं।मैं यहां के इलाके के किसानो को खेत मजदूरों को और व्यापारियों को अच्छी तरह से,भलीभांति तरीके से जानता हूं कि वे आंदोलन और संघर्ष करके अपने अधिकार प्राप्त कर लेंगे। पानी प्राप्त कर लेंगे लेकिन सत्ताधारियों का और प्रशासन का क्या होगा? जो आज किसान के साथ न होकर समारोहों में व्यस्त हैं।


 किसान और खेत रहेंगे लेकिन ये समारोह एक दिन  एक सप्ताह मनाए जा सकते हैं।  इनको सदा के लिए तो नहीं मनाया जा सकता। सदा तो खेत रहेंगे किसान रहेंगे।


राजस्थान नहर जिसे आज इंदिरा गांधी नहर कहा जा रहा है,भाखड़ा नहर और गंगनहर इलाके की तीनों जीवनदायिनी नहरें पिछले कुछ सालों से लगातार मौत की ओर जा रही है और इनसे जुड़े धरतीपुत्र किसान संघर्ष कर रहे हैं। अब समय कह रहा है कि संभल जाओ।

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24-12-2016.
अपडेट 4-6-2018.

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